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स्वयं निर्माण योजना

टेलीग्राम चैनल का लोगो yny24 — स्वयं निर्माण योजना
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2022-06-16 18:04:10 *नाभि से श्वास चले तो...*
~ओशो
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187 viewsRajendra Maheshwari, edited  15:04
ओपन / कमेंट
2022-06-16 18:03:39 विश्वास जिज्ञासा को रोक लेते हैं, ठहरा लेते हैं, फिर जिज्ञासा गहरी नहीं हो पाती। अगर जिज्ञासा को गहरा करना है तो विश्वासों को मत पकड़ना, थोथे ज्ञान को मत पकड़ना; सुने-सुनाए ज्ञान को, पढ़े-पढ़ाए ज्ञान को मत पकड़ लेना--वह सब जिज्ञासा को मार डालेगा। क्यों? क्योंकि बिना जाने हमें यह भ्रम पैदा हो जाएगा कि हम जानते हैं। हम सबको यह भ्रम है कि हम जानते हैं--ईश्वर है! हम सबको यह भ्रम है हम जानते हैं--मोक्ष है! हम सबको यह भ्रम है हम जानते हैं--पुनर्जन्म है! हम सबको यह भ्रम है हम जानते हैं कर्म है, आत्मा है, फलां है, ढिकां है! हम सब कुछ जानते हुए मालूम पड़ते हैं!

यह जानते हुए मालूम पड़ना घातक है। यह आपकी प्यास की हत्या कर देगा। और फिर आपके भीतर वह ज्वलंत प्यास नहीं रह जाएगी, जो पहुंचा सकती है। इस सबको छोड़ देने के लिए इसीलिए मैंने इधर तीन दिनों में आपसे कहा। जानें ठीक से कि मैं अज्ञानी हूं नहीं जानता हूं।

जो व्यक्ति इस बात को ठीक से जानता है कि मैं नहीं जानता हूं, उसकी प्यास अदम्य हो उठती है। क्योंकि अज्ञान से कोई भी तृप्त नहीं हो सकता है। ज्ञान से तृप्त हो सकता है। तथाकथित ज्ञान से तृप्त हो सकता है। लेकिन अज्ञान से कोई कैसे तृप्त हो सकता है? अज्ञान तो धक्के देता है। अज्ञान तो एक अतृप्ति पैदा करता है, एक डिसकंटेंट कि बदलो, इस अज्ञान को बदलो।

लेकिन हम अज्ञान को छिपा लेते हैं शब्दों के ज्ञान में। फिर अज्ञान की ताकत टूट जाती है, वह हमें धक्के नहीं दे पाता। और तब हम एक मीडियाकर, एक बिलकुल ही कुनकुने आदमी जिसके जीवन में कोई उत्तप्त, कोई पेशन, जिसके जीवन में कोई जीवंत-बल, कोई जीवंत-ऊर्जा नहीं है--ऐसे आदमी हो जाते हैं--बुझे-बुझे। जिसकी ज्योति जलती नहीं।

हम सब बुझे-बुझे आदमी हैं। इसलिए देर लगती है पहुंचने में। जलता हुआ आदमी होना चाहिए। पूरा जीवन एक ज्वलंत, एक जीवंत, एक लिविंग शक्ति, एक ताकत होनी चाहिए। और हम सब हो सकते हैं। लेकिन अपने ही हाथों हम नहीं हैं।

मुझ पर नहीं निर्भर है, आप पर निर्भर है। चाहें तो इसी क्षण--अभी और यहीं, बात पूरी हो सकती है। एक क्षण में भी बातें हुई हैं।

असंभव क्रान्ति साधना शिविर
प्रवचन 10
184 viewsRajendra Maheshwari, 15:03
ओपन / कमेंट
2022-06-16 18:03:39 हमें ध्यान को उपलब्ध करने में कितना समय लगेगा?

