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Utkarsh Ramsnehi Gurukul

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श्रेणियाँ: समाचार
भाषा: हिंदी
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नवीनतम संदेश 3

2023-05-11 07:20:00 मृणालिनी साराभाई
मृणालिनी साराभाई का जन्म केरल में 11 मई, 1918 को हुआ था
अपने बचपन का अधिकांश समय मृणालिनी साराभाई ने स्विट्जरलैंड में बिताया। यहां 'डेलक्रूज स्‍कूल' से उन्‍होंने पश्चिमी तकनीक से नृत्‍य कलाएं सीखीं। उन्‍होंने शांति निकेतन से भी शिक्षा प्राप्‍त की थी।
मृणालिनी साराभाई ने भारत लौटकर जानी-मानी नृत्‍यांगना मीनाक्षी सुंदरम पिल्लई से भरतनाट्यम का प्रशिक्षण लिया था और फिर दक्षिण भारतीय शास्त्रीय नृत्य और पौराणिक गुरु थाकाज़ी कुंचू कुरुप से कथकली के शास्त्रीय नृत्य-नाटक में प्रशिक्षण लिया।
यह भारत की प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना थीं। उन्हें 'अम्मा' के तौर पर जाना जाता था। शास्त्रीय नृत्य में उनके योगदान तथा उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया था।
उनके पति विक्रम साराभाई देश के सुप्रसिद्ध भौतिक वैज्ञानिक थे। उनकी बेटी मल्लिका साराभाई भी प्रसिद्ध नृत्यांगना और समाजसेवी हैं।
मृणालिनी की बड़ी बहन लक्ष्मी सहगल स्वतंत्रता सेनानी थीं। वे प्रसिद्ध क्रांतिकारी सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज की महिला सेना झांसी रेजीमेंट की कमांडर इन चीफ़ थीं।
भारत सरकार की ओर से मृणालिनी साराभाई को 'पद्मश्री' से भी सम्मानित किया गया था।
'यूनिवर्सिटी ऑफ़ ईस्ट एंगलिया', नॉविच यूके ने भी उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि दी थी। 'इंटरनेशनल डांस काउंसिल पेरिस' की ओर से उन्हें एग्जीक्यूटिव कमेटी के लिए भी नामित किया गया था।
प्रसिद्ध 'दर्पणा एकेडमी' की स्थापना मृणालिनी साराभाई ने की थी।
मृणालिनी साराभाई का निधन 21 जनवरी, 2016 को अहमदाबाद, गुजरात में हुआ।
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2023-05-11 07:20:00
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2023-05-11 07:09:59 राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस
प्रतिवर्ष 11 मई को सम्पूर्ण भारत में ‘राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस’ का आयोजन किया जाता है।
इस दिन भारत ने 11 मई, 1998 को पोखरण में परमाणु बमों का सफलतापूर्वक परीक्षण किया था।
परमाणु मिसाइल का राजस्थान में भारतीय सेना के पोखरण टेस्ट रेंज में परीक्षण किए गए। मई, 1974 में पोखरण- I के ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा के बाद आयोजित यह दूसरा परीक्षण था।
भारत ने पोखरण- II नामक एक ऑपरेशन में अपनी शक्ति-1 परमाणु मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया, जिसे ‘ऑपरेशन शक्ति’ के रूप में जाना गया, जिसका नेतृत्व तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था।
यह दिवस पहली बार 11 मई, 1999 को मनाया गया था, इसका उद्देश्य भारतीय वैज्ञानिकों, इंजीनियरों की वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियों का स्मरण करना है। इस दिन का नाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा रखा गया था।
भारत के पहले स्वदेशी विमान ‘हंसा -3’ का परीक्षण भी 11 मई के दिन ही बेंगलुरु में किया गया था।
