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नवीनतम संदेश 11
2021-05-25 12:29:59
"मानव जाति को मैं बड़ा आदर्श समझता था—परंतु वैसी कोई विशेष बात नहीं।"
https://poshampa.org/ek-kutte-ki-diary-prabhakar-machwe-vyangya/
57 views09:29
2021-05-25 10:29:59
वह शायद देखती है दुःस्वप्न में ठहरे हुए दृश्य-सा
एक थाली भात...
https://poshampa.org/wah-kisaan-aurat-a-poem-by-pankaj-singh/
60 views07:29
2021-05-25 08:29:59
इच्छा हुई मैं न बोलूँ
मेरा उस राजा से या उसकी अंधभक्त प्रजा से
क्या नाता है?
लेकिन सहसा एक व्याख्यातीत अंधेरा
ढक लेता है मेरा जीवित चेहरा,
और भीतर से कुछ बाहर आने के लिए छटपटाता है।
https://poshampa.org/ishwar-ko-sooli-dushyant-kumar/
73 views05:29
2021-05-25 06:29:59
अब किसी आवाज़ पर
दौड़ नहीं पड़ते अचानक नंगे पाँव
कमरों में आराम से बैठे-बैठे
देखते रहते हैं नरसंहार...
https://poshampa.org/manushya-bhagwat-rawat-kavita/
73 views03:29
2021-05-24 17:30:00
खोल दो खिड़की कोई
गहरी, बहुत गहरी घुटन है!
https://poshampa.org/khol-do-khidki-koi-sunita-jain/
101 views14:30
2021-05-24 15:30:00
वह सोचती है
एकान्त में,
नतीजे तक पहुँचने से पहले ही
ख़तरनाक घोषित कर दी जाती है!
https://poshampa.org/stree-ka-sochna-ekant-mein-katyayani-kavita/
104 views12:30
2021-05-24 13:33:00
"देखो, यह फ़्रॉक मत खो देना, सात रुपए मैंने इसकी सिलाई दी है। यह प्याले मत तोड़ देना, वरना पचास रुपए का सेट बिगड़ जाएगा। और हाँ, गिलास को तुम तुच्छ समझते हो, उसकी परवाह ही नहीं करोगे, पर देखो, यह पंद्रह बरस से मेरे पास है और कहीं खरोंच तक नहीं है, तोड़ दिया तो ठीक न होगा।"
https://poshampa.org/sayani-bua-mannu-bhandari-kahani/
107 views10:33
2021-05-24 11:30:00
रो रहे हैं कि एक आदत है
वर्ना इतना नहीं मलाल हमें!
https://poshampa.org/le-uda-phir-koi-khyaal-hamein-ahmad-faraz-ghazal/
106 views08:30
2021-05-23 16:30:00
"यदि आप कवि के स्वप्नों को उसका जीवन से पलायन कहते हैं, यदि आप कवि से चाहते हैं कि वह भी आज की तथाकथित महान शक्तियों की तरह A tooth for a tooth के या ‘शठं प्रति शाठ्यं कुर्यात्’ के वास्तविकतावादी सिद्धान्त को अपनाए तब तो यह मनुष्य की तर्कबुद्धि की घोर विडम्बना होगी, मानव के विवेक की घोर पराजय होगी।"
https://poshampa.org/kavi-ke-swapnon-ka-mahattv-sumitranandan-pant/
31 views13:30
2021-05-23 14:30:02
जीवन बचा है अभी
सूख गए फूल के आसपास है ख़ुशबू
आदमी को छोड़कर भागे नहीं हैं सपने
भाषा शिशुओं के मुँह में आकार ले रही है!
https://poshampa.org/jeewan-bacha-hai-abhi-shalabh-shriram-singh/
42 views11:30