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Utkarsh Ramsnehi Gurukul

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2023-05-09 07:45:10
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2023-05-09 07:40:07 गोपाल कृष्ण गोखले
गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई, 1866 को वर्तमान महाराष्ट्र (तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा) के कोटलुक गाँव में हुआ था।
उन्होंने कोल्हापुर के राजाराम कॉलेज में पढ़ाई की तथा गोखले ने वर्ष 1884 में एल्फिंस्टन कॉलेज से स्नातक किया।
गोखले ने सामाजिक सशक्तीकरण, शिक्षा के विस्तार और तीन दशकों तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में कार्य किया तथा प्रतिक्रियावादी या क्रांतिकारी तरीकों के इस्तेमाल को खारिज किया।
वर्ष 1899 से 1902 के बीच वह बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य रहे और वर्ष 1902 से 1915 तक उन्होंने इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में काम किया।
इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में काम करने के दौरान गोखले ने वर्ष 1909 के मॉर्ले-मिंटो सुधारों को तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वर्ष 1889 में गोपाल कृष्ण गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने। कई मायनों में, तिलक और गोखले के शुरुआती करियर में समानता थी। दोनों चित्पावन ब्राह्मण थे, दोनों एल्फिस्टन कॉलेज में पढ़े, दोनों गणित के प्रोफेसर बने और दोनों ही डेक्कन एजुकेशन सोसायटी के महत्त्वपूर्ण सदस्य थे।
यह वह समय था जब ‘नरम दल’ और लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक तथा अन्य के नेतृत्व वाले ‘गरम दल’ के बीच व्यापक मतभेद पैदा हो गए थे। वर्ष 1907 के सूरत अधिवेशन में ये दोनों गुट अलग हो गए।
वैचारिक मतभेद के बावजूद वर्ष 1907 में उन्होंने लाला लाजपत राय की रिहाई के लिए अभियान चलाया, जिन्हें अंग्रेज़ों द्वारा म्यांमार की मांडले जेल में कैद किया गया था।
वर्ष 1905 में अपने राजनीतिक जीवन के क्षेत्र को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में अध्यक्ष के रूप में चुना।
भारतीय शिक्षा के विस्तार के लिए 12 जून, 1905 को उन्होंने पुणे, महाराष्ट्र में सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसायटी (Servants of India Society) की स्थापना की। सोसायटी ने शिक्षा, स्वच्छता, स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा देने और अस्पृश्यता और सामाजिक भेदभाव, शराब, गरीबी, महिलाओं के उत्पीड़न और घरेलू दुर्व्यवहार से लड़ने के लिए कई अभियान चलाए।
वे महादेव गोविंद रानाडे द्वारा शुरू की गई 'सार्वजनिक सभा पत्रिका' से भी जुड़े थे।
वर्ष 1908 में गोखले ने ‘रानाडे इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक्स’ की स्थापना की।
उन्होंने अंग्रेज़ी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘द हितवाद’ की शुरुआत की।
एक उदार राष्ट्रवादी के रूप में महात्मा गाँधी ने गोखले को अपना ‘राजनीतिक गुरु’ माना था।
महात्मा गाँधी ने गुजराती भाषा में गोपाल कृष्ण गोखले को समर्पित एक पुस्तक 'धर्मात्मा गोखले' लिखी।
19 फरवरी, 1915 को गोखले का निधन हो गया।
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2023-05-06 07:40:00 पंडित मोतीलाल नेहरू
