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स्वयं निर्माण योजना

टेलीग्राम चैनल का लोगो yny24 — स्वयं निर्माण योजना
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नवीनतम संदेश 11

2022-06-07 03:39:16


*ज्योतिष* व सांईटिफिक सोच के अनुसार आपके यश व *सफलता के लिए नीचे लिखी नौ आदतें* आपके जीवन में अवश्य होनी चाहिये.

* आदत नम्बर 1...*
अगर आपको कहीं पर भी *थूकने की आदत* है तो यह निश्चित है कि यदि आपको यश, सम्मान मुश्किल से मिल भी जाता है तो कभी टिकेगा ही नहीं.

* आदत नम्बर 2...*
जिन लोगों को अपनी *जूठी थाली या बर्तन* खाना खाने वाली जगह पर छोड़कर उठ जाने की आदत होती है *उनकी सफलता,* कभी भी स्थायी रूप से नहीं मिलती. ऐसे लोगों को बहुत मेहनत करनी पड़ती है.

* आदत नम्बर 3...*
आपके घर पर जब भी कोई भी बाहर
से आये, चाहे मेहमान हो या कोई काम करने वाला, उसे स्वच्छ पानी ज़रुर पिलाएं. ऐसा करने से हम राहु का सम्मान करते हैं जो अचानक आ पड़ने वाले कष्ट-संकट नहीं आने देते.

* आदत नम्बर 4...*
घर के पौधे आपके अपने परिवार के सदस्यों जैसे ही होते हैं, उन्हें भी प्यार और थोड़ी देखभाल की जरुरत होती है. *जो लोग नियमित रूप से पौधों को पानी देते हैं,* उन लोगों को Depression या Anxiety जैसी परेशानियाँ नहीं पकड़ पातीं.

* आदत नम्बर 5...*
जो लोग बाहर से आकर *घर में*
*अपने चप्पल, जूते, मोज़े* इधर-उधर फैंक देते हैं, उन्हें उनके शत्रु बड़ा परेशान करते हैं. इससे बचने के लिए अपने चप्पल-जूते करीने से लगाकर रखें, आपकी प्रतिष्ठा बनी रहेगी.

* आदत नम्बर 6...*
*उन लोगों का राहु और शनि खराब होगा,* जिनका अपना बिस्तर उनके उठकर जाने के बाद हमेशा फैला हुआ होगा, सिलवटें ज्यादा होंगी, *चादर कहीं, तकिया कहीं, कम्बल कहीं ?* ऐसे लोगों की पूरी दिनचर्या कभी भी व्यवस्थित नहीं रहती.

* आदत नम्बर 7...*
*पैरों की सफाई पर हम लोगों को हर वक्त ख़ास ध्यान देना चाहिए,* जबकि हम में से बहुत सारे लोग पैरों को धोना या साफ करना भूल जाते हैं. *नहाते समय* अपने पैरों को अच्छी तरह से धोयें, जब कभी भी बाहर से घर आयें तो पांच मिनट रुककर मुँह और पैर अवश्य धोयें. *आप खुद यह पाएंगे कि* आपका चिड़चिड़ापन कम होगा, दिमाग की शक्ति बढे़गी और क्रोध धीरे-धीरे कम होने लगेगा और आपका आनंद और शान्ति बढ़ेगी.

* आदत नम्बर 8...*
*जो पुरुष रोज़ खाली हाथ अपने घर लौटते हैं,* धीरे-धीरे उस घर से धन लक्ष्मी दूर चली जाती है और उस घर के सदस्यों में नकारात्मक या निराशा के भाव आने लगते हैं. इसके विपरीत घर लौटते समय कुछ न कुछ वस्तु लेकर आएं तो इस आदत से उस घर में बरकत बनी रहती है. उस घर में लक्ष्मी का वास होता जाता है. *हर रोज घर में कुछ न कुछ लेकर आना वृद्धि का सूचक माना गया है.* ऐसे घर में सुख, समृद्धि और धन हमेशा बढ़ता जाता है और घर में रहने वाले सदस्यों की भी तरक्की होती है.
https://chat.whatsapp.com/F4ZhRwuaQ1gGdSdEwg0gs2
* आदत नम्बर 9...*
*थाली में जूठन बिल्कुल न छोड़ें* और ऐसी आदत अपनाने के लिए आज ही ठान लें और एकदम पक्का तय कर लें. *इस आदत से आपको पैसों की कभी कमी नहीं होगी* अन्यथा सभी नौ के नौ ग्रहों के खराब होने का *खतरा सदैव* मंडराता रहेगा. कभी कुछ तो कभी कुछ करने योग्य फायदे वाले काम अधूरे पड़े रह जायेंगे और आपका समय व पैसा कहां जायेगा, आपको पता ही नहीं चलेगा.

