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Utkarsh Ramsnehi Gurukul

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नवीनतम संदेश 14

2023-03-29 06:52:00 श्री रोमेश भण्डारी
श्री रोमेश भण्डारी का जन्म 29 मार्च, 1928 को लाहौर में हुआ था।
उनके पिता, श्री अमर नाथ भण्डारी, पंजाब उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे।
उनकी स्कूली शिक्षा लाहौर के एचिंसन कॉलेज से हुई जहाँ उन्हें कैम्ब्रिज हायर स्कूल सर्टिफ़िकेट परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने के उपलक्ष्य में चर्चिल हाउस मेडल से पुरस्कृत किया गया।
उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय (विभाजन पूर्व) से वर्ष 1947 में बी.ए. में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया।
उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में वर्ष 1947 में प्रवेश लिया तथा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में अपना ट्राइपोज़ पूरा किया।
श्री रोमेश भण्डारी ने 1950 में भारतीय विदेश सेवा (आई.एफ.एस.) ज्वाइन किया तथा उनकी प्रथम तैनाती न्यू यॉर्क के भारतीय कौंसुलेट में वाइस कौनसुल के तौर पर हुई।
वे भारतीय खनिज व धातु व्यापार निगम के साथ प्रतिनियुक्ति पर भी रहे।
श्री भण्डारी को 1 फ़रवरी, 1985 को विदेश सचिव नियुक्त किया गया तथा वे विदेश सेवा से 31 मार्च, 1986 को सेवानिवृत्त हुए।
विदेश सेवा में, विदेश सचिव के उच्चतम पद तक पहुँचने के अतिरिक्त, श्री भण्डारी ने महात्मा गाँधी के दूरदर्शी, अहिंसक विश्व की संकल्पना को क्रियान्वित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया तथा साथ ही पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा बनाई गई भारतीय विदेश नीति व दिशा निर्देशों का भी क्रियान्वयन किया।
श्री भण्डारी को विदेश कार्यालय में आर्थिक कूटनीति प्रारम्भ करने तथा अरब देशों से संबंध सुधारने व मजबूत करने का उत्तरदायित्व संभालने के लिए विशेष रूप से प्रणेता माना जाता है।
सेवा निवृत्ति के बाद, श्री भण्डारी को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (आई) के विदेशी मामलों के विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
श्री भण्डारी ने दिल्ली के उपराज्यपाल का प्रभार 4 अगस्त, 1988 को ग्रहण किया व समाजवादी जनता पार्टी के सत्ता में आने पर 13 दिसंबर, 1990 को त्यागपत्र दे दिया।
उपराज्यपाल के पद से त्यागपत्र देने के बाद, श्री भण्डारी ने दिल्लीवासियों की सेवाओं में अपना समय अर्पित किया।
श्री भण्डारी को त्रिपुरा का राज्यपाल बनाया गया तथा इस पद पर रहते हुए उन्होनें बांग्लादेश के चकमा शरणार्थियों को बांग्लादेश के चटगाँव हिल ट्रेक्ट्स में वापस भिजवाने की प्रक्रिया प्रारम्भ करने में अपना उल्लेखनीय योगदान दिया।
वे 16 जून, 1995 से 19 जुलाई, 1996 तक गोआ के राज्यपाल के पद पर रहे।
उन्होंने 19 जुलाई, 1996 को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का पदभार ग्रहण किया।
रोमेश भंडारी का निधन 7 सितंबर, 2013 को नई दिल्ली में हुआ था।
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2023-03-29 06:52:00
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2023-03-29 06:50:00 भवानी प्रसाद मिश्र
“कुछ लिख के सो, कुछ पढ़ के सो,
तू जिस जगह जागा सबेरे, उस जगह से बढ़ के सो।।“
भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म 29 मार्च, 1913 को होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) में हुआ था।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा क्रमश: सोहागपुर, होशंगाबाद, नरसिंहपुर और जबलपुर में हुई।