प्रख्यात वकील और राजनीतिज्ञ पंडित मोतीलाल नेहरू का जन्म 6 मई, 1861 को आगरा में हुआ था।
मोतीलाल नेहरू कश्मीर से थे, लेकिन अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत से ही दिल्ली में बस गए थे।
मोतीलाल नेहरू के दादा, लक्ष्मी नारायण, दिल्ली के मुगल दरबार में ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले वकील बने। उनके पिता गंगाधर, वर्ष 1857 में दिल्ली में एक पुलिस अधिकारी थे।
मोतीलाल नेहरू का बचपन खेतड़ी, राजस्थान में बीता। इसके बाद में उनका परिवार इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज) चला गया।
मोतीलाल नेहरू ने कानपुर से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज) के मुइर सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया।
वर्ष 1907 में, उन्होंने इलाहाबाद में उदारवादी राजनेताओं के एक प्रांतीय सम्मेलन की अध्यक्षता की। वर्ष 1909 में उन्हें संयुक्त प्रांत परिषद् का सदस्य चुना गया।
मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज) नगरपालिका बोर्ड और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने। उन्हें संयुक्त प्रांत कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया।
जून 1917 में श्रीमती बेसेंट की नजरबंदी ने उन्हें मैदान में ला खड़ा किया। वे होम रूल लीग की इलाहाबाद शाखा के अध्यक्ष बने। अगस्त 1918 में उन्होंने संवैधानिक मुद्दे पर अपने नरमपंथी दोस्तों के साथ कंपनी छोड़ दी और बॉम्बे कांग्रेस में भाग लिया, जिसने मोण्टेग्यु -चेम्सफोर्ड सुधारों में आमूल-चूल परिवर्तन की माँग की।
5 फरवरी, 1919 को, उन्होंने एक नया दैनिक पत्र ‘इंडिपेंडेंट’ लॉन्च किया।
दिसंबर, 1919 में अमृतसर कांग्रेस की अध्यक्षता करने के लिए चुने गए।
सितंबर 1920 में कलकत्ता में कांग्रेस के विशेष सत्र में असहयोग को अपना समर्थन देने वाले वे एकमात्र फ्रंट रैंक के नेता थे।
मोतीलाल नेहरू और सीआर दास ने जनवरी 1923 में स्वराज्य पार्टी की स्थापना की तथा वर्ष 1923 के अंत में चुनाव लड़ा। स्वराज पार्टी केंद्रीय विधान सभा के साथ-साथ कुछ प्रांतीय विधानमंडलों में सबसे बड़ी पार्टी थी। वर्ष 1925 के बाद से इसे कांग्रेस ने अपनी राजनीतिक शाखा के रूप में मान्यता दी। अगले छह वर्षों के लिए विधान सभा में मोतीलाल नेहरू विपक्ष के नेता थे।
कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. अंसारी द्वारा एक सर्वदलीय सम्मेलन आयोजित किया गया और मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति की नियुक्त की गई थी, जो स्वतंत्र भारत के लिए एक संविधान के सिद्धांतों को निर्धारित करने के लिए गठित की गई थी। इस समिति ने , जिसकी अंतिम रिपोर्ट को ‘नेहरू रिपोर्ट’ कहा जाता है, ने सांप्रदायिक समस्या का समाधान करने का प्रयास किया, जो दुर्भाग्य से आगा खान और जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम राय के एक मुखर वर्ग का समर्थन प्राप्त करने में विफल रही।
दिसंबर 1928 में कलकत्ता कांग्रेस, जिसकी अध्यक्षता उन्होंने की थी, उन लोगों के बीच आमने-सामने का संघर्ष था, जो डोमिनियन स्टेट्स को स्वीकार करने के लिए तैयार थे और जिनके पास पूर्ण स्वतंत्रता से कम कुछ नहीं था।
एक शानदार वकील, एक शानदार वक्ता, एक महान सांसद और एक महान संगठक रहे मोतीलाल नेहरू का 6 फरवरी, 1931 को निधन हो गया।