कोई सामान्य उत्तर नहीं हो सकता है। क्योंकि ध्यान को कितने समय में उपलब्ध हो सकेंगे, यह मुझ पर नहीं, आप पर निर्भर है। और इसके लिए कुछ ऐसा नहीं हो सकता कि सभी लोग एक ही समय में उपलब्ध हो सकें। आपकी तीव्रता, आपकी प्यास, आपकी लगन, आपकी अभीप्सा, इस सब पर निर्भर करेगा। एक क्षण में भी उपलब्ध हो सकते हैं, और पूरे जीवन में भी न हों। एक क्षण में भी, तीव्र प्यास का एक क्षण भी, इंटेंसिटी का एक क्षण भी जीवन को बदल सकता है। और नहीं तो धीरे-धीरे, धीरे-धीरे--कोई तीव्रता नहीं है, कोई सीरियसनेस, कोई गंभीरता नहीं है कि उसे हम प्यास की तरह पकड़ें।

एक आदमी प्यासा है तो उसकी पानी की खोज और बात है। और एक आदमी प्यासा नहीं है, उसकी पानी की खोज बिलकुल दूसरी बात है। प्यास तो खोज लेगी पानी को। और जितनी तीव्र होगी, उतनी तीव्रता से खोज लेगी।

एक पहाड़ी रास्ते पर एक यात्री जाता था। एक बूढ़े आदमी को बैठा हुआ देखा उसने और कहा, गांव कितनी दूर है और मैं कितने समय में पहुंच जाऊंगा? वह बूढ़ा ऐसे बैठा रहा, जैसे उसने न सुना हो या बहरा हो। वह यात्री हैरान हुआ। उस बूढ़े ने कुछ भी न कहा। यात्री आगे बढ़ गया, कोई बीस कदम गया होगा, वह बूढ़ा चिल्लाया--सुनो, एक घंटा लगेगा। उस आदमी ने कहा, यात्री ने कि अजीब हो, मैंने जब पूछा था, तुम चुप रहे। उसने कहा, मैं पहले पता तो लगा लूं कि तुम चलते कितनी रफ्तार से हो। तो जब बीस कदम मैंने देख लिए कि कैसे चलते हो, तो फिर मैं समझ गया कि एक घंटा तुम्हें पहुंचने में लग जाएगा। तो मैं क्या उत्तर देता पहले, उस बूढ़े ने कहा, जब मुझे पता ही नहीं कि तुम किस रफ्तार से चलते हो। तुम्हारी रफ्तार पर निर्भर है गांव पर पहुंचना--कितनी देर में पहुंचोगे, इसलिए मैं चुप रह गया।

आपकी रफ्तार पर निर्भर है। आप कैसी तीव्रता से, कितनी गंभीरता से, कितनी सिनसेरिटि से, कितनी ईमानदारी से जीवन को बदलने की आकांक्षा से अभिप्रेरित हुए हैं, इस पर निर्भर है। एक क्षण में भी यह हो सकता है। एक जन्म में भी न हो। समय का कोई भी सवाल नहीं है। समय का रत्तीभर भी सवाल नहीं है। क्योंकि ध्यान में समय के द्वारा हम नहीं जाते हैं। ध्यान में हम जाते हैं अपनी प्यास और तीव्रता के द्वारा।

भीतर कोई टाइम नहीं है, भीतर कोई समय नहीं है। सब समय बाहर है। तो अगर बाहर यात्रा करनी हो, तब तो समय निश्चित लगता है। लेकिन भीतर यात्रा करनी हो, प्यास अगर परिपूर्ण हो, तो समय लगता ही नहीं। बिना समय के एक पल में, एक पल में भी नहीं--भीतर पहुंचा जा सकता है। लेकिन वह निर्भर करेगा--मुझ पर नहीं, आप पर।

और यह जरूर कहूंगा, हमारी गंभीरता, हमारी प्यास अत्यल्प है। अगर अत्यल्प न होती, अगर बहुत कम न होती, तो हम शब्दों और शास्त्रों से तृप्त न हो जाते।

एक आदमी को प्यास लगी है, क्या हम पानी के संबंध में लिखी हुई उसे कोई किताब दें, वह तृप्त हो जाएगा? उस किताब को रोज पढ़ता रहेगा? किताब फेंक देगा। वह कहेगा, किताब का मैं क्या करूंगा। मुझे प्यास लगी है, मुझे पानी चाहिए। पानी के ऊपर लिखा हुआ शास्त्र नहीं।

लेकिन मैं तो देखता हूं परमात्मा के ऊपर लिखे शास्त्रों को लिए लोग बैठे हैं! वे कोई भी नहीं कहते कि हमें किताब नहीं चाहिए, हमें परमात्मा चाहिए! हमें प्यास लगी है, यह वे कोई भी नहीं कहते। रखे बैठे रहें वे शास्त्र को। उनके भीतर प्यास नहीं है, इसलिए वे शास्त्र को पकड़े बैठे हुए हैं। जिसके भीतर प्यास हो, वह शास्त्र से कभी तृप्त हुआ है? वह किताब से,शब्द से कभी तृप्त हुआ है? वह नहीं हो सकता तृप्त।