भारत ने इसी दिन त्रिशूल मिसाइल का सफल फायरिंग परीक्षण भी किया।
प्रत्येक वर्ष भारतीय प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड (विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय) भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उनके योगदान के लिए व्यक्तियों को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित करके इस दिन को मनाता है।
प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड भारत सरकार का एक सांविधिक निकाय है जो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन कार्य करता है।
यह भारतीय उद्योगों और अन्य एजेंसियों को स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के व्यावसायीकरण या व्यापक घरेलू अनुप्रयोगों के लिए आयातित प्रौद्योगिकियों के अनुकूलन हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
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2023-05-11 07:09:59
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2023-05-10 07:10:03 योगेन्द्र सिंह यादव
● योगेन्द्र सिंह यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर ज़िले के औरंगाबाद अहीर स्थित एक गाँव में 10 मई, 1980 को हुआ था।
● उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गाँव के ही एक विद्यालय में पूरी की और पाँचवीं कक्षा के बाद सन्नोटा श्रीकृष्ण कॉलेज, बुलंदशहर में दाखिला ले लिया।
● उनके पिता राम करण सिंह ने 11 कुमाऊँ को एक सिपाही के रूप में अपनी सेवाएँ दी थी तथा वर्ष 1965 एवं वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में महत्त्वपूर्ण और सक्रिय भूमिका निभाई थी।
● उन्हें महज़ सोलह साल की उम्र में ही 'ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट' में शामिल कर लिया गया।
● जून, 1996 में योगेन्द्र ने भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) मानेकशॉ बटालियन को ज्वॉइन किया। आईएमए में 19 महीने का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्होंने 6 दिसंबर, 1997 को आईएमए से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
● योगेन्द्र महज 16 साल 5 महीने के थे तभी वह एक सैनिक के रूप में भारतीय सेना में शामिल हुए थे।
● 12 जून, 1999 को उनकी बटालियन ने 14 अन्य सैनिकों के साथ टोलोलिंग टॉप पर कब्जा कर लिया और इस ऑपरेशन के दौरान 2 अधिकारी, 2 जूनियर कमीशन अधिकारी और 21 सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया।
● वह घटक पलटन का हिस्सा थे और उन्हें 3/4 जुलाई, 1999 की रात को टाइगर हिल पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था।
● टाइगर हिल की चोटी पर पहुँचने के लिए पलटन को पहाड़ के 16,500 फीट की खड़ी बर्फीली और चट्टानी पहाड़ी पर चढ़ना था।
● उनके वीरतापूर्ण कार्य से प्रेरित होकर, पलटन के अन्य सदस्यों के अंदर भी उत्साह आया और उन्होंने टाइगर हिल टॉप पर कब्जा कर लिया।
● उनके शरीर पर 12 गोलियाँ लगीं; टाइगर हिल ऑपरेशन के दौरान एक गोली उनके दिल में छेद कर गई और 12 गोलियाँ उनके हाथ और पैर में लगी थी।
● मेजर योगेन्द्र सिंह यादव के इस बहादुरी और साहस को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें ‘परम वीर चक्र’ से सम्मानित किया।
