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नवीनतम संदेश 9
2021-12-16 16:07:32
16:12:2021
जय भीम जय संविधान
शुभ संध्या
अगर तुम्हारा धर्म एक धंधा न होकर मानवता सिखाता और तुम्हारा ईश्वर कोई भी गलत काम होने से रोक पाता तो शायद आज मैं नास्तिक न होता।
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जय भीम जय संविधान
https://t.me/Bahujan_Update
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185 viewsविकाश कुमार, 13:07
2021-12-16 10:54:09
श्रीनगर में जवानों की बस पर आतंकी हमला
14 जवान घायल!
8 की हालत गंभीर!
मगर देश सुरक्षित हाथों में है।।
197 viewsविकाश कुमार, 07:54
2021-12-16 10:53:44
सोच खुबसूरत हो तो
सब कुछ अच्छा नज़र आता है
196 viewsविकाश कुमार, 07:53
2021-12-16 10:53:18
हँसते हुए लोगो का साथ इत्र के जैसा होता है.. कोई फायदा भले न दें लेकिन महका जरूर देते हैं..!
237 viewsविकाश कुमार, 07:53
2021-12-16 10:52:42
देशवासियों को पशु पक्षियों की तरह जीवन में केवल दाना चुग्गा चुगने के लिए 5 किलो गेहूं चावल नहीं बल्कि संविधानिक सुरक्षा व सम्मान देने के लिए शिक्षा चिकित्सा स्वास्थ्य सुविधाएं रोजगार गारंटी चाहिए
जय संविधान
253 viewsविकाश कुमार, 07:52
2021-12-16 10:52:21
फ्री का राशन बांटने से देश संपन्न नहीं होगा !
फ्री शिक्षा देने से ही देश का उद्धार होगा
नमो बुद्धाय
जय भीम
250 viewsविकाश कुमार, 07:52
2021-12-16 10:51:57
बाबा साहब की मूर्ती ख़रीदने वाले बहुत है,
लेकिन जब तक बाबा साहब की किताबों के खरीदार नही होंगे तब तक समाज मानसिक रूप से नहीं बदलेगा।V.K
240 viewsविकाश कुमार, 07:51
2021-12-16 10:50:07
बुद्ध ही सत्य है
बुद्ध कहते है धन एक नशा है, रूप एक नशा है,
जब ये दोनो उतर जाते है तब हम अपने
आप को दुख की एक गहरी खाई मे पाते है
इसका अर्थ यह नही है की धन को छोड दे या
कुरूप हो जाये ,इसका अर्थ है की
इनका अहंकार न करे .
!!!तथागत गौतम बुद्ध !!!
सप्रेम जय भीम नमो बुद्धाय साथियों
238 viewsविकाश कुमार, 07:50
2021-12-10 08:44:22
ये हादसा नहीं है
जिसकी जड़ कहीं मिले
देखो शिकार करने का, बदला हुआ अन्दाज।
तरकश में छिपे तीर, दिखायी नहीं देते।
होते रहे मुकाबले, पहले तो खुले आम।
कायर हुये रणधीर, दिखायी नहीं देते।
विज्ञान की है बात, किसी ग्रन्थ की नहीं।
वायु की तरंगों में, सफर कर रहे हैं लोग।
बातें सुनायी पड़ रही हैं, अब तो साफ साफ।
घुसती हवा अंगों में, बहुत मर रहे हैं लोग।
बदले की भावना है, कितना किया विकास ?
जासूस देख लो किसी, चिप में छिपे हुये।
संसद की बे जुबान, दीवारें बता रहीं।
सारे ही कदर दान, हैं ह्विप में लिपे हुये।
गलवान का भी खेल, समझना पड़ेगा अब।
ताबूत कारगिल के भी, करने लगे हैं बात।
फिर से हमें पुलवामा की, क्यों याद आ गयी ?
सेना को मिल रहे हैं, आघात पे आघात।
ये खेल अकस्मात का, समझा नहीं गया।
जज्बात भी गिरवीं धरे हैं, मन टटोल कर।
सारी की सारी शेखियाँ, बेकार हो गयीं।
किसने दिया जहर यहाँ, पानी में घोल कर।
इतिहास अपने आप, कुछ पन्ने पलट रहा।
मानोगे नहीं बात तो, जाओगे कहाँ तका ?
हम तो तुम्हारे साथ में, मौजूद रहेंगे।
देखेंगे रहजनी को, निभाओगे कहाँ तक ?
ये हादसा नहीं है, जिसकी जड़ कहीं मिले।
चलती रहेगी गोष्ठी, भटके रहेंगे लोग।
ऐसी विसात बिछ गयी, लोगों के सामने।
*जीवन के चक्रवात में, लटके रहेंगे लोग।
उलझे रहेंगे लोग, बहुत खोज बीन में।
करना था जिन्हें खेल, वे कर के चले गये।
कश्ती कहाँ रुकी है, हवाओं को मोड़ कर।
साजिश कहाँ हुई है, कि साहिल छले गये।
देखो शिकार करने का, बदला हुआ अन्दाज।
तरकश में छिपे तीर, दिखायी नहीं देते।
होते रहे मुकाबले, पहले तो खुले आम।
कायर हुये रणधीर, दिखायी नहीं देते।
विकाश कुमार
Mob-9122461692
68 viewsविक्की सिंह, 05:44