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Jeevan Ki Anmol Nidhi

टेलीग्राम चैनल का लोगो jeevankianmolnidhi — Jeevan Ki Anmol Nidhi J
टेलीग्राम चैनल का लोगो jeevankianmolnidhi — Jeevan Ki Anmol Nidhi
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Dev Chandel
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नवीनतम संदेश

2022-11-02 04:58:54 * तीसरी रोटी*

* रामेश्वर ने पत्नी के जाने के बाद अपने हम उम्र दोस्तो के साथ सुबह शाम पार्क में टहलना और गप्पें मारना साथ ही पार्क के समीप के मंदिर में दर्शन करना, को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया था। हालांकि घर में उन्हें किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं थी। सब उनका बहुत ध्यान रखते थे।*

* आज सभी चुपचाप बैठे थे एक दोस्त को वृद्धाश्रम भेजने की बात से सभी दुखी थे।*
* "आप लोग हमेशा पूछते थे कि मैं भगवान से तीसरी रोटी क्यों मांगता हूँ आज बतलाता हूँ। "*
* "क्या बहू तुम्हें तीन रोटी ही देती है या सिर्फ तीसरी..."*

*उत्सुकता से कमल ने पूछा।*
* नहीं यार! ऐसी कोई बात नहीं है, बहू बहुत अच्छी है।*

* "रोटी चार प्रकार की होती है।*
* पहली सबसे स्वादिष्ट रोटी माँ की ममता और वात्सल्य से भरी। जिससे पेट तो भर जाता है पर मन कभी नहीं भरता।*
*"सोलह आने सच, पर शादी के बाद माँ की रोटी कम ही मिलती है।"*

* "हाँ, वही तो, दूसरी रोटी पत्नी की होती है। जिसमे अपनापन और समर्पण भाव होता है जिससे पेट और मन दोनों भर जाते हैं।"*
*"क्या बात कही है यार ?"*
*ऐसा तो कभी हमने सोचा ही नहीं, फिर तीसरी रोटी किसकी होती है।"*

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* "तीसरी रोटी बहू की होती है जिसमें सिर्फ कर्तव्य भाव होता है जो पेट भर देती है और वृद्धाश्रम से भी बचाती है।"*
*थोड़ी देर के लिए चुप्पी छा जाती है।*

* "चौथी रोटी किसकी होती है।"मौन तोड़ते हुए कमल ने पूछा।*
*"चौथी रोटी नौकरानी की होती है। जिससे न पेट भरता है न ही मन। और स्वाद की तो कोई गारंटी नहीं।"*

*सबके हाथ तीसरी रोटी के लिए जुड़ गये।*



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2022-11-01 05:33:50 *मस्तराम का खजाना*

राजा-महाराजाओं के जमाने की बात है। किसी गांव में मस्तराम नाम का एक युवक रहता था। वह था तो बहुत गरीब और उसे मुश्किल से ही भरपेट भोजन मिल पाता था। मगर फिर भी वह चिंता नहीं करता था और सदा हंसता-मुस्कराता रहता था। 
उसमें एक खास बात यह थी कि वह लोगों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता था। कोई उससे जो भी काम करने को कहता था वह तुरंत कर देता था और बदले में जो भी मजदूरी मिलती थी उसे खुशी-खुशी ले लेता था। बस यही उसकी आमदनी थी और इसी में उसका गुजारा होता था।

एक दिन मस्तराम किसी धनी सेठ के यहां काम के लिए गया और सेठ उसके काम से बहुत खुश हो गए। उन्होंने खुश होकर मस्तराम से पूछा-“भाई,मस्तराम मैं तुम्हारे काम से बहुत खुश हूं। मैं तुम्हें इनाम देना चाहता हूं। बोलो तुम्हें क्या इनाम चाहिए?”

मस्तराम ने मजाक-मजाक में कह दिया कि-“सेठ जी, मेरे लिए ऐसी पोशाक बनवा दीजिए जिसे पहनकर मैं भी आप जैसा सेठ दिखने लगूं।”

मस्तराम की बात सुनकर सेठ हंसने लगे और फिर उन्होंने सचमुच ही उसके लिए एक कीमती पोशाक बनवा कर दे दी। उस पोशाक को पाकर मस्तराम बहुत खुश हुआ। घर जाकर खूब अच्छे से नहा-धोकर उसने वह पोशाक पहनी और फिर लोगों को दिखाने के लिए घर से निकल लिया।

घर से निकलने के बाद उसकी मुलाकात एक किसान से हुई। किसान मस्तराम की महंगी पोशाक देखकर कहने लगा-“बड़ी कीमती पोशाक है! बहुत बड़े से सेठ लगते हो?”