● 'ऑपरेशन विजय' में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए उन्होंने मुस्कोह घाटी स्थित सेना की एक चौकी पर अधिकार करने के लिए कदम बढ़ाया।
● यद्यपि इस बात पर विश्वास करना बहुत मुश्किल है कि कोई ऐसा व्यक्ति सचमुच हो सकता है, लेकिन ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव जो कि भारतीय थल सेना के एक जीवंत उदाहरण हैं, उन्हें 1999 के कारगिल संघर्ष के दौरान उनके वीरतापूर्ण एवं साहसिक कारनामों के लिए 26 जनवरी, 2000 को देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार ‘परम वीर चक्र’ से नवाज़ा गया।
● परमवीर चक्र पुरस्कार से सम्मानित केवल तीन ही जीवित प्राप्तकर्ता सैनिक हैं जिनमें से बाना सिंह, संजय कुमार और योगेन्द्र सिंह यादव शामिल हैं।
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2023-05-10 07:10:02
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2023-05-10 07:00:00 रामेश्वर नाथ काव
● रामेश्वर नाथ काव का जन्म 10 मई, 1918 को वाराणसी के एक कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
● आर. एन. काव ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. की शिक्षा प्राप्त की थी।
● वे वर्ष 1940 में भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हुए तथा वर्ष 1948 में इंटेलिजेंस ब्यूरो से जुड़ गए।
● इंटेलिजेंस ब्यूरो का कार्यभार संभालने के साथ ही उन्हें सबसे पहले आज़ाद भारत के प्रमुख लोगों की सुरक्षा का दायित्व सौंपा गया। इसी दौरान वह भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के व्यक्तिगत सुरक्षा प्रमुख बने।
● वर्ष 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के बाद ऐसी जाँच एजेंसी की जरूरत महसूस हुई जो देश को विदेशी दुश्मनों से सचेत रख सके।
● पण्डित नेहरू के कार्यकाल में काव अपनी योग्यता साबित कर चुके थे, इसलिए श्रीमती इंदिरा गाँधी ने ‘रॉ’ को गठित करने के विचार को मंजूरी दे दी। इस तरह ‘रॉ’ की स्थापना हुई और काव को ‘रॉ’ का पहला अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
● सिक्किम के भारत में विलय में भी काव की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने भारत की एक सुरक्षा बल इकाई, 'नेशनल सिक्योरिटी गार्ड' (एनएसजी) का भी गठन किया था।
● 20 जनवरी, 2002 को रामेश्वर नाथ काव की नई दिल्ली में मृत्यु हो गई।
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2023-05-10 07:00:00
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2023-05-09 07:45:11 1580 में अकबर ने अब्दुल रहीम खानखाना को प्रताप के विरुद्ध भेजा। कुँवर अमरसिंह ने शेरपुर के मुगल शिविर पर आक्रमण कर खानखाना के परिवार की महिलाओं को बंदी बना लिया। यह सूचना जब राणा प्रताप को मिली तो उन्होंने तुरन्त मुगल महिलाओं को सम्मानपूर्वक वापस भेजने का आदेश दिया।
दिवेर का युद्ध (अक्टूबर, 1582) :-
कुँवर अमरसिंह ने अकबर के काका सेरिमा सुल्तान का वध कर दिवेर पर अधिकार किया।
कर्नल जेम्स टॉड ने इस युद्ध को ‘प्रताप के गौरव का प्रतीक’ और ‘मेवाड़ का मैराथन’ कहा।
5 दिसम्बर, 1584 को अकबर ने आमेर के भारमल के छोटे पुत्र जगन्नाथ कच्छवाहा को प्रताप के विरुद्ध भेजा। जगन्नाथ भी असफल रहा। जगन्नाथ की माण्डलगढ़ में मृत्यु हो गई।
जगन्नाथ कच्छवाहा की ’32 खम्भों की छतरी’ - माण्डलगढ़ (भीलवाड़ा) में स्थित है।
