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Utkarsh Ramsnehi Gurukul

टेलीग्राम चैनल का लोगो utkarshgurukul — Utkarsh Ramsnehi Gurukul U
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श्रेणियाँ: समाचार
भाषा: हिंदी
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2023-03-23 07:51:34
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2023-03-23 07:44:59 सुहासिनी गांगुली
⬧ भारतीय स्वतंत्रता सेनानी सुहासिनी गांगुली का जन्म 3 फ़रवरी, 1909 में खुलना, बंगाल में हुआ था।
⬧ नाम के अनुरूप मुस्कुराती हुई लड़की, सुहासिनी अपने मधुर व्यवहार के कारण सभी की प्रिय थी। उन्होंने ढाका के ईडन स्कूल से मैट्रिकुलेशन और आईए की परीक्षा पास की और एक शिक्षिका के रूप में डेफ एंड डंब स्कूल, कलकत्ता में शामिल हुईं।
⬧ अपनी शिक्षा पूरी करने के उपरांत उन्होंने कलकत्ता में एक मूक बधिर बच्चों के स्कूल में नौकरी करना शुरू किया, जहाँ पर वे क्रांतिकारियों के संपर्क में आई।
⬧ उन दिनों बंगाल में ‘छात्री संघा’ नाम का एक महिला क्रांतिकारी संगठन कार्यरत था, जिसकी कमान कमला दास गुप्ता के हाथों में थी। इसी संगठन से प्रीति लता वाडेकर और बीना दास जैसी वीरांगनाएँ जुड़ी हुई थी।
⬧ खुलना के क्रांतिकारी रसिक लाल दास और क्रांतिकारी हेमंत तरफदार के संपर्क में आने से सुहासिनी गांगुली क्रांतिकारी गतिविधियों की तरफ प्रेरित हुईं तथा युगांतर पार्टी से जुड़ गईं।
⬧ वर्ष 1930 के 'चटगाँव शस्त्रागार कांड' के उपरांत ‘छात्री संघा’ के साथ-साथ अन्य क्रांतिकारी साथियों समेत सुहासिनी गांगुली पर भी निगरानी बढ़ गई। इसके उपरांत वे चंद्रनगर आ गईं एवं क्रांतिकारी शशिधर आचार्य की छद्म पत्नी के तौर पर रहने लगीं।
⬧ चंद्रनगर में रहते हुए सुहासिनी गांगुली ने क्रांतिकारियों को मदद करने में वही किरदार निभाया जैसा दुर्गा भाभी ने भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु समेत अन्य क्रांतिकारियों की मदद करने के लिए निभाया था।
⬧ वर्ष 1930 में एक दिन पुलिस के साथ हुई आमने-सामने की मुठभेड़ में जीवन घोषाल शहीद हो गए तथा शशिधर आचार्य और सुहासिनी को गिरफ्तार करके, उन्हें हिजली डिटेंशन कैम्प में रखा गया। कालांतर में यही हिजली डिटेंशन कैम्प खड़गपुर आईआईटी का कैम्पस बना।
⬧ वर्ष 1938 में रिहा होने के उपरांत उन्होंने कम्यूनिस्ट पार्टी को ज्वॉइन किया।
⬧ हालाँकि वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का कम्यूनिस्ट पार्टी द्वारा बहिष्कार किया गया, फिर भी उन्होंने आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते हुए क्रांतिकारियों की लगातार मदद की।
⬧ प्रसिद्ध क्रांतिकारी हेमंत तरफदार की सहायता के कारण इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया एवं इन्हें पुनः वर्ष 1945 में रिहा किया गया।
⬧ अन्य तात्कालिक स्वतंत्रता सेनानियों के विपरीत उन्होंने राजनीति का त्याग करते हुए, आज़ादी के बाद अपना सारा जीवन सामाजिक, आध्यात्मिक कार्यों हेतु समर्पित कर दिया।
⬧ मार्च, 1965 में वे एक सड़क दुर्घटना की शिकार हो गईं एवं इलाज के दौरान चिकित्सीय लापरवाही से बैक्टीरियल इंफेक्शन के कारण 23 मार्च, 1965 को हो इनकी मृत्यु गई।
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2023-03-23 07:44:59
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2023-03-22 07:44:42 मास्टर सूर्य सेन दा
“मौत मेरे दरवाज़े पर दस्तक दे रही है। मेरा मन अनंत काल की ओर उड़ानें भर रहा है... ऐसे सुखद, ऐसे गहन, ऐसे गंभीर क्षण में, मैं तुम्हारा पीछे क्या छोड़ूँ? बस एक ही चीज़ है, वो है मेरा सपना, एक सुनहरा सपना- आज़ाद भारत का सपना...”