किसान की बात सुनकर मस्तराम पर मस्ती छा गयी और फिर सेठों के जैसा रौब दिखाते हुए बोला-“सेठ क्या चीज़ है मेरे सामने! मेरे पास तो वो कीमती खजाना है जो यहां के राजा के पास भी नहीं है।”

यह सुनकर किसान हैरत में पड़ गया और उसने तीन बार ताली बजाई। जैसे ही किसान ने ताली बजाई वहां पर चार लोग आए और वे मस्तराम को पकड़ कर अपने साथ ले गए। दरअसल वह किसान राजा था और उस समय किसान के भेष में घूम रहा था। उसके साथ उसके चार सैनिक भी भेष बदल कर घूम रहे थे।

सैनिक मस्तराम को दरबार में ले आए और फिर राजा ने मस्तराम सवाल किया-“सुनो नौजवान, जल्दी से हमें बता दो कि तुमने खजाने को कहां छिपा रखा है?”

“महाराज, मैंने खजाने को कहीं नहीं छिपाया है।”

“कुछ देर पहले तो कह रहे थे कि तुम्हारे पास तो वो कीमती खजाना है जो राजा के पास भी नहीं है।”

“महाराज, वो तो मैं अब भी कह रहा हूं।”

“तो फिर बताते क्यों नहीं कि कहां छिपा रखा है? जल्दी से बता दो,अन्यथा फिर कोड़ों की मार पड़ेगी और रोते-रोते बताना पड़ेगा।”

कोड़ों की बात सुनकर मस्तराम हंसने लगा और यह देखकर राजा को उस पर बहुत क्रोध आया। वह बोले-“मूर्ख आदमी, तू कोड़ों खाने की बात पर भी हंस रहा है! क्या तुझे डर नहीं लगता?”

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इस बार मस्तराम हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और बोला-“क्षमा करें महाराज, सच में ही मेरे पास आपके और दुनिया के सब खजानों से कीमती खजाना है। मगर वह धन का नहीं, बल्कि मन का खजाना है। मेरे पास ऐसा मन है जिसमें मैंने मस्ती और उत्साह के दो पात्रों में संतोष और प्रसन्नता को जमा करके रखा है। इसी कारण मैं कभी चिंता में नहीं पड़ता हूं और हमेशा हर स्थिति में हंसता-मुस्कराता रहता हूं। अब आप ही बताइए कि क्या दुनिया में इससे कीमती भी कोई खजाना हो सकता है क्या?”

मस्तराम के इस खजाने के बारे में जानकर राजा को बड़ी खुशी हुई और बोले-“मस्तराम, सच में ही तुम्हारा खजाना सब खजानों से कीमती खजाना है और तुम दुनिया के सबसे अमीर आदमी हो।”




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2022-10-31 06:08:34 नदी का घमंड


एक बार नदी ने समुद्र से बड़े ही गर्वीले शब्दों में कहा बताओ पानी के प्रचंड वेग से मैं तुम्हारे लिए  क्या बहा कर लाऊं ? तुम चाहो तो मैं पहाड़, मकान, पेड़, पशु, मानव आदि सभी को उखाड़ कर ला सकती हूं ।

समुद्र समझ गया कि नदी को अहंकार आ गया है । उसने कहा, यदि मेरे लिए कुछ लाना ही चाहती हो तो थोड़ी सी घास उखाड़ कर ले आना । समुद्र की बात सुनकर नदी ने कहा, बस, इतनी सी बात ! अभी आपकी सेवा में हाजिर कर देती हूं । नदी ने अपने पानी का प्रचंड प्रवाह घास उखाड़ने के लिए लगाया परंतु घास नहीं उखड़ी । नदी ने हार नहीं मानी और बार-बार प्रयास किया पर घास बार-बार पानी के वेग के सामने झुक जाती और उखड़ने से बच जाती । नदी को सफलता नहीं मिली ।

थकी हारी निराश नदी समुंद्र के पास पहुंची और अपना सिर झुका कर कहने लगी, मैं मकान, वृक्ष, पहाड़, पशु, मनुष्य आदि बहाकर ला सकती हूं परंतु घास उखाड़ कर नहीं ला सकी क्योंकि जब भी मैंने प्रचंड वेग से खास पर प्रहार किया उसने झुककर अपने आप को बचा लिया और मैं ऊपर से खाली हाथ निकल आई ।

