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नवीनतम संदेश 8
2021-06-01 14:19:28
#PrideMonth
146 views11:19
2021-06-01 08:00:00
अच्छी कविता
देश-धर्म, जाति
लिंग के भेदाभेदों के पचड़े में नहीं पड़ती
अवाम से वाबस्ता नहीं और
निज़ाम से छेड़छाड़ नहीं करती
अच्छी कविता
बुरों को बुरा नहीं कहने देती
अच्छी कविता
अच्छा इंसान बनाने का ज़िम्मा नहीं लेती...
https://poshampa.org/achchhi-kavita-sheoraj-singh-bechain-kavita/
22 views05:00
2021-05-31 18:00:01
दुनिया वालो कब बीतेंगे दुःख के ये दिन-रात
ख़ून से होली खेल रहे हैं धरती के बलवान!
बगिया लहूलुहान!
https://poshampa.org/bagiya-lahuluhan-a-nazm-by-habib-jalib/
66 views15:00
2021-05-31 15:30:01
स्थगित नहीं होगा शब्द—
मौन की ओट हो जाएगा शब्द
नीरव प्रतीक्षा करेगा शब्द
धीरज में धँसा रहेगा शब्द।
https://poshampa.org/sthagit-nahi-hoga-shabd-ashok-vajpeyi-kavita/
79 views12:30
2021-05-31 13:00:06
अकेली औरत अकेली नहीं रह जाती
वह अपनी उँगली थाम लेती है
वह अपने साथ सिनेमा देखती है
पानी की बोतल बग़ल की सीट पर नहीं ढूँढती
किताब के बाईसवें पन्ने से आगे चलती है
लम्बी साँस को चमेली की ख़ुशबू-सा सूँघती है!
https://poshampa.org/akeli-aurat-ka-rona-sudha-arora/
90 views10:00
2021-05-31 10:29:57
मेरी पत्नी और मेरे दरम्यान
गृह-युद्ध शुरू हो जाता है
तो देश की सरहदों पर
दुश्मनों की फ़ौजें खड़ी कर दी जाती हैं
देश ख़तरे में है
चीज़ों की बढ़ती क़ीमतों को भूल जाओ...
https://poshampa.org/khatra-kumar-vikal-hindi-poem/
95 views07:29
2021-05-31 07:59:58
देख लो
ग़ौर से देख लो मेरे आक़ा
कि अब
असल में तुम नहीं रहे मेरे आक़ा,
नयी सदी का पहला आघात
हो चुका है तुम्हारी नाभि पर
तुम्हारी नाभि में
हलाक है आदमी की अधूरी यात्राएँ
ग़ौर से देख
अब मैं कनीज़ नहीं
औरत हूँ।
https://poshampa.org/ab-main-aurat-hoon-kuberdutt-kavita/
25 views04:59
2021-05-31 05:29:58
#सालगिरह | निर्मला गर्ग
मैं सरल होना चाहती हूँ
जैसे कि बच्चे की पेंसिल
जैसे कि हवा में धूल!
https://poshampa.org/main-saral-hona-chahti-hoon-nirmala-garg/
37 views02:29
2021-05-30 17:59:59
"अकेले कवि की बहुत-सी कविताएँ उसे अकेले नहीं रहने देतीं। वे कवि के अकेले होने को सामूहिक बना देती हैं। कवि के अकेलेपन में भी एक सामूहिक राग है।"
https://poshampa.org/kavita-ek-naya-prayaas-maangti-hai-an-essay-by-leeladhar-jagudi/
31 views14:59
2021-05-30 15:30:00
यह क्या है जो इस जूते में गड़ता है
यह कील कहाँ से रोज़ निकल आती है
इस दुःख को रोज़ समझना क्यों पड़ता है!
https://poshampa.org/humne-yah-dekha-a-poem-by-raghuvir-sahay/
58 views12:30