2022-06-20 08:56:01
#कन्यादान
हमारी भारतीय संस्कृति शादी दो आत्माओं का पवित्र बंधन माना जाता है। अग्नि के सात फेरों के साथ एक पिता अपनी बेटी को अपने नए साथी के साथ विदा करता है,अपने कुल की लक्ष्मी को दूसरे घर की मर्यादा समझाकर ह्रदय से दूर करता है। ये केवल उस व्यक्ति विशेष को ही प्रभावित नहीं करता है,यह उसके कूल वंश को भी प्रभावित करता है।
शादी के साथ उस लड़की के माता पिता कन्यादान करते हैं, तो इसका यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं है कि वे कन्या को कोई वस्तु समझते हैं और उसे किसी दूसरे व्यक्ति को दान कर दे रहे हैं।
बल्कि माता -पिता द्वारा कन्यादान का अर्थ है पिता की गोत्र से मुक्ति ना कि रक्त मुक्ति...पिता अपने ह्रदय के अंश को स्वयं को जुदा करता है।
कन्यादान शब्द नैतिक मूल्यों के संदर्भ में ज़रूर निम्न है परंतु समाज के रीति-रिवाजों का भी पालन आवश्यक है और यह एक खुशी होती है।
पिता की गोत्र मुक्ति होने पर ही वह अपने होने वाले वर को यह वचन दे पाती है कि उसके कुल की मर्यादा का पालन करेगी,ठीक उसी तरह जिस तरह उसने अपने पिता के घर की मर्यादा रखी।माता के संस्कार कि अपने पति की हर दुविधा में उसके साथ रहेंगी यह सबकुछ कन्यादान का विधान है। वह अपनी संतान को वर्णसंकर कभी नहीं करेगी, क्योंकि कन्या विवाह के बाद कुल वंश के लिये उसे रज् का रजदान करती है और मातृत्व को प्राप्त करती है।
कन्यादान कन्या का अपमान नहीं अपितु ये कन्यामान है। प्राचीन काल में कन्यादान के साथ दहेज प्रथा....समाज की संकीर्ण मानसिकता का जीता जागता उदाहरण था और अफ़सोस का विषय ये है कि आधुनिक युग में शिक्षित वर्ग तक इस कुप्रथा का समर्थन करते है।...नैतिक मूल्यों के ख़िलाफ़ होते हुए भी कुछ रिवाज चलते रहते है और हमें उन्हें स्वीकार करना पड़ता है।
- पूनम
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