नदी की बात सुनकर समुद्र ने मुस्कुराते हुए कहा, जो कठोर होते हैं वह आसानी से उखड़ जाते हैं लेकिन जिसने घास जैसी विनम्रता सीख ली हो उसे प्रचंड वेग भी नहीं अखाड़ सकता । समुद्र की बात सुनकर नदी का घमंड भी चूर चूर हो गया ।

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विनम्रता अर्थात् जिसमें लचीलापन है, जो आसानी से मुड़ जाता है, वह टूटता नहीं । नम्रता में जीने की कला है, शौर्य की पराकाष्ठा है । नम्रता में सर्व का सम्मान संचित है । नम्रता हर सफल व्यक्ति का गहना है । नम्रता ही बड़प्पन है । दुनिया में बड़ा होना है तो नम्रता को अपनाना चाहिए । संसार को विनम्रता से जीत सकते हैं । ऊंची से ऊंची मंजिल हासिल कर लेने के बाद भी अहंकार से दूर रहकर विनम्र बने रहना चाहिए ।

विनम्रता के अभाव में व्यक्ति पद में बड़ा होने पर भी घमंड का ऐसा पुतला बनकर रह जाता है जो किसी के भी सम्मान का पात्र नहीं बन पाता । स्थान कोई भी हो, विनम्र व्यक्ति हर जगह सम्मान हासिल करता है । जहां विरोध हो जहां प्रतिरोध और बल से काम नहीं चल सकता । विनम्रता से ही समस्याओं का हल संभव है । विनम्रता के बिना सच्चा स्नेह नहीं पाया जा सकता । जो व्यक्ति अहं कार और वाणी की कठोरता से बचकर रहता है वही सर्वप्रिय बन जाता है ।



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2022-10-30 05:43:20 बिल्ली और कुत्ता


एक दिन की बात है, एक बिल्ली कहीं जा रही थी,तभी अचानक एक विशाल और भयानक कुत्ता उसके सामने आ गया।
कुत्ते को देखकर बिल्ली डर गई. कुत्ते और बिल्ली जन्म-बैरी होते है. बिल्ली ने अपनी जान का ख़तरा सूंघ लिया और जान हथेली पर रखकर वहाँ भागने लगी।
किंतु फुर्ती में वह कुत्ते से कमतर थी, थोड़ी ही देर में कुत्ते ने उसे दबोच लिया।

बिल्ली की जान पर बन आई. मौत उसके सामने थी।कोई और रास्ता न देख वह कुत्ते के सामने गिड़गिड़ाने लगी. किंतु कुत्ते पर उसके गिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं हुआ।
वह उसे मार डालने को तत्पर था, तभी अचानक बिल्ली ने कुत्ते के सामने एक प्रस्ताव रख दिया, “यदि तुम मेरी जान बख्श दोगे, तो कल से तुम्हें भोजन की तलाश में कहीं जाने की आवश्यता नहीं रह जायेगी, मैं यह ज़िम्मेदारी उठाऊंगी। मैं रोज़ तुम्हारे लिए भोजन लेकर आऊंगी

तुम्हारे खाने के बाद यदि कुछ बच गया, तो मुझे दे देना. मैं उससे अपना पेट भर लूंगी।

कुत्ते को बिना मेहनत किये रोज़ भोजन मिलने का यह प्रस्ताव जम गया। उसने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया, लेकिन साथ ही  उसने बिल्ली को आगाह भी किया कि धोखा देने पर परिणाम भयंकर होगा। बिल्ली ने कसम खाई कि वह किसी भी सूरत में अपना वादा निभायेगी।

कुत्ता आश्वस्त हो गया, उस दिन के बाद से वह बिल्ली द्वारा लाये भोजन पर जीने लगा।उसे भोजन की तलाश में कहीं जाने की आवश्यकता नहीं रह गई। वह दिन भर अपने डेरे पर लेटा रहता और बिल्ली की प्रतीक्षा करता. बिल्ली भी रोज़ समय पर उसे भोजन लाकर देती। इस तरह एक महिना बीत गया।महीने भर कुत्ता कहीं नहीं गया. वह बस एक ही स्थान पर पड़ा रहा. एक जगह पड़े रहने और कोई  भागा-दौड़ी न करने से वह बहुत  मोटा और भारी हो गया।

