2021-04-30 14:42:21
*नमन महाप्राण*
(मानवता व इंसानियत की मिसाल बने इस देवदूत इंसान महाप्राण नारायण जी को सादर समर्पित मेरी यह कविता। इसे काव्यरुप लघु कथा ही समझे।आइए पढ़े व विचार करें)
ऽ पतंजलि मिश्र
*पावन सी इक कथा, कविता में बताते हैं।*
*इंसानियत है जिंदा जो उसको सुनाते हैं।।*
थी उम्र थोडी ज्यादा, बला का ढेर रखा था।
सांसे कम बची थी ,कोई उलटफेर रखा था।
सामने से बिलखती मां का रूदन सुना
शायद मन में इंसानियत ने घेर रखा था।।
बच जाएं पति उसका, परिवार चल सके।
मैं जी चुका हूं शायद वो आगे निकल सके।
मानवता की इससे बडी मिशाल क्या कहूॅ,
जो अब नहीं जागे शायद पिघल सके।।
उसके लिए तो मानो वरदान हो गए।
आसूॅ को देखकर करूणानिधान हो गए।
बेटी को मनाकर साहस से यू बोले,
अनाथ न हो बच्चे पल में महान हो गए।।
मैं जी चुका हू, चलों मानवता को बचा ले,
देकर के सांसे अपनी वो भगवान हो गए।।
न पहचान थी न तो रिश्ता था कोई।
दिव्यआत्मा हृदय में बसता था कोई।
जीवन लगा के दांव घर को चले गए,
उसके लिए मानो फरिश्ता था कोई।।
बहुतो ने लहू, अंग महज दान दे दिया।
कर्ण जैसा दानी कुंडल कवच दान दे दिया।
मानवता के खातिर बन के देवदूत वो,
इंसानियत बचाने जिंदगी सहज दान दे दिया।।
था इक तमाचा आज की कलाबजारी पर।
कौडियों के दाम बिक रहे हजारी पर।
आपदा के अवसर में लूट मचाने वालो,
अब तो महज मदद बनो इस महामारी पर।।
कलम सिसक रही थी लिख भावुक कहानी को।
उस बूढे प्राण समक्ष झुकी कइयों जवानी को।
देकर यहीं सीख धन्य धरा से चले गये
इंसानियत का पाठ और आखों के पानी को।।
*नर से हुए नारायण ही पूज्य कहाते।*
*पावन सी इक कथा कविता में बताते है।*
*इंसानियत है जिंदा जो उसको सुनाते है।*
रचना-पतंजलि मिश्र, गरियाबंद,
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