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हिंदी मंच - सकारात्मक भाव

टेलीग्राम चैनल का लोगो hindi_manch — हिंदी मंच - सकारात्मक भाव
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चैनल का पता: @hindi_manch
श्रेणियाँ: शिक्षा
भाषा: हिंदी
ग्राहकों: 1.90K
चैनल से विवरण

अगर आप रोजमर्रा की भागम भाग ज़िन्दगी से परेशान हो और आसान उपाय की खोज में हो,
तो हम आपकी दिमाग की थकान का एकदम सटीक इलाज करेंगे,
जी हां हमारे पोस्ट आपको कभी थकान महसूस नहीं होने देंगे, और जीवन में सफल होने के लिए कारगर साबित होंगे।

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नवीनतम संदेश 2

2022-08-29 09:16:03 मैं माफी मांग लूँगी

मिनी की शादी को एक साल हुआ था|
उसके ससुराल मे सास ससुर ,जेठ जेठानी उनके दो बच्चे मिनी और उसके पति रमन थे|
मिनी आज अपने पति रमन के साथ अस्पताल गयीथी,उसकी
एच एस जी जांच होनी थी,वही कराने के लिए वे दोनो अस्पताल
गये थे| वहां काफी भीड़ थी , करीब एक घंटे बाद उसका नम्बर आया ,उसकी जांच हुई ,डॉक्टर ने कुछ जांच और दवाइया लिखी, तो वो दोनो दवाइया वगैरह लेते हुए घर पहुचे
तो देखा कि ससुर जी कमरे मे झाडू लगा रहे थे,सास कुरसी पर और जेठ जी सोफे पर लेटे हुए टीवी देख रहे थे,जेठानी ऊपर अपने कमरे मे थी,उसने सास ससुर के पैर छुए (उसके ससुराल मे नियम था कि बहु घर से कही बाहर जाए और वापस घर आए तो सब बडो के पैर छुए) और अपने कमरे मे आ गयी,कपडे बदलकर थोडा आराम करने के लिए लेट गयी, चूकि एच एस जी एक (अन्दरूनी ) जांच है ,तो उसे दर्द भी हो रहा था थकान भी बहुत थी तो उसने सोचा कि थोड़ा आराम कर लू!
अभी कुछ ही मिनट हुए थे कि रमन कमरे मे आए और बोले कि तुम नीचे से ऐसे ही चली आयी पापा मम्मी बहुत नाराज हो रहे है|
क्योँ क्या हो गया ,मैने तो कुछ किया भी नही! मिनी बोली|
रमन बोले-जब तुम आई तो तुमने देखा कि पापा झाडू लगा रहे है
तो तुम्हे उनसे कहना चाहिए था कि लाइए पापाजी झाडू मै लगा दू,तुम देखकर भी चुपचाप कमरे मे चली आई इस वजह से मम्मी पापा बहुत नाराज है |
इसमे नाराज होने वाली क्या बात है,हम दोनो तो अस्पताल गये थे,और जब लौटकर आए तो पापाजी तो पहले से ही झाडू लगा रहे थे ,मिनी बोली|
चलो कोई बात नही,चलकर मम्मी पापा से माफी मांग लो,
रमन ने कहा|
माफी मागने का सुनकर मिनी का पारा चढ़ गया ,एक तो वो वैसे ही थकान और दर्द से परेशान थी और उसपर ये माफी मांगने की बात ,वो झल्ला उठी |
लेकिन मै माफी किसलिए मांगू ,मिनी बोली|
क्योकि तुम बहु हो और तुम्हारे होते हुए पापा जी झाडू लगाए तुम्हे शोभा नही देता है ,जब तुम आगयी थी तो तुम्हे पापा से बोलना चाहिए था कि दीजिए पापाजी झाडू मै लगा देती हूँ ,रमन बोले|
मिनी बोली- लेकिन पापा झाडू लगा ही क्यो रहे थे,वहां पर मम्मी भी बैठी थी उनके बड़े बेटे भी(जेठ)लेटे हुए थे तो क्या पापाजी
उनसे नही कह सकते थे और फिर दीदी(जेठानी) भी तो अपने
कमरे मे ही थी उनको बोल देते,और आप तो जानते ही है मै कितनी तकलीफ मे हूँ ऐसे मे मैं अस्पताल से आकर तुरन्त काम पर लग जाऊँ |
मुझे कुछ नही सुनना इस बारे मे,मुझे मम्मी ने बोला कि तुम पापा मम्मी से माफी मांगो ,रमन बोले|
तब तो माफी आपको भी मांगनी चाहिए क्योकि आप उनके बेटे है
आप ही पापा से झाडू मांग कर लगा लेते,मिनी ने जवाब दिया|
बहस मत करो,मम्मी ने जैसा कहा है वैसा करो,मुझे और कुछ नही सुनना है इस बारे मे,रमन चिल्ला कर बोले|
मिनी समझ गयी थी कि इनसे बहस करना बेकार ही है ,और बात का बंतगंड़ बनेगा|
वो बोली ठीक है मैं माफी मांग लूँगी और उठकर ससुर जीके पास गयी सास,जेठ भी वही बैठे थे और ये भी वही पहुँच गए थे |
मिनी बोली- पापाजी,मै सब की तरफ से आपसे माफी मांगती हूँ |
मम्मी ,दादाजी(जेठ),दीदी,(जेठानी)मेरे और इनके होते हुए भी आपको झाडू लगानी पडी और हममे से किसी ने भी आप से ये नही कहा कि आप रहने दीजीए हम कर लेंगे |आप हमे माफ कर दीजिए|
मिनी के इस तरह माफी मांगने की किसी को उम्मीद नही थी|
सब एक दूसरे का मुंह देख रहे थे|

