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2021-07-01 14:27:52
"हथेलियाँ अखरोट सम्भाले बैठी रहती हैं
मन फुदकती हुई अठखेलियों की बाल-चेष्टा में फँसा रहता है
प्रेम हमेशा एक गिलहरी के पास आने की
प्रतीक्षा की तरह रहा।"
https://poshampa.org/gilhari-adarsh-bhushan-kavita/
39 views11:27
2021-07-01 09:07:10
#NewBook
"जिस तरह हमारा सौन्दर्यशास्त्र या Aesthetic Culture अलग है, उसी तरह हमारी प्रोग्रेसिविज़्म (Progressivism) और Modernity या ज़दीदियत भी अलग है। मैंने इसी दृष्टिकोण के साथ आधुनिक युग के अधिकतर शायरों को समझने की कोशिश की है।"
— शमीम हनफ़ी ['हमसफ़रों के दरमियां' से]
किताब का लिंक:
https://amzn.to/3h5ZejS
27 views06:07
2021-07-01 06:29:53
#सालगिरह | लीलाधर जगूड़ी
"समूहों में दोस्ती हो रही है
खुले विचारों वाले अकेले व्यक्तियों के ख़िलाफ़।"
https://poshampa.org/jab-main-aaya-tha-leeladhar-jagudi/
38 views03:29
2021-06-30 14:59:54
"जहाँ बालिका की स्मृति होगी, वहाँ उसके उत्तरोत्तर जीवन में खरोंचे गए सपनों और देह का दुखद वृत्तान्त भी होगा। अच्छे घर की संस्कारी लड़की से अपेक्षा की जाती है कि वह ऊँची दुनिया की इमारतों को निगाह नीची कर देखे। इसी के कंट्रास्ट में इस पुरुषवादी संसार में स्त्री को पुरुष इस तरह देखते हैं—
“स्त्री अभी-अभी सह कर आयी है
तीक्ष्ण निगाहों के चाबुक
क्यों-कहाँ-कब चली सवारी
जैसे जुमलों के जवाब देकर!”
https://poshampa.org/pehli-boond-neeli-thi-sonu-yashraj-a-comment/
80 views11:59
2021-06-30 13:12:54
मृदुला गर्ग द्वारा लिखा गया नाटक 'जादू का कालीन' का मुख्य विषय है बाल मज़दूरी और यह तथ्य कि कैसे कुछ उद्योग बच्चों के शोषण पर टिके हुए हैं। नाटक में जहाँ एक तरफ़ जादू का कालीन बच्चों की कल्पनाओं और उनके एक सुन्दर भविष्य का रूपक है, वहीं उनके शोषण का प्रतीक भी। इसी नाटक पर बातचीत की है पुनीत कुसुम और सहेज अज़ीज़ ने, पोषम पा के पॉडकास्ट अक्कड़ बक्कड़ के छठे एपिसोड में। ज़रूर सुनें!
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86 views10:12
2021-06-30 09:15:54
बस्तियों से खदेड़े गये
ओ, मेरे पुरखो
तुम चुप रहे उन रातों में
जब तुम्हें प्रेम करना था
आलिंगन में बाँधकर
अपनी पत्नियों को
तुम तलाशते रहे
मुट्ठी भर चावल
सपने गिरवी रखकर
https://poshampa.org/mutthi-bhar-chawal-a-poem-by-omprakash-valmiki/
97 views06:15
2021-06-29 08:05:13
#RamanathAwasthi
51 views05:05
2021-06-27 17:34:58
'चलो'
कहो एक बार
अभी ही चलूँगी मैं—
एक बार कहो!
https://poshampa.org/chalo-kaho-ek-baar-indu-jain-kavita/
120 views14:34
2021-06-26 16:59:59
"नहीं बाँटूँगा अपने आप का पावन अंधेरा
उन उजालों को
जो मेरी सृष्टि के आरम्भ से अवसान तक
रहता, मेरे अन्तस् को भरता और करता
मुझको ख़ाली
ख़ुद से ख़ाली
पूरा ख़ाली!"
https://poshampa.org/o-nisha-nitesh-vyas-kavita/
35 views13:59
2021-06-26 12:42:58
"माता-पिता के देवतुल्य होने का मिथ ध्वस्त हो चुका है। सब इंसान हैं। सबसे ग़लतियाँ हो सकती हैं।"
https://poshampa.org/pitaji-ka-samay-swayam-prakash-kahani/
13 views09:42