योगेन्द्र सिंह यादव ● योगेन्द्र सिंह यादव का जन्म उत्तर प्रदेश | Utkarsh Ramsnehi Gurukul
योगेन्द्र सिंह यादव
● योगेन्द्र सिंह यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर ज़िले के औरंगाबाद अहीर स्थित एक गाँव में 10 मई, 1980 को हुआ था।
● उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गाँव के ही एक विद्यालय में पूरी की और पाँचवीं कक्षा के बाद सन्नोटा श्रीकृष्ण कॉलेज, बुलंदशहर में दाखिला ले लिया।
● उनके पिता राम करण सिंह ने 11 कुमाऊँ को एक सिपाही के रूप में अपनी सेवाएँ दी थी तथा वर्ष 1965 एवं वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में महत्त्वपूर्ण और सक्रिय भूमिका निभाई थी।
● उन्हें महज़ सोलह साल की उम्र में ही 'ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट' में शामिल कर लिया गया।
● जून, 1996 में योगेन्द्र ने भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) मानेकशॉ बटालियन को ज्वॉइन किया। आईएमए में 19 महीने का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्होंने 6 दिसंबर, 1997 को आईएमए से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
● योगेन्द्र महज 16 साल 5 महीने के थे तभी वह एक सैनिक के रूप में भारतीय सेना में शामिल हुए थे।
● 12 जून, 1999 को उनकी बटालियन ने 14 अन्य सैनिकों के साथ टोलोलिंग टॉप पर कब्जा कर लिया और इस ऑपरेशन के दौरान 2 अधिकारी, 2 जूनियर कमीशन अधिकारी और 21 सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया।
● वह घटक पलटन का हिस्सा थे और उन्हें 3/4 जुलाई, 1999 की रात को टाइगर हिल पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था।
● टाइगर हिल की चोटी पर पहुँचने के लिए पलटन को पहाड़ के 16,500 फीट की खड़ी बर्फीली और चट्टानी पहाड़ी पर चढ़ना था।
● उनके वीरतापूर्ण कार्य से प्रेरित होकर, पलटन के अन्य सदस्यों के अंदर भी उत्साह आया और उन्होंने टाइगर हिल टॉप पर कब्जा कर लिया।
● उनके शरीर पर 12 गोलियाँ लगीं; टाइगर हिल ऑपरेशन के दौरान एक गोली उनके दिल में छेद कर गई और 12 गोलियाँ उनके हाथ और पैर में लगी थी।
● मेजर योगेन्द्र सिंह यादव के इस बहादुरी और साहस को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें ‘परम वीर चक्र’ से सम्मानित किया।
● 'ऑपरेशन विजय' में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए उन्होंने मुस्कोह घाटी स्थित सेना की एक चौकी पर अधिकार करने के लिए कदम बढ़ाया।
● यद्यपि इस बात पर विश्वास करना बहुत मुश्किल है कि कोई ऐसा व्यक्ति सचमुच हो सकता है, लेकिन ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव जो कि भारतीय थल सेना के एक जीवंत उदाहरण हैं, उन्हें 1999 के कारगिल संघर्ष के दौरान उनके वीरतापूर्ण एवं साहसिक कारनामों के लिए 26 जनवरी, 2000 को देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार ‘परम वीर चक्र’ से नवाज़ा गया।
● परमवीर चक्र पुरस्कार से सम्मानित केवल तीन ही जीवित प्राप्तकर्ता सैनिक हैं जिनमें से बाना सिंह, संजय कुमार और योगेन्द्र सिंह यादव शामिल हैं।