 मास्टर सूर्य सेन दा का जन्म 22 मार्च, 1894 को चटगाँव के नोआपाड़ा में, रामनिरंजन सेन नामक एक शिक्षक के यहाँ हुआ था। चटगाँव (वर्तमान बांग्लादेश में) औपनिवेशिक काल में अविभाजित बंगाल का एक हिस्सा था।
 अपनी स्नातक की पढ़ाई के लिए, सूर्य सेन मुर्शिदाबाद के बहरामपुर कॉलेज में गए। वर्तमान में यह संस्थान मुर्शिदाबाद के कासिम बाज़ार के ज़मींदार राजा कृष्णनाथ के नाम पर, कृष्णनाथ कॉलेज के रूप में प्रसिद्ध है।
 वर्ष 1916 में राष्ट्रवाद की भावना से उत्साहित एवं कॉलेज में अपने शिक्षकों से प्रेरित होकर सेन ‘अनुशीलन समिति’ में शामिल हो गए।
 ‘अनुशीलन समिति’ बीसवीं सदी की शुरुआत में बना युवाओं का एक ऐसा संगठन था जिसका एकमात्र लक्ष्य अंग्रेज़ों को भारत से बाहर निकालना था।
 सेन असहयोग आंदोलन (1920-1922) में भी सक्रिय रूप से शामिल थे तथा 1920 के दशक के अंत में उन्हें ब्रिटिश-विरोधी गतिविधियों के कारण गिरफ़्तार कर लिया गया।
 जेल से रिहा होने के बाद सूर्य सेन ने ‘द इंडियन रिवोल्यूशनरी आर्मी’ (भारतीय क्रांतिकारी सेना) का नेतृत्व किया।
 आईआरए का मुख्य उद्देश्य अंग्रेज़ों के खिलाफ़ एक संगठित संघर्ष का नेतृत्व करना और उनकी सत्ता को चुनौती देना था। आईआरए की सबसे उल्लेखनीय कार्रवाइयों में से एक वर्ष 1930 की चटगाँव शस्त्रागार छापेमारी थी।
 चटगाँव में एक शिक्षक के रूप में कार्यरत, सूर्य सेन ने छापेमारी के लिए वहाँ के युवकों को लामबंद और प्रशिक्षित करना शुरू किया।
 18 अप्रैल, 1930 को सूर्य सेन, गणेश घोष, प्रीतिलता वाडेदार और अन्य व्यक्तियों के नेतृत्व में समूहों में विभाजित साठ से अधिक छात्रों ने चटगाँव के औपनिवेशिक प्रशासन और उसके पूरे तंत्र पर एक सुनियोजित हमले की शुरुआत की।
 उनका उद्देश्य चटगाँव में सरकारी संचार प्रणाली को बाधित करना, पुलिस और सहायक बलों के शस्त्रागार पर छापा मारना और हथियार जुटाना था।
 अंग्रेज़ों के खिलाफ़ एक सशस्त्र संघर्ष शुरू करने के लिए इन ज़ब्त किए गए हथियारों को क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं के बीच वितरित किया जाना था।
 जहाँ वे टेलीग्राफ़ और रेलवे लाइनों को बाधित करने और शस्त्रागार पर छापा मारने में सफल रहे, वहीं गोला-बारूद खोजने में उन्हे विफलता का सामना भी करना पड़ा।
 उन्होंने चटगाँव को स्वतंत्र घोषित किया तथा वहाँ एक अस्थायी सरकार बनाने का दावा किया और युवाओं से उनके साथ जुड़ने का अनुरोध किया।
● अचानक हुए इस हमले के कारण, ब्रिटिश अधिकारी इस घटनाक्रम से हिल गए और कुछ समय के लिए पीछे भी हटे, परंतु कुछ ही समय में वे और अधिक सशक्त होकर वापस आए तथा कार्यकर्ताओं का बेरहमी से दमन किया।
● सूर्य सेन और उनके अधिकांश सहयोगी जलालाबाद की पहाड़ियों में छिप गए। वहाँ के गाँवों में सेन को लोगों का भारी समर्थन मिला।
● 16 फरवरी, 1933 को पकड़े जाने से पहले सूर्य सेन लगभग तीन साल तक अंग्रेज़ों से बचने में कामयाब रहे।
● 12 जनवरी, 1934 को सूर्य सेन तथा उनके सहयोगी तारकेश्वर दस्तीदार को फाँसी दे दी गई।
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2023-03-22 07:44:41
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2023-03-22 07:32:52
विश्व जल दिवस
 प्रतिवर्ष 22 मार्च को विश्व में जल के महत्त्व के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से ‘विश्व जल दिवस’ का आयोजन किया जाता है।
 विश्व जल दिवस, 2023 जल और स्वच्छता संकट को हल करने के लिए परिवर्तन में तेजी लाने पर केंद्रित है।
 इस दिवस का उद्देश्य सतत विकास लक्ष्य (SDG) 6: ‘वर्ष 2030 तक सभी के लिए पानी और स्वच्छता’ (Clean water and sanitation for all) के लक्ष्य का समर्थन करना है।
 विश्व जल दिवस, 2023 की थीम ‘त्वरित परिवर्तन’ (Accelerating Change) है।
 विश्व जल दिवस का विचार सर्वप्रथम वर्ष 1992 में प्रस्तुत किया गया था तथा इसी वर्ष रियो-डी-जेनेरियो में पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का भी आयोजन किया गया था।
