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हिंदी मंच - सकारात्मक भाव

टेलीग्राम चैनल का लोगो hindi_manch — हिंदी मंच - सकारात्मक भाव
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श्रेणियाँ: शिक्षा
भाषा: हिंदी
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अगर आप रोजमर्रा की भागम भाग ज़िन्दगी से परेशान हो और आसान उपाय की खोज में हो,
तो हम आपकी दिमाग की थकान का एकदम सटीक इलाज करेंगे,
जी हां हमारे पोस्ट आपको कभी थकान महसूस नहीं होने देंगे, और जीवन में सफल होने के लिए कारगर साबित होंगे।

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नवीनतम संदेश 124

2021-04-17 12:33:27 खौफ के साये में आज हर शख्स जी रहा है

कब जिन्दगी से रूखसती हो जाए सोच के डर रहा है

क्या क्या जोड़ा था पर अब कुछ भी तो काम नहीं आ रहा है

अपनो की परवाह में रात दिन सो भी तो नहीं पा रहा है

कब किस से आखरी मुलाकात हो किसे पता ये भी समझ नही आ रहा है

मौत का आना तो तय था परअभी तो जीना सीख ही रहा है

कितना कुछ बाकी है पर अब सब मुश्किल सा नज़र आ रहा है

जिसका जाना तय है उसे रोकना तो मुनकिन नही है
पर खुदा की मर्जी के बिना पत्ता भी नही हिलता इसी बात पर भरोसा किए जा रहा है

खौफ के साय में हर शख्स जी रहा है

रेणु तिवारी "इति"
319 views09:33
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2021-04-16 20:23:01 चार पन्नो की किताब ...!

बताया गया कि क़िताब चार पन्नो की है अब तक तीन ही पन्ने पलटे जा चुके हैं ..

पहला पन्ना ,

उस दिन मैंने दाढ़ी बनाई ...पहली बार । ऐसा लग रहा था किसी नए द्वार में प्रवेश कर रहा हूँ , बालक से युवा .. पुरूष होने का । दिन में कई बार गाल पर हाथ फेरता रहता , यहाँ आ गयी वहाँ क्यूँ नही आयी ।

मूंछे रख लीं , शायद ताव मारने के लिए .. उन दिनों चंबल के मलखान और मोहर सिंह की तस्वीरें बहुत छपती थी अख़बारों में ।

हालांकि उस वक़्त की फिल्मों के किसी भी कुमार ने ये नही किया , सब पिताजी की उम्र के 'हीरो' थे ।उनकी आँखों में ख़ुशी और गर्व था , बेटा बड़ा हो गया । अपना दाढ़ी का सेट दिया और हिदायतें भी.. रेज़र पकड़ने की !

मेरा कमरा अलग हो चुका था , घर की बहस में बोलने लगा था , माँ को भी जवाब देने शुरू कर दिए थे । अपनी पसंद ना पसंद स्पष्ट होती जा रही थी । पढ़ाई का प्रेशर और घर में रहने का दबाव बढ़ता जा रहा था , दोनों ही पसंद नही आ रहे थे ।

बाहर की दुनिया मुझे बुलाती थी ,बहुत कुछ हो रहा था वहाँ , बहुत ही कुछ । पिताजी सब देख समझ रहे थे , पर माँ आसानी से मुझे बड़ा होने देने , छोड़ने को तैयार ही नहीं हो रही थी । पिताजी मुझे आने वाले समय के लिए तैयार कर रहे थे ,अपने पैरों पर खड़ा होना अपने हाथों से खुद के काम करने के लिए और ख़तरों से सावधान भी ।

दूसरा पन्ना ,

मैं घर छोड़ होस्टल के लिए अकेला ट्रैन में बैठ गया ।

डिब्बे की खिड़की के बाहर पिताजी चिंतित तो थे पर आंखों में माँ जैसे आँसू नही थे । माँ स्टेशन पर आना चाहती थीं , उन्होंने ही रोक दिया , छोड़ दो उसे आँचल के पिंजरे से उड़ने दो उसे अब खुले आसमान में !

