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स्वयं निर्माण योजना

टेलीग्राम चैनल का लोगो yny24 — स्वयं निर्माण योजना
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नवीनतम संदेश 9

2022-06-13 17:40:47 *हम मृत्यु से क्यों डरते हैं...?*
~ओशो
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212 viewsRajendra Maheshwari, edited  14:40
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2022-06-13 17:39:24 *एक बहुत खतरनाक विष जो बिस्तर से उठने नहीं देगा...*
~ स्वर्गीय श्री राजीव दिक्षित
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205 viewsRajendra Maheshwari, edited  14:39
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2022-06-13 17:39:19 (((( प्रभु पर विश्वास ))))
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एक आदमी जब भी दफ्तर से वापस आता, तो कुत्ते के प्यारे से पिल्ले रोज उसके पास आकर उसे घेर लेते थे क्योंकि वो रोज उन्हें बिस्कुट देता था।
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कभी 4 कभी 5 कभी 6 पिल्ले रोज आते और वो रोज उन्हें पारलें बिस्कुट या ब्रेड खिलता था।
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एक रात जब वो दफ़्तर से वापस आया तो पिल्लों ने उसे घेर लिया लेकिन उसने देखा कि घर मे बिस्कुट ओर ब्रेड दोनो खत्म हो गए है।
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रात भी काफी हो गई थी, इस वक़्त दुकान का खुला होना भी मुश्किल था, सभी पिल्ले बिसकिट् का इंतज़ार करने लगे।
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उसने सोचा कोई बात नही कल खिला दूंगा, ओर ये सोचकर उसने घर का दरवाजा बंद कर लिया,
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पिल्ले अभी भी बाहर उसका इंतजार कर रहे थे। ये देखकर उसका मन विचलित हो गया,
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तभी उसे याद आया की घर मे मेहमान आये थे, जिनके लिए वो काजू बादाम वाले बिस्किट लाया था।
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उसने फटाफट डब्बा खोला तो उसमें सिर्फ 7-8 बिसकिट्स थे,
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उसके मन मे खयाल आया कि इतने से तो कुछ नही होगा, एक का भी पेट नही भरेगा,
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पर सोचा कि चलो सब को एक एक दे दूंगा, तो ये चले जायेंगे।
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उन बिस्किट को लेकर जब वो बाहर आया तो देखा कि सारे पिल्ले जा चुके थे,
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सिर्फ एक पिल्ला उसके इंतज़ार में अभी भी इस विश्वास के साथ बैठा था कि कुछ तो जरूर मिलेगा।
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उसे बड़ा आस्चर्य हुआ।
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उसने वो सारे बिस्किट उस एक पिल्ले के सामने डाल दिये।
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वो पिल्ला बड़ी खुशी के साथ वो सब बिस्किट खा गया और फिर चला गया।
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बाद में उस आदमी ने सोचा कि हम मनुष्यों के साथ भी तो यही होता है,
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जबतक ईश्वर हमे देता रहता है, तब तक हम खुश रहते है उसकी भक्ति करते है उसके फल का इंतज़ार करते है,
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लेकिन भगवान को जरा सी देर हुई नही की हम उसकी भक्ति पर संदेह करने लगते है,
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दूसरी तरफ जो उसपर विश्वास बनाये रखता है, उसे उसके विश्वास से ज्यादा मिलता है।
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दोस्तों, इसलिये अपने प्रभु पर विश्वास बनाये रखे, अपने विश्वास को किसी भी परिस्थिति में डिगने ना दे,
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अगर देर हो रही है इसका मतलब है कि प्रभु आपके लिए कुछ अच्छा करने में लगे हुए है।
200 viewsRajendra Maheshwari, 14:39
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2022-06-13 03:06:46
भरूच के कलेक्टर तुषार सुमेरा ने अपनी दसवीं की मार्कशीट शेयर करते हुए एक बेहद शानदार पोस्ट लिखा
उन्होंने लिखा है कि वह राजकोट में जब पढ़ते थे तब दसवीं में उनके सिर्फ पासिंग नंबर आए थे उनके 100 में से अंग्रेजी में सिर्फ 35, गणित में 36 और विज्ञान में 38 नंबर आए थे ना सिर्फ पूरे गांव में बल्कि उस स्कूल में यह कहा गया कि यह कुछ नहीं कर सकते।।
लेकिन उन्होंने पढ़ाई जारी रखी, उनका कहना है कि हर व्यक्ति के अंदर कोई न कोई खूबी अवश्य होती है।
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उन्होंने 12वीं पास किया, फिर BA किया & फिर Bed किया और फिर चोटिला में उन्हें शिक्षक की नौकरी मिल गई।। नौकरी के साथ-साथ उन्होंने यूपीएससी की तैयारी चालू रखी और आईएएस बन गए और आज भरूच में जिला कलेक्टर है।।
इसीलिए कम नंबर आने पर विद्यार्थियों को कभी नहीं हतोत्साहित नहीं होना चाहिए.
286 viewsRajendra Maheshwari, edited  00:06
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2022-06-13 03:05:45 *भाग्य बनाना अपने हाथ की बात है...*
~ ऋषि चिंतन
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248 viewsRajendra Maheshwari, edited  00:05
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2022-06-12 17:50:47 *कब तक इस द्वेत में फंसे रहोगे...?*
~ओशो
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108 viewsRajendra Maheshwari, edited  14:50
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2022-06-12 17:50:31 *पाचन शक्ति ऐसी की पत्थर भी पच जाए...*
~ स्वर्गीय श्री राजीव दिक्षित
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110 viewsRajendra Maheshwari, edited  14:50
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2022-06-12 17:49:59 पंद्रह दिन बाद मेरे पास आना। लेकिन यदि इस विधि का अभ्यास न कर सको तो मत आना। पंद्रह दिन निरंतर अभ्यास करो। जो भी जी में आए करो, लेकिन पूरे सजग होकर करो।

