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Jeevan Ki Anmol Nidhi

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Dev Chandel
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नवीनतम संदेश 4

2022-10-06 05:11:19 *उपदेश *

एक बार एक स्वामी जी भिक्षा माँगते हुए एक घर के सामने खड़े हुए और उन्होंने आवाज लगायी,

भिक्षा दे दे माते !!

घर से महिला बाहर आयी। उसने उनकी झोली मे भिक्षा डाली और कहा,

“महात्माजी, कोई उपदेश दीजिए!”

स्वामीजी बोले, “आज नहीं, कल दूँगा। कल खीर बना के देना।”

दूसरे दिन स्वामीजी ने पुन: उस घर के सामने आवाज दी – भिक्षा दे दे माते!!

उस घर की स्त्री ने उस दिन खीर बनायीं, जिसमे बादाम-पिस्ते भी डाले थे।

वह खीर का कटोरा लेकर बाहर आयी।

स्वामी जी ने अपना कमंडल आगे कर दिया।

वह स्त्री जब खीर डालने लगी, तो उसने देखा कि कमंडल में गोबर और कूड़ा भरा पड़ा है। उसके हाथ ठिठक गए।

वह बोली, “महाराज ! यह कमंडल तो गन्दा है।”

स्वामीजी बोले, “हाँ, गन्दा तो है, किन्तु खीर इसमें डाल दो।”

स्त्री बोली, “नहीं महाराज, तब तो खीर ख़राब हो जायेगी। दीजिये यह कमंडल, में इसे शुद्ध कर लाती हूँ।”

स्वामीजी बोले, मतलब जब यह कमंडल साफ़ हो जायेगा, तभी खीर डालोगी न ?”

स्त्री ने कहा : “जी महाराज !”

स्वामीजी बोले, “मेरा भी यही उपदेश है।

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मन में जब तक चिन्ताओ का कूड़ा-कचरा और बुरे संस्करो का गोबर भरा है, तब तक उपदेशामृत का कोई लाभ न होगा।

यदि उपदेशामृत पान करना है, तो प्रथम अपने मन को शुद्ध करना चाहिए,

कुसंस्कारो का त्याग करना चाहिए, तभी सच्चे सुख और आनन्द की प्राप्ति होगी।



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2022-10-06 03:22:47 दान का महत्व

एक बार की बात है कि श्री कृष्ण और अर्जुन कहीं जा रहे थे।

रास्ते में अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा कि प्रभु – एक जिज्ञासा है  मेरे मन में, अगर आज्ञा हो तो पूछूँ ?

श्री कृष्ण ने कहा – अर्जन, तुम मुझसे बिना किसी हिचक, कुछ भी पूछ सकते हो।

तब अर्जुन ने कहा कि मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई है कि दान तो मै भी बहुत करता हूँ परंतु सभी लोग कर्ण को ही सबसे बड़ा दानी क्यों कहते हैं ?

यह प्रश्न सुन श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले कि आज मैं तुम्हारी यह जिज्ञासा अवश्य शांत करूंगा।

श्री कृष्ण ने पास में ही स्थित दो पहाड़ियों को सोने का बना दिया।

इसके बाद वह अर्जुन से बोले कि हे अर्जुन इन दोनों सोने की पहाड़ियों को तुम आस पास के गाँव वालों में बांट दो।

अर्जुन प्रभु से आज्ञा ले कर तुरंत ही यह काम करने के लिए चल दिया।

उसने सभी गाँव वालों को बुलाया।

उनसे कहा कि वह लोग पंक्ति बना लें अब मैं आपको सोना बाटूंगा और सोना बांटना शुरू कर दिया।

