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Utkarsh Ramsnehi Gurukul

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श्रेणियाँ: समाचार
भाषा: हिंदी
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नवीनतम संदेश 10

2023-04-14 07:09:59
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2023-04-12 06:47:01
मानव अंतरिक्ष उड़ान का अंतर्राष्ट्रीय दिवस
● प्रतिवर्ष 12 अप्रैल को ‘मानव अंतरिक्ष उड़ान का अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ (International Day for Human Space Flight) का आयोजन किया जाता है।
● संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 12 अप्रैल, 2011 को मानव अंतरिक्ष उड़ान का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था।
● इस दिवस का आयोजन वर्ष 1961 में यूरी गागरिन (Yuri Gagarin) की ऐतिहासिक अंतरिक्ष यात्रा की वर्षगाँठ के रूप में किया जाता है।
● इसका उद्देश्य ‘सतत् विकास लक्ष्य (SDG) को प्राप्त करने में अंतरिक्ष के योगदान की फिर से पुष्टि करना है।‘
● बाहरी अंतरिक्ष मामलों के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOOSA) बाहरी अंतरिक्ष में शांतिपूर्ण उपयोग हेतु अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है।
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2023-04-12 06:45:00 राखालदास बनर्जी
● भारतीय पुरातत्वज्ञ और प्राचीन इतिहासकार राखालदास बनर्जी का जन्म 12 अप्रैल, 1885 को बंगाल के मुर्शिदाबाद में हुआ था।
● प्रारम्भिक शिक्षा के पश्चात उन्होंने कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से इतिहास में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी।
● पढ़ाई के दौरान वे हरप्रसाद शास्त्री, बंगला लेखक रामेंद्रसुंदर त्रिपाठी व बंगाल सर्किल के पुरातत्व अधीक्षक डॉ. ब्लॉख के संपर्क में आए तथा इनकी संगत में आकर राखालदास बनर्जी की रुचि इतिहास और पुरातत्वविज्ञान में पैदा हुई। कॉलेज के समय से ही वे अन्वेषणों व उत्खननों में नौकरी करने लगे।
● इतिहास से लगाव को देखते हुए प्रांतीय संग्रहालय और लखनऊ के सूचीपत्र तैयार करने की जिम्मेदारी सौंप दी गई। इसे करते-करते उन्होंने इतिहास पर अच्छा अध्ययन कर डाला और इतिहास पर लेख-आलेख का कार्य शुरू कर दिए।
● वर्ष 1910 में उन्होंने परास्नातक (मास्टर डिग्री) की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। इसके बाद उन्हें प्रमोट करके उत्खनन सहायक (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) के पद पर नियुक्त कर दिया गया।
● वर्ष 1917 में राखालदास बनर्जी को पूना (अब पुणे) में पुरातत्व सर्वेक्षण के पश्चिमी मंडल के अधीक्षक के तौर नियुक्त किया गया।
● कालांतर में उन्होंने महाराष्ट्र, गुजरात, सिंध (अब पंजाब), राजस्थान और मध्यप्रदेश की रियासतों का भ्रमण किया जिसके दौरान राखलदास बनर्जी ने अनेक काम किए। उनके महत्त्वपूर्ण कार्यों का विवरण आज भी 'एनुअल रिपोर्ट्स ऑफ़ द आर्किपोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया' में उपलब्ध है।
● मध्यप्रदेश के भूमरा में उन्होंने खुदाई करवाई तथा प्राचीन गुप्तयुगीन मंदिर और मध्यकालीन हैहय-कलचुरी स्मारकों की खोज की।
● वर्ष 1922 में राखालदास बनर्जी एक बौद्ध स्तूप पर शोध कर रह थे जिसकी खुदाई के दौरान मोहनजोदड़ो की प्राचीन सभ्यता की खोज की।
● वर्ष 1980 में मोहनजोदड़ो को विश्व विरासत स्थल (संख्या 138) का नाम दिया गया था।
● राखालदास बनर्जी का वर्ष 1924 में स्थानांतरण पुरातत्त्व सर्वेक्षण के पूर्वी मंडल, कलकत्ता में हो गया, जहाँ वे लगभग दो वर्ष तक रहे। इस छोटी-सी अवधि में उन्होंने पहाड़पुर के प्राचीन मंदिर का उल्लेखनीय उत्खनन करवाया।
● वर्ष 1926 में कुछ प्रशासकीय कारणों से बनर्जी को सरकारी सेवा से अवकाश ग्रहण करना पड़ा।