चोर तीसरे ही दिन वापिस आया और उसने नागार्जुन से कहा, पंद्रह दिन का समय बहुत है, मैं आज ही आ गया। आप बड़े चालाक आदमी मालूम होते हैं। आपने ऐसी विधि बताई कि मेरा धंधा चलना मुश्किल है। पूरा होश रखकर मैं चोरी नहीं कर सकता हूं। पिछली तीन रातों से मैं राजमहल जा रहा हूं। मैं खजाने तक गया, उसे खोल भी लिया। मेरे सामने बहुमूल्य हीरे—जवाहरात थे, लेकिन मैं तभी पूरी तरह सजग हो गया। और सजग होते ही मैं बुद्ध की मूर्ति की तरह हो गया,मैं कुछ भी नहीं कर सका। मेरे हाथों ने हिलने से इनकार कर दिया और सारा खजाना व्यर्थ मालूम पड़ने लगा। तीन रातों से मैं लौट—लौटकर राजमहल जाता हूं। समझ में नहीं आता कि मैं क्या करूं! आपने तो कहा था कि इस विधि में धंधा छोड़ने की शर्त नहीं है, लेकिन ऐसा लगता है कि विधि में ही कोई छिपी प्रक्रिया है।

नागार्जुन ने कहा, दुबारा मेरे पास मत आना। अब चुनाव तुम्हें करना है। अगर चोरी जारी रखना चाहते हो तो ध्यान को भूल जाओ। और अगर ध्यान चाहते हो तो चोरी को भूल जाओ। चुनाव तुम्हें करना है।
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चोर ने कहा, आपने तो मुझे बड़े धर्मसंकट में डाल दिया। इन तीन दिनों में मैंने जाना कि मेरे भी आत्मा है, और जब मैं राजमहल में कुछ चोरी किए बिना वापिस आया तो पहली दफा मुझे लगा कि मैं सम्राट हूं चोर नहीं। ये तीन दिन इतने आनंदपूर्ण रहे हैं कि मैं अब ध्यान नहीं छोड़ सकता। आपने मेरे साथ चालाकी की। अब आप मुझे दीक्षा दें और अपना शिष्य बना लें। और अधिक प्रयोग की जरूरत नहीं है,तीन दिन काफी हैं।

