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स्वयं निर्माण योजना

टेलीग्राम चैनल का लोगो yny24 — स्वयं निर्माण योजना
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नवीनतम संदेश 3

2022-06-24 02:55:33 *दिशा निर्धारण मनुष्य का अपना निर्णय...*
~ ऋषि चिंतन
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https://chat.whatsapp.com/GIZD97dNrwe6NLks3RTYKZ
110 viewsRajendra Maheshwari, edited  23:55
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2022-06-24 02:55:11 जीवन का कड़वा सच
एक बार कबीरने एक किसान से पूछा कि क्या तुम पूजा - पाठ के लिए कुछ समय देते हो
किसान ने कहा -- अभी बच्चे छोटे है ' जब वे जवान हो जाएंगे तब अवश्य भजन - पूजन करूंगा ! कुछ समय बाद ! तब कबीर ने किसान से वही प्रश्न पूछा ! किसान ने कहा - अभी बच्चों की शादी हो जाय फिर भजन करूंगा ! फिर कुछ बर्ष बाद पूछने पर किसान ने कहा कि पोतों के साथ खेलना अच्छा लगता है ! अभी समय नहीं मिल पाता ! और एक दिन उस किसान की मृत्यु हो गई !
कबीर ने ध्यान लगाकर देखा कि किसान ने घर मे एक गाय के बछड़े के रुप मैं जन्म लिया है बड़ा होने पर बछड़ा हल मैं जोता गया ! बुढ़ा होने पर कोल्हू मैं जोता गया ! बाद मैं वह जब किसी काम का न रहा तो किसान के लड़कों ने उसे एक कसाई को बेच दिया तथा उसका चमड़ा नगाड़े बनाने बालो को बेच दिया ! नगाड़ा बजाने बाले अब उसे ठोक - ठोककर बजाने लगे ! कबीर ने यही कहा
बैल बने हल मैं जुते ले गाड़ी मैं दीन !
तेली के कोल्हू रहे पुनि कसाई लीन !!
मांस कटा बोटी बिकी ' चमड़न मढी नक्कार !!!
कुछ कुकरम बाकी रहे तिस पर पड़ती मार !!!!
https://chat.whatsapp.com/GIZD97dNrwe6NLks3RTYKZ
हम सबकी यही कथा है - यही व्यथा है ! समय रहते जो नहीं चेतेगा ' भगवद्जन मैं चित्त नहीं लगायेगा ' तो पछताने के लिए भी कुछ शेष नहीं रहेगा ! कल्याण
110 viewsRajendra Maheshwari, 23:55
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2022-06-23 19:01:40 *क्या सब कुछ भगवान करते हैं...?*
~ओशो
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https://chat.whatsapp.com/FrmVUXWcla43h255j3SwY4
134 viewsRajendra Maheshwari, edited  16:01
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2022-06-23 11:29:56 *उपवास करने से पहले जान लीजिए कुछ जरूरी बातें...*
~स्वर्गीय श्री राजीव दिक्षित
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221 viewsRajendra Maheshwari, edited  08:29
ओपन / कमेंट
2022-06-23 03:33:24 https://youtube.com/shorts/hztmk2OUdac?feature=share
271 viewsRajendra Maheshwari, 00:33
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2022-06-23 03:32:59 एक बार और तुलसी अदरक की चाय बनी,
दोनों ने चाय पी और उसकी तारीफ की।
जब मरीज 2 घंटे में थोड़े ठीक हुआ तब वह दोनों वहां से आगे बढ़े ।
3 दिन इंदौर-उज्जैन में रहकर, जब लौटे तो उनके बच्चे के लिए बहुत सारे खिलौने और दूध की थैलियां लेकर आए

वापस उस दुकान के सामने रुके;

महिला को आवाज लगाई तो दोनों बाहर निकले और उनको देखकर बहुत खुश हुए

उन्होंने कहा कि आपकी दवाई से दूसरे दिन ही बिल्कुल ठीक हो गये

वासुभाई ने बच्चे को खिलोने दिए ; दूध के पैकेट दिए

फिर से चाय बनी, बातचीत हुई, अपना पन स्थापित हुआ।

वासुभाई ने अपना एड्रेस कार्ड देकर कहा, "जब कभी उधर आना हो तो जरूर मिलना।

और दोनों वहां से अपने शहर की ओर लौट गये ।
शहर पहुंचकर वासु भाई ने उस महिला की बात याद रखी; फिर एक फैसला लिया :
अपने अस्पताल में रिसेप्शन पर बैठे हुए व्यक्ति से कहा कि अब आगे से जो भी मरीज आयें: केवल उनका नाम लिखना, फीस नहीं लेना ; फीस मैं खुद लूंगा ।