मेरा मानना है कि अच्छी बातें बाँटने से किसी न किसी का फायदा तो होता ही है साथ साथ *इस तरह की ज्ञान की बहुत अच्छी बातों* का महत्त्व समझने वाले लोगों में आपकी इज़्जत भी बढ़ने की सम्भावना बनी रहती है.

261 viewsRajendra Maheshwari, 00:39
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2022-06-06 18:35:37 *नॉन स्टिक बर्तन: क्या इसमें खाना बनाना सुरक्षित है...?*
~ डॉ बिमल छाजेड़
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266 viewsRajendra Maheshwari, edited  15:35
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2022-06-06 03:40:14 *जीवन और उसकी परिभाषा...*
~ ऋषि चिंतन
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321 viewsRajendra Maheshwari, edited  00:40
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2022-06-06 03:39:59 *"एक बेटा ऐसा भी "*
===============

*" माँ, मुझे कुछ महीने के लिये विदेश जाना पड़ रहा है। तेरे रहने का इन्तजाम मैंने करा दिया है।"*
तक़रीबन 32 साल के , अविवाहित डॉक्टर सुदीप ने देर रात घर में घुसते ही कहा।
" बेटा, तेरा विदेश जाना ज़रूरी है क्या ?" माँ की आवाज़ में चिन्ता और घबराहट झलक रही थी।
" माँ, मुझे इंग्लैंड जाकर कुछ रिसर्च करनी है। वैसे भी कुछ ही महीनों की तो बात है।" सुदीप ने कहा।
" जैसी तेरी इच्छा।" मरी से आवाज़ में माँ बोली।
और छोड़ आया सुदीप अपनी माँ 'प्रभा देवी' को पड़ोस वाले शहर में स्थित एक वृद्धा-आश्रम में।
वृद्धा-आश्रम में आने पर शुरू-शुरू में हर बुजुर्ग के चेहरे पर जिन्दगी के प्रति हताशा और निराशा साफ झलकती थी। पर प्रभा देवी के चेहरे पर वृद्धा-आश्रम में आने के बावजूद कोई शिकन तक न थी।
एक दिन आश्रम में बैठे कुछ बुजुर्ग आपस में बात कर रहे थे। उनमें दो-तीन महिलायें भी थीं। उनमें से एक ने कहा, " *डॉक्टर का कोई सगा-सम्बन्धी नहीं था जो अपनी माँ को यहाँ छोड़ गया।"*
तो वहाँ बैठी एक महिला बोली, " प्रभा देवी के पति की मौत जवानी में ही हो गयी थी। तब सुदीप कुल चार साल का था।पति की मौत के बाद, प्रभा देवी और उसके बेटे को रहने और खाने के लाले पड़ गये। तब किसी भी रिश्तेदार ने उनकी मदद नहीं की। प्रभा देवी ने लोगों के कपड़े सिल-सिल कर अपने बेटे को पढ़ाया। बेटा भी पढ़ने में बहुत तेज था, तभी तो वो डॉक्टर बन सका।"
वृद्धा-आश्रम में करीब 6 महीने गुज़र जाने के बाद एक दिन प्रभा देवी ने आश्रम के संचालक राम किशन शर्मा जी के ऑफिस के फोन से अपने बेटे के मोबाईल नम्बर पर फोन किया, और कहा, " सुदीप तुम हिंदुस्तान आ गये हो या अभी इंग्लैंड में ही हो ?"
" माँ, अभी तो मैं इंग्लैंड में ही हूँ।" सुदीप का जवाब था।

