2022-06-01 05:55:36
पापा !
पापा !
पापा पर आज तक अपने ही पापा पर लिखता रहा हूँ , या सुनता रहा हूँ , उस पीढ़ी के पापाओं के विषय में !
भूल ही गया था कि ,
मैं भी तो एक पापा हूँ / रहता आया हूँ !
हमेशा सुनता रहता हूँ , पापा के त्याग के विषय में , हमेशा सुनता आया हूँ , उनके जज्बे के बारे में , हमेशा सुनता आया हूँ ,
" उनकी सीमित तनख़्वाह के विषय में ! "
यहाँ से शुरू होती है , " पापा की भूमिका !"
पापा इतने बेचारे क्यों चित्रित किये जाते हैं ,
क्या पापा सच में बेचारे थे या मघईय्या ?
क्या पापा कई बार में हाईस्कूल पास कर सके थे ? क्या पापा कभी खेल के मैदान गये थे ? क्या पापा ने कभी कविता , साहित्य ,संगीत , कला का आनंद लिया ?
क्या पापा सिर्फ़ बोझ ढोते रहे , गधे की तरह और फिर एक दिन , ईश्वर को प्राप्त हुये !
क्या पापा समझ गये थे अपनी अक्षमता , अपनी मजबूरी , अपनी बेचारगी !
नहीं ! मैं न तो , ऐसा पापा हूँ , न ही ऐसे पापाओं से मेरी कोई सहानुभूति है , और न ही कोई सम्मान !
मुझे नहीं अच्छे लगते दुःखी , बेचारे , अवसादग्रस्त पापा , मुझे नहीं अच्छे लगते अशक्त , निरीह पापा !
मुझे अच्छे लगते हैं , वो पापा , जो खिलंदड़े थे , उत्साह से लबरेज़ ! जो सुनाते थे कहानियाँ सफ़ल व्यक्तियों की , जिनके किस्से कभी ख़त्म होने को ही नहीं आते थे , जो देखते थे सपना , खूबसूरत / आकर्षक , अपनी संतान के लिये , और खुद के लिये भी ! पापा जो महफ़िल सजाते थे , पापा जो नायक थे !
मुझे अच्छे लगते हैं , शक्तिमान , सुपुत्र , सक्षम , सफ़ल , सुंदर , सुशिक्षित , स्टाइलिश , स्नेहिल पापा !
मुझे अच्छे लगते हैं पापा , जिनका आश्वस्ति भरा हाथ , मेरे कंधे पर रहा , मेरे सपनों के साकार होने में !
कोशिश करता हूँ , ऐसा पापा बनने की ,
कोशिश करता हूँ , मुझे ऐसे पापा की तरह याद रक्खा जाय !
संजीव
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