2022-06-17 17:50:00
दशकों में देशी-विदेशी फंड और विलासिताओं से सींचकर तैयार हुआ एकोसिस्टम सुनियोजित योजनाबद्ध तरीके से सरकार के प्रत्येक कदम के विरोध में उग्र हिंसक प्रतिक्रिया देकर सरकार और आम जनमानस के अंदर भय व् असुरक्षा का संचार करने में जुटा हुआ है और उनके हाथों की कठपुतलियां और मुफ्त के टट्टू है हमारे देश में प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले बुद्धिविहिन दोपाए जंतुओं की भीड़ और उनके रीजनल कमांडर है विभिन्न क्षेत्रों में अपना दबदबा बनाये बैठे शिक्षा, कृषि, राजनीतिक, कानून और मीडिया माफिया, राजनीतिक कैडर और आइडियोलोजिकल कवर देने वाले हैं सम्भ्रांत लेफ्ट लिबरल कबाल,
ध्यान देने का विषय है कि जिस प्रकार की भीड़ वाली हिंसा, दंगे लूटपाट व् आगजनी के दृश्य पहले 7-8वर्षों में एक आध बार दिखा करते थे, वे प्रतिवर्ष फिर हर अर्ध वार्षिक, फिर तिमाही, फिर प्रतिमाह और अब हर दो सप्ताह बाद दिखने लगे हैं,
बहाने अलग अलग चुने जाते हैं किंतु मोड्स ओपरेन्डाई और प्रतिक्रिया एक ही होती है, अचानक से किसी विषय पर प्रोटेस्ट के नाम पर हजारों की भीड़ का आना, पत्तरबाजी करना, सरकारी संपत्ति, निजी वाहनों, बिल्डिंगों, दुकानों की संपत्तियों को लूटना, तोड़ना-फोड़ना और आग लगा देना,
एजेंडा क्लियर होता है प्रोटेस्ट के नाम पर आम जनमानस को अधिक से अधिक परेशानी देने के उद्देश्य से रोड ब्लॉक कर उसे काम, शिक्षा व मेडिकल सम्बंधित आवश्यकताओं की पूर्ति से वंचित करना, रेल व् अन्य ट्रांसपोर्ट के साधनों पर आक्रमण कर हानि पहुंचाना और सरकारी ऑफिसों और थानों पर हमला,
इतने कम समय मे, एक ही दिन, लगभग एक ही समय, इतने बड़े देश के विभिन्न शहरोँ में इस प्रकार की उत्पत्ति भीड़ को बार बार इस प्रकार मोबलाइज़ करवाना और हिंसा आगजनी करवाना कोई अचानक घटने वाला सहयोग नहीं है और न ही ये मुट्ठी भर अल्हड़ बुद्धि वाले टटपुँजियों के बस की बात है, बल्कि इसके पीछे कई सॉफिस्टिकेटेड और कुटिल मस्तिष्कों का योगदान है जो दुर्भाग्य से पूरी तरह रिसोर्सफुल भी है,
इस प्रकार के स्ट्रीट वायलेंस से न केवल आम जनमानस में भय का भाव व्याप्त होता है बल्कि सरकारों, सत्ता, शासन, पुलिस, कानून व्यवस्था और न्यायपालिका और पूरे सिस्टम से भी जनता का विश्वास निरन्तर कम होने लगता है, जो आगे चल भयावाह परिस्थितियों का निर्माण कर देता है,
उस विषम परिस्थिति का निर्माण होने देने को रोकने का सर्वोत्तम उपाय है जनमानस के समक्ष ऐसे उत्पातियों की दुर्गति करना और फिर पूरी क्षमता से उसे प्रचारित प्रसारित करना,
जिससे की इस इकोसिस्टम को सरलता से मिलने वाली मुढ़ दोपाये जीवों की भीड़ के मन मस्तिष्क में उद्दंडता के बाद मिलने वाले दंड का भय इतना घर कर जाए की वे कानून को हाथ में लेने से पूर्व जिन्होंने पूर्व में ऐसा कृत्य किया था उनका परिणाम याद कर ही भयाक्रांत हो जाएं,
कुछ उपाय जो किये का सकते हैं वह हैं, हर जिले की पुलिस लाइन में 3-4 आर्मर्ड वेहिकल्स की तैनाती जिससे उत्पाती भीड के बीच फोर्सेज को सुरक्षित भेजा जा सके, मोब वायलेंस की परिस्थितियों में पैलेट गन का खुलकर प्रयोग, हर बड़े शहर की पुलिस के पास एक पुलिस चॉपर जिससे न केवल शहर में अपितु निकटवर्ती जिलों में ना केवल परिस्थिति पर दृष्टि रखी जा सके अपितु परिस्थिति बिगड़ने पर पेलेट्स, रबर बुलेट्स, टियर गैस, चिली ग्रेनेड अथवा असली बुलेट्स का प्रयोग कर उत्पति उन्मादी भीड को रोका जा सके,
यह भीड़तंत्र और मोब् वॉयलेन्स ही उस इकोसिस्टम का वो हथियार है जिसके बिना यह इकोसिस्टम पर्दे के पीछे रहकर भी अव्यवस्था फैलाने का अपने सामर्थ्य खो देगा
जिसके लिए आवश्यक है कि प्रोटेस्ट के नाम पर हिंसा, आगजनी, दंगे, लूटपाट, मारकाट,और पब्लिक प्रॉपर्टी को हानि पहुंचाने वालों और ऐसी हरकतों के लिए उकसाने वालों के
राशन कार्ड, आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड, ड्राइविंग लाइेंस, पासपोर्ट रद्द कर
उनके बैंक खाते फ्रिज कर उनकी सभी चल-अचल सम्पत्तियां जब्त कर
सभी सरकारी शिक्षण संस्थानों, सरकारी नौकरीयों, सरकारी योजनाओं, समस्त सब्सिडियों के लाभ से उन्हें प्रतिबन्धित कर
बिजली कनेक्शन, पानी कनेक्शन, गैस कनेक्शन, टेलीफोन-मोबाइल कनेक्शन, तथा 10 हजार से अधिक मूल्य की कोई भी वस्तु तथा सम्पत्ति क्रय विक्रय करने के अधिकारों से उन्हें पूर्णतः वंचित कर
ट्रेन तथा हवाई जहाज में इनके यात्रा करने पर विधिवत कानूनी रूप से प्रतिबंध लगाया जाए अन्यथा इन मूर्खों का प्रोटेस्ट के नाम पर हिंसा का ये नंगा नाच अनवरत चलता रहेगा और इन पगलैठों की भीड़ का इस्तेमाल कर वह इकोसिस्टम भारत को एनार्की और ग्रह युद्ध के मुहाने पर धकेलता चला जायेगा।
भय बिन होई ना प्रीत गोसाईं....
Rohan Sharma
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