कुछ भी विषय हो, यदि तुम सजग रहो तो सब कुछ ध्यान बन जाता है। तादात्म्य को जागरूक होकर प्रयोग में लाओ, तब वह ध्यान बन जाएगा। बेहोशी में किया गया तादात्म्य पाप है।
ओशो
तंत्र - सूत्र, भाग 1,प्रवचन - 16
111 viewsRajendra Maheshwari, 14:49
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2022-06-12 17:49:59 https://chat.whatsapp.com/HmpxJEm5cGfFJdWCELthef
कुछ भी ध्यान बन सकता है -

"चोरी करना"

मैं चोरी का धंधा छोड़ नहीं सकता। क्या मेरे लिए ध्यान नहीं है?

मैं तुम्हें नागार्जुन के जीवन से एक प्रसंग बताता हूं। भारत ने जो महान गुरु पैदा किए हैं, नागार्जुन उनमें से एक थे। वे बुद्ध, महावीर और कृष्ण की क्षमता रखते थे। और नागार्जुन एक दुर्लभ प्रतिभा थी। सच तो यह है कि बौद्धिक तल पर सारी दुनिया में वे अतुलनीय हैं। ऐसी तीक्ष्ण और प्रगाढ़ प्रतिभा कभी —कभी घटित होती है।

नागर्जुन एक नगर से गुजर रहे थे। वह राजधानी है। और नागार्जुन सदा नग्न रहते थे। उस राज्य की रानी को नागार्जुन के प्रति बहुत प्रेम था, बहुत श्रद्धा थी, बहुत भक्ति थी। नागार्जुन भोजन मांगने राजमहल आए। उनके हाथ में लकड़ी का भिक्षापात्र था। रानी ने उनसे कहा कि आप कृपा कर मुझे यह भिक्षापात्र दे दें। मैं इसे आपकी भेंट समझूंगी और इसकी जगह मैंने आपके लिए दूसरा भिक्षापात्र निर्मित कराया है।

नागार्जुन ने भेंट स्वीकार कर ली। दूसरा भिक्षापात्रसोने का बना था और उसमें बहुमूल्य रत्न जड़े हुए थे। वह बहुत कीमती था। लेकिन नागार्जुन ने कुछ नहीं कहा। सामान्यत: कोई संन्यासी उसे नहीं लेता, वह कहता कि मैं सोना नहीं छूता हूं। लेकिन नागार्जुन ने उसे ले लिया। अगर सच में सोना मिट्टी है तो भेद क्या करना? नागार्जुन ने उसे ले लिया।

रानी को यह बात अच्छी नहीं लगी। उसने सोचा कि इतने बड़े संत हैं, उन्हें इनकार करना चाहिए था। स्वयं नग्न रहते हैं, पास में कुछ संग्रह नहीं रखते, फिर उन्होंने इतना कीमती भिक्षापात्र कैसे स्वीकार किया! और अगर नागार्जुन इनकार करते तो रानी उन पर लेने के लिए जोर डालती और तब उसे अच्छा लगता। लेकिन नागार्जुन उसे लेकर चले गए।

एक चोर ने नगर से उन्हें गुजरते हुए देखा। उसने सोचा कि यह आदमी ऐसा बहुमूल्य भिक्षापात्र अपने पास नहीं रख सकेगा, कोई न कोई जरूर इसकी चोरी कर लेगा। एक नंगा आदमी कैसे उसकी रक्षा कर सकता है? और वह चोर नागार्जुन के पीछे हो लिया।

नागार्जुन नगर के बाहर एक मठ में रहते थे और अकेले रहते थे। वह मठ जीर्ण—शीर्ण था। नागार्जुन उसके भीतर गए। उन्होंने अपने पीछे आते हुए इस आदमी की पदचाप सुनी। वे समझ गए कि वह किस लिए पीछे—पीछे आ रहा है, वह मेरे लिए नहीं इस भिक्षापात्र के लिए आ रहा है। अन्यथा इस जरा—जीर्ण मठ में कौन आता! नागार्जुन मठ के अंदर गए और चोर बाहर दीवार के पीछे खड़ा हो गया।

यह देखकर कि चोर बाहर ताक में खड़ा है, नागार्जुन ने भिक्षापात्र को दरवाजे से बाहर फेंक दिया। चोर तो चकित रह गया, उसको कुछ समझ में नहीं आया। यह कैसा आदमी है! नंगा है, इसके पास इतना कीमती पात्र है और यह उसे बाहर फेंक देता है!