● वे 'बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय' में प्राचीन भारतीय इतिहास के 'मनींद्र नंदी प्राध्यापक' पद पर अधिष्ठित हुए और मृत्यु पर्यंत इसी पद पर बने रहे।
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2023-04-12 06:45:00
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2023-04-11 07:44:59 ज्योतिबा फुले
● महात्मा ज्योतिराव फुले का जन्म 11 अप्रैल, 1827 को वर्तमान महाराष्ट्र में हुआ था।
● वर्ष 1841 में फुले का दाखिला स्कॉटिश मिशनरी हाई स्कूल (पुणे) में हुआ, जहाँ उन्होंने शिक्षा पूरी की।
● उनकी विचारधारा पूर्णतः स्वतंत्रता और समाजवाद पर आधारित थी।
● प्रमुख रचनाएँ – गुलामगिरी (1873), तृतीय रत्न (1855), पोवाड़ा: छत्रपति शिवाजीराज भोंसले यंचा (1869), शक्तारायच आसुद (1881) आदि।
● महात्मा ज्योतिराव फुले थॉमस पाइन की पुस्तक ‘द राइट्स ऑफ मैन’ से प्रभावित थे तथा उनका मानना था कि सामाजिक बुराइयों का मुकाबला करने का एकमात्र जरिया महिलाओं एवं निम्न वर्ग के लोगों को शिक्षा देना है।
● फुले ने अपने अनुयायियों के साथ मिलकर वर्ष 1873 में सत्यशोधक समाज का गठन किया, जिसका अर्थ है - ‘सत्य के साधक’ ताकि महाराष्ट्र में निम्न वर्गों को समान सामाजिक और आर्थिक लाभ प्राप्त हो सके।
● 11 मई, 1888 को महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता विट्ठलराव कृष्णजी वांडेकर द्वारा उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।
● वर्ष 1848 में महात्मा ज्योतिराव फुले ने अपनी पत्नी (सावित्रीबाई) को पढ़ना और लिखना सिखाया, जिसके बाद इस दंपती ने पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्वदेशी रूप से संचालित स्कूल खोला, जहाँ वे दोनों शिक्षण का कार्य करते थे।
● वह लैंगिक समानता में विश्वास रखते थे और अपनी सभी सामाजिक सुधार गतिविधियों में अपनी पत्नी को शामिल कर उन्होंने अपनी मान्यताओं का अनुकरण किया।
● महात्मा ज्योतिराव फुले ने वर्ष 1852 तक तीन स्कूलों की स्थापना की थी, लेकिन वर्ष 1857 के विद्रोह के बाद धन की कमी के कारण वर्ष 1858 तक ये स्कूल बंद हो गए थे।
● ज्योतिराव ने ब्राह्मणों और अन्य उच्च जातियों की रूढ़िवादी मान्यताओं का विरोध किया और उन्हें ‘पाखंडी’ करार दिया।
● इन्होंने युवा विधवाओं के लिए एक आश्रम की स्थापना की तथा विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।
● वर्ष 1868 में, ज्योतिराव ने अपने घर के बाहर एक सामूहिक स्नानागार का निर्माण करने का फैसला किया, जिससे उनकी सभी मनुष्यों के प्रति अपनत्व की भावना प्रदर्शित होती है, इसके साथ ही, उन्होंने सभी जातियों के सदस्यों के साथ भोजन करने की शुरुआत की।
● उन्होंने जन जागरूकता अभियान शुरू किया जिसने कालांतर में डॉ. बी. आर. अंबेडकर और महात्मा गाँधी की विचारधाराओं को प्रभावित किया।
● देहावसान : 28 नवंबर, 1890
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2023-04-11 07:44:59
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2023-04-11 07:39:59 फणीश्वरनाथ ‘रेणु'
● हिंदी के आँचलिक कथाकार फणीश्वरनाथ ‘रेणु' का जन्म 4 मार्च, 1921 बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना नामक गाँव में हुआ था।
● उन्होंने वर्ष 1942 के 'भारत छोड़ो' स्वाधीनता आंदोलन में भाग लिया।
● नेपाल के राणाशाही विरोधी आंदोलन में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही।
● रेणु राजनीति में प्रगतिशील विचारधारा के समर्थक थे।
● वर्ष 1953 में वे साहित्य-सृजन के क्षेत्र में आए और उन्होंने कहानी, उपन्यास तथा निबंध आदि विविध साहित्यिक विधाओं में लेखन कार्य किया।
● उन्होंने अँचल - विशेष को अपनी रचनाओं का आधार बनाकर, आँचलिक शब्दावली और मुहावरों का सहारा लेते हुए, वहाँ के जीवन और वातावरण का चित्रण किया है।
