'नहीं मिलता कहीं कपड़ा, लँगोटी हम पहनते हैं। हमारी औरतों के तन | Posham Pa ― a Hindi literary website
"नहीं मिलता कहीं कपड़ा,
लँगोटी हम पहनते हैं।
हमारी औरतों के तन
उघारे ही झलकते हैं।
हज़ारों आदमी के शव
कफ़न तक को तरसते हैं।
बिना ओढ़े हुए चदरा,
खुले मरघट को चलते हैं।
हमारी ज़िन्दगी के दिन,
हमारी लाज के दिन हैं।"
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