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स्वयं निर्माण योजना

टेलीग्राम चैनल का लोगो yny24 — स्वयं निर्माण योजना
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नवीनतम संदेश 6

2022-06-18 18:51:58 *ॐ का रहस्य...*
~ओशो
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170 viewsRajendra Maheshwari, edited  15:51
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2022-06-18 18:49:31 *आप अपना बेहतर दीजिये, फिर देखिये सारी दुनिया आपकी प्रशंसा करेगी...*

एक छोटा बच्चा एक बड़ी दुकान पर लगे टेलीफोन बूथ पर जाता हैं और मालिक से छुट्टे पैसे लेकर एक नंबर डायल करता हैं|

दुकान का मालिक उस लड़के को ध्यान से देखते हुए उसकी बातचीत पर ध्यान देता हैं

लड़का- मैडम क्या आप मुझे अपने बगीचे की साफ़ सफाई का काम देंगी?

औरत- (दूसरी तरफ से) नहीं, मैंने एक दुसरे लड़के को अपने बगीचे का काम देखने के लिए रख लिया हैं|

लड़का- मैडम मैं आपके बगीचे का काम उस लड़के से आधे वेतन में करने को तैयार हूँ!

औरत- मगर जो लड़का मेरे बगीचे का काम कर रहा हैं उससे मैं पूरी तरह संतुष्ट हूँ|

लड़का- ( और ज्यादा विनती करते हुए) मैडम मैं आपके घर की सफाई भी फ्री में कर दिया करूँगा!!

औरत- माफ़ करना मुझे फिर भी जरुरत नहीं हैं धन्यवाद| लड़के के चेहरे पर एक मुस्कान उभरी और उसने फोन का रिसीवर रख दिया|

दुकान का मालिक जो छोटे लड़के की बात बहुत ध्यान से सुन रहा था

वह लड़के के पास आया और बोला- " बेटा मैं तुम्हारी लगन और व्यवहार से बहुत खुश हूँ, मैं तुम्हे अपने स्टोर में नौकरी दे सकता हूँ"

लड़का- नहीं सर मुझे जॉब की जरुरत नहीं हैं आपका धन्यवाद|

दुकान मालिक- (आश्चर्य से) अरे अभी तो तुम उस लेडी से जॉब के लिए इतनी विनती कर रहे थे !!

लड़का- नहीं सर, मैं अपना काम ठीक से कर रहा हूँ की नहीं बस मैं ये चेक कर रहा था, मैं जिससे बात कर रहा था, उन्ही के यहाँ पर जॉब करता हूँ|

*"This is called Self Appraisal"

"आप अपना बेहतर दीजिये, फिर देखिये सारी दुनिया आपकी प्रशंसा करेगी...l
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177 viewsRajendra Maheshwari, 15:49
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2022-06-18 02:13:13 सुखों की परछाई

