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स्वयं निर्माण योजना

टेलीग्राम चैनल का लोगो yny24 — स्वयं निर्माण योजना
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2022-08-28 11:30:28 लिवर-हार्ट-फेफड़े-आंतो की नसों को आराम देने वाली क्रिया...

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317 viewsRajendra Maheshwari, 08:30
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2022-08-28 11:30:08 *सुंदर मजबूत बालों के लिए...*
~ नित्यानंदम श्री
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294 viewsRajendra Maheshwari, edited  08:30
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2022-08-28 03:41:21 जिंदगी भर कामयाब होने का सूत्र...

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330 viewsRajendra Maheshwari, 00:41
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2022-08-28 03:40:56 *हमारा दृष्टिकोण भी तो सुधरे...*
~ ऋषि चिंतन
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317 viewsRajendra Maheshwari, edited  00:40
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2022-08-27 13:17:49 *कौन सी मिर्च का प्रयोग कब करें...*
~नित्यानंदम श्री
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328 viewsRajendra Maheshwari, edited  10:17
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2022-08-27 02:23:24 *जीवन का सच्चा सहचर ईश्वर...*
~ ऋषि चिंतन
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353 viewsRajendra Maheshwari, edited  23:23
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2022-08-26 16:06:23 दो पत्तो की कहानी...

एक समय की बात है... गंगा नदी के किनारे पीपल का एक पेड़ था। पहाड़ों से उतरती गंगा पूरे वेग से बह रही थी कि अचानक पेड़ से दो पत्ते नदी में आ गिरे।

एक पत्ता आड़ा गिरा और एक सीधा

जो आड़ा गिरा वह अड़ गया, कहने लगा, “आज चाहे जो हो जाए मैं इस नदी को रोक कर ही रहूँगा…चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए मैं इसे आगे नहीं बढ़ने दूंगा।”

वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा– रुक जा गंगा….अब तू और आगे नहीं बढ़ सकती….मैं तुझे यहीं रोक दूंगा!

पर नदी तो बढ़ती ही जा रही थी…उसे तो पता भी नहीं था कि कोई पत्ता उसे रोकने की कोशिश कर रहा है।

पर पत्ते की तो जान पर बन आई थी..वो लगातार संघर्ष कर रहा था…नहीं जानता था कि बिना लड़े भी वहीँ पहुंचेगा, जहां लड़कर.. थककर.. हारकर पहुंचेगा! पर अब और तब के बीच का समय उसकी पीड़ा का…. उसके संताप का काल बन जाएगा।

वहीँ दूसरा पत्ता जो सीधा गिरा था, वह तो नदी के प्रवाह के साथ ही बड़े मजे से बहता चला जा रहा था।

यह कहता हुआ कि “चल गंगा, आज मैं तुझे तेरे गंतव्य तक पहुंचा के ही दम लूँगा…चाहे जो हो जाए मैं तेरे मार्ग में कोई अवरोध नहीं आने दूंगा….तुझे सागर तक पहुंचा ही दूंगा।

नदी को इस पत्ते का भी कुछ पता नहीं…वह तो अपनी ही धुन में सागर की ओर बढ़ती जा रही थी।पर पत्ता तो आनंदित है, वह तो यही समझ रहा है ,कि वही नदी को अपने साथ बहाए ले जा रहा है।

आड़े पत्ते की तरह सीधा पत्ता भी नहीं जानता था कि चाहे वो नदी का साथ दे या नहीं, नदी तो वहीं पहुंचेगी जहाँ उसे पहुंचना है! पर अब और तब के बीच का समय उसके सुख का…. उसके आनंद का काल बन जाएगा।

जो पत्ता नदी से लड़ रहा है…उसे रोक रहा है, उसकी जीत का कोई उपाय संभव नहीं है और जो पत्ता नदी को बहाए जा रहा है उसकी हार को कोई उपाय संभव नहीं है।

हमारा जीवन भी उस नदी के सामान है जिसमें सुख और दुःख की तेज़ धारायें बहती रहती हैं ...

