2021-06-28 18:46:17
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हिंदी नवरत्न’ का प्रकाशन संवत 1967 (सन 1910) में हुआ,जिसके लेखक मिश्रबंधु थे|मिश्रबंधु से तात्पर्य उन तीन भाइयों से है, जिनका नाम गणेश बिहारी मिश्र,श्याम बिहारी मिश्र और शुकदेव बिहारी मिश्र था| ये तीनों हिंदी में मिश्र बंधु नाम से प्रसिद्ध हुए और इसी नाम से उन्होंने हिंदी में अनेक ग्रंथों की रचना की| हिंदी नवरत्न के लेखक के रूप में मिश्र बंधु ही छपा है,लेकिन दूसरे पृष्ठ पर ‘मिश्रबंधु’ के नीचे गणेश बिहारी मिश्र और शुकदेव बिहारी मिश्र का नाम छपा है| इससे पता चलता है कि ‘नवरत्न’ के लेखक यही दोनों भाई हैं|
‘हिंदी नवरत्न’ में लम्बी भूमिका के बाद
नौ अध्याय हैं, जिनमे मध्यकाल से लेकर आधुनिक काल तक के एक-एक कवि को रखा गया है| क्रम इस प्रकार है:
1-गोस्वामी तुलसीदास, 2-महात्मा सूरदास,3-महाकवि देवदत्त (देव), 4-महाकवि बिहारीलाल,5-त्रिपाठी-बंधु: (क)महाकवि भूषण त्रिपाठी, (ख)महाकवि मतिराम त्रिपाठी,6-महाकवि केशवदास , 7-महात्मा कबीरदास,8-महाकवि चंदबरदाई , 9-भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र | यहाँ कवियों का क्रम काल क्रमानुसार नहीं रखा गया है|
मिश्र बंधुओं ने अपनी काव्य-धारणा के अनुसार कवियों की गुणवत्ता को ध्यान में रखकर यह क्रम बनाया है | इसमें कबीरदास और सूरदास के नाम के आगे ‘महात्मा’ विशेषण है तो कुछ कवियों के नाम के आगे महाकवि| तुलसीदास और भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाम के आगे लोक प्रचलित पद रहने दिया गया है|
’हिंदी नवरत्न” में कवियों का जीवन चरित,ग्रन्थ परिचय,रचना विवेचन,काव्यांशों के उदहारण आदि बातें दी गयीं हैं | हिंदी आलोचना के विकास में अब इस पुस्तक का ऐतिहासिक महत्व भर है |
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ में ‘हिंदी नवरत्न’पर टिप्पणी करते हुए लिखा है: ‘कवियों का बड़ा भरी इतिवृत्त संग्रह (मिश्रबंधु विनोद) तैयार करने के पहले मिश्रबन्धुओं ने ‘हिंदी नवरत्न’ नामक समालोचनात्मक ग्रन्थ निकाला था जिसमें सबसे बढ़कर नई बात यह थी कि ‘देव’ हिंदी के सबसे बड़े कवि हैं|हिंदी के पुराने कवियों को समालोचना के लिए सामने लाकर मिश्रबंधुओं ने बेशक जरुरी काम किया |उनकी बातें समालोचना कहीं जा सकतीं हैं या नहीं ,यह दूसरी बात है|”
मिश्र बंधुओं ने ‘हिंदी नवरत्न’ में तुलसीदास , देव, बिहारी, आदि का जो मूल्याङ्कन किया है ,वह हिंदी समाज को मान्य नहीं हुआ|
शुक्ल जी ने ‘हिंदी नवरत्न’ की कड़ी आलोचना करते हुए लिखा है: ‘.........दैन्य भाव की उक्तियों को लेकर तुलसीदास जी खुशामदी कहे गए हैं| ‘देव’ को बिहारी से बड़ा सिद्ध करने के लिए बिना दोष के दोष ढूंढे गए हैं |.....इसी प्रकार की बेसिर पैर की बातों से पुस्तक भरी है|कवियों की विशेषताओं के मार्मिक निरूपण की आशा में जो इसे खोलेगा,वह निराश ही होगा’ |‘
हिंदी नवरत्न’ के अनुसार तुलसीदास सबसे बड़े कवि हैं,सूर का स्थान दूसरा है और देव तीसरे स्थान पर आतें हैं| मिश्रबंधु लिखते हैं : ‘...भाषा-साहित्य में सूरदास,तुलसीदास और देव,ये सर्वोच्च तीन कवि हैं| इनमें न्यूनाधिक बतलाना मत-भेद से खाली नहीं है| ...हम लोगों का अब यह मत है कि
हिंदी में तुलसीदास सर्वोत्कृष्ट कवि हैं|उन्हीं के पीछे सूरदास का नंबर आता है,और तब देव का|”
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