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फणीश्वरनाथ ‘रेणु' ● हिंदी के आँचलिक कथाकार फणीश्वरनाथ ‘रेणु' क | Utkarsh Ramsnehi Gurukul

फणीश्वरनाथ ‘रेणु'
● हिंदी के आँचलिक कथाकार फणीश्वरनाथ ‘रेणु' का जन्म 4 मार्च, 1921 बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना नामक गाँव में हुआ था।
● उन्होंने वर्ष 1942 के 'भारत छोड़ो' स्वाधीनता आंदोलन में भाग लिया।
● नेपाल के राणाशाही विरोधी आंदोलन में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही।
● रेणु राजनीति में प्रगतिशील विचारधारा के समर्थक थे।
● वर्ष 1953 में वे साहित्य-सृजन के क्षेत्र में आए और उन्होंने कहानी, उपन्यास तथा निबंध आदि विविध साहित्यिक विधाओं में लेखन कार्य किया।
● उन्होंने अँचल - विशेष को अपनी रचनाओं का आधार बनाकर, आँचलिक शब्दावली और मुहावरों का सहारा लेते हुए, वहाँ के जीवन और वातावरण का चित्रण किया है।
● अपनी गहरी मानवीय संवेदना के कारण वे अभावग्रस्त जनता की बेबसी और पीड़ा स्वयं भोगते-से लगते हैं। इस संवेदनशीलता के साथ उनका यह विश्वास भी जुड़ा है कि आज के त्रस्त मनुष्य के भीतर अपनी जीवन-दशा को बदल देने की अकूत ताकत छिपी हुई है।
● ठुमरी, अगिनखोर, आदिम रात्रि की महक इत्यादि उनके प्रसिद्ध कहानी–संग्रह हैं।
● तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम कहानी पर फ़िल्म भी बन चुकी है। मैला आँचल और परती परिकथा उनके उल्लेखनीय उपन्यास हैं।
● फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ स्वतंत्र भारत के प्रख्यात कथाकार हैं। रेणु ने अपनी रचनाओं के द्वारा प्रेमचंद की विरासत को नई पहचान और भंगिमा प्रदान की।
● रेणु ने मैला आँचल, ‘परती परिकथा' जैसे अनेक महत्त्वपूर्ण उपन्यासों के साथ अपने शिल्प और आस्वाद में भिन्न हिंदी कथा–नई परंपरा को जन्म दिया।
● रेणु की कहानियों में आँचलिक शब्दों के प्रयोग से लोकजीवन के मार्मिक स्थलों की पहचान हुई है। उनकी भाषा संवेदनशील, संप्रेषणीय एवं भाव प्रधान है।
● 11 अप्रैल, 1977 को फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ का निधन हो गया।