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नवीनतम संदेश 4
2021-06-19 06:30:03
अब हम किसी कविता में नहीं
खुलना चाहते
बन्द हैं प्रतीकों के द्वार
यह वसन्त नहीं है दूर तक चली
जाती हुई पहाड़ी गुफा के
अन्त में पड़ी हुई लाल-पत्थर की
भारी चट्टान!
https://poshampa.org/pehli-kavita-ki-aakhiri-shaam-rajkamal-chaudhary/
61 views03:30
2021-06-18 11:37:35
“सदाचार में जो जितना ही पतित है, वह उतना ही अधिक सुन्दर लच्छेदार शब्दों में उस पर व्याख्यान दे सकता है।”
https://poshampa.org/tumhare-sadachar-ki-kshay-rahul-sankrityayan/
48 views08:37
2021-06-18 08:59:59
साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का
उम्मीद बाँधिए न बड़े आदमी के साथ!
https://poshampa.org/kutiya-mein-kaun-aaega-kaif-bhopali-ghazal/
66 views05:59
2021-06-18 06:30:00
लकड़ी ही नहीं
अपनी दिनचर्या में
आदमी भी कटता है यहाँ।
https://poshampa.org/kulhadi-a-poem-by-narendra-jain/
87 views03:30
2021-06-17 09:07:59
"पूरा नाम लिखूँ या फिर सिर्फ़ P? पर सिर्फ़ P से तो प्रियंका सिंह, प्रनीता रानी भी है। पूरा ही लिखना पड़ेगा, हिन्दी में लिखने पर कर्व ज़्यादा आएगा, दर्द होगा ज़्यादा, इंग्लिश में ही लिखता हूँ, पर हाथ मम्मी को दिख गया तो!"
#NewBook #ZeroPeriod
https://poshampa.org/jeetendra-ghughri-aur-weekend-avinash-singh-tomar-a-story-from-zero-period/
60 views06:07
2021-06-16 11:30:01
#Katyayani #Dissent
125 views08:30
2021-06-16 09:59:58
"एक सुसज्जित तैयारी के बाद भी
युद्ध कभी नहीं हुआ
असलहे-औज़ार सब वैसे ही पड़े हैं
जैसे अपने निर्दोष जीवन में
एक दोष की तरह घसीट लाया था उन्हें
सारे तर्क, वाद और कथ्य घिस गए हैं
जिन्हें जोड़ लिया था कि
किसी प्रतिवादी के सामने हल्का न लगूँ!"
https://poshampa.org/gaaytaal-adarsh-bhushan-kavita/
132 views06:59
2021-06-16 09:07:05
#सालगिरह | शहरयार
11 views06:07
2021-06-15 14:30:01
"माधुरी दीक्षित बहुत हैरत से पूछती है कि दीदी, ये बच्चा किसका है? एक तरह से देखें तो यह सवाल ही बेतुका और ग़ैर-ज़रूरी है क्योंकि अगर बच्चा उसके शरीर के अन्दर है तो ज़ाहिर-सी बात है बच्चा उसी का होगा। लेकिन एक पितृसत्तात्मक समाज (केवल पितृसत्तात्मक समाज में ही) में यह बेतुका सवाल कि—बच्चे का बाप कौन है, पूरी तरह जायज़ माना जाता है।"
https://poshampa.org/nariwadi-nigah-se-nivedita-menon-book-excerpt/
59 views11:30
2021-06-15 10:30:03
"यह अभ्यास बदस्तूर जारी है
आज मैं चेहरे से भी दरिद्र दिखने लगा हूँ
सफ़ेद ख़ाली काग़ज़ पर
सिर झुकाकर
जब लिख रहा होता हूँ कोई आवेदन
मेरे ख़याल में जूतों की एक जमात तैरती है..."
https://poshampa.org/aavedan-patr-gaurav-bharti/
84 views07:30