गाँव वालों ने अर्जुन की खूब जय जयकार करनी शुरू कर दी।

अर्जुन सोना पहाड़ी में से तोड़ते गए और गाँव वालों को देते गए।

लगातार दो दिन और दो रातों तक अर्जुन सोना बांटते रहे।

उनमे अब तक अहंकार आ चुका था।

गाँव के लोग वापस आ कर दोबारा से लाईन में लगने लगे थे।

इतने समय पश्चात अर्जुन काफी थक चुके थे।

जिन सोने की पहाड़ियों से अर्जुन सोना तोड़ रहे थे, उन दोनों पहाड़ियों के आकार में जरा भी कमी नहीं आई थी।

उन्होंने श्री कृष्ण जी से कहा कि अब  मुझसे यह काम और न हो सकेगा। मुझे थोड़ा विश्राम चाहिए।

प्रभु ने कहा कि ठीक है तुम अब विश्राम करो और उन्होंने कर्ण बुला लिया।

उन्होंने कर्ण से कहा कि इन दोनों पहाड़ियों का सोना इन गांव वालों में बांट दो।

कर्ण तुरंत सोना बांटने चल दिये।

उन्होंने गाँव वालों को बुलाया और उनसे कहा – यह सोना आप लोगों का है , जिसको जितना सोना चाहिए वह यहां से ले जाये।

ऐसा कह कर कर्ण वहां से चले गए।

यह देख कर अर्जुन ने कहा कि ऐसा करने का विचार मेरे मन में क्यों नही आया?

श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को शिक्षा

इस पर श्री कृष्ण ने जवाब दिया कि तुम्हे सोने से मोह हो गया था।
तुम खुद यह निर्णय कर रहे थे कि किस गाँव वाले की कितनी जरूरत है।

उतना ही सोना तुम पहाड़ी में से खोद कर उन्हे दे रहे थे।

तुम में दाता होने का भाव आ गया था।

दूसरी तरफ कर्ण ने ऐसा नहीं किया। वह सारा सोना गाँव वालों को देकर वहां से चले गए। वह नहीं चाहते थे कि उनके सामने कोई उनकी जय जयकार करे या प्रशंसा करे। उनके पीठ पीछे भी लोग क्या कहते हैं उस से उनको कोई फर्क नहीं पड़ता।

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यह उस आदमी की निशानी है जिसे आत्मज्ञान हांसिल हो चुका है।
इस तरह श्री कृष्ण ने खूबसूरत तरीके से अर्जुन के प्रश्न का उत्तर दिया, अर्जुन को भी अब अपने प्रश्न का उत्तर मिल चुका था।

सार

दान देने के बदले में धन्यवाद या बधाई की उम्मीद करना भी उपहार नहीं सौदा कहलाता है।
यदि हम किसी को कुछ दान या सहयोग करना चाहते हैं तो हमे यह बिना किसी उम्मीद या आशा के करना चाहिए, ताकि यह हमारा सत्कर्म हो, न कि हमारा अहंकार!!



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2022-10-05 05:20:42 *जानवर*

एक राजा था | उसका मंत्री बहुत बुद्धिमान था | एक बार राजा ने अपने मंत्री से प्रश्न किया – “ मंत्री जी! भेड़ों और कुत्तों की पैदा होने कि दर में तो कुत्ते भेड़ों से बहुत आगे हैं, लेकिन भेड़ों के झुंड के झुंड देखने में आते हैं और कुत्ते कहीं-कहीं एक आध ही नजर आते है | इसका क्या कारण हो सकता है ?”

मंत्री बोला – “ महाराज! इस प्रश्न का उत्तर आपको कल सुबह मिल जायेगा |” 

राजा के सामने उसी दिन शाम को मंत्री ने एक कोठे में बिस कुत्ते बंद करवा दिये और उनके बीच रोटियों से भरी एक टोकरी रखवा दी |”

दूसरे कोठे में बीस भेड़े बंद करवा दी और चारे की एक टोकरी उनके बीच में रखवा दी | दोनों कोठों को बाहर से बंद करवाकर, वे दोनों लौट गये |