एक रानी अपने गले का हीरों का हार निकाल कर खूंटी पर टांगने वाली ही थी कि एक बाज आया और झपटा मारकर हार ले उड़ा.
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चमकते हीरे देखकर बाज ने सोचा कि खाने की कोई चीज हो. वह एक पेड़ पर जा बैठा और खाने की कोशिश करने लगा.
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हीरे तो कठोर होते हैं. उसने चोंच मारा तो दर्द से कराह उठा. उसे समझ में आ गया कि यह उसके काम की चीज नहीं. वह हार को उसी पेड़ पर लटकता छोड़ उड़ गया.
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रानी को वह हार प्राणों सा प्यारा था. उसने राजा से कह दिया कि हार का तुरंत पता लगवाइए वरना वह खाना-पीना छोड़ देगी. राजा ने कहा कि दूसरा हार बनवा देगा लेकिन उसने जिद पकड़ ली कि उसे वही हार चाहिए.
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सब ढूंढने लगे पर किसी को हार मिला ही नहीं. रानी तो कोप भवन में चली गई थी. हारकर राजा ने यहां तक कह दिया कि जो भी वह हार खोज निकालेगा उसे वह आधे राज्य का अधिकारी बना देगा.
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अब तो होड़ लग गई. राजा के अधिकारी और प्रजा सब आधे राज्य के लालच में हार ढूंढने लगे.
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अचानक वह हार किसी को एक गंदे नाले में दिखा. हार दिखाई दे रहा था, पर उसमें से बदबू आ रही थी लेकिन राज्य के लोभ में एक सिपाही कूद गया.
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बहुत हाथ-पांव मारा, पर हार नहीं मिला. फिर सेनापति ने देखा और वह भी कूद गया. दोनों को देख कुछ उत्साही प्रजा जन भी कूद गए. फिर मंत्री कूदा.
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इस तरह जितने नाले से बाहर थे उससे ज्यादा नाले के भीतर खड़े उसका मंथन कर रहे थे. लोग आते रहे और कूदते रहे लेकिन हार मिला किसी को नहीं.
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जैसे ही कोई नाले में कूदता वह हार दिखना बंद हो जाता. थककर वह बाहर आकर दूसरी तरफ खड़ा हो जाता.
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आधे राज्य का लालच ऐसा कि बड़े-बड़े ज्ञानी, राजा के प्रधानमंत्री सब कूदने को तैयार बैठे थे. सब लड़ रहे थे कि पहले मैं नाले में कूदूंगा तो पहले मैं. अजीब सी होड़ थी.
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इतने में राजा को खबर लगी. राजा को भय हुआ कि आधा राज्य हाथ से निकल जाए, क्यों न मैं ही कूद जाऊं उसमें ? राजा भी कूद गया.
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एक संत गुजरे उधर से. उन्होंने राजा, प्रजा, मंत्री, सिपाही सबको कीचड़ में सना देखा तो चकित हुए.
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वह पूछ बैठे- क्या इस राज्य में नाले में कूदने की कोई परंपरा है ? लोगों ने सारी बात कह सुनाई.
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संत हंसने लगे, भाई ! किसी ने ऊपर भी देखा ? ऊपर देखो, वह टहनी पर लटका हुआ है. नीचे जो तुम देख रहे हो, वह तो उसकी परछाई है. राजा बड़ा शर्मिंदा हुआ.
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हम सब भी उस राज्य के लोगों की तरह बर्ताव कर रहे हैं. हम जिस सांसारिक चीज में सुख-शांति और आनंद देखते हैं दरअसल वह उसी हार की तरह है जो क्षणिक सुखों के रूप में परछाई की तरह दिखाई देता है.
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हम भ्रम में रहते हैं कि यदि अमुक चीज मिल जाए तो जीवन बदल जाए, सब अच्छा हो जाएगा. लेकिन यह सिलसिला तो अंतहीन है.
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सांसारिक चीजें संपूर्ण सुख दे ही नहीं सकतीं. सुख शांति हीरों का हार तो है लेकिन वह परमात्मा में लीन होने से मिलेगा. बाकी तो सब उसकी परछाई है.
281 viewsRajendra Maheshwari, 23:13
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2022-06-18 02:13:13 *बाधाओं का स्वागत कीजिये...*
~ ऋषि चिंतन
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233 viewsRajendra Maheshwari, edited  23:13
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2022-06-17 18:53:18 *प्रार्थना...*
*क्या और कैसे करें...?*~ओशो
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260 viewsRajendra Maheshwari, edited  15:53
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2022-06-17 18:53:04 "शरीर के अंगों को अलग कर उर्जा को संतुलित करना"