राणा प्रताप ने बदला लेने के लिए आमेर क्षेत्र के मालपुरा को लूटा और झालरा तालाब के निकट ‘नीलकंठ महादेव मंदिर’ का निर्माण करवाया।
1585 ई. से 1597 ई. के मध्य प्रताप ने चित्तौड़ एवं माण्डलगढ़ को छोड़कर शेष सम्पूर्ण राज्य पर पुन: अधिकार कर लिया था।
1585 ई. में लूणा चावण्डिया को पराजित कर प्रताप ने चावण्ड पर अधिकार किया तथा इसे अपनी नई राजधानी बनाया।
चावण्ड में प्रताप ने ‘चामुण्डा माता’ का मंदिर बनवाया।
चावण्ड 1585 से अगले 28 वर्षों तक मेवाड़ की राजधानी रहा।
1597 में धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते समय प्रताप को गहरी चोट लगी। जो उनकी मृत्यु का कारण बनी।
मृत्यु - 19 जनवरी, 1597, चावण्ड
अग्निसंस्कार - बांडोली
प्रताप की 8 खम्भों की छतरी - बांडोली (उदयपुर) में खेजड़ बाँध की पाल पर।
प्रताप की मृत्यु पर अकबर के दरबार में उपस्थित कवि दुरसा आढ़ा ने एक दोहा सुनाया –
गहलोत राणो जीत गयो दसण मूंद रसणा डसी।
नीलास मूक भरिया नयन तो मृत शाह प्रताप सी।।
महाराणा प्रताप के संदर्भ में कर्नल टॉड ने लिखा – “आलप्स पर्वत के समान अरावली में कोई भी ऐसी घाटी नहीं, जो प्रताप के किसी न किसी वीर कार्य, उज्ज्वल विजय या उससे अधिक कीर्तियुक्त पराजय से पवित्र न हुई हो। हल्दीघाटी ‘मेवाड़ की थर्मोपल्ली’ और दिवेर ‘मेवाड़ का मैराथन’ है।“
प्रताप के बारे में कहा गया है कि –
“पग-पग भम्या पहाड़, धरा छोड़ राख्यो धरम।
महाराणा मेवाड़, हिरदे बसया हिन्द रे।। ”
प्रताप कालीन रचनाएँ –
1. दरबारी पंडित चक्रपाणि मिश्र – विश्ववल्लभ, मुहूर्तमाला, व्यवहारादर्श व राज्याभिषेक पद्धति।
2. जैन मुनि हेमरत्न सूरी – गोरा-बादल, पद्मिनी चरित्र चौपाई, महिपाल चौपाई, अमरकुमार चौपाई, सीता चौपाई, लीलावती
प्रताप द्वारा निर्मित मंदिर –
1. चामुण्डा देवी (चावण्ड)
2. हरिहर मंदिर (बदराणा)
चित्रकला - चावण्ड शैली का जन्म
प्रमुख चित्रकार – निसारुद्दीन
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2023-05-09 07:45:11 महाराणा प्रताप
जन्म - 9 मई, 1540 (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया, विक्रम संवत् 1597, रविवार)
जन्म स्थान - बादल महल (कटारगढ़) कुंभलगढ़ दुर्ग
पिता – महाराणा उदयसिंह
माता – जयवंता बाई (पाली नरेश अखैराज सोनगरा की पुत्री)
विवाह – 1557 ई. में अजबदे पँवार के साथ हुआ।
पुत्र - अमरसिंह
शासनकाल – 1572-1597 ई.
उपनाम - 1. ‘कीका’ (मेवाड़ के पहाड़ी प्रदेशों में) 2. मेवाड़ केसरी 3. हिन्दुआ सूरज
राजमहल की क्रांति - उदयसिंह ने जगमाल को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था लेकिन मेवाड़ के सामन्तों ने जगमाल को हटाकर राणा प्रताप को शासक बनाया, यह घटना ‘राजमहल की क्रांति’ कहलाती है।
प्रथम राज्याभिषेक - 28 फरवरी, 1572 को महादेव बावड़ी (गोगुन्दा)
विधिवत् राज्याभिषेक - कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ जिसमें मारवाड़ के राव चन्द्रसेन सम्मिलित हुए।
प्रताप का घोड़ा – चेतक
हाथी – रामप्रसाद व लूणा
मुगलों से संघर्ष के लिए राणा प्रताप ने वीर सामन्तों तथा भीलों को एकजुट किया और उन्हें सैन्य व्यवस्था में उच्च पद देकर उनके सम्मान को बढ़ाया।
गोपनीय तरीके से युद्ध का प्रबंध करने के लिए प्रताप ने अपना निवास स्थान गोगुन्दा से कुंभलगढ़ स्थानान्तरित कर दिया।
अकबर द्वारा राणा प्रताप के पास भेजे गए 4 संधि प्रस्तावक/शिष्ट मण्डल –
