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‘सादगी से रहूँगा’ तुमने सोचा था अतः हर उत्सव में तुम द्वार पर | Posham Pa ― a Hindi literary website

‘सादगी से रहूँगा’
तुमने सोचा था
अतः हर उत्सव में तुम द्वार पर खड़े रहे।

‘झूठ नहीं बोलूँगा’
तुमने व्रत लिया था
अतः हर गोष्ठी में तुम चित्र से जड़े रहे।

तुमने जितना ही अपने को अर्थ दिया
दूसरों ने उतना ही तुम्हें अर्थहीन समझा।

#FathersDay

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