उर्जा को केन्द्र तक पहुँचाने का बेजोड़ प्रयोग

यदि तुम्हें अकारण शरीर में बेचैनी लग रही है तो उसका कारण है उर्जा का असंतुलन ।रात सोने से पहले एक प्रयोग करो । किसी कुर्सी पर बैठ जाओ और सिर को आराम से कुर्सी पर टिका लो ।चाहो तो सिर के नीचे एक तकिया रख लो, ताकि तुम पूरी तरह से आराम में आ जाओ ।फिर अपने निचले जबड़े को ढीला छोड़ दो ताकि मुंह आहिस्ता से खुल जाए ।फिर नाक की बजाय मुंह से श्वास लेना शुरू कर दो ।लेकिन श्वास की लय को बदलना नहीं है, वह अपने आप जैसी चल रही है चलने दो ।

श्वास धीरे - धीरे उथली और शांत हो जाएगी ।वह धीरे - धीरे भीतर जाएगी और धीरे - धीरे बाहर आएगी ।आंखें बंद रखो, मुंह को खुला और शरीर को विश्रांत ।

फिर महसूस करना शुरू करो कि तुम्हारी टांगें शिथिल हो रही हैं ।महसूस करो कि जैसे धीरे - धीरे तुम्हारी टांगों को तुमसे अलग किया जा रहा है । एक क्षण आएगा जब तुम महसूस करोगे कि तुम्हारी टांगें तुमसे अलग हो गई हैं और बस उपर का हिस्सा ही बचा है ।

फिर अपने हाथों पर आ जाओ : महसूस करो कि तुम्हारे हाथ आहिस्ता - आहिस्ता शिथिल हो रहे हैं, और महसूस करो कि हौले से उन्हे तुमसे अलग किया जा रहा है ।उस क्लिक की आवाज को सुनने को कोशिश करो जब तुम्हारे हाथ तुमसे पूरी तरह अलग हो जाएं ।अब केवल धड़ बचा रहेगा ।
फिर अनुभव करना शुरू करो कि तुम्हारा सिर शिथिल हो रहा है और उसे तुमसे अलग किया जा रहा है ।अब वह दांये या बांये जिस ओर गिरना चाहे उसे गिर जाने दो ।वह तुमसे अलग हो गया । अब बस कंधों से पेट तक तुम्हारा शरीर बचा है । https://chat.whatsapp.com/BEEbPd5cBCq25QeDUuOxMh
तुम्हारी सारी उर्जा उस जगह आकर इकठ्ठी हो जाएगी जहां उसे पूरे शरीर में वितरित करने का केन्द्र है । बीस मिनट इसी स्थिति में रहो ।धीरे - धीरे फिर महसूस करो कि तुम्हारा सिर, तुम्हारे हाथ व टांगें वापस आ रहे हैं । अब तुम्हारे पास एक नया शरीर है, और उर्जा एक संतुलन में आ जाएगी ।
-ओशो
दिस इज इट
262 viewsRajendra Maheshwari, 15:53
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2022-06-17 13:32:46 *लालच*

किसी गाँव में एक धनी सेठ रहता था।. उसके बंगले के पास एक जूते सिलने वाले गरीब मोची की छोटी सी दुकान थी। उस मोची की एक खास आदत थी कि जो जब भी जूते सिलता तो भगवान के भजन गुनगुनाता रहता था, लेकिन सेठ ने कभी उसके भजनों की तरफ ध्यान नहीं दिया। एक दिन सेठ व्यापार के सिलसिले में विदेश गया और घर लौटते वक्त उसकी तबियत बहुत ख़राब हो गयी। लेकिन पैसे की कोई कमी तो थी नहीं सो देश विदेशों से डॉक्टर, वैद्य, हकीमों को बुलाया गया, लेकिन कोई भी सेठ की बीमारी का इलाज नहीं कर सका। अब सेठ की तबियत दिन प्रतिदिन ख़राब होती जा रही थी। वह चल फिर भी नहीं पाता था। एक दिन वह घर में अपने बिस्तर पे लेटा था। अचानक उसके कान में मोची के भजन गाने की आवाज सुनाई दी, आज मोची के भजन कुछ अच्छे लग लग रहे थे सेठ को। कुछ ही देर में सेठ इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि उसे ऐसा लगा जैसे वो साक्षात परमात्मा से मिलन कर रहा हो। मोची के भजन सेठ को उसकी बीमारी से दूर लेते जा रहे थे। *कुछ देर के लिए सेठ भूल गया कि वह बीमार है उसे अपार आनंद की प्राप्ति हुई।*