● अपनी गहरी मानवीय संवेदना के कारण वे अभावग्रस्त जनता की बेबसी और पीड़ा स्वयं भोगते-से लगते हैं। इस संवेदनशीलता के साथ उनका यह विश्वास भी जुड़ा है कि आज के त्रस्त मनुष्य के भीतर अपनी जीवन-दशा को बदल देने की अकूत ताकत छिपी हुई है।
● ठुमरी, अगिनखोर, आदिम रात्रि की महक इत्यादि उनके प्रसिद्ध कहानी–संग्रह हैं।
● तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम कहानी पर फ़िल्म भी बन चुकी है। मैला आँचल और परती परिकथा उनके उल्लेखनीय उपन्यास हैं।
● फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ स्वतंत्र भारत के प्रख्यात कथाकार हैं। रेणु ने अपनी रचनाओं के द्वारा प्रेमचंद की विरासत को नई पहचान और भंगिमा प्रदान की।
● रेणु ने मैला आँचल, ‘परती परिकथा' जैसे अनेक महत्त्वपूर्ण उपन्यासों के साथ अपने शिल्प और आस्वाद में भिन्न हिंदी कथा–नई परंपरा को जन्म दिया।
● रेणु की कहानियों में आँचलिक शब्दों के प्रयोग से लोकजीवन के मार्मिक स्थलों की पहचान हुई है। उनकी भाषा संवेदनशील, संप्रेषणीय एवं भाव प्रधान है।
● 11 अप्रैल, 1977 को फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ का निधन हो गया।
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2023-04-11 07:39:59
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2023-04-08 07:12:14 बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय
भारत के महान उपन्यासकार एवं कवि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म 27 जून, 1838 को पश्चिम बंगाल के कंठपुरा गाँव में हुआ था।
उन्होंने संस्कृत में भारत के राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ की रचना की जिसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बना।
वर्ष 1857 में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ एक मज़बूत विद्रोह हुआ परंतु बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और वर्ष 1859 में बी.ए. की परीक्षा पास की।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय 1891ई. तक कलकत्ता के डिप्टी कलेक्टर रहे।
महाकाव्य उपन्यास आनंदमठ, संन्यासी विद्रोह (1770-1820) की पृष्ठभूमि से प्रभावित था।
उन्होंने अपने साहित्यिक अभियान के माध्यम से बंगाल के लोगों को बौद्धिक रूप से प्रेरित किया।
भारत को अपना राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् आनंदमठ से मिला।
उन्होंने वर्ष 1872 में एक मासिक साहित्यिक पत्रिका, बंगदर्शन की भी शुरुआत की, जिसके माध्यम से बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय को एक बंगाली पहचान और राष्ट्रवाद के उद्भव को प्रभावित करने का श्रेय दिया जाता है।
बंकिम चंद्र चाहते थे कि यह पत्रिका शिक्षित और अशिक्षित वर्गों के बीच संचार के माध्यम के रूप में कार्य करे।
1880 के दशक के अंत में पत्रिका का प्रकाशन बंद कर दिया गया परंतु वर्ष 1901 में रवींद्रनाथ टैगोर के संपादक बनने के बाद इसे फिर से शुरू किया गया।
बंगाल विभाजन (वर्ष 1905) के दौरान पत्रिका ने विरोध और असंतोष की आवाज़ को एक आधार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। टैगोर का अमार सोनार बांग्ला बांग्लादेश का राष्ट्रगान तब पहली बार बंगदर्शन में प्रकाशित हुआ था।
उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया था और वह इस विषय में बहुत रुचि रखते थे, लेकिन बाद में बंगाली भाषा को जनता की भाषा बनाने की ज़िम्मेदारी ली।
उनके प्रसिद्ध उपन्यासों में कपालकुंडला, देवी चौधरानी, विष बृक्ष (द पॉइज़न ट्री), चंद्रशेखर, राजमोहन की पत्नी और कृष्णकांत’स विल शामिल हैं।
8 अप्रैल, 1894 को उनका निधन हो गया।
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2023-04-08 07:12:13
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