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नवीनतम संदेश 6
2022-05-30 18:28:29
दुनिया के कामों में
जो श्रेष्ठतम काम हो सकता है
वो यही है:
स्वयं जगना
और
दूसरे को जगाना।
19 views15:28
2022-05-23 05:58:42
*भुलाकर गीता का ज्ञान, मानवता सदा हारी है,*
*इसलिये संसार में कहीं न कहीं, महाभारत जारी है...*
145 viewsedited 02:58
2022-05-23 05:45:52
किसी को डर है कि ईश्वर देख रहा है
किसी को भरोसा है कि ईश्वर देख रहा है
153 views02:45
2022-05-19 14:53:42
लोगों की नज़र में
आपकी छवि या
आपकी हैसियत क्या है
*
ये बात दो कौड़ी की है।* आपका भोलापन
आपकी निर्दोषता
आपकी सिधाई
आपकी सच्चाई
*
अरबों की है।*
*उसको कभी मत खो देना।*
121 views11:53
2022-05-19 08:12:52
जीवन किसी बाहरी सहायता की
प्रतीक्षा करने का नाम नहीं है।
जीवन किसी ख़ास मसीहा के
स्वागत के लिए खड़े रहने का नाम नहीं है।
कोई मदद नहीं आने वाली बाहर से
सारा इंतज़ार व्यर्थ है।
अपनी मदद तुम्हें खुद ही करनी पड़ेगी।
170 views05:12
2022-05-19 05:47:37
*[ परमात्मा ने हम सबको कर्म करने की छूट दे रखी है पर जैसा कर्म करेंगे उसका फल उसे भोगना ही पड़ेगा l*
*इसलिये हमें चाहिए कि भजन-सुमिरन,सत्संग, निस्वार्थ सेवा करें एवंम किसी की आत्मा ना दुखाये क्योंकि किसी की आत्मा दुखाना सबसे बड़ा पाप है !!*
187 views02:47
2022-05-16 07:19:42
*" पुरुषार्थ एवं भाग्य "*
*पुरुषार्थ को इसलिए मानो कि ताकि तुम केवल भाग्य के भरोसे बैठकर अकर्मण्य बनकर जीवन प्रगति का अवसर न खो बैठें और भाग्य को इसलिए मानो ताकि पुरुषार्थ करने के बावजूद भी मनोवांछित फल की प्राप्ति न होने पर भी आप उद्धिग्नता से ऊपर उठकर संतोष में जी सकें।*
*जो लोग केवल पुरुषार्थ पर विश्वास रखते हैं प्रायः उनमे परिणाम के प्रति असंतोष सा बना रहता है और जो लोग केवल भाग्य पर विश्वास रखते हैं उनके अकर्मण्य होने की सम्भावना भी बनी रहती है।*
*अतः केवल एक को आधार बनाकर जिया गया जीवन अपनी वास्तविकता और सहजता खो बैठता है। कर्म रूपी प्रयास और भगवदकृपा रूपी प्रसाद का संतुलन जिसके जीवन में है वही जीवन के वास्तविक रस को और अभीष्ट को प्राप्त कर पाता है।*
222 views04:19
2022-05-14 06:24:24
* धन एवं धर्म *
*धन और धर्म दोनों का मनुष्य जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मनुष्य की चाल केवल धन से ही नहीं बदलती अपितु धर्म से भी बदल जाती है। जब धन होता है तो अकड़ कर चलता है और जब धर्म होता है तो विनम्र होकर चलने लगता है।*
*जीवन में धन अथवा संपत्ति आती है तो अहंकार भी अपने आप आ जाता है और जीवन में धर्म अथवा सन्मति आती है तो विनम्रता भी अपने आप आ जाती है। जीवन में संपत्ति आती है तो मनुष्य कौरवों की तरह अभिमानी हो जाता है और जीवन में सन्मति आती है तो मनुष्य पाण्डवों की तरह विनम्र भी बन जाता है।*
*जब धर्म किसी व्यक्ति के जीवन में आता है तो वह अपने साथ विनम्रता जैसे अनेक सद्गुणों को लेकर आता है। विनम्रता धर्म की अनिवार्यता नहीं अपितु धर्म का स्वभाव है। धर्म के साध विनम्रता ऐसे ही सहज चले आती है, जैसे फूलों के साथ खुशबु और दीये के साथ प्रकाश।*
*संपत्ति आने के बावजूद भी जो उस लक्ष्मी को नारायण की चरणदासी समझकर उसका सदुपयोग करते हुए अपने जीवन को विनम्र भाव से जीते हैं, सचमुच इस कलिकाल में उनसे श्रेष्ठ कोई साधक नहीं हो सकता।*
208 views03:24
2022-05-12 15:09:08
168 views12:09
2022-05-12 15:09:07
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170 views12:09