भवानी प्रसाद मिश्र ने महात्मा गाँधी के विचारों से प्रेरित होकर शिक्षा देने के विचार से एक स्कूल खोला जिसके उपरांत वर्ष 1942 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
इनकी प्रमुख रचनाओं में ‘सतपुड़ा के जंगल’, ‘सन्नाटा’, ‘गीतफ़रोश’, ‘चकित है दु:ख’, ‘बुनी हुई रस्सी’, ‘खुशबू के शिलालेख’, ‘अनाम तुम आते हो’, ‘इदं न मम्’ आदि शामिल हैं।
गाँधीवाद पर आस्था रखने वाले मिश्र जी ने गाँधी वाङ्मय के हिंदी खंडों का संपादन कर कविता और गाँधी जी के बीच सेतु का काम किया।
भवानी प्रसाद मिश्र की कविता हिंदी की सहज लय की कविता है। इस सहजता का संबंध गाँधी के चरखे की लय से भी जुड़ता है इसलिए उन्हें ‘कविता का गाँधी’ भी कहा गया है।
मिश्र जी की कविताओं में बोल-चाल के गद्यात्मक-से लगते वाक्य-विन्यास को ही कविता में बदल देने की अद्भुत क्षमता है।
वर्ष 1972 में मिश्र जी को उनकी कृति ‘बुनी हुई रस्सी’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
इसके अतिरिक्त अन्य अनेक पुरस्कारों के साथ-साथ इन्होंने भारत सरकार का ‘पद्म श्री’ पुरस्कार भी प्राप्त किया।
वर्ष 1983 में उन्हें मध्य प्रदेश शासन के शिखर सम्मान से अलंकृत किया गया।
20 फरवरी, 1985 को भवानी प्रसाद मिश्र का देहांत हो गया।
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2023-03-29 06:50:00
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2023-03-28 07:50:01 महान चित्रकार फ्रांसिस न्यूटन सूजा
फ्रांसिस न्यूटन सूजा का जन्म 12 अप्रैल, 1924 को गोवा के सालिगाँव में एक कैथोलिक परिवार में हुआ था।
एफ़. एन. सूजा ने मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज में पढ़ाई के लिए दाखिला लिया, पर एक दिन शौचालय में टॉयलेट पर भित्ति चित्रण करने की वजह से उन्हें निकाल दिया गया।
एफ़. एन. सूजा मुंबई के प्रसिद्ध सर जे.जे स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में अध्ययनरत थे, पर भारत छोड़ो आन्दोलन के समर्थन के कारण उन्हें वहाँ से भी निकाल दिया गया।
वर्ष 1947 में एफ़. एन. सूजा ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया’ में शामिल हो गए।
वर्ष 1947 में एम. एफ. हुसैन., एस. एच. रज़ा और के. एच. आरा आदि के साथ-साथ मिलकर एफ़. एन. सूजा ने ‘प्रोग्रेसिव आर्ट्स ग्रुप ऑफ़ बॉम्बे’ की स्थापना की।
वर्ष 1948 में एफ़. एन. सूजा के चित्रों की पहली प्रदर्शनी लंदन के ‘बर्लिंगटन हाउस’ में लगी।
वर्ष 1949 में सूजा भारत छोड़कर इंग्लैंड चले गए।
वर्ष 1954 में लन्दन के ‘द इंस्टिट्यूट ऑफ़ कंटेम्परेरी आर्ट्स’ ने अपनी एक प्रदर्शनी में सूजा के भी चित्रों को प्रदर्शित किया।
वर्ष 1955 में उनका एक आत्मकथात्मक लेख ‘निर्वाना ऑफ़ अ मैगोट’ स्टीफन स्पेंडर के ‘एनकाउंटर’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ।
सूजा का निधन 28 मार्च, 2002 को मुंबई में हुआ।
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2023-03-28 07:50:01
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2023-03-28 07:45:01 हरिदेव जोशी
भारतीय राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी हरिदेव जोशी का जन्म 17 दिसम्बर, 1921 को बाँसवाड़ा के एक विद्वान ब्राह्मण परिवार में हुआ।
उनका प्रारम्भिक जीवन डूँगरपुर में भोगीलाल पांड्या के सान्निध्य में सेवा संघ में बीता।
तत्कालीन डूँगरपुर में राजनीति का उदय सेवा संघ द्वारा संचालित शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से हुआ।