और जब मरीज आते तो अगर वह गरीब मरीज होते तो उन्होंने उनसे फीस लेना बंद कर दिया

केवल संपन्न मरीज देखते तो ही उनसे फीस लेते

धीरे-धीरे शहर में उनकी प्रसिद्धि फैल गई ।

दूसरे डाक्टरों ने सुना तो उन्हें लगा कि इससे तो हमारी प्रैक्टिस भी कम हो जाएगी और लोग हमारी निंदा करेंगे ।उन्होंने एसोसिएशन के अध्यक्ष से शिकायत की।

एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. वासुभाई से मिलने आए और उन्होंने कहा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं ?
वासुभाई ने जो जवाब दिया उसको सुनकर उनका मन भी पुलकित हो गया।वासुभाई ने कहा कि मैं मेरे जीवन में हर परीक्षा में मैरिट में पहली पोजीशन पर आता रहा हूँ ; एम.बी.बी.एस. में भी, एम.डी. में भी गोल्ड मेडलिस्ट बना परंतु "सभ्यता, संस्कार और अतिथि सेवा"में वह गांव की महिला जो बहुत गरीब है, वह मुझसे आगे निकल गयी तो मैं अब पीछे कैसे रहूंँ?
इसलिए मैं अतिथि-सेवा और मानव-सेवा में भी गोल्ड मैडलिस्ट बनूंगा।इसलिए मैंने यह सेवा प्रारंभ की है और मैं यह कहता हूँ कि हमारा व्यवसाय मानव सेवा का ही है।
सारे चिकित्सकों से भी मेरी अपील है कि वह सेवा-भावना से काम करें ,गरीबों की निशुल्क सेवा करें, उपचार करें। यह व्यवसाय धन कमाने का नहीं है।परमात्मा ने हमें मानव-सेवा का अवसर प्रदान किया है।
एसोसिएशन के अध्यक्ष ने वासुभाई को प्रणाम किया और धन्यवाद देकर उन्होंने कहा कि मैं भी आगे से ऐसी ही भावना रखकर चिकित्सा-सेवा करूँ।
250 viewsRajendra Maheshwari, 00:32
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2022-06-23 03:32:59 *वासु भाई और वीणा बेन* गुजरात के एक शहर में रहते हैं; आज दोनों यात्रा की तैयारी कर रहे थे

3 दिन का अवकाश था; पेशे से चिकित्सक हैं

लंबा अवकाश नहीं ले सकते थे। परंतु जब भी दो-तीन दिन का अवकाश मिलता छोटी यात्रा पर कहीं चले जाते हैं

आज उनका इंदौर- उज्जैन जाने का विचार था

दोनों जब साथ-साथ मेडिकल कॉलेज में पढ़ते थे, वहीं पर प्रेम अंकुरित हुआ था और बढ़ते-बढ़ते वृक्ष बना

दोनों ने परिवार की स्वीकृति से विवाह किया

2 साल हो गए,अभी संतान कोई है नहीं, इसलिए यात्रा का आनंद लेते रहते हैं

विवाह के बाद दोनों ने अपना निजी अस्पताल खोलने का फैसला किया, बैंक से लोन लिया

वीणाबेन स्त्री-रोग विशेषज्ञ और वासु भाई डाक्टर आफ मैडिसिन हैं

इसलिए दोनों की कुशलता के कारण अस्पताल अच्छा चल निकला

यात्रा पर रवाना हुए, आकाश में बादल घुमड़ रहे थे

मध्य-प्रदेश की सीमा लगभग 200 कि मी दूर थी; बारिश होने लगी थ

म.प्र. सीमा से 40 कि.मी. पहले छोटा शहर पार करने में समय लगा ।

कीचड़ और भारी यातायात में बड़ी कठिनाई से दोनों ने रास्ता पार किया।

भोजन तो मध्यप्रदेश में जाकर करने का विचार था : परंतु चाय का समय हो गया था।

उस छोटे शहर से ४-५ कि.मी. आगे निकले

सड़क के किनारे एक छोटा सा मकान दिखाई दिया;जिसके आगे वेफर्स के पैकेट लटक रहे थे

उन्होंने विचार किया कि यह कोई होटल है

वासुभाई ने वहां पर गाड़ी रोकी, दुकान पर गए, कोई नहीं था

आवाज लगाई ! अंदर से एक महिला निकल कर आई

उसने पूछा, "क्या चाहिए भाई ?"