स्वरचित

रिंकी श्रीवास्तव

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2022-08-28 20:09:38 उठा है दर्द सीने में, मगर कुछ कह नहीं सकते,
बुरा सा हाल दिल कर है, सनम चुप रह नहीं सकते ll

तेरे दीदार की हसरत हमें हरपल लगी रहती,
जुदाई का बुरा ये दर्द अब हम सह नही सकते।।

.जुबां पर कुछ दिलों मे, कुछ चलन ये अब जमाने का,
तिज़ारत झूठ की होती तभी सच कह नहीं सकते ll

बताना मत किसी को राज वर्ना दर्द हो हासिल,
बताये बिन जहाँ वाले कभी भी रह नहीं सकते ll

बना ले हम नया रस्ता हमें खुद पे भरोसा है,
नदी की धार संग रीनू"कभी हम बह नही सकते।।रीनू""

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2022-08-27 14:55:04 लेन - देन लघुकथा

रेनू और अंजू स्टाफ रूम में बैठी थी। इतने में उनकी सहेली मोनिका स्टाफ रूम में आकर जैसे ही उनके पास सोफे पर बैठी तो एक तरह से फट्ट पड़ी। "ये त्योहार भी क्या पूरा दीवाला ही निकाल देते हैं। राकेश (मोनिका का पति) की दोनों बहने आयी थी। राखी, तीज का इतना कुछ देना पड़ा कि पर्स ही खाली हो गया। ओहो ! क्लास का टाइम हो गया।" कहते हुए उठ कर क्लास के लिए चल पड़ी।

उसके जाते ही रेनू ने अपनी सहेली अंजू से पूछा, " यार तुम कभी लेने देने को लेकर दुखी नही होती? तुम्हारी तो तीन तीन ननदें हैं, कभी मैंने तुम्हे कुछ बोलते नही सुना। आखिर कैसे इतनी शांत और कूल रहती हो।"

