* धन एवं धर्म * *धन और धर्म दोनों का मनुष्य जीवन पर गहरा प्र | अध्यात्म(ब्रह्मज्ञान)
* धन एवं धर्म *
*धन और धर्म दोनों का मनुष्य जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मनुष्य की चाल केवल धन से ही नहीं बदलती अपितु धर्म से भी बदल जाती है। जब धन होता है तो अकड़ कर चलता है और जब धर्म होता है तो विनम्र होकर चलने लगता है।*
*जीवन में धन अथवा संपत्ति आती है तो अहंकार भी अपने आप आ जाता है और जीवन में धर्म अथवा सन्मति आती है तो विनम्रता भी अपने आप आ जाती है। जीवन में संपत्ति आती है तो मनुष्य कौरवों की तरह अभिमानी हो जाता है और जीवन में सन्मति आती है तो मनुष्य पाण्डवों की तरह विनम्र भी बन जाता है।*
*जब धर्म किसी व्यक्ति के जीवन में आता है तो वह अपने साथ विनम्रता जैसे अनेक सद्गुणों को लेकर आता है। विनम्रता धर्म की अनिवार्यता नहीं अपितु धर्म का स्वभाव है। धर्म के साध विनम्रता ऐसे ही सहज चले आती है, जैसे फूलों के साथ खुशबु और दीये के साथ प्रकाश।*
*संपत्ति आने के बावजूद भी जो उस लक्ष्मी को नारायण की चरणदासी समझकर उसका सदुपयोग करते हुए अपने जीवन को विनम्र भाव से जीते हैं, सचमुच इस कलिकाल में उनसे श्रेष्ठ कोई साधक नहीं हो सकता।*
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