तीन-तीन, चार-चार महीने के अंतराल पर प्रभा देवी सुदीप को फ़ोन करती उसका एक ही जवाब होता, " मैं अभी वहीं हूँ, जैसे ही अपने देश आऊँगा तुझे बता दूँगा।"
इस तरह तक़रीबन दो साल गुजर गये। अब तो वृद्धा-आश्रम के लोग भी कहने लगे कि देखो कैसा चालाक बेटा निकला, कितने धोखे से अपनी माँ को यहाँ छोड़ गया। आश्रम के ही किसी बुजुर्ग ने कहा, *" मुझे तो लगता नहीं कि डॉक्टर विदेश-पिदेश गया होगा, वो तो बुढ़िया से छुटकारा पाना चाह रहा था।"*
तभी किसी और बुजुर्ग ने कहा, " मगर वो तो शादी-शुदा भी नहीं था।"
*" अरे होगी उसकी कोई 'गर्ल-फ्रेण्ड' , जिसने कहा होगा पहले माँ के रहने का अलग इंतजाम करो, तभी मैं तुमसे शादी करुँगी।"*
दो साल आश्रम में रहने के बाद अब प्रभा देवी को भी अपनी नियति का पता चल गया। बेटे का गम उसे अंदर ही अंदर खाने लगा। वो बुरी तरह टूट गयी।
दो साल आश्रम में और रहने के बाद एक दिन प्रभा देवी की मौत हो गयी। उसकी मौत पर आश्रम के लोगों ने आश्रम के संचालक शर्मा जी से कहा, " इसकी मौत की खबर इसके बेटे को तो दे दो। हमें तो लगता नहीं कि वो विदेश में होगा, वो होगा यहीं कहीं अपने देश में।"
*" इसके बेटे को मैं कैसे खबर करूँ । उसे मरे तो तीन साल हो गये।"*
शर्मा जी की यह बात सुन वहाँ पर उपस्थित लोग सनाका खा गये।
उनमें से एक बोला, " अगर उसे मरे तीन साल हो गये तो प्रभा देवी से मोबाईल पर कौन बात करता था।"
" वो मोबाईल तो मेरे पास है, जिसमें उसके बेटे की रिकॉर्डेड आवाज़ है।" शर्मा जी बोले।
"पर ऐसा क्यों ?" किसी ने पूछा।
तब शर्मा जी बोले कि करीब चार साल पहले जब सुदीप अपनी माँ को यहाँ छोड़ने आया तो उसने मुझसे कहा, " शर्मा जी मुझे 'ब्लड कैंसर' हो गया है। और डॉक्टर होने के नाते मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि इसकी आखिरी स्टेज में मुझे बहुत तकलीफ होगी। मेरे मुँह से और मसूड़ों आदि से खून भी आयेगा। मेरी यह तकलीफ़ माँ से देखी न जा सकेगी। वो तो जीते जी ही मर जायेगी। *मुझे तो मरना ही है पर मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण मेरे से पहले मेरी माँ मरे।*
https://chat.whatsapp.com/FmNTPppdFHtEC7rb1CdJDm
मेरे मरने के बाद दो कमरे का हमारा छोटा सा 'फ्लेट' और जो भी घर का सामान आदि है वो मैं आश्रम को दान कर दूँगा।"
यह दास्ताँ सुन वहाँ पर उपस्थित लोगों की आँखें झलझला आयीं।
प्रभा देवी का अन्तिम संस्कार आश्रम के ही एक हिस्से में कर दिया गया। उनके अन्तिम संस्कार में शर्मा जी ने आश्रम में रहने वाले बुजुर्गों के परिवार वालों को भी बुलाया।
*माँ-बेटे की अनमोल और अटूट प्यार की दास्ताँ का ही असर था कि कुछ बेटे अपने बूढ़े माँ/बाप को वापस अपने घर ले गये।*
320 viewsRajendra Maheshwari, 00:39
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2022-06-05 18:42:15 *पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं... *
मैनें पेड़ से फोन कर के पूछा कैसे हो, कहाँ रहते हो, आजकल दिखाई नहीं देते

पेड़ बोला मात्र चालिस साल पहले तक हम बहुत सारे नीम, पीपल, बड़, कीकर, शीशम, जांडी, आम, जामुन, जाळ, कंदू, शहतूत व लेसुवे आदि आपके आसपास ही रहते थे।