"वैरी सिंपल, जो भी रिश्तेदार या मित्र मेरे परिवार के सदस्यों जैसे मुझे, मेरे पति को या बच्चों को कुछ रुपये पैसे देते है। मैं वह सब एक पर्स में डालती रहती हूं। कोई गिफ्ट भी देता है और हम उसका प्रयोग अगर घर में करते हैं, तो जितनी कीमत का वह गिफ्ट होता है, उतने पैसे मैं उस पर्स में डाल देती हूँ। जब देना होता है, चाहे ननदों को या अन्य रिश्तेदारों या मित्रों के यहां तो उसमें से ही देती हूँ। इसलिए जब माँ, भाइयों या किसी और से परिवार को कुछ मिलता है तो फ्री का समझ कर खुश नही होते। जब देते हैं तो दुखी नही होते। बचपन में माँ कहा करती थी, कोई कितना भी दे दे। घर तो अपनी कमाई से ही चलते हैं।" अंजू ने बड़े शांत भाव से प्यारी सी मुस्कान के साथ कहा और उठ कर लाइब्रेरी चल दी।
रेनू सोच रही थी जिस लेन देन को लेकर आधी दुनिया के घरों में कलह मचा रहता है उसे अंजू ने कितने आसान तरीके से सुलझा लिया।

डॉ अंजना गर्ग
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2022-08-27 07:13:53
Morning laughing time

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2022-08-26 14:28:01
कल दिन में एक नए नंबर से कॉल आई
फोन उठाया और कहा:- जी, कहिए
दूसरी तरफ से कोई लड़की थी, बोली:- जी के बच्चे,
सुबह नाश्ते किए बगैर क्यों चले गए ऑफिस:
कितनी बार कहा रात की लड़ाई को सुबह भूल जाया करो लेकिन तुम्हें समझ नहीं आती....
आज तुम आओ तो घर.....ठीक से तुम्हारी तबीयत साफ करती हूं, अगर तुम्हारे बच्चों का ख्याल नहीं होता तो तुम्हें कब की दूर दफा कर चुकी होती

वह अनाप-शनाप बोले जा रही थी और मैं, हक्का बक्का सोच रहा था कि यह कौन मासूम है जो मुझे अपना पति समझ कर मेरी क्लास ले रही है
इधर तो मंगनी का भी दूर दूर तक कोई सीन नजर नहीं आ रहा... .

वोह जरा रुकी तो मैंने कहा:- जी,आपने शायद
गलत नंबर पर क्लास ले ली है लेकिन मैं आपका बहुत
आभारी हूं दो मिनट ही सही लेकिन मुझे शादीशुदा वाली फीलिंग आ गई आपकी कलास से

वो बोली:- मैं भी कोई शादी शुदा नहीं हूं, बस अभी ही मेरी शादी तय हुई है तो मेरी भाभी ने कहा कि तू कोई भी नम्बर डायल कर दिया कर और उधर से मर्द की आवाज सुनकर क्लास ले लिया कर
प्रेक्टिस भी बनी रहेगी और दिल को तसल्ली सी हो जायेगी


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2022-08-26 04:24:53
#सुलगती_भावनाएं

बहुत अकेला हो गया हूं दुनिया की इस भीड़ में
कोई गुल-ए-गुलमोहर अब मेरे गले पड़ती नहीं

हर ओर तनहा, टूटी, प्यार की प्यासी कोमल तिरियां
लिपट मुझसे, सिमट बांहों में, प्यार लुटाती क्यों नहीं

ऐ माहरू! माहजबीं! खूबसूरती का दीदार करने दो
बैठो मेरे पास, हो आलिंगन बद्ध, मुझे प्यार करने दो

पियदस्सी शशि

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2022-08-25 19:26:36 #सिलसिला

