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एक बार और तुलसी अदरक की चाय बनी, दोनों ने चाय पी और उसकी तारीफ | स्वयं निर्माण योजना

एक बार और तुलसी अदरक की चाय बनी,
दोनों ने चाय पी और उसकी तारीफ की।
जब मरीज 2 घंटे में थोड़े ठीक हुआ तब वह दोनों वहां से आगे बढ़े ।
3 दिन इंदौर-उज्जैन में रहकर, जब लौटे तो उनके बच्चे के लिए बहुत सारे खिलौने और दूध की थैलियां लेकर आए

वापस उस दुकान के सामने रुके;

महिला को आवाज लगाई तो दोनों बाहर निकले और उनको देखकर बहुत खुश हुए

उन्होंने कहा कि आपकी दवाई से दूसरे दिन ही बिल्कुल ठीक हो गये

वासुभाई ने बच्चे को खिलोने दिए ; दूध के पैकेट दिए

फिर से चाय बनी, बातचीत हुई, अपना पन स्थापित हुआ।

वासुभाई ने अपना एड्रेस कार्ड देकर कहा, "जब कभी उधर आना हो तो जरूर मिलना।

और दोनों वहां से अपने शहर की ओर लौट गये ।
शहर पहुंचकर वासु भाई ने उस महिला की बात याद रखी; फिर एक फैसला लिया :
अपने अस्पताल में रिसेप्शन पर बैठे हुए व्यक्ति से कहा कि अब आगे से जो भी मरीज आयें: केवल उनका नाम लिखना, फीस नहीं लेना ; फीस मैं खुद लूंगा ।

और जब मरीज आते तो अगर वह गरीब मरीज होते तो उन्होंने उनसे फीस लेना बंद कर दिया

केवल संपन्न मरीज देखते तो ही उनसे फीस लेते

धीरे-धीरे शहर में उनकी प्रसिद्धि फैल गई ।

दूसरे डाक्टरों ने सुना तो उन्हें लगा कि इससे तो हमारी प्रैक्टिस भी कम हो जाएगी और लोग हमारी निंदा करेंगे ।उन्होंने एसोसिएशन के अध्यक्ष से शिकायत की।

एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. वासुभाई से मिलने आए और उन्होंने कहा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं ?
वासुभाई ने जो जवाब दिया उसको सुनकर उनका मन भी पुलकित हो गया।वासुभाई ने कहा कि मैं मेरे जीवन में हर परीक्षा में मैरिट में पहली पोजीशन पर आता रहा हूँ ; एम.बी.बी.एस. में भी, एम.डी. में भी गोल्ड मेडलिस्ट बना परंतु "सभ्यता, संस्कार और अतिथि सेवा"में वह गांव की महिला जो बहुत गरीब है, वह मुझसे आगे निकल गयी तो मैं अब पीछे कैसे रहूंँ?
इसलिए मैं अतिथि-सेवा और मानव-सेवा में भी गोल्ड मैडलिस्ट बनूंगा।इसलिए मैंने यह सेवा प्रारंभ की है और मैं यह कहता हूँ कि हमारा व्यवसाय मानव सेवा का ही है।
सारे चिकित्सकों से भी मेरी अपील है कि वह सेवा-भावना से काम करें ,गरीबों की निशुल्क सेवा करें, उपचार करें। यह व्यवसाय धन कमाने का नहीं है।परमात्मा ने हमें मानव-सेवा का अवसर प्रदान किया है।
एसोसिएशन के अध्यक्ष ने वासुभाई को प्रणाम किया और धन्यवाद देकर उन्होंने कहा कि मैं भी आगे से ऐसी ही भावना रखकर चिकित्सा-सेवा करूँ।