सुबह होने पर मंत्री राजा को साथ लेकर वहां आया | उसने पहले कुत्तों वाला कोठा खुलवाया | राजा को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि बीसो कुत्ते आपस में लड़-लड़कर अपनी जान दे चुके हैं और रोटियों की टोकरी ज्यों की त्यों रखी है | कोई कुत्ता एक भी रोटी नहीं खा सका था |

इसके पश्चात मंत्री राजा के साथ भेड़ों वाले कोठे में पहुंचा | कोठा खोलने के पश्चात राजा ने देखा कि बीसो भेड़े एक दूसरे के गले पर मुंह रखकर बड़े ही आराम से सो रही थी और उनकी चारे की टोकरी एकदम खाली थी |

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मंत्री राजा से बोला – महाराज! कुत्ते एक भी रोटी नहीं खा सके तथा आपस में लड़-लड़कर मर गये | उधर भेड़ों ने बड़े ही प्रेम से मिलकर चारा खाया और एक दूसरे के गले लगकर सो गयी | यही कारण है, कि भेड़ों के वंश में  वृद्धि है | समृद्धि है | उधर कुत्ते हैं, जो एक-दूसरे को सहन नहीं कर सकते | जिस बिरादरी में इतनी घृणा तथा द्वेष होगा | उसकी वृद्धि भला कैसे हो सकती है |

राजा मंत्री की बात से पूरी तरह संतुष्ट हो गया | उसने उसे बहुत-सा पुरस्कार दिया | वह मान गया था, कि आपसी प्रेम तथा भाईचारे से ही वंश वृद्धि होती है।

वह मान गया कि वास्तव में एकता द्वारा कुछ भी कार्य किया जा सकता है..!!

*असत्य पर सत्य, बुराई पर अच्छाई के पर्व विजयदशमी की सभी को हार्दिक शुभकामना।*



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2022-10-05 05:18:16 जानवर देवता तथा दानव

एक राजा था | उसका मंत्री बहुत बुद्धिमान था | एक बार राजा ने अपने मंत्री से प्रश्न किया – “ मंत्री जी! भेड़ों और कुत्तों की पैदा होने कि दर में तो कुत्ते भेड़ों से बहुत आगे हैं, लेकिन भेड़ों के झुंड के झुंड देखने में आते हैं और कुत्ते कहीं-कहीं एक आध ही नजर आते है | इसका क्या कारण हो सकता है ?”

मंत्री बोला – “ महाराज! इस प्रश्न का उत्तर आपको कल सुबह मिल जायेगा |” 

राजा के सामने उसी दिन शाम को मंत्री ने एक कोठे में बिस कुत्ते बंद करवा दिये और उनके बीच रोटियों से भरी एक टोकरी रखवा दी |”

दूसरे कोठे में बीस भेड़े बंद करवा दी और चारे की एक टोकरी उनके बीच में रखवा दी | दोनों कोठों को बाहर से बंद करवाकर, वे दोनों लौट गये |

सुबह होने पर मंत्री राजा को साथ लेकर वहां आया | उसने पहले कुत्तों वाला कोठा खुलवाया | राजा को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि बीसो कुत्ते आपस में लड़-लड़कर अपनी जान दे चुके हैं और रोटियों की टोकरी ज्यों की त्यों रखी है | कोई कुत्ता एक भी रोटी नहीं खा सका था |

इसके पश्चात मंत्री राजा के साथ भेड़ों वाले कोठे में पहुंचा | कोठा खोलने के पश्चात राजा ने देखा कि बीसो भेड़े एक दूसरे के गले पर मुंह रखकर बड़े ही आराम से सो रही थी और उनकी चारे की टोकरी एकदम खाली थी |

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मंत्री राजा से बोला – महाराज! कुत्ते एक भी रोटी नहीं खा सके तथा आपस में लड़-लड़कर मर गये | उधर भेड़ों ने बड़े ही प्रेम से मिलकर चारा खाया और एक दूसरे के गले लगकर सो गयी | यही कारण है, कि भेड़ों के वंश में  वृद्धि है | समृद्धि है | उधर कुत्ते हैं, जो एक-दूसरे को सहन नहीं कर सकते | जिस बिरादरी में इतनी घृणा तथा द्वेष होगा | उसकी वृद्धि भला कैसे हो सकती है |

