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नवीनतम संदेश 3
2021-06-22 12:30:03
"क्या यह हमारा कर्त्तव्य नहीं बनता कि हम अपनी माँ को शुरू से जानें―उनके बचपन से, जैसे कि वह हमें हमारे बचपन से जानती है?"
https://poshampa.org/quotes-from-chanchala-chor-shivendra/
72 views09:30
2021-06-22 10:30:04
हिन्दी की एक क्लासिक कृति 'कलम का सिपाही' जो कि प्रेमचंद की जीवनी है और उनके पुत्र अमृत राय द्वारा लिखी गई है, अब एक नये रूप में उपलब्ध है। कई सालों से बाज़ार में अनुपलब्ध रहने के बाद इस किताब का नये कलेवर में प्रकाशन हिन्दी पाठकों के लिए एक सुखद सूचना है।
किताब का लिंक:
https://amzn.to/3d0vanm
82 views07:30
2021-06-22 08:29:59
"नहीं मिलता कहीं कपड़ा,
लँगोटी हम पहनते हैं।
हमारी औरतों के तन
उघारे ही झलकते हैं।
हज़ारों आदमी के शव
कफ़न तक को तरसते हैं।
बिना ओढ़े हुए चदरा,
खुले मरघट को चलते हैं।
हमारी ज़िन्दगी के दिन,
हमारी लाज के दिन हैं।"
https://poshampa.org/humari-zindagi-kedarnath-agarwal-ki-kavita/
83 views05:29
2021-06-22 07:20:25
#Pride #PrideMonth
84 views04:20
2021-06-21 10:29:58
"उनके जीवन के अन्तिम दिनों में
उनका जीवन मुझमें शुरू होने लगा था।"
अनुवाद: आदर्श भूषण
https://poshampa.org/his-stillness-a-poem-by-sharon-olds-in-hindi/
112 views07:29
2021-06-21 08:22:58
"ख़ूबसूरत होना भी क्या रिश्वत है? मौसा कहते थे कि गंजे हाकिम के पास ख़ूबसूरत लड़की भेज दो और कुछ भी करवा लो… ख़ूबसूरत लड़की और रुपया, रुपया और ख़ूबसूरत लड़की – इन्हें लेकर जज और हाकिम काम क्यों कर देते हैं? क्यों… क्यों और ख़ूबसूरत लड़की का वे क्या करते हैं? काम करवाते होंगे, पर काम तो सभी करते हैं… फिर ख़ूबसूरत लड़की ही क्या?… और उसके मौसा बहुत-से रुपये लाते हैं, पर लड़की कभी नहीं लाते… उसकी समझ में कुछ नहीं आया।"
https://poshampa.org/dharti-ab-bhi-ghoom-rahi-hai-a-story-by-vishnu-prabhakar/
117 views05:22
2021-06-20 10:30:00
पिता गर्वमिश्रित प्रसन्नता से कहते हैं—
और क्या! धूप और भूख ये कहाँ सह पाती है!
मेरी आँखें रंज से बरबस भर आती हैं
मैं चीख़कर पूछना चाहती हूँ
ये तुम्हें पता था पिता?!
पर चुप रहकर खेतों की ओर देखने लगती हूँ
पिता के खेत-बाग़ सब लहलहा रहे हैं!
#FathersDay
https://poshampa.org/pita-ke-ghar-mein-main-a-poem-by-rupam-mishra/
145 views07:30
2021-06-20 08:30:00
‘सादगी से रहूँगा’
तुमने सोचा था
अतः हर उत्सव में तुम द्वार पर खड़े रहे।
‘झूठ नहीं बोलूँगा’
तुमने व्रत लिया था
अतः हर गोष्ठी में तुम चित्र से जड़े रहे।
तुमने जितना ही अपने को अर्थ दिया
दूसरों ने उतना ही तुम्हें अर्थहीन समझा।
#FathersDay
https://poshampa.org/divangat-pita-ke-prati-sarveshwar-dayal-saxena/
140 views05:30
2021-06-20 06:30:02
"यदि देश की सुरक्षा यही होती है
कि बिना ज़मीर होना ज़िन्दगी के लिए शर्त बन जाए
आँख की पुतली में हाँ के सिवाय कोई भी शब्द
अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दण्डवत झुका रहे
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है।"
https://poshampa.org/apni-suraksha-se-a-poem-by-paash/
135 views03:30
2021-06-19 11:07:00
"मैं एक पार्क में पहुँचा
जाड़े की धूप ऊन के गोले की तरह खुल रही थी
और एक लड़की अपने शर्मीले साथी से कह रही थी—
आज के दिन को एक ‘पुलओवर’ की तरह समझो
और इसे पहन लो..."
https://poshampa.org/khuda-ka-chehra-kumar-vikal/
36 views08:07