याद करो तब तक आपके घरों में फर्नीचर के नाम पर खाट, पीढे व मूढ़े ही होते थे। खाट व पीढे के सिर्फ पावे हमारी लकड़ी से बनते थे। सेरू व बाही बाँस की ही होती थी, मूढ़े सरकंडे से बने होते थे।

फिर आप लोगों को पता नहीं क्या हुआ आपने हमें अखाड़ बाडे काटना शुरू कर दिया। हमारी लकड़ी से डबल बैड, सोफे, मेज, अलमारी व कुर्सी आदि बना कर अपने घरों में भर ली।

हम पेड़ आजकल आपके घर में ही हैं।

मैनें फिर पेड़ से पूछा कि आज तो विश्व पर्यावरण दिवस है चलो एक पेड़ मैं लगा देता हूँ।

पेड़ भड़क गया और कहा कि जन्मजात मुर्ख हो या पढ़लिख कर हो गये, लगता है डबल बैड यो हमारी लाश से बणे सोफे पर बैठकर, ऐ•सी• चलाकर, सोशल मीडिया से प्रभावित हो कर फोन कर रहे हो। बाहर निकल कर देखो इस 48℃ के तापमान में हमारी वृद्धि कैसे होगी।
अरे वो पश्चिमी जगत वाले अपने मौसम व मान्यताओं के हिसाब से दिन निर्धारित करते हैं और तुम अक्ल से अंधे भारतीय आँख मिंच कर उन्हें मानने लगते हो।
https://chat.whatsapp.com/FtbOb3e1jkBKApVMMEFHz9
पेड़ एक नहीं अनेक लगाना पर मानसून आने पर। जेठ के महीने में पेड़ लगायेगा आड़ू, पाणी तेरा बाप देगा। अषाढ़ से फागुन तक जितने मर्जी लगा लेना

फिर पेड़ गाणा गाणे लगा "तेरी दुनिया से दूर, चले हो के मजबूर, हमें याद रखना"

इतना कह कर पेड़ ने फोन रख दिया।

अणपढ़ जाट रोहतकी
55 viewsRajendra Maheshwari, 15:42
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2022-06-05 18:42:12
52 viewsRajendra Maheshwari, 15:42
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2022-06-05 18:41:46 *अपने अंदर की शक्ति को पहचानो...*
~ओशो
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52 viewsRajendra Maheshwari, edited  15:41
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2022-06-05 03:31:37 *कैसे भरे जीवन की पोटली में सद्गुण...*
~राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ जी महाराज
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https://chat.whatsapp.com/L9LdntHHpYb1eAXzyKeW6f
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225 viewsRajendra Maheshwari, edited  00:31
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2022-06-05 03:30:59 *आप निराश ना होइए...*
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
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https://chat.whatsapp.com/EkKYhrARkIuI4wygQ5UEk0
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224 viewsRajendra Maheshwari, edited  00:30
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2022-06-05 03:30:06 इन 60-65 साल के अंकल आंटी का झगड़ा ही ख़त्म नहीं होता...

एक बार के लिए मैंने सोचा अंकल और आंटी से बात करूं क्यों लड़ते हैं हर वक़्त, आख़िर बात क्या है...
.
फिर सोचा मुझे क्या, मैं तो यहाँ मात्र दो दिन के लिए ही तो आया हूँ...

मगर थोड़ी देर बाद आंटी की जोर-जोर से बड़बड़ाने की आवाज़ें आयीं तो मुझसे रहा नहीं गया...

ग्राउंड फ्लोर पर गया मैं, तो देखा अंकल हाथ में वाइपर और पोंछा लिए खड़े थे...

मुझे देखकर मुस्कराये और फिर फर्श की सफाई में लग गए...

अंदर किचन से आंटी के बड़बड़ाने की आवाज़ें अब भी रही थीं...

कितनी बार मना किया है... फर्श की धुलाई मत करो... पर नहीं मानता बुड्ढा...

मैंने पूछा "अंकल क्यों करते हैं आप फर्श की धुलाई?, जब आंटी मना करती हैं तो"...

अंकल बोले " बेटा! फर्श धोने का शौक मुझे नहीं इसे है। मैं तो इसीलिए करता हूं ताकि इसे न करना पड़े।"...