उनका जीवन पर एक तर्कसंगत, मजबूत, धर्मनिरपेक्ष और निडर दृष्टिकोण था। वह गाँधीवादी युग में भारतीय राष्ट्रवाद के सबसे उल्लेखनीय और आकर्षक शख्सियतों में से एक थे।
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2023-05-06 07:40:00
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2023-05-05 07:49:59 मेजर होशियार सिंह
5 मई, 1936 को हरियाणा के सोनीपत जिले के सिसना नामक गाँव में जन्मे होशियार सिंह के माता-पिता का नाम मथुरी देवी तथा चौधरी हीरा सिंह था।
किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले होशियार सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय से प्राप्त की और उसके पश्चात् उन्होंने रोहतक के जाट उच्च प्राथमिक विद्यालय तथा जाट कॉलेज में दाखिला लिया। पढ़ाई-लिखाई में मेधावी छात्र रहे होशियार सिंह ने मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की।
वे वॉलीबॉल के उच्चकोटि के खिलाड़ी थे और जल्द ही पंजाब टीम के कप्तान बन गए, इसके फलस्वरूप उनका चयन राष्ट्रीय टीम के लिए हो गया।
होशियार सिंह एक ऐसे गाँव के निवासी थे, जहाँ के 250 से भी अधिक लोगों ने भारतीय सेना में अपनी सेवाएँ दी थीं। ऐसी पृष्ठभूमि के कारण भारतीय सेना में शामिल होने की उनकी तीव्र इच्छा थी।
वर्ष 1957 में एक सिपाही के रूप में वे जाट रेजिमेंट की 2nd बटालियन में शामिल हुए ।
छह वर्षों के बाद प्रथम प्रयास में ही पदोन्नति परीक्षा उत्तीर्ण करके 30 जून, 1963 को वे ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट में कमीशन्ड अधिकारी बन गए। नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफ़ा) में जब वे कार्यरत थे, तभी इनकी बहादुरी के साथ-साथ इनके विलक्षण नेतृत्व कौशल पर लोगों की नज़र पड़ी।
वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान बीकानेर सेक्टर में इन्होंने अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस ऑपरेशन के दौरान इन्होंने आगे बढ़कर अदम्य साहस तथा दृढ़ निश्चय का प्रदर्शन किया। अपने बहादुरी भरे कार्यों के लिए इन्होंने ‘मेन्शन इन डिस्पैचेज़’ भी प्राप्त किया।
मेजर होशियार सिंह वर्ष 1971 के युद्ध के लिए अपने जीवनकाल में ही परमवीर चक्र पाने वाले एकमात्र विजेता थे।
6 दिसम्बर, 1998 को इन्होंने अंतिम श्वास ली।
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2023-05-05 07:49:59
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2023-05-05 07:39:59 ज्ञानी ज़ैल सिंह
ज्ञानी ज़ैल सिंह का जन्म पंजाब में फरीदकोट जिले के संधवा नामक गाँव में 5 मई, 1916 को हुआ।
ज्ञानी ज़ैल सिंह का बचपन का नाम जरनैल सिंह था।
ज्ञानी ज़ैल सिंह की स्कूली शिक्षा भी पूरी नहीं हो पाई कि उन्होंने उर्दू सीखने की शुरुआत की, फिर पिता की राय से गुरुमुखी पढ़ने लगे।
अंग्रेजों द्वारा कृपाण पर रोक लगाने के विरोध में ज़ैल सिंह को भी जेल जाना पड़ा था, वहाँ उन्होंने अपना नाम ज़ैल सिंह लिखवा दिया तथा जेल से रिहा होने पर यही ज़ैल सिंह नाम प्रसिद्ध हो गया।
ज्ञानी ज़ैल सिंह क्रांतिकारियों के भी संपर्क में रहे। उन्होंने ‘प्रजामंडल’ का गठन किया। वे मास्टर तारासिंह के संपर्क में आये, जिन्होंने उन्हें फिर पढ़ने के लिए भेज दिया।
कालांतर में उन्होंने गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में नौकरी भी की।
वर्ष 1946 में जब फरीदकोट में अफसरों ने तिरंगा झंडा नहीं फहराने दिया, तो ज्ञानी जी ने नेहरू जी को निमंत्रित कर लिया।