वासुभाई ने दो पैकेट वेफर्स के लिए और "कहा बेन !! दो कप चाय बना देना ; थोड़ी जल्दी बना देना, हमको दूर जाना है"

पैकेट लेकर गाड़ी में गए ; दोनों ने पैकेट के वैफर्स का नाश्ता किया ; चाय अभी तक आई नहीं थी

दोनों कार से निकल कर दुकान में रखी हुई कुर्सियों पर बैठे

वासुभाई ने फिर आवाज लगाई

थोड़ी देर में वह महिला अंदर से आई और बोली, "भाई! बाड़े में तुलसी लेने गई थी, तुलसी के पत्ते लेने में देर हो गई ; अब चाय बन रही है"

थोड़ी देर बाद एक प्लेट में दो मैले से कप लेकर वह गरमा गरम चाय लाई

मैले कप देखकर वासु भाई एकदम से अपसेट हो गए और कुछ बोलना चाहते थे ; परंतु वीणाबेन ने हाथ पकड़कर उन्हें रोक दिया।
चाय के कप उठाए; उनमें से अदरक और तुलसी की सुगंध निकल रही थी

दोनों ने चाय का एक सिप लिया ।

ऐसी स्वादिष्ट और सुगंधित चाय जीवन में पहली बार उन्होंने पी : उनके मन की हिचकिचाहट दूर हो गई।

उन्होंने महिला को चाय पीने के बाद पूछा, कितने पैसे ?

महिला ने कहा, "बीस रुपये"

वासुभाई ने सौ का नोट दिया

महिला ने कहा कि भाई छुट्टा नहीं है; 20 ₹ छुट्टा दे दो

वासुभाई ने बीस रु का नोट दिया

महिला ने सौ का नोट वापस किया

वासुभाई ने कहा कि हमने तो वैफर्स के पैकेट भी लिए हैं !

महिला बोली, "यह पैसे उसी के हैं ; चाय के नहीं"

अरे! चाय के पैसे क्यों नहीं लिए ?

जवाब मिला हम चाय नहीं बेंचते हैं यह होटल नहीं है

"फिर आपने चाय क्यों बना दी ?"

"अतिथि आए !! आपने चाय मांगी, हमारे पास दूध भी नहीं था ; यह बच्चे के लिए दूध रखा था, परंतु आपको मना कैसे करते; इसलिए इसके दूध की चाय बना दी"

अब बच्चे को क्या पिलाओगे?

"एक दिन दूध नहीं पिएगा तो मर नहीं जाएगा"।

इसके पापा बीमार हैं; वह शहर जाकर दूध ले आते, पर उनको कल से बुखार है; आज अगर ठीक हो गऐ तो कल सुबह जाकर दूध ले आएंगे"।

वासुभाई उसकी बात सुनकर सन्न रह गये।

इस महिला ने होटल न होते हुए भी अपने बच्चे के दूध से चाय बना दी और वह भी केवल इसलिए कि मैंने कहा था ; अतिथि रूप में आकर।

संस्कार और सभ्यता में महिला मुझसे बहुत आगे है।

उन्होंने कहा कि हम दोनों डॉक्टर हैं : आपके पति कहां हैं?

महिला उनको भीतर ले गई ; अंदर गरीबी पसरी हुई थी।

एक खटिया पर सज्जन सोए हुए थे ; बहुत दुबले पतले थे ।वासुभाई ने जाकर उनके माथे पर हाथ रखा ; माथा और हाथ गर्म हो रहे थे और कांप भी रहे थे।

वासुभाई वापस गाड़ी में गए; दवाई का अपना बैग लेकर आए; उनको दो-तीन टेबलेट निकालकर खिलाई और कहा "इन गोलियों से इनका रोग ठीक नहीं होगा"।

मैं पीछे शहर में जा कर इंजेक्शन और दवाई की बोतल ले आता हूं ।

वीणाबेन को उन्होंने मरीज के पास बैठने को कहा।

गाड़ी लेकर गए, आधे घंटे में शहर से बोतल, इंजेक्शन ले कर आए और साथ में दूध की थैलियां भी लेकर आये।

