'मैं एक पार्क में पहुँचा जाड़े की धूप ऊन के गोले की तरह खुल रह | Posham Pa ― a Hindi literary website
"मैं एक पार्क में पहुँचा जाड़े की धूप ऊन के गोले की तरह खुल रही थी और एक लड़की अपने शर्मीले साथी से कह रही थी— आज के दिन को एक ‘पुलओवर’ की तरह समझो और इसे पहन लो..."