राजा मंत्री की बात से पूरी तरह संतुष्ट हो गया | उसने उसे बहुत-सा पुरस्कार दिया | वह मान गया था, कि आपसी प्रेम तथा भाईचारे से ही वंश वृद्धि होती है।

वह मान गया कि वास्तव में एकता द्वारा कुछ भी कार्य किया जा सकता है..!!

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2022-10-05 03:21:20 ------ एक चिंतन ------

एक व्यक्ति ने एक फूल से कहा- कल तो तुम मुरझा जाओगे,
फिर क्यों मुस्कुराते रहते हो?
और तुम व्यर्थ में ही यह ताजगी किसलिए लुटाते हो?

फूल चुप रहा।
इतने में एक तितली आई,
पल भर फूल का आनंद लिया और फिर उड़ गई।

एक भंवरा आया।
फूल को गान सुनाया, उसकी सुगंध बटोरी और फिर आगे बढ़ गया।

एक मधुमक्खी आई।
पल भर भिनभिनाई, फूल से पराग समेटा और फिर झूमती गाती हुई चली गई।

खेलते हुए एक बालक ने फूल का स्पर्श सुख लिया, उसका रूप-लावण्य निहारा, मुस्कुराया और फिर खेलने लग गया।

तब फूल बोला- मित्र! क्षण भर को ही सही,
पर मेरे जीवन ने कितनों को सुख दिया।
क्या तुमने भी कभी ऐसा किया?
कल की चिन्ता में ‌आज के आनंद में विराम क्यों करूं।
माटी ने जो रूप, रंग, रस और गंध दिए हैं,
उसे बदनाम क्यों करूं।
मैं हंसता हूं,
क्योंकी हंसना मुझे आता है।
मैं खिलता हूं,
क्योंकी खिलना मुझे सुहाता है।
मैं मुरझा गया तो क्या,
कल फिर से एक नया फूल खिलेगा।
ना कभी मुस्कान रुकी है और ना ही कभी सुगंध।
जीवन तो एक सिलसिला है,
और इसी तरह चलेगा।

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इसलिए! जो कुछ भी आपको मिला है उसी में खुश रहिए,
और हर पल प्रभु का शुक्रिया अदा करते रहिए।
क्योंकी आप जो ये जीवन जी रहे हैं,
वो जीवन कई लोगों ने तो देखा तक भी नहीं है।
सदा खुश रहिये, मुस्कुराते रहिये और अपनों को भी खुश रखिए।




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2022-10-04 05:47:32 *!! महिला के शुभ कदम !!*

एक आदमी ने दुकानदार से पूछा: केले और सेव फल क्या भाव लगाऐ है? दुकानदार: केले 20 रु. दर्जन और सेव 100 रु. किलो

उसी समय एक गरीब सी औरत दुकान में आयी और बोली मुझे एक किलो सेव और एक दर्जन केले चाहिए, क्या भाव है? भैया दुकानदार: केले 5 रु दर्जन और सेब 25 रु किलो। औरत ने कहा: जल्दी से दे दीजिए। दुकान में पहले से मौजूद ग्राहक ने खा जाने वाली निगाहों से घूरकर दुकानदार को देखा, इससे पहले कि वो कुछ कहता, दुकानदार ने ग्राहक को इशारा करते हुए थोड़ा सा इंतजार करने को कहा। औरत खुशी-खुशी खरीदारी करके दुकान से निकलते हुए बड़बड़ाई हे भगवान! तेरा लाख-लाख शुक्र है, मेरे बच्चे फलों को खाकर बहुत खुश होंगे।