कुछ दिन तक यही सिलसिला चलता रहा। अब धीरे धीरे सेठ के स्वास्थ्य में सुधार आने लगा। एक दिन उसने मोची को बुलाया और कहा– *मेरी बीमारी का इलाज बड़े बड़े डॉक्टर नहीं कर पाये, लेकिन तुम्हारे भजन ने मेरा स्वास्थ्य सुधार दिया! ये लो 1000 रुपये इनाम!* मोची खुश होते हुए पैसे लेकर चला गया। लेकिन उस रात मोची को बिल्कुल नींद नहीं आई वो सारी रात यही सोचता रहा कि इतने सारे पैसों को कहाँ छुपा कर रखूं और इनसे क्या क्या खरीदना है? *इसी सोच की वजह से वो इतना परेशान हुआ कि अगले दिन काम पे भी नहीं जा पाया। अब भजन गाना तो जैसे वो भूल ही गया था, मन में खुशी थी पैसे की।* अब तो उसने काम पर जाना ही बंद कर दिया और धीरे धीरे उसकी दुकानदारी भी चौपट होने लगी । *इधर सेठ की बीमारी फिर से बढ़ती जा रही थी ।*

एक दिन मोची सेठ के बंगले में आया और बोला सेठ जी आप अपने ये पैसे वापस रख लीजिये। इस धन की वजह से मेरा धंधा चौपट हो गया। मैं भजन गाना ही भूल गया। इस धन ने तो मेरा परमात्मा से नाता ही तुड़वा दिया। मोची पैसे वापस करके फिर से अपने काम में लग गया ओर कुछ ही समय में फिर से अपने भजनों ओर दैनिक कार्यो में व्यस्त हो गया।
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*मित्रों ये एक कहानी मात्र नहीं है ये एक सीख है कि किस तरह पैसों का* लालच हमको अपनी उन शक्तियों से दूर ले जाता है जिसने हमारे जीवन को खुश और सफल बना रखा होता है। हाँ, *अगर आप अपने पास आये धन* को अपने दिमाग में न घुसने दे, उसे किसी सद्कर्म में लगा सके या कहीं इन्वेस्ट कर दे पर अपने दिमाग पर हावी न होने दे। तो फिर आपकी जीवन की गति सुचारू रूप से चलती रहेगी *ओर आप अपने जीवन को एक सही दिशा दे सकेंगे।*
*भगवान सभी को सद्बुद्धि दे।*
283 viewsRajendra Maheshwari, 10:32
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2022-06-17 13:32:18 *नाक से खून आना-क्या करें...*
~डॉ बिमल छाजेड़
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254 viewsRajendra Maheshwari, edited  10:32
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2022-06-17 02:42:29 विचारों में क्रम व्यवस्था एवं एकाग्रता बनाये रहें...
~ ऋषि चिंतन
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137 viewsRajendra Maheshwari, edited  23:42
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2022-06-17 02:42:20 बात बात में *मां बाप का टोकना* हमें अखरता है । हम भीतर ही भीतर झल्लाते है कि कब इनके टोकने की आदत से हमारा पीछा जुटेगा ।

लेकिन हम ये भूल जाते है कि उनके टोकने से जो *संस्कार* हम ग्रहण कर रहे हैं, उनकी जीवन में क्या अहमियत है । इसी पर एक *लेख चिंतन करने योग्य*

*संस्कार जीवन की धरोहर है*

*शिक्षा के साथ विद्या गुरुदेव की प्रेरणा*

*विद्या के अभाव में शिक्षा अधूरी है*

*साक्षात्कार*

बड़ी दौड़ धूप के बाद ,
मैं आज एक ऑफिस में पहुंचा,
आज मेरा पहला इंटरव्यू था ,
घर से निकलते हुए मैं सोच रहा था,
काश ! इंटरव्यू में आज
कामयाब हो गया , तो अपने
पुश्तैनी मकान को अलविदा
कहकर यहीं शहर में सेटल हो जाऊंगा, मम्मी पापा की रोज़ की
चिक चिक, मग़जमारी से छुटकारा मिल जायेगा ।

सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक होने वाली चिक चिक से परेशान हो गया हूँ ।

जब सो कर उठो , तो पहले
बिस्तर ठीक करो ,
फिर बाथरूम जाओ,
बाथरूम से निकलो तो फरमान जारी होता है
*नल बंद कर दिया?*
*तौलिया सही जगह रखा या यूँ ही फेंक दिया?*
नाश्ता करके घर से निकलो तो डांट पडती है
*पंखा बंद किया या चल रहा है?*
क्या - क्या सुनें यार ,
*नौकरी मिले तो घर छोड़ दूंगा..*

वहाँ उस ऑफिस में बहुत सारे उम्मीदवार बैठे थे , बॉस का इंतज़ार कर रहे थे ।
दस बज गए ।

मैने देखा वहाँ आफिस में बरामदे की बत्ती अभी तक जल रही है ,
*माँ याद आ गई* , तो मैने बत्ती बुझा दी ।

ऑफिस में रखे *वाटर कूलर से पानी टपक रहा था* ,
पापा की डांट याद आ गयी , तो *पानी बन्द कर दिया ।*

बोर्ड पर लिखा था , इंटरव्यू दूसरी मंज़िल पर होगा ।

*सीढ़ी की लाइट भी जल रही थी* , बंद करके आगे बढ़ा ,
तो एक कुर्सी रास्ते में थी , *उसे हटाकर ऊपर गया* ।

देखा पहले से मौजूद उम्मीदवार जाते और फ़ौरन बाहर आते ....
पता किया तो मालूम हुआ बॉस
फाइल लेकर कुछ पूछते नहीं ,
वापस भेज देते हैं ।

नंबर आने पर मैने फाइल
मैनेजर की तरफ बढ़ा दी ।
कागज़ात पर नज़र दौडाने के बाद उन्होंने कहा
*"कब ज्वाइन कर रहे हो?"*

उनके सवाल से मुझे यूँ लगा जैसे
मज़ाक़ हो ,
वो मेरा चेहरा देखकर कहने लगे , *ये मज़ाक़ नहीं हक़ीक़त है ।*

आज के इंटरव्यू में किसी से कुछ पूछा ही नहीं ,
*सिर्फ CCTV में सबका बर्ताव देखा* ,
*सब आये लेकिन किसी ने नल या लाइट बंद नहीं किया ।*

*धन्य हैं तुम्हारे माँ बाप , जिन्होंने तुम्हारी इतनी अच्छी परवरिश की और अच्छे संस्कार दिए ।*

*जिस इंसान के पास Self discipline नहीं वो चाहे कितना भी होशियार और चालाक हो , मैनेजमेंट और ज़िन्दगी की दौड़ धूप में कामयाब नहीं हो सकता ।*

घर पहुंचकर मम्मी पापा को गले लगाया और उनसे माफ़ी मांगकर उनका शुक्रिया अदा किया ।
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*अपनी ज़िन्दगी की आजमाइश में उनकी छोटी छोटी बातों पर रोकने और टोकने से , मुझे जो सबक़ हासिल हुआ , उसके मुक़ाबले , मेरे डिग्री की कोई हैसियत नहीं थी और पता चला ज़िन्दगी के मुक़ाबले में सिर्फ पढ़ाई लिखाई ही नहीं , तहज़ीब और संस्कार का भी अपना मुक़ाम है...*

संसार में जीने के लिए संस्कार जरूरी है

*परिस्थिति की पाठशाला*

*ही इंसान को*

*वास्तविक शिक्षा देती है*
141 viewsRajendra Maheshwari, 23:42
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