Get Mystery Box with random crypto!

Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)

टेलीग्राम चैनल का लोगो bhagwat_geetakrishn — Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता) B
टेलीग्राम चैनल का लोगो bhagwat_geetakrishn — Bhagavad Gita (श्रीमद्भगवद्गीता)
चैनल का पता: @bhagwat_geetakrishn
श्रेणियाँ: धर्म
भाषा: हिंदी
ग्राहकों: 4.63K
चैनल से विवरण

Hindu Devotional Channel

Ratings & Reviews

2.00

2 reviews

Reviews can be left only by registered users. All reviews are moderated by admins.

5 stars

0

4 stars

0

3 stars

0

2 stars

2

1 stars

0


नवीनतम संदेश 10

2022-06-01 21:32:49 He who is overly attached to his family members experiences fear and sorrow, for the root of all grief is attachment. Thus one should discard attachment to be happy.

वह जो अपने परिवार से अत्यधिक जुड़ा हुआ है, उसे भय और चिंता का सामना करना पड़ता है, क्योंकि सभी दुखों कि जड़ लगाव है. इसलिए खुश रहने कि लिए लगाव छोड़ देना चाहिए.

सीताराम राधेकृष्ण हर हर महादेव

@bhagwat_geetakrishn
76 viewssudhir Mishra, 18:32
ओपन / कमेंट
2022-06-01 20:36:12
112 viewssudhir Mishra, 17:36
ओपन / कमेंट
2022-06-01 08:38:04
शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जगवंदन॥

आप शंकर के अवतार है। सारी संपत्ति आपकी ही तो है, तभी तो आप की उपासना सारा संसार करता है।

जय_श्रीराम
जय_वीर_हनुमान
हर_हर_महादेव
264 viewssudhir Mishra, 05:38
ओपन / कमेंट
2022-06-01 07:37:21 प्रियवाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः
तस्मात तदैव वक्तव्यम वचने का दरिद्रता।।

प्रिय वाक्य बोलने से सभी जीव संतुष्ट हो जाते हैं, अतः प्रिय वचन ही बोलने चाहिए। ऐसे वचन बोलने में कंजूसी कैसी।
264 viewssudhir Mishra, 04:37
ओपन / कमेंट
2022-05-31 15:04:49 श्रीमद्भागवत गीता

अध्याय ५ - कर्म सन्यास योग

(सांख्य-योग और कर्म-योग के भेद)

अर्जुन ने कहा - हे कृष्ण! कभी आप सन्यास-माध्यम (सर्वस्व का न्यास=ज्ञान योग) से कर्म करने की और कभी निष्काम माध्यम से कर्म करने (निष्काम कर्म-योग) की प्रशंसा करते हैं, इन दोनों में से एक जो आपके द्वारा निश्चित किया हुआ हो और जो परम-कल्याणकारी हो उसे मेरे लिये कहिए।

श्री भगवान ने कहा - सन्यास माध्यम से किया जाने वाला कर्म (सांख्य-योग) और निष्काम माध्यम से किया जाने वाला कर्म (कर्म-योग), ये दोनों ही परमश्रेय को दिलाने वाला है परन्तु सांख्य-योग की अपेक्षा निष्काम कर्म-योग श्रेष्ठ है।

हे महाबाहु! जो मनुष्य न तो किसी से घृणा करता है और न ही किसी की इच्छा करता है, वह सदा संन्यासी ही समझने योग्य है क्योंकि ऎसा मनुष्य राग-द्वेष आदि सभी द्वन्द्धों को त्याग कर सुख-पूर्वक संसार-बंधन से मुक्त हो जाता है।

अल्प-ज्ञानी मनुष्य ही "सांख्य-योग" और "निष्काम कर्म-योग" को अलग-अलग समझते है न कि पूर्ण विद्वान मनुष्य, क्योंकि दोनों में से एक में भी अच्छी प्रकार से स्थित पुरुष दोनों के फल-रूप परम-सिद्धि को प्राप्त होता है।

जो ज्ञान-योगियों द्वारा प्राप्त किया जाता है, वही निष्काम कर्म-योगियों को भी प्राप्त होता है, इसलिए जो मनुष्य सांख्य-योग और निष्काम कर्म-योग दोनों को फल की दृष्टि से एक देखता है, वही वास्तविक सत्य को देख पाता है।