औरत के जाने के बाद, दुकानदार ने पहले से मौजूद ग्राहक की तरफ देखते हुए कहा: ईश्वर गवाह है, भाई साहब मैंने आपको कोई धोखा देने की कोशिश नहीं की। यह विधवा महिला है, जो चार अनाथ बच्चों की मां है। किसी से भी किसी तरह की मदद लेने को तैयार नहीं है। मैंने कई बार कोशिश की है और हर बार नाकामी मिली है। तब मुझे यही तरकीब सूझी है कि जब कभी ये आए तो, मैं उसे कम से कम दाम लगाकर चीज़े दे दूँ। मैं यह चाहता हूँ कि उसका भ्रम बना रहे और उसे लगे कि वह किसी की मोहताज नहीं है।

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मैं इस तरह भगवान के बन्दों की पूजा कर लेता हूँ। थोड़ा रूक कर दुकानदार बोला: यह औरत हफ्ते में एक बार आती है। भगवान गवाह है, जिस दिन यह आ जाती है उस दिन मेरी बिक्री बढ़ जाती है और उस दिन परमात्मा मुझ पर मेहरबान हो जाता है।

ग्राहक की आंखों में आंसू आ गए, उसने आगे बढ़कर दुकानदार को गले लगा लिया और बिना किसी शिकायत के अपना सौदा खरीदकर खुशी-खुशी चला गया। खुशी अगर बांटना चाहो तो तरीका भी मिल जाता है।




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2022-10-04 03:35:48 संसार इसी की भूख से मर रहा है, अतः प्रेम का वितरण करो। अपने हृदय के आत्मिक प्रेम को हृदय में ही मत छिपा रखो। उदारता के साथ उसे बाँटो, जगत का बहुत-सा दुःख दूर हो जायेगा।



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2022-10-04 03:35:48 सद्व्यवहार का जादू

किसी गाँव में एक चोर रहता था।
एक बार उसे कई दिनों तक चोरी करने का अवसर ही नहीं मिला, जिससे उसके घर में खाने के लाले पड़ गये।

अब मरता क्या न करता, वह रात्रि के लगभग बारह बजे गाँव के बाहर बनी एक साधु की कुटिया में घुस गया।

वह जानता था कि साधु बड़े त्यागी हैं, अपने पास कुछ नहीं रखते फिर भी सोचा, 'खाने पीने को ही कुछ मिल जायेगा। तो एक दो दिन का गुजारा चल जायेगा।'

जब चोर कुटिया में प्रवेश कर रहे थे, संयोगवश उसी समय साधु बाबा ध्यान से उठकर लघुशंका के निमित्त बाहर निकले।

चोर से उनका सामना हो गया। साधु उसे देखकर पहचान गये क्योंकि पहले कई बार देखा था, पर साधु यह नहीं जानते थे कि वह चोर है।
उन्हें आश्चर्य हुआ कि यह आधी रात को यहाँ क्यों आया !
साधु ने बड़े प्रेम से पूछाः "कहो बालक ! आधी रात को कैसे कष्ट किया ? कुछ काम है क्या ?"
चोर बोलाः "महाराज ! मैं दिन भर का भूखा हूँ।"
साधुः "ठीक है, आओ बैठो। मैंने शाम को धूनी में कुछ शकरकंद डाले थे, वे भुन गये होंगे, निकाल देता हूँ। तुम्हारा पेट भर जायेगा।

शाम को आ गये होते तो जो था हम दोनों मिलकर खा लेते। पेट का क्या है बेटा ! अगर मन में संतोष हो तो जितना मिले उसमें ही मनुष्य खुश रह सकता है। 'यथा लाभ संतोष' यही तो है।"

साधु ने दीपक जलाया। चोर को बैठने के लिए आसन दिया, पानी दिया और एक पत्ते पर भुने हुए शकरकंद रख दिये।

