2023-03-25 07:17:01
सर विलियम वेडरबर्न
⬧ सर विलियम वेडरबर्न का जन्म 25 मार्च, 1838 में स्कॉटलैंड के एडिनबर्ग में हुआ था।
⬧ वर्ष 1859 में वेडरबर्न भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में शामिल हुए।
⬧ उन्हें 1874 में सिंध में कार्यवाहक न्यायिक आयुक्त और सदर कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
⬧ वर्ष 1882 में वे पूना के जिला और सत्र न्यायाधीश बने।
⬧ वर्ष 1887 में अपनी सेवानिवृत्ति के समय, वह बंबई सरकार के मुख्य सचिव थे।
⬧ भारत में अपनी सेवा के दौरान, वेडरबर्न का ध्यान अकाल, भारतीय किसानों की गरीबी, कृषि ऋणग्रस्तता की समस्या और प्राचीन ग्रामीण व्यवस्था को पुनर्जीवित करने के प्रश्न पर केंद्रित था।
⬧ इन समस्याओं के प्रति उनकी चिंता ने उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संपर्क में ला दिया।
⬧ उन्होंने वर्ष 1889 में बंबई में आयोजित कांग्रेस के चौथे अधिवेशन की अध्यक्षता की।
⬧ उन्होंने 1893 में एक उदार सदस्य के रूप में संसद में प्रवेश किया और सदन में भारत की शिकायतों को दूर करने की माँग की।
⬧ उन्होंने भारतीय संसदीय समिति का गठन किया जिसके साथ वे वर्ष 1893 से 1900 तक अध्यक्ष के रूप में जुड़े रहे।
⬧ 1895 में, वेडरबर्न ने भारतीय व्यय पर वेल्बी कमीशन (यानी रॉयल कमीशन) पर भारत का प्रतिनिधित्व किया।
⬧ उन्होंने जून, 1901 में स्थापित भारतीय अकाल संघ की गतिविधियों में भी भाग लेना शुरू कर दिया, ताकि अकाल की जाँच और निवारक उपायों का प्रस्ताव किया जा सके।
⬧ वे वर्ष 1904 में बंबई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 20वें सत्र में भाग लेने के लिए भारत आए, जिसकी अध्यक्षता सर हेनरी कॉटन ने की थी।
⬧ वे जुलाई, 1889 से अपनी मृत्यु तक कांग्रेस की ब्रिटिश समिति के अध्यक्ष बने रहे।
⬧ एक उदारवादी के रूप में विलियम वेडरबर्न ‘स्वशासन के सिद्धांत’ में विश्वास करते थे।
⬧ राष्ट्रीय चेतना के प्रचार में वेडरबर्न का मुख्य योगदान भारतीय सुधार आन्दोलन की ओर से उनका आजीवन श्रम था।
⬧ मोण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों को उनके द्वारा अपने जीवन के कार्यों की सर्वोच्च महिमा के रूप में माना जाता था।
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