 हे महाबाहु! निष्काम कर्म-योग (भक्ति-योग) के आचरण के बिना (संन्यास) सर्वस्व का त्याग दुख का कारण होता है और भगवान के किसी भी एक स्वरूप को मन में धारण करने वाला "निष्काम कर्म-योगी" परब्रह्म परमात्मा को शीघ्र प्राप्त हो जाता है।

@bhagwat_geetakrishn
356 viewssudhir Mishra, 12:04
ओपन / कमेंट
2022-05-31 07:57:03 यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्।
एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति।।

जैसे एक पहिये से रथ नहीं चल सकता। ठीक उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है।
335 viewssudhir Mishra, 04:57
ओपन / कमेंट
2022-05-30 21:40:46 जब तक मनुष्य स्त्री को मां और लड़की को बहन नहीं समझेगा जब तक उसके मन में पाप ही रहेगा।
34 viewssudhir Mishra, 18:40
ओपन / कमेंट
2022-05-30 21:40:21
पूछते हैं मुझसे लोग,,,
क्यूं मेरी हर सांस राम_राम कहती है...
वो क्या जाने कि राम वो वजूद है,,,
जिसमें मेरी रूह रहती है...
34 viewssudhir Mishra, edited  18:40
ओपन / कमेंट
2022-05-30 21:39:02 शिव_की_तीसरी_आंख

शिव को हमेशा त्रयंबक कहा गया है, क्योंकि उनकी एक तीसरी आंख है। तीसरी आंख का मतलब यह नहीं है कि किसी के माथे में दरार पड़ी और वहां कुछ निकल आया! इसका मतल‍ब सिर्फ यह है कि बोध या अनुभव का एक दूसरा आयाम खुल गया है। दो आंखें सिर्फ भौतिक चीजों को देख सकती हैं। अगर मैं अपना हाथ उन पर रख लूं, तो वे उसके परे नहीं देख पाएंगी। उनकी सीमा यही है। अगर तीसरी आंख खुल जाती है, तो इसका मतलब है कि बोध का एक दूसरा आयाम खुल जाता है जो कि भीतर की ओर देख सकता है। इस बोध से आप जीवन को बिल्कुल अलग ढंग से देख सकते हैं। इसके बाद दुनिया में जितनी चीजों का अनुभव किया जा सकता है, उनका अनुभव हो सकता है। आपके बोध के विकास के लिए सबसे अहम चीज यह है – कि आपकी ऊर्जा को विकसित होना होगा और अपना स्तर ऊंचा करना होगा। योग की सारी प्रक्रिया यही है कि आपकी ऊर्जा को इस तरीके से विकसित किया जाए और सुधारा जाए कि आपका बोध बढ़े और तीसरी आंख खुल जाए। तीसरी आंख दृष्टि की आंख है। दोनों भौतिक आंखें सिर्फ आपकी इंद्रियां हैं। वे मन में तरह-तरह की फालतू बातें भरती हैं क्योंकि आप जो देखते हैं, वह सच नहीं है। आप इस या उस व्यक्ति को देखकर उसके बारे में कुछ अंदाजा लगाते हैं, मगर आप उसके अंदर शिव को नहीं देख पाते। आप चीजों को इस तरह देखते हैं, जो आपके जीवित रहने के लिए जरूरी हैं। कोई दूसरा प्राणी उसे दूसरे तरीके से देखता है, जो उसके जीवित रहने के लिए जरूरी है। इसीलिए हम इस दुनिया को माया कहते हैं। माया का मतलब है कि यह एक तरह का धोखा है। इसका मतलब यह नहीं है कि अस्तित्व एक कल्पना है।
36 viewssudhir Mishra, 18:39
ओपन / कमेंट
2022-05-30 21:37:01
जो मनुष्य मान-प्रतिष्ठा और मोह से मुक्त है तथा जिसने सांसारिक विषयों में लिप्त मनुष्यों की संगति को त्याग दिया है, जो निरन्तर परमात्म स्वरूप में स्थित रहता है, जिसकी सांसारिक कामनाएँ पूर्ण रूप से समाप्त हो चुकी है और जिसका सुख-दुःख नाम का भेद समाप्त हो गया है ऎसा मोह से मुक्त हुआ मनुष्य उस अविनाशी परम-पद (परम-धाम) को प्राप्त करता हैं।
36 viewssudhir Mishra, 18:37
ओपन / कमेंट