फिर पास में बैठकर उसे इस तरह खिलाया, जैसे कोई माँ अपने बच्चे को खिलाती है।

साधु बाबा के सद्व्यवहार से चोर निहाल हो गया, सोचने लगा, 'एक मैं हूँ और एक ये बाबा हैं।
मैं चोरी करने आया और ये इतने प्यार से खिला रहे हैं ! मनुष्य ये भी हैं और मैं भी हूँ।
यह भी सच कहा हैः आदमी-आदमी में अंतर, कोई हीरा कोई कंकर। मैं तो इनके सामने कंकर से भी बदतर हूँ।'

मनुष्य में बुरी के साथ भली वृत्तियाँ भी रहती हैं, जो समय पाकर जाग उठती हैं।

जैसे उचित खाद-पानी पाकर बीज पनप जाता है, वैसे ही संत का संग पाकर मनुष्य की सदवृत्तियाँ लहलहा उठती हैं।

चोर के मन के सारे कुसंस्कार हवा हो गये। उसे संत के दर्शन, सान्निध्य और अमृतवर्षा दृष्टि का लाभ मिला।

एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध।
तुलसी संगत साध की, हरे कोटि अपराध।।

उन ब्रह्मनिष्ठ साधुपुरुष के आधे घंटे के समागम से चोर के कितने ही मलिन संस्कार नष्ट हो गये।

साधु के सामने अपना अपराध कबूल करने को उसका मन उतावला हो उठा।
फिर उसे लगा कि 'साधु बाबा को पता चलेगा कि मैं चोरी की नियत से आया था तो उनकी नजर में मेरी क्या इज्जत रह जायेगी !
क्या सोचेंगे बाबा कि कैसा पतित प्राणी है, जो मुझ संत के यहाँ चोरी करने आया !'

लेकिन फिर सोचा, 'साधु मन में चाहे जो समझें, मैं तो इनके सामने अपना अपराध स्वीकार करके प्रायश्चित करूँगा।

इतने दयालू महापुरुष हैं, ये मेरा अपराध अवश्य क्षमा कर देंगे।' संत के सामने प्रायश्चित करने से सारे पाप जलकर राख हो जाते हैं।

उसका भोजन पूरा होने के बाद साधु ने कहाः "बेटा ! अब इतनी रात में तुम कहाँ जाओगे, मेरे पास एक चटाई है, इसे ले लो और आराम से यहाँ सो जाओ। सुबह चले जाना।"
नेकी की मार से चोर दबा जा रहा था। वह साधु के पैरों पर गिर पड़ा और फूट-फूट कर रोने लगा।
साधु समझ न सके कि यह क्या हुआ ! साधु ने उसे प्रेमपूर्वक उठाया, प्रेम से सिर पर हाथ फेरते हुए पूछाः "बेटा ! क्या हुआ ?"
रोते-रोते चोर का गला रूँध गया। उसने बड़ी कठिनाई से अपने को सँभालकर कहाः
"महाराज ! मैं बड़ा अपराधी हूँ।"

साधु बोलेः "बेटा ! भगवान तो सबके अपराध क्षमा करने वाले हैं। उनकी शरण में जाने से वे बड़े-से-बड़े अपराध क्षमा कर देते हैं। तू उन्हीं की शरण में जा।"

चोरः "महाराज ! मेरे जैसे पापी का उद्धार नहीं हो सकता।"
साधुः "अरे पगले ! भगवान ने कहा हैः यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है।"

"नहीं महाराज ! मैंने बड़ी चोरियाँ की हैं। आज भी मैं भूख से व्याकुल होकर आपके यहाँ चोरी करने आया था लेकिन आपके सदव्यवहार ने तो मेरा जीवन ही पलट दिया।

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आज मैं आपके सामने कसम खाता हूँ कि आगे कभी चोरी नहीं करूँगा, किसी जीव को नहीं सताऊँगा।

आप मुझे अपनी शरण में लेकर अपना शिष्य बना लीजिये।"
साधु के प्यार के जादू ने चोर को साधु बना दिया।
उसने अपना पूरा जीवन उन साधु के चरणों में सदा के समर्पित करके अमूल्य मानव जीवन को अमूल्य-से-अमूल्य परमात्मा को पाने के रास्ते लगा दिया।