और जो कोई जीवन की इस धारा को आड़े पत्ते की तरह रोकने का प्रयास भी करता है, तो वह मुर्ख है ,क्योंकि ना तो कभी जीवन किसी के लिये रुका है और ना ही रुक सकता है।

वह अज्ञान में है जो आड़े पत्ते की तरह जीवन की इस बहती नदी में सुख की धारा को ठहराने या दुःख की धारा को जल्दी बहाने की मूर्खता पूर्ण कोशिश करता है ।

क्योंकि सुख की धारा जितने दिन बहनी है... उतने दिन तक ही बहेगी। आप उसे बढ़ा नहीं सकते, और अगर आपके जीवन में दुःख का बहाव जितने समय तक के लिए आना है वो आ कर ही रहेगा, फिर क्यों आड़े पत्ते की तरह इसे रोकने की फ़िज़ूल मेहनत करें
बल्कि जीवन में आने वाली हर अच्छी बुरी परिस्थितियों में खुश हो कर जीवन की बहती धारा के साथ उस सीधे पत्ते की तरह ऐसे चलते जाओ....
जैसे जीवन आपको नहीं बल्कि आप जीवन को चला रहे हो। सीधे पत्ते की तरह सुख और दुःख में समता और आनन्दित होकर जीवन की धारा में मौज से बहते जाएँ।

और जब जीवन में ऐसी सहजता से चलना सीख गए तो फिर सुख क्या? और दुःख क्या ?

*शिक्षा-* जीवन के बहाव में ऐसे ना बहें कि थक कर हार भी जाएं और अंत तक जीवन आपके लिए एक पहेली बन जाये। बल्कि जीवन के बहाव को हँस कर ऐसे बहाते जाएं की अंत तक आप जीवन के लिए पहेली बन जायें।

*_सुख हमारी खुद की सम्पत्ति है...इसे बाहर नहीं अपने भीतर ही तलाशें। इससे आप सदैव सुखी रहेंगे..!!

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385 viewsRajendra Maheshwari, 13:06
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2022-08-26 02:04:46 सद व्यवहार सब चाहते हैं...

संसार की हर एक जड़ चेतन वस्तु चाहती है कि मेरे साथ सद्व्यवहार हो । जिसके साथ दुर्व्यवहार करेंगे वही बदला लेगी । अगर छाते को लापरवाही से पटक देंगे तो जरूरत पड़ने पर उसकी तानें टूटी और कपड़ा फटा पायेंगे । जूते के साथ लापरवाही बरतेंगे तो वह या तो काट लेगा या जल्दी टूट जायेगा । सूई को यहाँ-वहाँ पटक देंगे तो वह पैर में चुभ कर अपनी उपेक्षा का बदला लेगी, कपड़े उतार कर जहाँ-तहाँ डाल देंगे तो दुबारा तलाश करने पर वे मैले, सलवट पड़े हुए, दाग-धब्बे युक्त मिलेंगे । यदि आप घर की सब वस्तुओं को संभाल कर रखेंगे तो वे समय पर सेवा करने के लिए हाजिर मिलेंगी । इसी प्रकार स्त्री, पुरुष, भाई, बहिन, माता, पिता, मित्र, सम्बन्धी, परिचित, अपरिचित यदि आपसे भलमनसाहत का व्यवहार पायेंगे तो बदले में उसी प्रकार का वर्ताव लौटा देंगे ।
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

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372 viewsRajendra Maheshwari, 23:04
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2022-08-25 17:48:33 *जापान में लोकप्रिय हो रहा:
मिनिमलिज्म (न्यूनतमवाद)*

"थोड़ा है, ज्यादा की जरूरत नहीं", के सिद्धांत पर चल रहा है जापान! बड़े घर, बड़ी गाडियां, बड़ी जमीनों को तिलांजलि दे रहे हैं। सीमित कपड़े, न्यूनतम समान की नई राह पकड़ी है यहां के लोगों ने, और दावा किया जा रहा है कि वे पहले से अधिक खुश हैं। दिखावटी साजो सामान वे नापसंद करने लगे हैं। यहां जो दिखावे को तवज्जो देता है, उसे असभ्य माना जाता है! और, यह जीवनशैली मजबूरी नहीं, उनके जीने का आसन सलीका है।

इस पृथ्वी पर अहसान है यह उनका। तकनीक और आधुनिकतम मशीनी युग में परचम फहरा कर यदि किसी देश के लोग ऐसा करने लगे हैं, तो वाकई यह वास्तविक *"प्रतिक्रमण"* है। (जैन धर्म की एक साधना, जिसमें साधक प्रमादजन्य दोषों से निवृत होकर आत्मस्वरूप में लौटने की ओर प्रवृत्त होता है)।

