ये हादसा नहीं है जिसकी जड़ कहीं मिले देखो शिकार करने का, | ☸️ Bahujan Update ✅
ये हादसा नहीं है
जिसकी जड़ कहीं मिले
देखो शिकार करने का, बदला हुआ अन्दाज।
तरकश में छिपे तीर, दिखायी नहीं देते।
होते रहे मुकाबले, पहले तो खुले आम।
कायर हुये रणधीर, दिखायी नहीं देते।
विज्ञान की है बात, किसी ग्रन्थ की नहीं।
वायु की तरंगों में, सफर कर रहे हैं लोग।
बातें सुनायी पड़ रही हैं, अब तो साफ साफ।
घुसती हवा अंगों में, बहुत मर रहे हैं लोग।
बदले की भावना है, कितना किया विकास ?
जासूस देख लो किसी, चिप में छिपे हुये।
संसद की बे जुबान, दीवारें बता रहीं।
सारे ही कदर दान, हैं ह्विप में लिपे हुये।
गलवान का भी खेल, समझना पड़ेगा अब।
ताबूत कारगिल के भी, करने लगे हैं बात।
फिर से हमें पुलवामा की, क्यों याद आ गयी ?
सेना को मिल रहे हैं, आघात पे आघात।
ये खेल अकस्मात का, समझा नहीं गया।
जज्बात भी गिरवीं धरे हैं, मन टटोल कर।
सारी की सारी शेखियाँ, बेकार हो गयीं।
किसने दिया जहर यहाँ, पानी में घोल कर।
इतिहास अपने आप, कुछ पन्ने पलट रहा।
मानोगे नहीं बात तो, जाओगे कहाँ तका ?
हम तो तुम्हारे साथ में, मौजूद रहेंगे।
देखेंगे रहजनी को, निभाओगे कहाँ तक ?
ये हादसा नहीं है, जिसकी जड़ कहीं मिले।
चलती रहेगी गोष्ठी, भटके रहेंगे लोग।
ऐसी विसात बिछ गयी, लोगों के सामने।
*जीवन के चक्रवात में, लटके रहेंगे लोग।
उलझे रहेंगे लोग, बहुत खोज बीन में।
करना था जिन्हें खेल, वे कर के चले गये।
कश्ती कहाँ रुकी है, हवाओं को मोड़ कर।
साजिश कहाँ हुई है, कि साहिल छले गये।
देखो शिकार करने का, बदला हुआ अन्दाज।
तरकश में छिपे तीर, दिखायी नहीं देते।
होते रहे मुकाबले, पहले तो खुले आम।
कायर हुये रणधीर, दिखायी नहीं देते।
विकाश कुमार
Mob-9122461692