एक दिन कुत्ता रोज़ की तरह बिल्ली का रास्ता देख रहा था,उसे ज़ोरों की भूख लगी थी. किंतु बिल्ली थी कि आने का नाम ही नहीं ले रही थी।

बहुत देर प्रतीक्षा करने के बाद भी जब बिल्ली नहीं आई, तो अधीर होकर कुत्ता बिल्ली को खोजने निकल पड़ा।

वह कुछ ही दूर पहुँचा था कि उसकी दृष्टि बिल्ली पर पड़ी. वह बड़े मज़े से एक चूहे पर हाथ साफ़ कर रही है. कुत्ता क्रोध से बिलबिला उठा और गुर्राते हुए बिल्ली से बोला,  “धोखेबाज़ बिल्ली, तूने अपना वादा तोड़ दिया. अब अपनी जान की खैर मना।

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इतना कहकर वह बिल्ली की ओर लपका,बिल्ली पहले ही चौकस हो चुकी थी. वह फ़ौरन अपनी जान बचाने वहाँ से भागी.।
कुत्ता भी उसके पीछे दौड़ा. किंतु इस बार बिल्ली कुत्ते से ज्यादा फुर्तीली निकली. कुत्ता इतना मोटा और भारी हो चुका था कि वह अधिक देर तक बिल्ली का पीछा नहीं कर पाया और थककर बैठ गया।
इधर बिल्ली चपलता से भागते हुए उसकी आँखों से ओझल हो गई.।

शिक्षा:-
मित्रों! दूसरों पर निर्भरता अधिक दिनों तक नहीं चलती।यह हमें कामचोर और कमज़ोर बना देती है. जीवन में सफ़ल होना है, तो आत्मनिर्भर बनो।




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2022-10-29 05:24:52 *जीभ का रस*

एक बूढ़ा राहगीर थक कर कहीं टिकने का स्थान खोजने लगा। एक महिला ने उसे अपने बाड़े में ठहरने का स्थान बता दिया। बूढ़ा वहीं चैन से सो गया। सुबह उठने पर उसने आगे चलने से पूर्व सोचा कि यह अच्छी जगह है, यहीं पर खिचड़ी पका ली जाए और फिर उसे खाकर आगे का सफर किया जाए। बूढ़े ने वहीं पड़ी सूखी लकड़ियां इकठ्ठा कीं और ईंटों का चूल्हा बनाकर खिचड़ी पकाने लगा। बटलोई उसने उसी महिला से मांग ली।

बूढ़े राहगीर ने महिला का ध्यान बंटाते हुए कहा, 'एक बात कहूं.? बाड़े का दरवाजा कम चौड़ा है। अगर सामने वाली मोटी भैंस मर जाए तो फिर उसे उठाकर बाहर कैसे ले जाया जाएगा.?' महिला को इस व्यर्थ की कड़वी बात का बुरा तो लगा, पर वह यह सोचकर चुप रह गई कि बुजुर्ग है और फिर कुछ देर बाद जाने ही वाला है, इसके मुंह क्यों लगा जाए।

उधर चूल्हे पर चढ़ी खिचड़ी आधी ही पक पाई थी कि वह महिला किसी काम से बाड़े से होकर गुजरी। इस बार बूढ़ा फिर उससे बोला: 'तुम्हारे हाथों का चूड़ा बहुत कीमती लगता है। यदि तुम विधवा हो गईं तो इसे तोड़ना पड़ेगा। ऐसे तो बहुत नुकसान हो जाएगा.?'

इस बार महिला से सहा न गया। वह भागती हुई आई और उसने बुड्ढे के गमछे में अधपकी खिचड़ी उलट दी। चूल्हे की आग पर पानी डाल दिया। अपनी बटलोई छीन ली और बुड्ढे को धक्के देकर निकाल दिया।

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तब बुड्ढे को अपनी भूल का एहसास हुआ। उसने माफी मांगी और आगे बढ़ गया। उसके गमछे से अधपकी खिचड़ी का पानी टपकता रहा और सारे कपड़े उससे खराब होते रहे। रास्ते में लोगों ने पूछा, 'यह सब क्या है.?' बूढ़े ने कहा, 'यह मेरी जीभ का रस टपका है, जिसने पहले तिरस्कार कराया और अब हंसी उड़वा रहा है।'

