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नवीनतम संदेश 14
2021-05-19 14:30:02
तुम किसी से रास्ता न माँगना
और किसी भी दीवार को
हाथ न लगाना
न घबराना
न किसी के बहलावे में आना
और बादलों की भीड़ में से—
तुम पवन की तरह गुज़र जाना।
https://poshampa.org/mulaqat-amrita-pritam-kavita/
49 views11:30
2021-05-19 11:11:00
"जिस देवी दुर्गा के सामने एक निरीह शूद्र की बलि चढ़नी थी, देखते-ही-देखते उसके सामने लहू से नहायी निकुम्भों की लाशें बिछ गईं। क़िले का पूरा अहाता जैसे किसी छोटे-से रक्त-कुंड में तब्दील हो गया। जो इस संहार से बच गए, उनमें से कुछ ने क़िले से कूदकर जान दे दी और जो बच गए, वे अंधेरे का फ़ायदा उठा जान बचाकर भाग गए।"
https://poshampa.org/khanzada-bhagwandas-morwal-book-excerpt/
56 views08:11
2021-05-19 08:30:01
बहुत दिनों से नहीं
पूछा आपने, पौधों के बारे में।
छत पर नहीं गए
देखने तारे।
'ऐसे नहीं होते कवि'
—कहा मेरी बेटी ने।
https://poshampa.org/kaha-meri-beti-ne-a-poem-by-prayag-shukla/
70 views05:30
2021-05-19 06:29:53
हत्यारे और भी नफ़ीस होते जाते हैं
मारे जाने वाले और भी दयनीय...
https://poshampa.org/is-daur-mein-a-poem-by-neelabh/
16 views03:29
2021-05-18 16:29:54
आज भी होंगे करोड़ों पर अन्याय
अत्याचार होंगे लाखों पर
इस शाम भी असंख्य सोएँगे भूखे या आधे पेट
हज़ारों-हज़ार रहेंगे बेआसरा-बेसहारा
औरतें गुज़रेंगी हर सम्भव-असम्भव अपमान से
बच्चे होंगे अनाथ या बेच दिए जाएँगे
बेशुमार हाथ फैले होंगे दूसरों के आगे
आज भी वही होगा जो पाँच हज़ार वर्षों से होता आया है!
https://poshampa.org/aaj-bhi-vishnu-khare-kavita/
54 views13:29
2021-05-18 14:29:54
"अज्ञान का दूसरा नाम ही ईश्वर है। हम अपने अज्ञान को साफ़ स्वीकार करने में शर्माते हैं, अतः उसके लिए सम्भ्रान्त नाम ‘ईश्वर’ ढूँढ निकाला गया है। ईश्वर-विश्वास का दूसरा कारण मनुष्य की असमर्थता और बेबसी है।"
https://poshampa.org/tumhare-bhagwan-ki-kshay-rahul-sankrityayan/
59 views11:29
2021-05-18 12:29:54
जब बच्चे करते हैं जी-भर प्रेम
तब झड़ते हैं शरमाकर
रोहिड़े के फूल
जब बच्चे लहूलुहान पृथिवी पर
बरसाते हैं चुग्गा
तब हिय में हिलोरे लेती है आज़ादी।
https://poshampa.org/tab-ve-kavi-ho-jate-hain-sandeep-nirbhay-kavita/
65 views09:29
2021-05-18 10:29:54
लड़ो
लड़ो बुझती हुई आशाओं से
फूँक मार-मारकर उठाते रहो दीपशिखा उनकी
खड़े हो जाओ दोनों हथेलियाँ ले
घेराबन्दी कर सुरक्षा में उनकी
हताशाओं के झँझावात में उत्तरदेय कोई नहीं होता
एक छोटी लौ के प्रकाश से भी जगी रह सकती हैं इच्छाएँ!
https://poshampa.org/samay-se-mat-lado-adarsh-bhushan/
73 views07:29
2021-05-18 08:29:55
कोई उस औरत को बतलाए
आख़िर क्यों दे रही है वह किसी को
अपनी ज़िन्दगी से जुड़े सवालों के जवाब?
आख़िर कब बन्द होगी
दीवार में ठुकती कील-सी
प्रश्नों की ठक-ठक...
https://poshampa.org/dakhal-a-poem-by-neera-parmar/
67 views05:29
2021-05-18 06:29:55
मैं प्रेम करना चाहती थी
और रास्ते के
उस किसी भी पेड़, टेकरी या पहाड़ को
गिरा देना चाहती थी
जो मेरी रुकावट बनता था
वह पेड़ भाई हो सकता था
वह टेकरी बहिन
और वह पहाड़ पिता हो सकता था।
https://poshampa.org/purush-sookt-amrita-bharti-hindi-kavita/
80 views03:29