2021-04-16 20:23:01
चार पन्नो की किताब ...!
बताया गया कि क़िताब चार पन्नो की है अब तक तीन ही पन्ने पलटे जा चुके हैं ..
पहला पन्ना ,
उस दिन मैंने दाढ़ी बनाई ...पहली बार । ऐसा लग रहा था किसी नए द्वार में प्रवेश कर रहा हूँ , बालक से युवा .. पुरूष होने का । दिन में कई बार गाल पर हाथ फेरता रहता , यहाँ आ गयी वहाँ क्यूँ नही आयी ।
मूंछे रख लीं , शायद ताव मारने के लिए .. उन दिनों चंबल के मलखान और मोहर सिंह की तस्वीरें बहुत छपती थी अख़बारों में ।
हालांकि उस वक़्त की फिल्मों के किसी भी कुमार ने ये नही किया , सब पिताजी की उम्र के 'हीरो' थे ।उनकी आँखों में ख़ुशी और गर्व था , बेटा बड़ा हो गया । अपना दाढ़ी का सेट दिया और हिदायतें भी.. रेज़र पकड़ने की !
मेरा कमरा अलग हो चुका था , घर की बहस में बोलने लगा था , माँ को भी जवाब देने शुरू कर दिए थे । अपनी पसंद ना पसंद स्पष्ट होती जा रही थी । पढ़ाई का प्रेशर और घर में रहने का दबाव बढ़ता जा रहा था , दोनों ही पसंद नही आ रहे थे ।
बाहर की दुनिया मुझे बुलाती थी ,बहुत कुछ हो रहा था वहाँ , बहुत ही कुछ । पिताजी सब देख समझ रहे थे , पर माँ आसानी से मुझे बड़ा होने देने , छोड़ने को तैयार ही नहीं हो रही थी । पिताजी मुझे आने वाले समय के लिए तैयार कर रहे थे ,अपने पैरों पर खड़ा होना अपने हाथों से खुद के काम करने के लिए और ख़तरों से सावधान भी ।
दूसरा पन्ना ,
मैं घर छोड़ होस्टल के लिए अकेला ट्रैन में बैठ गया ।
डिब्बे की खिड़की के बाहर पिताजी चिंतित तो थे पर आंखों में माँ जैसे आँसू नही थे । माँ स्टेशन पर आना चाहती थीं , उन्होंने ही रोक दिया , छोड़ दो उसे आँचल के पिंजरे से उड़ने दो उसे अब खुले आसमान में !
आज हिदायत एक ही थी कि आँख कान खुले रखना , तुम्हे खुद को ही टोकना और रोकना भी है और ढालना है और पहचानना भी । जो चीज़ जैसी जहाँ रखोगे , ज़रूरी नही वो वहाँ मिले , गायब भी मिल सकती हैं ।
अब तुम्हे सब तुम्हारे नाम और काम से ही जानेंगे , मेरे बेटे के नाम से नही । हमने पढ़ाया , अब ज़िन्दगी तुम्हे पढ़ाएगी , क्या पढ़ोगे ये तुम्हे तय करना है । .. हम दोनों सीन से निकल रहे हैं । इधर , ट्रेन ने सिटी बजायी और मैं भी निकल पड़ा .... !
तीसरा पन्ना ,
जब मैंने पहली बार हेयर डाई लगाया । अब सड़क पर लोग भाई साहब की जगह चाचा बोलने लगे थे ।काले बालों ने जो कुछ दिया उसका बोझा सर पर रंग ला रहा था , ये अब आख़िर तक साथ देगा ।
काले से सफ़ेद होने तक का सफ़र बेहद उतार चढ़ाव भरा था , कभी दुःख , तकलीफ़ से भरा तो प्यार मनुहार वाला भी । जीवन मे संगिनी आयी, रौनक और बढ़ी , बच्चे भी आ गए !
मुझे रेज़र देने की ज़रूरत नही पड़ी , बेटे ने ही नए जमाने की शेविंग क्रीम और मशीन ला दी । ये सेफ है पापा यूज करिये , उसे फेंकिये फेंक दिया उसीने । उनकी डिमांड्स, बहुत अलग थीं ज़माने के हिसाब से । उनके गाने म्युज़िक , एन्जॉय करने के तऱीके भी एकदम अनजाने ।
रात बेरात आते और कमरा बन्द कर के .. जागते कभी एक कभी दो बज जाते । ख़ैर ,पढ़े लिखे और आगे बढ़ गए । वो बहस नहीं करते थे , बस बाहर निकल , जाते बिना बताए ।
' आप परेशान मत हुआ करिये .. वी विल डिसाइड अवर मैरिज ! ' वही किया भी और बच्चे अपने घोसले बनाने उड़ गए ।
सारी जिम्मेदारियां पूरी करते करते समय आ गया था अगली पायदान पर चढ़ने का जहाँ एक बार फ़िर से बस दो लोग ही रहने वाले थे ।
अब इंतज़ार है चौथे और आख़िरी पन्ने के पलटने का ! आगे लिखा क्या है ? पढूँ तो पता चले... फिर क़िताब बंद कर के सो जाऊँगा !
निरंजन धुलेकर ।
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