2023-03-30 07:45:06
राजस्थान दिवस
1800 ई. में राजस्थान के भू-भागों पर राजपूत राजाओं की सत्ता के कारण सर्वप्रथम 'राजपूताना' शब्द का प्रयोग जॉर्ज थॉमस द्वारा किया गया।
1818 ई. में अंग्रेजों ने अजमेर पर आधिपत्य स्थापित करके समस्त रियासतों को दो वर्गों- रियासत तथा ठिकानों में विभाजित किया।
कर्नल टॉड ने 1829 ई. में अपने प्रसिद्ध यात्रा वृत्तान्त ‘एनाल्स एण्ड एन्टीक्विटीज ऑफ राजस्थान’ में इस भू-भाग का नाम राजस्थान बताया जो राजाओं के राज्य का प्रतीक था।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के 8वें अनुच्छेद में देशी रियासतों को आत्म निर्णय का अधिकार दिया गया था।
रियासतों के एकीकरण के लिए 5 जुलाई, 1947 को रियासत सचिवालय की स्थापना की गई थी। इसके अध्यक्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल व सचिव वी.पी. मेनन थे।
रियासती सचिव द्वारा रियासतों के सामने स्वतंत्र रहने के लिए दो शर्ते रखी गई। प्रथम, जनसंख्या 10 लाख से अधिक एवं दूसरा, वार्षिक आय 1 करोड़ से अधिक होनी चाहिए।
तत्कालीन समय में इन शर्तों को पूरा करने वाली राजस्थान में केवल 4 रियासतें जयपुर, जोधपुर, उदयपुर एवं बीकानेर थी।
राजपूताना के नरेशों ने तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल की चतुराई एवं दूरदर्शिता से भारत संघ में मिलना स्वीकार किया।
तत्कालीन राजपूताना की 19 रियासतों एवं तीन चीफशिप (ठिकानों) वाले क्षेत्रों को विभिन्न चरणों में एकीकृत कर 30 मार्च, 1949 को राजस्थान का गठन किया गया तथा एकीकरण की सम्पूर्ण प्रक्रिया सात चरणों में सम्पन्न हुई।
राजस्थान एकीकरण की प्रक्रिया सन् 1948 से आरंभ होकर सन् 1956 तक सात चरणों में सम्पन्न हुई।
प्रथम चरणः मत्स्य संघ की स्थापना
अलवर, भरतपुर, धौलपुर तथा करौली रियासतों के एकीकरण से 18 मार्च, 1948 को मत्स्य संघ की स्थापना हुई, जिसका उद्घाटन तत्कालीन केन्द्रीय खनिज एवं विद्युत मंत्री श्री नरहरि विष्णु गाडगिल ने किया।
इसकी राजधानी अलवर बनाई गई तथा राजप्रमुख धौलपुर महाराजा श्री उदयभानसिंह बनाए गए।
द्वितीय चरण: पूर्व राजस्थान का निर्माण
द्वितीय चरण में 25 मार्च, 1948 को कोटा, बूँदी, झालावाड, टोंक, किशनगढ़, प्रतापगढ़, डूँगरपुर, बाँसवाड़ा एवं शाहपुरा रियासतों एवं कुशलगढ़ ठिकाने को मिलाकर पूर्व राजस्थान का निर्माण किया गया।
कोटा को इसकी राजधानी तथा महाराव श्री भीमसिंह द्वितीय को राजप्रमुख बनाया गया। इसका उद्घाटन तत्कालीन केन्द्रीय खनिज एवं विद्युत मंत्री श्री नरहरि विष्णु गाडगिल ने किया।
तृतीय चरण: संयुक्त राजस्थान
राजस्थान के तीसरे चरण में पूर्व राजस्थान के साथ उदयपुर रियासत को मिलाकर 18 अप्रैल, 1948 को नया नाम संयुक्त राजस्थान रखा गया, जिसकी राजधानी उदयपुर थी तथा मेवाड़ महाराणा भूपालसिंह को राजप्रमुख और कोटा के महाराव भीमसिंह द्वितीय को उपराजप्रमुख बनाया गया।
माणिक्यलाल वर्मा के नेतृत्व में इसके मंत्रिमंडल का गठन हुआ। इसका उद्घाटन 18 अप्रैल, 1948 को ही उदयपुर में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किया था।
चतुर्थ चरण: वृहत् राजस्थान
राजस्थान की एकीकरण प्रक्रिया के चौथे चरण में 14 जनवरी, 1949 को उदयपुर में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने जयपुर, बीकानेर, जोधपुर, जैसलमेर रियासतों और लावा ठिकाने को वृहद् राजस्थान में सैद्धांतिक रूप से सम्मिलित होने की घोषणा की।
बीकानेर रियासत ने सर्वप्रथम भारत में विलय किया। इस निर्णय को मूर्त रूप देने के लिए 30 मार्च, 1949 को जयपुर में आयोजित एक समारोह में वृहत राजस्थान का उद्घाटन किया। इसकी राजधानी जयपुर थी तथा उदयपुर के महाराणा भूपालसिंह को महाराज प्रमुख, जयपुर के महाराजा मानसिंह को राजप्रमुख तथा कोटा के महाराव भीमसिंह द्वितीय को उपराज प्रमुख बनाया गया।
पंचम चरणः संयुक्त वृहद् राजस्थान
15 मई, 1949 को मत्स्य संघ का वृहद् राजस्थान में विलय कर देने से संयुक्त वृहद् राजस्थान का निर्माण हुआ। नीमराणा को भी इसमें शामिल कर लिया गया।
षष्टम चरण: राजस्थान
सिरोही रियासत के एक हिस्से आबू - देलवाड़ा को लेकर विवाद के कारण आबू देलवाडा तहसील को बंबई और शेष रियासत 26 जनवरी, 1950 को संयुक्त वृहद् राजस्थान में विलय हो जाने पर इसका नाम 'राजस्थान' कर दिया गया।
सप्तम चरण: राजस्थान
राज्य पुनर्गठन आयोग 1955 की सिफारिशों के आधार पर 1 नवम्बर, 1956 को राज्य पुनर्गठन अधिनियम लागू हो जाने से अजमेर-मेरवाड़ा, आबू तहसील को राजस्थान में मिलाया गया।
इसके तहत मध्यप्रदेश में शामिल हो चुके सुनेल टप्पा क्षेत्र को राजस्थान के झालावाड़ जिले में मिलाया गया और झालावाड़ जिले का सिरोंज को मध्यप्रदेश को दे दिया गया।
इस प्रकार राजस्थान के एकीकरण में कुल 8 वर्ष 7 माह 14 दिन या 3144 दिन लगे।
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