पिता गर्वमिश्रित प्रसन्नता से कहते हैं— और क्या! धूप और भूख ये | Posham Pa ― a Hindi literary website
पिता गर्वमिश्रित प्रसन्नता से कहते हैं— और क्या! धूप और भूख ये कहाँ सह पाती है!
मेरी आँखें रंज से बरबस भर आती हैं मैं चीख़कर पूछना चाहती हूँ ये तुम्हें पता था पिता?! पर चुप रहकर खेतों की ओर देखने लगती हूँ पिता के खेत-बाग़ सब लहलहा रहे हैं!