मैं तो अधिक लोगों को किताबों से तृप्त हुआ देखता हूं। इसलिए लगता है कि कोई प्यास नहीं है। नहीं तो वे परमात्मा को खोजते-खोजते सत्य को, शब्दों को तो नहीं पकड़कर बैठ जाते। हम सब शब्दों को पकड़कर बैठे हुए हैं। यह प्यास की न्यूनता का सबूत, प्रमाण है। शब्दों को पकड़कर बैठे रहिए तो कभी नहीं पहुंच सकेंगे। खोजिए अपनी प्यास को--भीतर कोई प्यास है? सच में कोई भीतर आकांक्षा सरकती है--जीवन को जानने की कोई जिज्ञासा?

और अगर है तो फिर दूसरी बात ध्यान में रखना पड़ेगी। इस जिज्ञासा को बोथला मत कर लीजिए। जिज्ञासा को हम बोथला कर लेते हैं। भीतर जिज्ञासा है जानने की और हम मान लेते हैं दूसरों की बातों को तो जिज्ञासा बोथली हो जाती है, कुंठित हो जाती है। भीतर है जानने की जिज्ञासा? क्या है? और हम मान लेते हैं--आत्मा है, परमात्मा है! मान लेते हैं चुपचाप! इस मान लेने के कारण, इस विश्वास के कारण, ऐसी बिलीह्वस के कारण फिर जिज्ञासा कुंठित हो जाती है, रुक जाती है। फिर जिज्ञासा आगे गहरी नहीं हो पाती है।
171 viewsRajendra Maheshwari, 15:03
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2022-06-16 11:49:38 *सेंधा नमक और काला नमक के फायदे...*
~ स्वर्गीय श्री राजीव दिक्षित
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230 viewsRajendra Maheshwari, edited  08:49
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2022-06-16 11:49:34 #एक #निवेदन #मेरा #आपसे

दोस्तो एक स्कूल की कक्षा में एक लड़के का वॉल पैन गुम हो गया उसने मास्टर जी से इसकी शिकायत की
मास्टर जी ने बारी बारी करके सभी छात्रो के स्कूल बैग की तलाशी ली परन्तु एक बालक ने बैग की तलाशी देने से इनकार कर दिया
बहुत जोर जबरदस्ती करने पर भी उसने बैग की तलाशी देने से मना कर दिया वो बैग पकड़कर जमीन पर लेट गया मास्टर जी बैग छुड़ाने की कोशिश में लगे रहे
शोर सुनते ही हेड मास्टर साहब कक्षा में आए और बच्चे की भावना को समझते हुऐ उसे अपने रूम में ले गये
हेड मास्टर के समझाने पर बच्चे ने अपना बैग खोलकर मास्टर साहब को दिखाया दोस्तो उस बच्चे के बैग में खाने के टुकड़े पड़े हुऐ थे
उसने मास्टर जी को बताया खाने की जब छुट्टी होती है सब बच्चे जो खाना फैक देते है उसे में अपने बैग में रखकर घर ले जाता हूँ घर पर मम्मी पापा भूखे रहते है
मैं उन्ही के लिये ये खाना रोज लेकर जाता हूँ ताकि मेरे मम्मी पापा कही भूख से ना मर जाये
दोस्तो इतना सुनते ही हेड मास्टर साहब की आँखे भर आयी उन्होने बच्चे को गले से लगा लिया
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#निवेदन - मेरा आप सभी मित्रों से निवेदन है अन्न का अपमान ना करें अपने बच्चो को भी खाने की कीमत के बारे में समझाए जितना हो सके जरूरत मंद लोगो की सहायता करें...
232 viewsRajendra Maheshwari, 08:49
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2022-06-16 09:55:56 What Next.pdf
236 viewsRajendra Maheshwari, 06:55
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2022-06-16 03:33:13 मुस्कुराहट_का_महत्व

अगर आप एक अध्यापक हैं और जब आप मुस्कुराते हुए कक्षा में प्रवेश करेंगे तो देखिये सारे बच्चों के चेहरों पर मुस्कान छा जाएगी।

अगर आप डॉक्टर हैं और मुस्कराते हुए मरीज का इलाज करेंगे तो मरीज का आत्मविश्वास दोगुना हो जायेगा।

अगर आप एक ग्रहणी है तो मुस्कुराते हुए घर का हर काम किजिये फिर देखना पूरे परिवार में खुशियों का माहौल बन जायेगा।