आज हिदायत एक ही थी कि आँख कान खुले रखना , तुम्हे खुद को ही टोकना और रोकना भी है और ढालना है और पहचानना भी । जो चीज़ जैसी जहाँ रखोगे , ज़रूरी नही वो वहाँ मिले , गायब भी मिल सकती हैं ।

अब तुम्हे सब तुम्हारे नाम और काम से ही जानेंगे , मेरे बेटे के नाम से नही । हमने पढ़ाया , अब ज़िन्दगी तुम्हे पढ़ाएगी , क्या पढ़ोगे ये तुम्हे तय करना है । .. हम दोनों सीन से निकल रहे हैं । इधर , ट्रेन ने सिटी बजायी और मैं भी निकल पड़ा .... !

तीसरा पन्ना ,

जब मैंने पहली बार हेयर डाई लगाया । अब सड़क पर लोग भाई साहब की जगह चाचा बोलने लगे थे ।काले बालों ने जो कुछ दिया उसका बोझा सर पर रंग ला रहा था , ये अब आख़िर तक साथ देगा ।

काले से सफ़ेद होने तक का सफ़र बेहद उतार चढ़ाव भरा था , कभी दुःख , तकलीफ़ से भरा तो प्यार मनुहार वाला भी । जीवन मे संगिनी आयी, रौनक और बढ़ी , बच्चे भी आ गए !

मुझे रेज़र देने की ज़रूरत नही पड़ी , बेटे ने ही नए जमाने की शेविंग क्रीम और मशीन ला दी । ये सेफ है पापा यूज करिये , उसे फेंकिये फेंक दिया उसीने । उनकी डिमांड्स, बहुत अलग थीं ज़माने के हिसाब से । उनके गाने म्युज़िक , एन्जॉय करने के तऱीके भी एकदम अनजाने ।

रात बेरात आते और कमरा बन्द कर के .. जागते कभी एक कभी दो बज जाते । ख़ैर ,पढ़े लिखे और आगे बढ़ गए । वो बहस नहीं करते थे , बस बाहर निकल , जाते बिना बताए ।

' आप परेशान मत हुआ करिये .. वी विल डिसाइड अवर मैरिज ! ' वही किया भी और बच्चे अपने घोसले बनाने उड़ गए ।

सारी जिम्मेदारियां पूरी करते करते समय आ गया था अगली पायदान पर चढ़ने का जहाँ एक बार फ़िर से बस दो लोग ही रहने वाले थे ।

अब इंतज़ार है चौथे और आख़िरी पन्ने के पलटने का ! आगे लिखा क्या है ? पढूँ तो पता चले... फिर क़िताब बंद कर के सो जाऊँगा !

निरंजन धुलेकर ।
356 views17:23
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2021-04-16 14:40:04
Yor know why i am crying?

Coz , no one like my post....
359 viewsedited  11:40
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2021-04-15 20:21:10
786 views17:21
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2021-04-15 20:20:47
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2021-04-15 05:42:21 नव वर्ष
तेरे नाम...
चिट्ठी लिख रही हूँ मै..
हर सुबह को सुबह ,
और शाम को शाम ,
लिख रही हूँ मै.....
पर रात कि.. बात लिखने में..
बस सो रही हूँ मै...!
दर्द कितने भी बुनो..
इस वर्ष भी तुम..
लेकिन ..
लेकर साथ अपने
तकिया वही पुराना
सो रही हूँ मैं...
दुःख को साथ लेकर
तुमने उगाये..
खिलाये..बाग-उपवन,..
उन्हें सासों में भरकर..
घूट-घूट पी रही हूँ मैं..!
तुम ...वर्ष दर वर्ष बदले
और एक मैं हूँ..
लेकर सासों का खजाना..
हर पल जी रही हूँ मैं...!
ये मैने जाना,
कब कौन रुक जाये..
कब कौन चला जाये
बस एक मोड़ जिंदगी का
सबकुछ बदल जाये...!
सीमाखी
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