(1) जलाल खाँ कोरची – नवम्बर, 1572
(2) मानसिंह – जून, 1573
(3) भगवन्तदास – अक्टूबर, 1573
(4) टोडरमल – दिसम्बर, 1573
हल्दीघाटी का युद्ध (राजसमन्द) ̶ 18 जून, 1576
वर्ष 1576 की शुरुआत में अकबर मेवाड़ पर आक्रमण की तैयारी हेतु अजमेर आया और यहीं पर मानसिंह को इस युद्ध का नेतृत्व सौंपा।
अकबर ने युद्ध की व्यूह रचना मैगजीन दुर्ग में रची थी।
मुगल सेना का प्रधान सेनानायक – मिर्जा मानसिंह (आमेर)
सहयोगी सेनानायक - आसफ खाँ
राणा प्रताप की हरावल सेना का नेतृत्व - हकीम खाँ सूर
चंदावल सेना का नेतृत्व - राणा पूँजा
मुगल सेना के हरावल भाग का नेतृत्व - सैय्यद हाशिम
मुगल पक्ष – मुहम्मद बदख्शी रफी, राजा जगन्नाथ और आसफ खाँ
इतिहासकार बदायूँनी युद्ध में मुगल सेना के साथ उपस्थित था।
हकीम खाँ सूर के नेतृत्व में राजपूतों ने पहला वार इतना भयंकर किया कि मुगल सेना भाग खड़ी हुई।
उसी समय मुगलों की आरक्षित सेना के प्रभारी मिहत्तर खाँ ने यह झूठी अफवाह फैलाई कि – “बादशाह अकबर स्वयं शाही सेना लेकर आ रहे हैं।”
यह सुनकर मुगल सेना फिर युद्ध के लिए आगे बढ़ी। मेवाड़ की सेना भी ‘रक्तताल’ नामक मैदान में आ डटी।
युद्ध में राणा प्रताप के लूणा व रामप्रसाद और अकबर के गजमुक्ता व गजराज हाथियों के मध्य युद्ध हुआ।
रामप्रसाद हाथी को मुगलों ने अपने अधिकार में ले लिया जिसका बाद में अकबर ने नाम बदलकर ‘पीरप्रसाद’ कर दिया।
राणा प्रताप ने पठान बहलोल खाँ पर ऐसा प्रहार किया कि उसके घोड़े सहित दो टुकड़े हो गए।
युद्ध में चेतक घोड़े पर राणा प्रताप और मर्दाना हाथी पर सवार मानसिंह का प्रत्यक्ष आमना-सामना हुआ।
प्रताप ने भाले से मानसिंह पर वार किया लेकिन मानसिंह बच गया। इस दौरान चेतक हाथी के प्रहार से घायल हो गया।
मुगल सेना ने प्रताप को चारों ओर से घेर लिया।
राणा प्रताप के घायल होने पर झाला बीदा ने राजचिह्न धारण किया तथा युद्ध लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की।
युद्ध में हाथी के वार से घायल राणा प्रताप के घोड़े चेतक की एक नाले को पार करने के बाद मृत्यु हो गई।
बलीचा गाँव में चेतक की समाधि बनी हुई है।
‘अमरकाव्य वंशावली’ नामक ग्रंथ तथा राजप्रशस्ति के अनुसार यहाँ राणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह ने प्रताप से मिलकर अपने किए की माफी माँगी।
हल्दीघाटी युद्ध अनिर्णीत रहा। अकबर राणा प्रताप को बंदी बनाने में विफल रहा।
युद्ध के परिणाम से नाराज अकबर ने मानसिंह और आसफ खाँ की ड्योढ़ी बंद कर दी।
बदायूँनी कृत ‘मुन्तखब-उत्त-तवारीख’ में हल्दीघाटी युद्ध का वर्णन किया।
इस युद्ध को अबुल-फजल ने ‘खमनौर का युद्ध’, बदायूँनी ने ‘गोगुन्दा का युद्ध’ तथा कर्नल टॉड ने ‘हल्दीघाटी का युद्ध’ कहा।
राजसमन्द में प्रत्येक वर्ष ‘हल्दीघाटी महोत्सव’ मनाया जाता है।
राणा प्रताप ने ‘आवरगढ़’ में अपनी अस्थाई राजधानी स्थापित की।
फरवरी, 1577 में अकबर खुद मेवाड़ अभियान पर आया लेकिन असफल रहा।
अक्टूबर, 1577 से नवम्बर, 1579 तक शाहबाज खाँ ने तीन बार मेवाड़ पर असफल आक्रमण किया।
3 अप्रैल, 1578 को शाहबाज खाँ ने कुम्भलगढ़ दुर्ग पर अधिकार किया।
राणा प्रताप ने कुंभलगढ़ दुर्ग पर पुन: अधिकार कर भाण सोनगरा को किलेदार नियुक्त किया।
भामाशाह (पाली) ने महाराणा प्रताप की आर्थिक सहायता की थी।
मेवाड़ का उद्धारक व दानवीर - भामाशाह को कहा जाता है।
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