धीरे ही सही, लेकिन पनपते रहेंगे और जिएंगे। *या* सर्वनाश देखते देखते मरेंगे। इन दो विकल्पों में से यदि एक को चुनना पड़े तो मानव जाति पहला ही चुनेगी। लेकिन, इसके पहले वह दृष्टि पैदा होनी होगी जो जापान के लोगों में हुई है। अभी, हमने इस और सोचना भी शुरू नहीं किया है।

किसी भी देश के विकास के मापदंड जब तक इकनॉमिक ग्रोथ और जीडीपी के आंकड़े रहेंगे, तब तक इस धरती को बचाने की योजनाएं और कवायदें सिर्फ और सिर्फ भ्रम फैलाने वाले झूठ ही रहेंगे।

कौन ऐसी कंपनी होगी, जो अपने टारगेट्स का रिवर्स गियर लगाएगी? जो कंपनी आज एक लाख स्कूटर या तीस हजार कारें बना रही है, उसके अगले वर्ष के टारगेट 10% या उससे भी अधिक होंगे। उत्पादन चाहे कोई भी हो, सेल्स टारगेट बढ़ते ही जायेंगे और उपभोग भी। उपभोग अधिक से अधिक होगा तभी इन कंपनियों की ग्रोथ और देश की जीडीपी बढ़ती रहेगी।

अधिक AC, अधिक फ्रिज, अधिक टीवी, अधिक माइक्रोवेव, अधिक इंडस्ट्रियां, अधिक मकान, अधिक वेतन, अधिक व्यवसाय, सब कुछ अधिक....!! फिर क्यों न होगा अधिक कार्बन उत्सर्जन और अधिक नुकसान पर्यावरण का। फिर कैसे बच पाएगी यह धरती??

क्या व्यक्तिगत रूप से हम अपने उपभोग को कम करने को तैयार, ईमानदार और गंभीर हैं, जैसे जापान ने किया है?

छोटी छोटी चीजों को लेकर ही हम जागरूक नहीं हैं। हमारे घरों, कार्यालयों में बेमतलब लाइट, पंखे, एसी चलते रहते हैं। रसोई में लगे वाटर प्यूरीफायर से लेकर टॉयलेट्स में जिस तरह से पानी बहाया जाता है हर घर में, उसे नहीं रोकेंगे, लेकिन धरती और पर्यावरण संरक्षण की बड़ी बड़ी बातें अवश्य करेंगे!! हम आत्मावलोकन करें। किस कदर हमारा उपभोग बढ़ा है?

ईमानदार कोशिश, अपने घर और अपनी आदतों में करनी होगी। जब तक उपभोग कम नहीं करेंगे तब तक उत्पादन कम नहीं होगा। और जब तक उत्पादन कम नहीं होगा, अपशिष्टों के खंजरों से धरती लहूलुहान होती रहेगी।

दूसरे बेतहाशा उपभोग कर रहें हैं, केवल मेरे अकेले के कटौती करने से क्या होगा की सोच से ऊपर उठना होगा। जब तक इसे जीने का तरीका और सलीका नहीं बनायेंगे तब तक आगे की पीढ़ी न्यूनतमवाद की आवश्यकता को नहीं समझ पाएगी। शुरुआत स्वयं से और अपने घर से करेंगे, तब शायद एक पीढ़ी बाद इसके कुछ सुखद परिणाम सामने आ सकेंगे। धरती बची रहेगी तो ही रहेगा हमारा अस्तित्व।

इस देश की परंपरा ने जीवन जीने का विकसित दृष्टिकोण दिया। संतोष को परम सुख का कारक बताया। जो है, उसमें संतुष्ट रहने के तरीके सुझाए। धरती को माता कहा, पानी और पेड़ों की पूजा की। लेकिन, जीवन के इन आधारभूत तत्वों को कमाई और आधुनिकता के नाम पर अब नेस्तनाबूत किया जा रहा है। पश्चिम की नकल करते करते हम बेहद लालची और भोगी बन गए। उन्होंने, हमारी पुरातन राह में सार माना और उसे जीवनशैली बनाने के लिए कमर कसी। और हम!? हमारी आंखे अभी बंद हैं। "और-और" की जो चाह है, यह इस धरती से जीवन का ही सर्वनाश कर दे, इसके पहले आंख खुल जाए तो बेहतर!

आजमाएं....

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358 viewsRajendra Maheshwari, 14:48
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2022-08-25 14:49:51 पैरों को नीचे लटकाने से क्या होता है...

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357 viewsRajendra Maheshwari, 11:49
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