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नवीनतम संदेश 11
2022-04-09 06:13:28
असली यज्ञ, जीवन ही है।
और आग लगातार जल रही है।
तुम्हें उसमें निरंतर अपनी
आहुति देनी है।
655 views03:13
2022-04-09 06:07:40
*
उम्मीदें दुःख का इंतज़ाम हैं;*
*दुःख से ही उठती हैं*
*और दुःख में ही गिरती हैं।*
600 views03:07
2022-04-09 06:07:18
*
अपने-आपको जानने का तरीका*
*ये है कि अपनी हरकतों पर नज़र रखो,*
तुम्हें पता चल जायेगा कि तुम कौन हो। देखो कि आज पूरा दिन
बीता कैसे तुम्हारा,
देखो कहाँ-कहाँ मूर्ख बने
और कहाँ-कहाँ तुमने किसी को
मूर्ख बनाने की चेष्टा की।
देखो कितनी बार अपने वचन पर
कायम नहीं रह पाए हो।
देखो कितनी बार डर
जीत गया है तुमसे।
*
फिर समझ जाओगे कि*
*कितने होश में हो और*
*कितने बेहोशी में हो।*
589 views03:07
2022-04-07 20:31:34
प्रकृति ने
तुम्हें फँसाने के लिए नहीं,
तुम्हें सिखाने के लिए
संसार की रचना की है।
लेकिन हम ऐसे सूरमा हैं कि
जो चीज़ हमको सिखाने के लिए
भी दी जाती है, हम उसमें भी
फँसने के तरीके खोज लेते हैं।
602 views17:31
2022-04-07 20:27:20
584 views17:27
2022-04-06 18:45:55
आत्मा ना ज्ञानी को मिलती है,
ना भक्त को मिलती है,
ना भांति-भांति के अनुष्ठान
करने वाले को मिलती है,
ना बड़े पुण्य
करने वाले को मिलती है।
आत्मा उसको मिलती है
जो आत्मा का चयन करता है।
622 views15:45
2022-02-28 19:11:04
जीवन को मैराथन समझो,
दूरी बहुत लंबी भी है
और समय भी कम-से-कम
लगना चाहिए क्योंकि
प्रतिस्पर्धी हैं।
बहुत सारे प्रतिस्पर्धी नहीं हैं
एक ही है उसका नाम है
मौत।
मंज़िल पर तुम पहले पहुँचते हो
या मौत पहले पहुँच कर जीत जाती है,
सारा खेल इसी बात का है।
86 views16:11
2022-02-26 14:21:26
जब तक आदमी के जीवन में
गहराई नहीं आएगी
वो या तो शोषण करता रहेगा
या शोषण सहता रहेगा।
आदमी हो चाहे औरत,
ज़िंदगी में गहराई,
समझ में ऊँचाई और
अध्यात्म का ज्ञान
दोनों के लिए बराबर ज़रूरी है।
ना शोषक होना सही है
ना शोषण सहना सही है।
206 views11:21
2022-02-24 14:46:41
"आफ़तों में मज़ा लेना सीखना चाहते हैं?" मुक्ति की असली कुंजी इसी में है, ज़रूर पढ़ें!
सूरा के मैदान में, कायर फंदा आय।
ना भाजै न लडि़ सकै, मन ही मन पछिताय॥
~ संत कबीर
ये सूरा का मैदान है। इस मैदान का मज़ा वही लेते हैं जो शूर होते हैं। जिसने आफ़तों में मज़ा लेना सीख लिया है, वही इस जन्म का आनंद उठा पाते हैं।
सुना होगा आपने, ‘वीर भोग्या वसुंधरा’, जीवन को भोगते ही वही हैं जो वीर हैं।
इन्हीं को कबीर साहब सूरमा कह रहे हैं। ये सूरा का मैदान है, इसमें कायर का क्या काम है?
यहाँ तो कायर बस फँस-सा गया है। यहाँ तो उसको लगातार यही लगता रहेगा कि उफ़ क्यों जन्म ले लिया, क्यों जीवन में फँस गया और जिस दिन वो मरेगा उस दिन बड़ी शान्ति का अनुभव करेगा। कहेगा, "बाप रे बाप, फँस गया था, पता है, ज़िंदगी मिल गयी थी; चालीस-पचास साल, अस्सी साल, फँसा रहा, अब जाकर मुक्ति मिली है!"
और इसी कारण आपने देखा होगा कि अक़्सर लोग मृत्यु की कामना करते हैं, और यही कहते हैं, "मुक्ति मिले किसी तरीके से", ये वही हैं – कायर। इन्हें इस मैदान में कोई आनंद नहीं है।
कबीर साहब के पास एक बार कोई आया और कहने लगा कि अब तो मरने वाला हूँ, अब मुक्ति मिल जाएगी, अब तर जाऊँगा।
कबीर साहब ने कहा, "जीयत ना तरे, मरे का तरिहो", ज़िंदा थे तब मुक्ति नहीं मिली, मर के कौन-सी मुक्ति मिल जानी है तुम्हें?
तुम फँसे ही रहोगे। इसी को चौरासी का चक्र कहा गया है कि तुम फँसे ही रहोगे इस चक्र में।
बात सांकेतिक है, लेकिन मर्म ज़रूरी है: एक के बाद एक जन्म होते रहते हैं और मुक्ति नहीं मिलती। पर इसका अर्थ यही है कि तुम फँसे ही रहोगे क्योंकि इसके बाहर कुछ है नहीं। जिसने इसका आनंद लेना सीख लिया, वो मुक्त हो गया, और जो इसको सिर्फ झेल रहा है, वही फँसा हुआ है। मुक्ति और कुछ नहीं है।
जिसको जीवनमुक्त कहा गया है भारत में, उस जीवनमुक्त का ये नहीं अर्थ है कि अब वो देहधारी ही नहीं है कि अब वो जीव नहीं रहा। जीवन-मुक्त का अर्थ इतना ही है कि अब जीवन उसके लिए मात्र मुक्ति और आनंद है, यही अर्थ है जीवनमुक्त का।
जिसके लिए जीवन मुक्ति हो गया, जिसके लिए जीवन आनंद हो गया, सो जीवन-मुक्त। और जिसके लिए जीवन सिर्फ पीड़ा है, कष्ट है, विपदा है, वो ही कायर है, वो ही फँसा हुआ है।
121 views11:46
2022-02-17 09:24:19
*"God knows you from inside."*
*"Don't worry about world which knows you from outside."*
133 views06:24