अगर आप घर के मुखिया है तो मुस्कुराते हुए शाम को घर में घुसेंगे तो देखना पूरे परिवार में खुशियों का माहौल बन जायेगा

अगर आप एक बिजनेसमैन हैं और आप खुश होकर कंपनी में घुसते हैं तो देखिये सारे कर्मचारियों के मन का प्रेशर कम हो जायेगा और माहौल खुशनुमा हो जायेगा।

अगर आप दुकानदार हैं और मुस्कुराकर अपने ग्राहक का सम्मान करेंगे तो ग्राहक खुश होकर आपकी दुकान से ही सामान लेगा।

कभी सड़क पर चलते हुए अनजान आदमी को देखकर मुस्कुराएं, देखिये उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ जाएगी।

मुस्कुराइए, “क्यूंकि मुस्कराहट के पैसे नहीं लगते ये तो ख़ुशी और संपन्नता की पहचान है।

मुस्कुराइए, “क्यूंकि आपकी मुस्कराहट कई चेहरों पर मुस्कान लाएगी।

मुस्कुराइए, “क्यूंकि ये जीवन आपको दोबारा नहीं मिलेगा।

मुस्कुराइए, “क्योंकि क्रोध में दिया गया आशीर्वाद भी बुरा लगता है और मुस्कुराकर कहे गए बुरे शब्द भी अच्छे लगते हैं।

मुस्कुराइए ,“क्योंकि दुनिया का हर आदमी खिले फूलों और खिले चेहरों को पसंद करता है।”
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मुस्कुराइए, “क्योंकि आपकी हँसी किसी की ख़ुशी का कारण बन सकती है।”

मुस्कुराइए, “क्योंकि परिवार में रिश्ते तभी तक कायम रह पाते हैं जब तक हम एक दूसरे को देख कर मुस्कुराते रहते है”


और सबसे बड़ी बात

मुस्कुराइए, “क्योंकि यह मनुष्य होने की पहचान है। एक पशु कभी भी मुस्कुरा नही सकता।

इसलिए स्वयं भी मुस्कुराए और औराें के चहरे पर भी मुस्कुराहट लाएं

यही जीवन है।

आनंद_ही_जीवन_है।।
274 viewsRajendra Maheshwari, 00:33
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2022-06-16 03:33:12 *हमारी दुनिया वैसी जैसा हमारा मन है...*
~ऋषि चिंतन
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229 viewsRajendra Maheshwari, edited  00:33
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2022-06-15 18:27:51 *सीखो आनंद में जीना...*
~ओशो
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278 viewsRajendra Maheshwari, edited  15:27
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2022-06-15 18:27:03 झूठ बोलने से छुटकारा

मैं अक्सर झूठ बोलता हूँ । यह जानते हुए कि जो मैं बोल रहा हूँ, झूठ है, मैं कहता हूँ । क्या इस आदत से छुटकारा संभव है?

इसमें मजा लेना बंद करो, इस कला को भूलो । निश्चित ही अनेक परेशानियां आयेंगी, क्योंकि तुम झूठ बोलने की कला पर बहुत निर्भर हो चुके हो । जोखिम उठाओ, इसे कठीन हो जाने दो । कुछ दिनों के लिए यह कठीन होगा । तीन बातें खयाल रखो :
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पहली : जब तुम किसी से झूठ बोल रहे हो, तत्काल बीच में ही
उस व्यक्ति से क्षमा मांगो, उसी वक्त उसे कहो, 'यह झूठ था, और मैं फिर से अपनी पुरानी आदत में पड़ रहा था । कृपा करके मुझे माफ कर दो ।' यह कठीन होगा, लेकिन दूसरा कोई उपाय नहीं है । जब आदत बहुत गहरी जड़ें जमा लें तो उसे निर्ममता से काटना होगा ।

दूसरी : जब तुम झूठ कहने ही वाले हो उसी समय जाग जाओ ।जैसे ही यह होठों पर आये, जैसे ही यह जबान पर आये... उसी समय उसी स्थिति में इसे रोक दो, तत्काल उसे खतम कर दो ।

और तीसरी : जब तुम्हारे जैहन में, ह्रदय में झूठ उठने लगे उसी समय जाग जाओ ।
यदि तुम जागरण के ये तीन चरण पूरे कर लेते हो तो झूठ विदा हो जायेगा ।
- ओशो
दि बुक आफ विज़डम
274 viewsRajendra Maheshwari, 15:27
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