 वर्ष 1992 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव अपनाया, जिसके द्वारा प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाने की घोषणा की गई।
 इस दिवस का उद्देश्य विश्व में लोगों को जल से संबंधित मुद्दों पर अधिक जानकारी प्रदान करने के साथ ही बदलाव के लिए कार्रवाई हेतु प्रेरित करना है।
 जल सम्पूर्ण पृथ्वी के लगभग 70% हिस्से को कवर करता है लेकिन
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2023-03-22 07:26:50
आप सभी को उत्कर्ष परिवार की तरफ से भारतीय नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ
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2023-03-21 07:17:00
अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सभी प्रकार के वनों के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए वर्ष 2012 में 21 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस के रूप में घोषित किया है।
वृक्षारोपण अभियानों जैसे वनों और वृक्षों से जुड़ी गतिविधियों को आयोजित करने के लिए देशों को स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
इसका उद्देश्य वृक्षारोपण अभियान जैसे- वनों और वृक्षों को शामिल करने वाली गतिविधियों के आयोजन हेतु देशों को स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
वनों का स्थायी प्रबंधन और उनके संसाधनों का उपयोग जलवायु परिवर्तन से निपटने और वर्तमान एवं भावी पीढ़ियों की समृद्धि और कल्याण में योगदान करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
वन गरीबी उन्मूलन और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की प्राप्ति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
वर्ष 2023 की थीम "वन और स्वास्थ्य" (Forests and health) है।
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2023-03-21 07:10:00 अंतर्राष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस
प्रतिवर्ष 21 मार्च को जातिवाद और नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध एकजुटता का आह्वान करने के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस मनाया जाता है।
अक्टूबर, 1966 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 मार्च को ‘अंतर्राष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी।
21 मार्च, 1960 को पुलिस ने दक्षिण अफ्रीका के शार्पविले में लोगों द्वारा नस्लभेदी कानून के खिलाफ किए जा रहे एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान आग लगा दी गई जिसमें 69 लोगों की मृत्यु हो गई।
रंगभेद एक नीति थी जिसने दक्षिण अफ्रीका के ‘श्वेत’ अल्पसंख्यकों और ‘अश्वेत’ बहुसंख्यकों के बीच संबंधों को नियंत्रित किया।
इस नीति ने ‘अश्वेत’ बहुसंख्यकों के विरुद्ध नस्लीय अलगाव तथा राजनीतिक और आर्थिक भेदभाव को मंज़ूरी दी।
अंतर्राष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस, 2023 की थीम मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (यूडीएचआर) को अपनाने के 75 साल बाद नस्लवाद और नस्लीय भेदभाव से निपटने की तात्कालिकता पर केंद्रित है।
नस्लवाद का आशय ऐसी धारणा से है, जिसमें यह माना जाता है कि मनुष्यों को ‘नस्ल’ नामक अलग और विशिष्ट जैविक इकाइयों में विभाजित किया जा सकता है; इस धारणा के मुताबिक, विरासत में मिली भौतिक विशेषताओं और व्यक्तित्व, बुद्धि, नैतिकता तथा अन्य सांस्कृतिक एवं व्यावहारिक विशेषताओं के लक्षणों के बीच संबंध होता है और कुछ विशिष्ट ‘नस्लें’ अन्य की तुलना में बेहतर होती हैं।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15, 16 एवं 29 ‘नस्ल’, ‘धर्म’ तथा ‘जाति’ के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध लगाते हैं।
भारत ने वर्ष 1968 में ‘नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन’ (ICERD) की पुष्टि की थी।
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2023-03-21 07:10:00
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