"ये सुबह उठकर ही फर्श धोने लगेगी इसलिए इसके उठने से पहले ही मैं धो देता हूं"
.
क्या!... मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ।

अंदर जाकर देखा आंटी किचन में थीं। "अब इस उम्र में बुढ़ऊ की हड्डी पसली कुछ हो गई तो क्या होगा? मुझसे नहीं होगी खिदमत।" आंटी झुंझला रही थीं।

परांठे बना कर आंटी सिल-बट्टे से चटनी पीसने लगीं...

मैंने पूछा "आंटी मिक्सी है तो फिर..."

"तेरे अंकल को बड़ी पसंद है सिल-बट्टे की पिसी चटनी। बड़े शौक से खाते हैं। दिखाते यही हैं कि उन्हें पसंद नहीं।"

उधर अंकल भी नहा धो कर फ़्री हो गए थे। उनकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी,
"बेटा, इस बुढ़िया से पूछ! रोज़ाना मेरे सैंडल कहां छिपा देती है, मैं ढूंढ़ता हूं और इसको बड़ा मज़ा आता है मुझे ऐसे देखकर।"

मैंने आंटी को देखा वो कप में चाय उड़ेलते हुए मुस्कुराईं और बोलीं,
"हां! मैं ही छिपाती हूं सैंडल, ताकि सर्दी में ये जूते पहनकर ही बाहर जाएं, देखा नहीं कैसे उंगलियां सूज जाती हैं इनकी।

हम तीनों साथ में नाश्ता करने लगे...

इस नोक झोंक के पीछे छिपे प्यार को देख कर मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था।

नाश्ते के दौरान भी बहस चली दोनों की।
अंकल बोले "थैला दे दो मुझे! सब्ज़ी ले आऊं"...
"नहीं कोई ज़रूरत नहीं! थैला भर भर कर सड़ी गली सब्ज़ी लाने की।" आंटी गुस्से से बोलीं।

अब क्या हुआ आंटी!... मैंने आंटी की ओर सवालिया नज़रों से देखा और उनके पीछे-पीछे किचन में आ गया।...
.
"दो कदम चलने में सांस फूल जाती है इनकी, थैला भर सब्ज़ी लाने की जान है क्या इनमें"...
"बहादुर से कह दिया है वह भेज देगा सब्ज़ी वाले को।"...
" मॉर्निंग वॉक का शौक चर्राया है बुढ़‌ऊ को"... "तू पूछ उनसे! क्यों नहीं ले जाते मुझे भी साथ में।"...
"चुपके से चोरों की तरह क्यों निकल जाते हैं?"... आंटी ने जोर से मुझसे कहा।

"मुझे मज़ा आता है इसीलिए जाता हूं अकेले।"... अंकल ने भी जोर से जवाब दिया।

अब मैं ड्राइंग रूम में था, अंकल धीरे से बोले, "रात में नींद नहीं आती तेरी आंटी को, सुबह ही आंख लगतीं हैं, कैसे जगा दूं चैन की गहरी नींद से इसे। इसीलिए चला जाता हूं, गेट बाहर से बंद कर के।"

इस नोक-झोंक पर मुस्कराता, में वापिस फर्स्ट फ्लोर पर आ गया...

कुछ देर बाद बालकनी से देखा अंकल आंटी के पीछे दौड़ रहे हैं।...

"अरे कहां भागी जा रही हो, मेरे स्कूटर की चाबी ले कर... इधर दो चाबी।"

"हां! नज़र आता नहीं पर स्कूटर चलाएंगे। कोई ज़रूरत नहीं। ओला कैब कर लेंगे हम।" आंटी चिल्ला रही थीं।

"ओला कैब वाला किडनैप कर लेगा तुझे बुढ़िया।"

"हां कर ले! तुम्हें तो सुकून हो ही जाएगा।"

अंकल और आंटी की ये बेहिसाब नोंक-झोंक तो कभी ख़त्म नहीं होने वाली थी...
https://chat.whatsapp.com/GMF0fb30sc18Q3JJYkB8Qb
मगर मैंने आज समझा कि इस तकरार के पीछे छिपी थी इनकी *एक दूसरे के लिए बेशुमार मोहब्बत और फ़िक्र...*

मैंने आज समझा था कि
*प्यार वो नहीं जो कोई "कर" रहा है..., प्यार वो है जो कोई "निभा" रहा है...*
231 viewsRajendra Maheshwari, 00:30
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