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Utkarsh Ramsnehi Gurukul

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2023-05-15 08:15:01
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2023-05-15 08:10:00
देवेन्द्रनाथ टैगोर
देवेंद्रनाथ ठाकुर का जन्म 15 मई, 1817 में बंगाल में हुआ था।
देवेन्द्रनाथ टैगोर ने राजाराम मोहन राय के विचारों से प्रभावित होकर 1839 ई. में 'तत्वबोधिनी सभा' की स्थापना की।
राजा राम मोहनराय के बाद 1843 ई. में देवेन्द्रनाथ टैगोर ने ब्रह्म समाज को पुनर्जीवित किया।
1865 ई. (1867 ई.-RBSE12th) में देवेन्द्रनाथ टैगोर ने केशवचंद्र सेन को आचार्य के पद से हटा दिया। ब्रह्म समाज दो भागों में बँट गया।
देवेन्द्रनाथ टैगोर का समाज 'आदि ब्रह्म समाज' एवं केशवचन्द्र सेन का समाज 'भारत का ब्रह्म समाज' (भारतीय ब्रह्म समाज) कहलाया ।
देवेन्द्रनाथ टैगोर के नेतृत्व में ब्रह्म समाज ने विधवा विवाह का समर्थन, स्त्री शिक्षा को बढ़ावा, बहुपत्नी प्रथा का उन्मूलन तथा आडंबरपूर्ण धार्मिक कर्मकांडों को समाप्त करने जैसे सराहनीय कार्यों पर बल दिया।
19 जनवरी,1905 को देवेन्द्रनाथ का निधन हो गया।
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2023-05-13 07:09:59 तंजोर बालासरस्वती
'भरतनाट्यम' की प्रसिद्ध नृत्यांगना टी. बालासरस्वती का जन्म 13 मई, 1918 को तमिलनाडु के चेन्नई (मद्रास) शहर में हुआ था।
एक नर्तकी के रूप में टी. बालासरस्वती ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1925 में की थी। वह दक्षिण भारत के बाहर भरतनाट्यम नृत्य प्रस्तुत करने वाली पहली कलाकार थीं। उन्होंने पहली बार सन् 1934 में कोलकाता में अपनी नृत्य कला को प्रस्तुत किया था।
टी. बालासरस्वती को वर्ष 1955 में 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार', वर्ष 1973 में 'मद्रास संगीत अकादमी' से 'कलानिधि पुरस्कार' और वर्ष 1977 में 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया था।
टी. बालासरस्वती का निधन 9 फ़रवरी, 1984 को हुआ।
भरतनाट्यम (तमिलनाडु)
भरतमुनि के नाट्यशास्त्र से जन्मी इस नृत्य शैली का विकास तमिलनाडु में हुआ।
मंदिरों में देवदासियों द्वारा शुरू किए गए इस नृत्य को 20वीं सदी में रुक्मिणी देवी अरुंडेल और ई. कृष्ण अय्यर के प्रयासों से पर्याप्त सम्मान मिला।
नंदिकेश्वर द्वारा रचित ‘अभिनय दर्पण’ भरतनाट्यम के तकनीकी अध्ययन हेतु एक प्रमुख स्रोत है।
भरतनाट्यम नृत्य के संगीत वाद्य मंडल में एक गायक, एक बाँसुरी वादक, एक मृदंगम वादक, एक वीणा वादक और एक खड़ताल वादक होता है।
भरतनाट्यम नृत्य के कविता पाठ करने वाले व्यक्ति को ‘नडन्न्वनार’ कहते हैं।
भरतनाट्यम में शारीरिक क्रियाओं को तीन भागों में बाँटा जाता है - समभंग, अभंग और त्रिभंग।
इसमें नृत्य क्रम इस प्रकार होता है- आलारिपु (कली का खिलना), जातीस्वरम् (स्वर जुड़ाव), शब्दम् (शब्द और बोल), वर्णम् (शुद्ध नृत्य और अभिनय का जुड़ाव), पदम् (वंदना एवं सरल नृत्य) तथा तिल्लाना (अंतिम अंश विचित्र भंगिमा के साथ)।
भरतनाट्यम एकल स्त्री नृत्य है।
इस नृत्य के प्रमुख कलाकारों में पद्म सुब्रह्मण्यम, अलारमेल वल्ली, यामिनी कृष्णमूर्ति, अनिता रत्नम्, मृणालिनी साराभाई, मल्लिका साराभाई, मीनाक्षी सुंदरम् पिल्लई, सोनल मानसिंह, वैजयंतीमाला, स्वप्न सुंदरी, रोहिंटन कामा, लीला सैमसन, बाला सरस्वती आदि शामिल हैं।
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2023-05-13 07:09:59
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2023-05-13 07:05:00 फखरुद्दीन अली अहमद
फ़ख़रुद्दीन अली अहमद का जन्म 13 मई, 1905 को पुरानी दिल्ली के हौज़ क़ाज़ी इलाक़े में हुआ था। इनके पिता का नाम 'कर्नल जलनूर अली अहमद' और दादा का नाम 'खलीलुद्दीन अहमद' था।
वर्ष 1928 में इंग्लैंड से विधि में डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् फखरुद्दीन अली अहमद वापस भारत लौट आए और पंजाब उच्च न्यायालय में वकील के तौर पर नामांकित हुए।
कालांतर में उन्होंने अपने गृह राज्य असम के गुवाहाटी उच्च न्यायालय में वकील के तौर पर कार्य करना प्रारंभ किया और जल्द ही वे अपनी प्रतिभा की बदौलत उच्चतम न्यायालय में बतौर वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में कार्य करने लगे।
वर्ष 1931 में फखरुद्दीन अली अहमद ने अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण कर ली।
वर्ष 1938 में जब असम में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी तो फखरुद्दीन अली अहमद को वित्त एवं राजस्व मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया।
उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और कई अवसरों पर जेल भी गए।
महात्मा गाँधी के नेतृत्व में जब सत्याग्रह आंदोलन शुरू हुआ तो फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने भी उसमें भाग लिया। इस कारण अंग्रेज़ सरकार ने इन्हें 13 अप्रैल, 1940 को गिरफ्तार करके एक वर्ष के लिए जेल में डाल दिया। रिहा होने के कुछ समय पश्चात् इन्हें सुरक्षा कारणों से पुन: गिरफ्तार कर लिया गया तथा इन्हें अप्रैल, 1945 तक साढ़े तीन वर्ष जेल भुगतनी पड़ी।
वर्ष 1952 में फखरुद्दीन अली अहमद को राज्यसभा सदस्य चुना गया।
24 अगस्त, 1974 को फखरुद्दीन अली अहमद ने भारत के पाँचवें राष्ट्रपति के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ग्रहण की।
वे मृत्युपर्यंत राष्ट्रपति पद पर बने रहे; 11 फरवरी, 1977 को राष्ट्रपति भवन में हृदयाघात के कारण उनका देहांत हुआ।
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2023-05-13 07:05:00
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2023-05-12 07:55:00 शमशेर बहादुर सिंह
स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता के प्रमुख कवि शमशेर बहादुर सिंह का जन्म 13 जनवरी, 1911 को देहरादून (उत्तराखण्ड) में हुआ।
उनकी आरंभिक शिक्षा देहरादून तथा हाईस्कूल-इंटर गोंडा से हुई।
शमशेर बहादुर सिंह ‘दूसरा तार सप्तक’ के कवि थे।
शमशेर बहादुर सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्रसिद्ध चित्रकार उकील-बंधुओं से कला - प्रशिक्षण लिया।
अनूठे काव्य- बिंबों का सृजन करने वाले शमशेर केवल असाधारण कवि ही नहीं, एक अनूठे गद्य-लेखक भी थे।
'दोआब', 'प्लाट का मोर्चा', जैसी गद्य रचनाओं के माध्यम से उन्हें विशिष्ट गद्यकार के रूप में पहचाना जा सकता है।
कुछ कविताएँ, कुछ और कविताएँ, चुका भी नहीं हूँ मैं, इतने पास अपने, काल तुझसे होड़ है मेरी (काव्य-संग्रह); कुछ गद्य रचनाएँ, कुछ और गद्य रचनाएँ (गद्य-संग्रह) इत्यादि उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं।
'रूपाभ', 'कहानी', 'नया साहित्य', 'माया', 'नया पथ', 'मनोहर कहानियाँ' आदि के संपादन में इनका महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा।
शमशेर बहादुर सिंह उर्दू-हिन्दी कोश प्रोजेक्ट में संपादक रहे और विक्रम विश्वविद्यालय के 'प्रेमचंद सृजनपीठ' के अध्यक्ष रहे।
शमशेर बहादुर सिंह को वर्ष 1977 में साहित्य अकादमी, वर्ष 1987 में मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार तथा वर्ष 1989 में कबीर सम्मान प्राप्त हुआ।
12 मई, 1993 को उनका देहांत हो गया।
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2023-05-12 07:55:00
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2023-05-12 07:45:00 अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस
प्रतिवर्ष 12 मई को सम्पूर्ण विश्व में ‘अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस’ मनाया जाता है।
इस दिवस का आयोजन मुख्य रूप से आधुनिक नर्सिंग की जनक ‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल’ (Florence Nightingale) की याद में किया जाता है।
वर्ष 2023 के लिए अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस की थीम ‘Our Nurses, Our Future’ है।
‘अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस’ समाज के प्रति नर्सों के योगदान को चिह्नित करता है।
इस दिवस को सर्वप्रथम वर्ष 1965 में ‘इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्स’ (ICN) द्वारा मनाया गया था, किंतु जनवरी, 1974 से यह दिवस 12 मई को फ्लोरेंस नाइटिंगेल की जयंती पर मनाया जाने लगा।
फ्लोरेंस नाइटिंगेल ब्रिटिश नागरिक थी, जिन्हें युद्ध में घायल व बीमार सैनिकों की सेवा के लिए जाना जाता है।
फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने 1850 के दशक के क्रीमियन युद्ध में दूसरी नर्सों को प्रशिक्षण दिया तथा उनके प्रबंधक के रूप में भी कार्य किया।
उन्हें ‘लेडी विद द लैंप’ भी कहा जाता है।
उनके विचारों तथा सुधारों से आधुनिक स्वास्थ्य प्रणाली काफी प्रभावित हुई है। फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने ही सांख्यिकी के माध्यम से यह सिद्ध किया कि किस प्रकार स्वास्थ्य से किसी भी महामारी के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
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2023-05-12 07:45:00
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