महापुरुषों की सीख है कि "आप सबसे आत्मवत् व्यवहार करें क्योंकि सुखी जीवन के लिए विशुद्ध निःस्वार्थ प्रेम ही असली खुराक है।
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2022-10-03 05:29:28 ★ एक समय की बात है कि एक आदमी के पास बहुत कीमती घोड़ा था। उसको प्रतिपल यह चिन्ता लगी रहती थी कि कहीं कोई उस घोड़े को चुरा न ले जाए। एक दिन वह ऐसे नौकर की खोज में निकला जो कि रात भर जाग कर घोड़े का पहरा दे सके। रास्ते में उसे एक व्यक्ति मिला जिसने उस आदमी से कहा कि आपके घोड़े की रक्षा के लिए मुझ जैसा उपयुक्त नौकर आपको और कोई नहीं मिल सकता। क्योंकि मैं रात भर सोता नहीं हूँ। मुझे सोचने की आदत है। मैं हर समय कुछ न कुछ सोचता ही रहता हूँ। घोड़े का मालिक प्रसन्न हुआ और उस व्यक्ति को अपने घर ले आया। उसने घोड़े को कमरे में बंद कर बाहर से ताला लगा दिया और चाबी नौकर को दे दी। रात्रि के 12 बजे मालिक ने सोचा कि कहीं नौकर सो तो नहीं गया। इस बात की पुष्टि कर लेने के लिए वह नौकर के पास पहुंचा और पूछा- "क्या कर रहे हो भाई, सो तो नहीं रहे हो।" नौकर ने कहा कि नहीं, मैं सोया नहीं, मैं तो सोच रहा हूँ। मालिक आश्वस्त हुआ और बोला- "क्या सोच रहे हो?" नौकर ने कहा कि मैं यह सोच रहा हूँ कि जब दीवार में कील ठोकी जाती हैं तो जिस स्थान पर कील लगती है वहाँ की मिट्टी कहाँ चली जाती हैं? मालिक उसकी मूर्खता पर मुस्कुराया और साथ ही साथ आश्वस्त भी हुआ कि चलो नौकर तो ठीक मिल गया जो सोचता ही रहेगा, सोयेगा नहीं। मालिक ने कहा- ठीक है सोचते रहो। और वह वापस अपने घर में आ गया। रात्रि के दूसरे पहर मालिक पुनः उस नौकर के पास यह देखने के लिए पहुंचा कि कहीं वह अब तो नहीं सो गया। परन्तु मालिक ने पाया कि नौकर अभी भी किसी गहन चिंतन में डूबा हुआ है। मालिक ने पूछा- "अरे भाई, अब क्या सोच रहे हो?" नौकर बोला- "मैं यह सोच रहा हूँ कि जब टूथपेस्ट को दबाया जाता है तब पेस्ट बाहर क्यों आ जाता है, भीतर की ओर क्यों नहीं जाता? मालिक ने कहा- हाँ, ठीक है। इसी तरह सोचते रहो। सुबह चार बजे मालिक फिर आया और व्यक्ति से उसके चिन्तन का विषय पूछा। तो व्यक्ति ने कहा कि अब मैं एक अत्यंत गंभीर विषय पर विचार कर रहा हूँ। मालिक बोला- "वह कौन सा गंभीर विषय हैं?" नौकर ने कहा- "मैं यहाँ सारी रात बैठा रहा, सोया भी नहीं, कमरे को ताला भी लगा हुआ था, फिर घोड़ा गायब हुआ तो कैसे?"_

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*● कहीं हम भी उस व्यक्ति की तरह सोचते ही न रह जायें और बिना ब्रह्मज्ञान(ईश्वर दर्शन) के हमारा समय पूर्ण हो जाएँ, और फिर से चौरासी के चक्कर में पड़ना पड़े!*




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2022-10-03 03:42:58 विवाह के दो वर्ष हुए थे जब सुहानी गर्भवती होने पर अपने घर पंजाब जा रही थी ...पति शहर से बाहर थे ...

