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नवीनतम संदेश 5
2021-06-15 08:30:01
#Literature
100 views05:30
2021-06-15 06:29:56
न सही मुझसे सही आदमी होने की उम्मीद
मगर आज़ादी ने मुझे यह तो सिखलाया है
कि इश्तहार कहाँ चिपकाना है
और पेशाब कहाँ करना है!
https://poshampa.org/sarvajanik-zindagi-a-poem-by-sudama-panday-dhoomil/
105 views03:29
2021-06-14 19:07:08
'समर्पण से' शृंखला में आज प्रस्तुत हैं वेणु गोपाल के कविता संग्रह 'चट्टानों का जलगीत' में लिखे समर्पण वाक्य।
#SamarpanSe
#BookDedications
118 views16:07
2021-06-12 15:30:00
"हिन्दी के पाठकों की संख्या आज कम नहीं है। हाँ, पढ़ने के लिए पुस्तक ख़रीदनी भी चाहिए, यह विश्वास रखने वालों की संख्या बहुत कम है।"
https://poshampa.org/sahityakar-ki-samasyaaein-mohan-rakesh/
70 views12:30
2021-06-12 13:30:01
तन्हाइयों के बीच जीने वालों के लिए
मुस्कराहट के अनुवाद के कुछ मायने हैं!
https://poshampa.org/apne-uddeshya-ke-liye-pushplata-kashyap-kavita/
85 views10:30
2021-06-12 09:32:29
जो पैर नहीं रखते मिट्टी पर,
उनकी मानवता में संशय है!
https://poshampa.org/mitti-ka-darshan-bhanwarmal-singhi-kavita/
95 views06:32
2021-06-12 06:29:59
"सत्य सृष्टि की उन तमाम ख़ूबसूरत चीज़ों की तरह है, जो अपनी ख़ूबसूरती सिर्फ़ उन्हीं पर प्रकट करता है जो बदसूरती के भार को सह चुके हैं।"
https://poshampa.org/quotes-from-nastik-by-kahlil-gibran/
100 views03:29
2021-06-11 08:30:00
"नहीं जानते? अरे हमारे देहातों में यह आम रिवाज था। जब बाबू लोगों को किसी ग़रीब की बहू-बेटी पसंद आ जाती, तो वे उसको तंग-परेशान करते, मारते-पीटते, खेतों से बेदख़ल कर देते, और सफलता न मिलने पर बुरी तरह पिटवा देते। फिर रात में उसके घर में घुसकर या किसी दूसरे तरीक़े से उल्लू सीधा करते।"
https://poshampa.org/palaash-ke-phool-amarkant/
72 views05:30
2021-06-11 06:30:00
हमारा धूप में घर, छाँह की क्या बात जानें हम
अभी तक तो अकेले ही चले, क्या साथ जानें हम
लो पूछ लो हमसे
घुटन की घाटियाँ कैसी लगीं
मगर नंगा रहा आकाश, क्या बरसात जानें हम!
https://poshampa.org/sabhi-sukh-door-se-guzarein-harish-bhadani/
80 views03:30
2021-06-09 15:01:54
"कहाँ हैं
चेहरे पर पसरीं
चन्द अदद पसीने की वे बूँदें
जो मोती के हर्फ़ बनकर
गढ़ती हैं इतिहास
भूख के कुनबे में
फैलता हुआ ईमानदार विद्रोह
जिसकी बुनियाद
टुच्चे नारे नहीं
बेसब्र होता हुआ श्रम है?"
https://poshampa.org/paanv-kate-bimb-kumar-nayan-kavita/
82 views12:01