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नवीनतम संदेश 13
2021-05-21 12:30:00
"समस्याओं के घाट पर हम तौलिया लपेटे खड़े हैं। सबसे पूछ रहे हैं—क्यों साहब, वह कहीं आपको नज़र आया? अरे वही, जिसके हम वोटर हैं। वही, जिसके हम मामा हैं।"
https://poshampa.org/jiske-hum-mama-hain/
64 views09:30
2021-05-21 10:30:00
"अब चाँद बातें करो
मेरी माँ से
कुछ शब्दों के साथ!
और कहो उससे
मैं अब भी कितना प्यार करता हूँ उससे!
कह सकता हूँ मैं भी
लेकिन, पता नहीं कितना
सुन सकती है मुझे!"
https://poshampa.org/poems-by-adriatik-jace/
70 views07:30
2021-05-21 08:30:00
हम दोनो हैं दुःखी। पास ही नीरव बैठें,
बोलें नहीं, न छुएँ। समय चुपचाप बिताएँ,
अपने-अपने मन में भटक-भटककर पैठें
उस दुःख के सागर में, जिसके तीर चिताएँ
अभिलाषाओं की जलती हैं धू धू धू धू।
https://poshampa.org/hum-dono-hain-dukhi-a-poem-by-trilochan/
79 views05:30
2021-05-21 06:30:00
सुख से, पुलकने से नहीं
रचने-खटने की थकान से सोयी हुई है स्त्री...
https://poshampa.org/ek-sapna-yah-bhi-a-poem-by-chandrakant-devtale/
85 views03:30
2021-05-20 16:30:01
"माँ की यह स्थिति मेरे अन्दर हमेशा विचित्र-सी जुगुप्सा पैदा कर देती। मैं चाहता था, उसे इस तरह अव्यवस्थित होने से रोकूँ, अपनी घृणा व्यक्त करूँ, पर मैं उससे कुछ स्पष्ट नहीं कह पाता था। यह माँ की वर्षों की दिनचर्या थी। मुझे लगता था कि कुछ भी कहने पर वह अचानक इतनी लज्जित और असहज हो जाएगी कि उसके जीवन का पूरा संतुलन नष्ट हो जाएगा।"
https://poshampa.org/palang-priyamvad-kahani/
99 views13:30
2021-05-20 12:29:58
आसपास बिखरी तमाम बुराई और अव्यवस्था के बावजूद कवि स्वप्नशील है और मानता है कि प्रकृति मनुष्य को सपने देखने की क्षमता से परिपूर्ण बनाए रखेगी। सपने पूरे करने के लिए स्वावलम्बी और निरन्तर प्रयासरत होना होता है। कवि मानता है कि ‘सपने अधूरी सवारी के विरुद्ध होते हैं’। कवि अपूर्ण इच्छाओं की इतिश्री न कर उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा मानता है—
“पूर्ण इच्छाएँ
बस पत्थर हैं मील का
अधूरी इच्छाएँ
सहचर हैं मंज़िल की”
https://poshampa.org/suraj-ko-angootha-jitendra-srivastava-a-comment/
103 views09:29
2021-05-20 10:29:58
"यह क्या से क्या हो गया
कि मेरी रचना का चातुर्य वही
अभिव्यक्ति मगर अव्यक्त मूक ही रह जाती
अब कविताई अपनी कुछ काम नहीं आती।"
https://poshampa.org/kavitaai-kaam-nahi-aati-kirti-chaudhary/
100 views07:29
2021-05-20 08:29:59
मैं चंदन हुआ जा रहा हूँ
तुम्हारी चुप्पी के पहाड़ों से
ख़ुद को रगड़कर
तुम्हारी त्वचा पर फैल जाऊँगा।
अच्छा जाने दो
त्वचा पर चंदन का
सूख जाना तुम्हें पसन्द नहीं!
https://poshampa.org/chalo-ghoom-aaein-a-poem-by-sarveshwar-dayal-saxena/
118 views05:29
2021-05-20 06:29:59
मुझे अभी भी लगता है कि ट्रेन एक ही है जिसमें दलित भी बैठे हैं और स्त्री भी—पटरियों की दिशाएँ नहीं बदली गईं तो गन्तव्य भी एक ही है… विश्वास न हो तो कंट्रोल-रूम में पूछ लीजिए…
https://poshampa.org/nari-tum-kewal-shraddha-ho-an-article-by-rajendra-yadav/
116 views03:29
2021-05-19 16:30:02
जगहें ख़त्म हो जाती हैं
जब हमारी वहॉं जाने की इच्छाएँ
ख़त्म हो जाती हैं
लेकिन जिनकी इच्छाएँ ख़त्म हो जाती हैं
वे ऐसी जगहों में बदल जाते हैं
जहॉं कोई आना नहीं चाहता...
https://poshampa.org/ajeeb-baat-a-poem-by-naresh-saxena/
37 views13:30