वर्ष 1969 में उनकी इंदिरा जी से राजनीतिक निकटता बढ़ी तथा वर्ष 1972 से वर्ष 1977 तक ज्ञानी जी पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। वर्ष 1980 में इंदिरा गांधी सरकार में देश के गृहमंत्री बने।
वर्ष 1982 में श्री नीलम संजीव रेड्डी का कार्यकाल समाप्त होने पर ज्ञानी जी देश के आठवें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए तथा 25 जुलाई, 1982 को उन्होंने पद की शपथ ली।
उनके कार्यकाल में अमृतसर में स्वर्ण मंदिर परिसर में ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ तथा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या प्रमुख घटनाएँ हैं।
25 दिसंबर, 1994 को ज्ञानी ज़ैल सिंह का निधन हो गया।
उनकी स्मृति में भारतीय डाक विभाग ने वर्ष 1995 में प्रथम पुण्यतिथि पर एक डाक टिकट जारी किया।
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2023-05-05 07:39:59
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2023-05-04 07:54:59 नित्यानंद कानूनगो
● पूर्व केंद्रीय मंत्री और गुजरात एवं बिहार के पूर्व राज्यपाल नित्यानंद कानूनगो का जन्म 4 मई, 1900 को कटक, ओडिशा में हुआ था।
● उनकी शिक्षा रेनशॉ कॉलेज और यूनिवर्सिटी कॉलेज (कलकत्ता) में हुई।
● रेनशॉ कॉलेज में वे हरेकृष्ण महताब, नवकृष्ण चौधरी, निकुंज किशोर दास और भागीरथी महापात्रा जैसे राष्ट्रवादी नेताओं के संपर्क में आए, जिन्होंने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
● इन छात्रों ने प्रत्यक्ष रूप से विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों को करने के लिए 'भारती मंदिर' नामक एक संगठन का गठन किया, लेकिन यह राष्ट्र को आजाद करवाने के लिए एक राष्ट्रवादी संगठन की तरह काम कर रहा था।
● वर्ष 1920 में अपनी कानून की डिग्री पूरी करने के बाद, वे सुभाष चंद्र बोस के पिता जानकीनाथ बोस के जूनियर के रूप में ओडिशा स्टेट बार काउंसिल में शामिल हुए।
● वर्ष 1930 में नमक सत्याग्रह आंदोलन के दौरान, वे सत्याग्रहियों को उकसाने के लिए ब्रिटिश सरकार के निशाने पर थे, लेकिन सबूतों के अभाव में उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सका।
● ब्रिटिश सरकार कर का भुगतान न करने के लिए कटक में 'स्वराज आश्रम' को जब्त करने के लिए पूरी तरह से तैयार थी, तो नित्यानंद कानूनगो ने स्वयं कर का भुगतान किया, जिससे सत्याग्रहियों के साथ उनकी भागीदारी बढ़ा दी गई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
● उनका बार लाइसेंस रद्द कर दिया गया और स्वतंत्रता संग्राम को बढ़ावा देने के लिए उन्हें छह महीने की जेल हुई।
● रिहाई के पश्चात् वे कांग्रेस और स्वतंत्रता संग्राम के समर्पित सदस्य बन गए।
● वर्ष 1937 के चुनाव में वे ओडिशा विधान सभा के लिए भी चुने गए और मंत्री बने।
● स्वतंत्रता के बाद वे वर्ष 1952 से लोकसभा के लिए चुने गए और तीन बार उद्योग, वाणिज्य और नागरिक उड्डयन मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री रहे।
● वे वर्ष 1952 से 1961 तक केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी की कार्यसमिति के सदस्य भी रहे।
● लंबी बीमारी के बाद 21 जुलाई, 1988 को उनका निधन हो गया।
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2023-05-04 07:54:59
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