तो चोर ने नागार्जुन से कहा कि क्या मैं अंदर आ सकता हूं क्योंकि मुझे एक प्रश्न पूछना है। नागार्जुन ने कहा कि मैंने पात्र को इसीलिए बाहर फेंक दिया कि तुम अंदर आ सको। मैं अभी अपनी दोपहर की नींद लेने जा रहा हूं। तुमभिक्षापात्र लेने अंदर आते, लेकिन मुझसे तुम्हारी मुलाकात नहीं होती। तुम अंदर आ जाओ।

चोर अंदर गया। उसने पूछा कि ऐसी बहुमूल्य वस्तु को आपने फेंक कैसे दिया? मैं चोर हूं। लेकिन आप ऐसे संत हैं कि आपसे मैं झूठ नहीं बोल सकता। मैं चोर हूं। नागार्जुन ने कहा कि चिंता मत करो, हर कोई चोर है। तुम अपनी बात निस्संकोच कहो। फिजूल की बातों में वक्त मत खराब करो।

चोर ने कहा कि कभी—कभी आप जैसे व्यक्ति को देखकर मेरे मन में भी कामना उठती कि काश, इस स्थिति को मैं भी उपलब्ध होता! लेकिन चोर हूं और यह स्थिति मेरे लिए असंभव है। लेकिन मेरी आशा और प्रार्थना रहेगी कि किसी दिन मैं भी ऐसी कीमती चीज फेंक सकूं। बड़ी कृपा होगी यदि आप मुझे उपदेश करें। मैं अनेक संतों के पास गया हूं। वे मुझे जानते हैं, क्योंकि मैं एक नामी चोर हूं। वे सब यही कहते हैं कि तुम पहले अपने धंधे को छोड़ो, तभी तुम्हें ध्‍यान में गति मिल सकती है। लेकिन यह मेरे लिए असाध्‍य मालूत होता है। मैं चोरी का धंधा छोड़ नहीं सकता। क्या मेरे लिए ध्यान नहीं है?

नागार्जुन ने उत्तर में कहा कि अगर कोई कहता है कि पहले चोरी छोड़ो और तब ध्यान करो, तो उसे ध्यान के बारे में कुछ भी पता नहीं है। ध्यान और चोरी के बीच संबंध क्या है?कोई संबंध नहीं है। तुम जो भी करते हो किए जाओ। और मैं तुम्हें विधि देता हूं तुम उसका प्रयोग करो। तो चोर ने कहा कि ऐसा लगता है कि आपके साथ मेरा तालमेल बैठ सकता है। क्या सच ही मैं अपना धंधा जारी रख सकता हूं? कृपया जल्दी अपनी विधि बताएं।

नागार्जुन ने कहा, तुम सिर्फ होश रखो, बोध बढ़ाओ। जब चोरी करने जाओ तो उसके प्रति भी सजग रहो, होशपूर्ण रहो। जब सेंध लगाओ तब जानते रहो कि मैं सेंध लगा रहा हूं पूरे होश में रहो। जब खजाने से कुछ निकालो तब भी जागरूक रहो, होश के साथ निकालो। तुम क्या करते हो इससे मुझे लेना—देना नहीं है, लेकिन जो भी करो बोधपूर्वक करो। और
106 viewsRajendra Maheshwari, 14:49
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2022-06-12 15:09:48 hamari-vasiyat-aur-virasat-1nd1986feb.pdf
162 viewsRajendra Maheshwari, 12:09
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