खामोशियों में ऐसे ही… तेरी बात होती रहे

बस यादों का यूं…. ही काफिला चलता रहे

वक्त तो गुज़ारा…. तेरे साथ बहुत

बस सिलसिला यूं ही यादों का चलता रहे

किस मोड़ पर फिर से मुलाकात हो

बस सिलसिला फिर से…. प्यार का आगे बढ़ता रहे…

स्वरचित मौलिक रचना...अनीता अरोड़ा

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2022-08-24 20:13:59 बाबूजी

मोहन का आठवीं कक्षा का परिणाम निकला था, वह प्रथम आया था, स्कूल principal ने उसे स्टेज पर बुलाकर पुरस्कार दिया था, और कहा था कि ऐसे मेधावी छात्र कभी कभी ही दिखाई देते है। वह इसी साल हिंदी माध्यम से इंग्लिश में आया था , और आते ही इस बड़े स्कूल में छा गया था, स्पोर्ट्स,डिबेट्स, सब क्षेत्रों में उसने अपनी पहचान बनाई थी, और अब प्रथम आकर उसने सिद्ध कर दिया था , कि परिश्रम से कुछ भी पाया जा सकता है।

मोहन के कान में प्रिंसिपल के शब्द किसी बांसुरी की तान से घुल रहे थे, वह स्कूल से निकलकर बदहवास सा दौड़े जा रहा था , दौड़ते दौड़ते उसे पता ही नहीं चला , कि वह घर पहुंचने की बजाय मॉल पर पहुंच गया जहां बाबूजी साड़ियों की दुकान पर काम करते थे। वह यहां पहले कभी नहीं आया था, बाबूजी की सख्त ताकीद थी , “ मेरी दुकान तेरे स्कूल के पास है , पर वहां कभी नहीं आना। ”

पर आज मोहन इतना खुश था कि उसके पैरों ने सारी पाबंदिया तोड़ डाली थी । वह सोच रहा था आज बाबूजी कितने गर्व से उसे सब लोगों से मिलवाएंगे और लोग कैसे हंस कर कहेंगे , ‘ अरे सरपंचजी आपका बेटा है , फर्स्ट तो उसे आना ही था। ‘ तब वह कैसे बाबूजी कि आँखों में देखकर मंद मंद मुस्काएगा।

परन्तु दुकान पर पहुंचते ही उसके पैर ठिठक गए। उसके ऊँचे कद्दावर बाबूजी , जिन्हें गांव में सब लोग सरपंचजी कहकर आदर देते थे , दो युवतियों के सामने साड़ी बांधे खड़े मुस्करा रहे थे , एक पल के लिए उसे लगा जैसे वह अभी नाचने लगेंगे, घृणा,रोष, लाचारी, सब एकसाथ उसके भीतर भभक उठे , उसकी टांगे शिथिल हो , वहाँ दीवार का सहारा टटोलने लगी। वह दिवार के पीछे छुप गहरी साँस लेने लगा , पहली बार जीवन में उसे अपने दिल की धड़कन हाथ से छूटती लगी ।

स्वयं को थोड़ा संभाल उसने चोर नजरों से फिर से बाबूजी की ओर देखा , अब बाबूजी ट्रे लेकर सबको पानी पिला रहे थे कि इतने में कैश काउंटर पर बैठे युवक ने कहा, “ बेटा पानी मुझे भी पिलाना , और बाबूजी मुस्कराते हुए युवक की ओर बढ़ गए ।

मोहन को उस दिन साउथ एक्सटेंशन और उसके पीछे छिपे अपने गाँव का फर्क समझ में आया , उसे यह भी समझ में आया क्यों उसके प्रिंसिपल ने उसकी इतनी तारीफ करी थी, दिल्ली शहर में बसे यह गाँव , कैसे दोहरी जिंदगी जीते हैं !

वह घर आया, मां ने रिजल्ट के बारे में पूछा तो बता दिया, “ पास हो गया हूँ। ”

खाना खाया और सो गया , रात जब बाबूजी लौटे तो उन्होंने माथे पर हाथ रख कर कहा , “ थक गया लगता है , मेरे लौटने का इंतज़ार भी नहीं किया, पास हो गया , चलो यह बहुत अच्छा हुआ। “

मोहन ने सब सुना और चुपचाप पड़ा रहा , इन नए बाबूजी से अभी उसकी पहचान होनी बाकी थी।

शशि महाजन - लेखिका
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2022-08-24 04:25:27
सच है परंतु कड़वा है....

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