गौरी शंकर उपाध्याय की प्रेरणा से ब्राह्मण परिवार के हरिदेव जोशी आदिवासी, हरिजन और पिछड़ी जातियों में शिक्षा का प्रचार करने को निकल पड़े।
अधनंगे आदिवासियों को उनकी दशा का भान कराने के लिए पहाड़ियों की टेकरियों पर इन्होंने पाठशालाएँ स्थापित की और शोषित आदिवासियों को शोषणमुक्त समाज की नव रचना का पाठ पढ़ाने लगे।
हरिदेव जोशी बाँसवाड़ा और डूँगरपुर से ‘अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद्’ में वर्षों तक प्रतिनिधि रहे।
ये ‘देशी राज्य प्रजा परिषद्’ की रीजनल कौंसिल के भी सदस्य रहे।
डूँगरपुर में वर्ष 1942 से 1947 तक के लगभग सभी राजनैतिक आन्दोलनों में जोशी की अग्रणी भूमिका रही।
भोगीलाल पंड्या और श्री गौरी शंकर उपाध्याय का सदा यही प्रयत्न रहता कि हरिदेव जोशी आन्दोलनों को गतिशील रखने के लिए जेल से बाहर ही रहें।
कालांतर में हरिदेव जोशी को डूँगरपुर से देश निकाला दे दिया गया था और उनकी धर्मपत्नी सुभद्रा देवी जोशी को अन्य महिलाओं के साथ जेल जाना पड़ा था।
स्वतंत्रता के बाद 1952 में उनका प्रवेश राजनीति में हुआ।
वे 10 बार राज्य विधानसभा का चुनाव लड़े और हर बार विजयी रहे।
हरि देव जोशी तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री तथा असम एवं मेघालय के राज्यपाल भी रहे।
जनसेवा का आदर्श स्थापित करने वाले जोशी का निधन 28 मार्च, 1995 को हुआ।
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2023-03-28 07:45:01
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2023-03-27 08:11:16 विश्व रंगमंच दिवस
⬧ प्रतिवर्ष 27 मार्च को सम्पूर्ण विश्व में इंटरनेशनल थिएटर इंस्टीट्यूट (ITI) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच समुदाय के माध्यम से ‘विश्व रंगमंच दिवस' (World Theatre Day) मनाया जाता है।
⬧ इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य दुनिया भर में थिएटर अथवा नाटक कला के महत्त्व के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना है।
⬧ विश्व रंगमंच दिवस की शुरुआत वर्ष 1961 में इंटरनेशनल थिएटर इंस्टीट्यूट (International Theatre Institute) द्वारा की गई थी।
⬧ विश्व रंगमंच दिवस विभिन्न संस्कृति एवं कला के स्वरूपों को एक साथ मनाने की अनुमति देकर विभिन्न संस्कृतियों को एक- दूसरे के निकट लाने का अवसर प्रदान करता है।
⬧ वर्ष 1962 में पहला विश्व थिएटर दिवस संदेश जीन कोक्ट्यू द्वारा दिया गया था।
⬧ वर्ष 2002 में यह संदेश भारत के सबसे प्रसिद्ध थिएटर कलाकार गिरीश कर्नार्ड ने दिया था।
⬧ नाटक अथवा थिएटर रंगमंच से जुड़ी एक विधा है, जिसे अभिनय करने वाले कलाकारों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।
⬧ अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान की स्थापना वर्ष 1948 में यूनेस्को की प्रथम महानिदेशक सर जूलियन हक्सले और विख्यात नाटककार एवं उपन्यासकार जेबी प्रीस्टली द्वारा की गई थी।
⬧ आईटीआई के संस्थापकों का उद्देश्य एक ऐसे संगठन का निर्माण करना था, जो संस्कृति, शिक्षा और कला पर यूनेस्को के लक्ष्यों के साथ संरेखित हो और निष्पादन कला से जुड़े अपने सदस्यों की स्थिति में सुधार लाया जा सके।
⬧ इस संगठन की परिकल्पना एक ऐसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन में की गई जो निष्पादन कलाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए पेशेवर और नवोदित कलाकारों को एक मंच पर ला सके, इसके साथ ही निष्पादन कलाओं का प्रयोग आपसी समाज एवं शांति के लिए किया जा सके।
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2023-03-27 08:11:16
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