जिस रिश्ते के भाई को स्टेशन से ट्रेन मे बिठाने को कहा था वो लेट होती ट्रेन की वजह से रुकने में मूड में नहीं था इसीलिए समान सहित प्लेटफॉर्म पर बनी बेंच पर बिठा कर चला गया ....

गाड़ी को पांचवे प्लेटफार्म पर आना था ...

गर्भवती सुहानी को सातवाँ माह चल रहा था. सामान अधिक होने से एक कुली से बात कर ली....

बेहद दुबला पतला बुजुर्ग...पेट पालने की विवशता उसकी आँखों में थी ...एक याचना के साथ  सामान उठाने को आतुर ....

सुहानी ने उसे पंद्रह रुपये में तय कर लिया और टेक लगा कर बैठ गई.... तकरीबन डेढ़ घंटे बाद गाडी आने की घोषणा हुई ...लेकिन वो बुजुर्ग कुली कहीं नहीं दिखा ...

कोई दूसरा कुली भी खाली नज़र नही आ रहा था.....ट्रेन छूटने पर वापस घर जाना भी संभव नही था ...

रात के साढ़े बारह बज चुके थे ..सुहानी का मन घबराने लगा ...

तभी वो बुजुर्ग दूर से भाग कर आता हुआ दिखाई दिया .... बोला चिंता न करो बिटिया हम चढ़ा देंगे गाडी में ...भागने से उसकी साँस फूल रही थी ..उसने लपक कर सामान उठाया ...और आने का इशारा किया

सीढ़ी चढ़ कर पुल से पार जाना था कयोकि अचानक ट्रेन ने प्लेटफार्म चेंज करा था जो अब नौ नम्बर पर आ रही थी

वो साँस फूलने से धीरे धीरे चल रहा था और सुहानी भी तेज चलने हालत में न थी
गाडी ने सीटी दे दी
भाग कर अपना स्लीपर कोच का डब्बा ढूंढा ....

डिब्बा प्लेटफार्म खत्म होने के बाद इंजिन के पास था। वहां प्लेटफार्म की लाईट भी नहीं थी और वहां से चढ़ना भी बहुत मुश्किल था ....

सुहानी पलटकर उसे आते हुए देख ट्रेन मे चढ़ गई...तुरंत ट्रेन रेंगने लगी ...कुली अभी दौड़ ही रहा था ...

हिम्मत करके उसने एक एक सामान रेलगाड़ी के पायदान के पास रख दिया ।

अब आगे बिलकुल अन्धेरा था ..

जब तक सुहानी ने हडबडाये कांपते हाथों से दस का और पांच का का नोट निकाला ...
तब तक कुली की हथेली दूर हो चुकी थी...

उसकी दौड़ने की रफ़्तार तेज हुई ..
मगर साथ ही ट्रेन की रफ़्तार भी ....

वो बेबसी से उसकी दूर होती खाली हथेली देखती रही ...

और फिर उसका हाथ जोड़ना नमस्ते
और आशीर्वाद की मुद्रा में ....
उसकी गरीबी ...
उसका पेट ....
उसकी मेहनत ...
उसका सहयोग ...
सब एक साथ सुहानी की आँखों में कौंध गए ..

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उस घटना के बाद सुहानी डिलीवरी के बाद दुबारा स्टेशन पर उस बुजुर्ग कुली को खोजती रही मगर वो कभी दुबारा नही मिला ...

आज वो जगह जगह दान आदि करती है मगर आज तक कोई भी दान वो कर्जा नहीं उतार पाया उस रात उस बुजुर्ग की कर्मठ हथेली ने किया था ...

सच है कुछ कर्ज कभी नही उतारे जा सकते......!
साभार




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