मरीज को इंजेक्शन लगाया, बोतल चढ़ाई और जब तक बोतल लगी दोनों वहीं बैठे रहे।
213 viewsRajendra Maheshwari, 00:32
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2022-06-23 03:32:59 *हर काम ईमानदारी और रूचि से करें...*
~ ऋषि चिंतन
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https://chat.whatsapp.com/GYULmQcRNqa4n6jy9AF6hb
196 viewsRajendra Maheshwari, edited  00:32
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2022-06-22 18:51:06 *एक छोटी सी कहानी जो जिंदगी बदल सकती है...*
~ओशो
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https://chat.whatsapp.com/IEyekkCZjthF1yPyZcHeQD
233 viewsRajendra Maheshwari, edited  15:51
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2022-06-22 18:50:11 ध्यान क्या है - भाग - 5

ध्यान का अर्थ है क्रियाहीन होना। ध्यान क्रिया नहीं, अवस्था है। वह अपने स्वरूप में होने की स्थिति है। क्रिया में हम अपने से बाहर के जगत से संबंधित होते हैं। अक्रिया में स्वयं से संबंधित होते हैं। जब हम कुछ भी नहीं कर रहे हैं, तब हमें उसका बोध होता है जो कि हम हैं। अन्यथा, क्रियाओं में व्यस्त हम स्वयं से ही अपरिचित रह जाते हैं।

यह स्मरण भी नहीं हो पाता है कि हम भी हैं। हमारी व्यस्तता बहुत सघन है। शरीर तो विश्राम भी कर ले, मन तो विश्राम करता ही नहीं है। जागते हम सोचते हैं, सोते स्वप्न देखते हैं। इस सतत व्यस्तता और क्रिया से घिरे हुए, हम स्वयं को भूल ही जाते हैं। अपनी ही क्रियाओं की भीड़ में अपना ही खोना हो जाता है। यह कैसा आश्चर्यजनक है?

पर यही हमारी वस्तुस्थिति है। हम खो गए हैं—किन्हीं अन्य लोगों की भीड़ में नहीं, अपने ही विचारों, अपने ही स्वप्नों, अपनी ही व्यस्तताओं और अपनी ही क्रियाओं में। हम अपने ही भीतर खो गए हैं।

ध्यान इस स्व—निर्मित भीड़ से, इस कल्पित भटकन से बाहर होने को मार्ग है। निश्चित ही वह स्वयं कोई क्रिया नहीं हो सकता है। वह कोई व्यस्तता नहीं है। वह अव्यस्त मन, अनऑक्युपाइड माइंड का नाम है। मैं यही सिखाता हूं। यह कैसा अजीब सा लगता है कहना कि मैं अक्रिया सिखाता हूं। मैं यही सिखाता हूं। और यह भी कि यहां हम अक्रिया करने को इकट्ठे हुए हैं।

मनुष्य की भाषा बहुत कमजोर है और बहुत सीमित है। वह क्रियाओं को ही प्रकट करने को बनी है, इसलिए आत्मा को प्रकट करने में सदा असमर्थ हो जाती है। निश्चित ही जो वाणी के लिए निर्मित है, वह मौन को कैसे अभिव्यक्त कर सकती है।

'ध्यान' शब्द से प्रतीत होता है कि वह कोई क्रिया है,पर वह क्रिया बिलकुल भी नहीं है। मैं कहूं कि 'मैं ध्यान करता था' तो गलत होगा, उचित होगा कि मैं कहूं कि 'मैं ध्यान में था।’ वह बात प्रेम जैसी ही है। मैं प्रेम में होता हूं। प्रेम किया नहीं जाता है। इसलिए मैंने कहा कि ध्यान एक चित्त—अवस्था, स्टेट ऑफ माइंड है
यह प्रारंभ में ही समझ लेना बहुत जरूरी है। हम यहां कुछ करने को नहीं, वरन उस स्थिति को अनुभव करने आए हैं, जब बस केवल हम होते हैं, और कोई क्रिया हममें नहीं होती है। क्रिया का कोई धुआं नहीं होता है और केवल सत्ता की अग्निशिखा ही रह जाती है। बस 'मैं' ही रह जाता हूं। यह विचार भी नहीं रह जाता है कि ' मैं हूं।’ बस ' होना मात्र' ही रह जाता है। इसे ही शून्य समझें।
https://chat.whatsapp.com/IEyekkCZjthF1yPyZcHeQD
यही वह बिंदु है जहां से संसार का नहीं, सत्य का दर्शन होता है। इस शून्य में ही वह दीवार गिर जाती है, जो मुझे स्वयं को जानने से रोके हुए है। विचार के पर्दे उठ जाते हैं और प्रज्ञा का आविर्भाव होता है। इस सीमा में विचारा नहीं, जाना जाता है। दर्शन है यहां, साक्षात है यहां।
ओशो
ध्यान - सूत्र
234 viewsRajendra Maheshwari, 15:50
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