अब हम किसी कविता में नहीं खुलना चाहते बन्द हैं प्रतीकों के द्वार यह वसन्त नहीं है दूर तक चली जाती हुई पहाड़ी गुफा के अन्त में पड़ी हुई लाल-पत्थर की भारी चट्टान! https://poshampa.org/pehli-kavita-ki-aakhiri-shaam-rajkamal-chaudhary/ 61 views03:30