शिक्षा:-
तात्पर्य यह है के पहले तोलें फिर बोलें। चाहे कम बोलें मगर जितना भी बोलें, मधुर बोलें और सोच समझ कर बोलें।



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2022-10-28 06:42:30 संकलन कर्ता-
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2022-10-28 05:34:32 *भाग्यशाली पश्चाताप*

घर का सारा कचरा इकट्ठा किया और बड़बड़ाती हुई बाहर निकली- 'संगीत के नाम पर बस अब यही आवाज शेष रह गई है जीवन में, बीस दिन हो गए स्पीकर खराब हुए, पर यहां किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ता, कितनी बार कहा कि ठीक करवा दो, पर नहीं...।'

रिया ने देखा कि पति अखबार में डूबा हुआ है, पर ऐसा तो नहीं था। वह चश्मे की ओट से उसे ताक रहा है और खुद से कह रहा है- ' घर आजकल घर कम और जंग का मैदान हो गया है।'

घर मे सुबह सुबह भजन लगाकर घर का सारा काम करने की आदत थी रिया की। सुबह बिना संगीत सुने उसकी दिनचर्या   अधूरी सी थी। "अगर इस पुराने डब्बे को ठीक नही करा के दे सकते तो मुझे सस्ते ईयर फ़ोन ही ला दो"-रिया का रेडियो आज सुबह से लगातार पटर पटर चल रहा था

दरअसल कुछ दिनों पहले रिया ने शादी की सालगिरह पर बतौर तोहफा साड़ी की मांग रखी थी। रोहित ने यह कहते हुए मना कर दिया कि करीबी रिश्तेदारों में बहुत सारी शादियां हैं। उनके लिए उपहार भी लेना होगा, तो बजट गड़बड़ा सकता है। बस रिया तब से खफा थी। आए दिन किसी न किसी बात पर तकरार हो जाती।

इसी से बचने के लिए आजकल रोहित ऑफिस के लिए जल्दी ही निकल जाता था। वैसे एक वजह यह भी थी कि ऑफिस में उसका मन ज्यादा लगने लगा था। अच्छी लगने लगी थी सरिता। नई जॉइनिंग थी दफ्तर में उसकी।

आज तो रोहित और सरिता ने ऑफिस से हाफ-डे ले लिया। सरिता को सालगिरह पर खरीदारी जो करानी थी। रोहित पेमेंट करने लगा तो उसका ध्यान पास खड़े राकेश पर गया।
राकेश रिया के दूर के रिश्ते का भाई लगता है।

राकेश ने तंज कसते हुए कह ही दिया- 'बहुत शॉपिंग हो रही है जीजू आजकल... ' फिर कान में फुसफुसाते हुए बोला- 'दीदी को....। '

रोहित के चेहरे पर हवाइयां उडऩेे लगीं। अचानक उसे लगा कि आखिर वह क्या कर रहा है? रिया को पता चल गया तो? कितना भी झागड़ा हो, पर उसे खोने के डर से ही वह घबरा गया। घर जाने से पहले उसने रिया के लिए एक ईयर फोन खरीदा।

घर में कदम रखते ही रिया से कहा, 'आज बाहर ही पाव भाजी खा कर आएंगे रिया। ' और रिया के हाथ में ईयर फोन थमा दिया। ईयर फोन देखकर और पति के नरम पड़ते हुए तेवर देखकर वह भी खुश हो गई।

बाइक पर बैठने से पहले ही रिया ने कानों में ईयर फोन ठूंस लिए। इधर वह गाने में खोई थी, उधर रोहित पश्चाताप में अपनी भूल की क्षमा मांग रहा था। रिया से वो अपनी हल्की नम हुई आंखों के साथ साथ लगातार क्षमा मांगे जा रहा था। बाइक चलाते-चलाते वह गर्दन को मोड़कर जरा देखता, पर उसे समझा न आया कि रिया के कानों में तो ईयर फोन लगे हैं!

रिया को महसूस हुआ कि रोहित कुछ कह रहा है, पर उसे अभी सिर्फ संगीत सुनना था। ईयर फोन तब कान से निकले, जब बाइक पाव भाजी के ठेले के पास जाकर रुकी।

बाइक रोकते ही रोहित ने रिया का हाथ बड़े प्यार से अपने हाथ में लिया और बोला, 'सॉरी रिया, आगे से ऐसी गलती नहीं होगी।'

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भारतीय ग्रहणी के सुंदर मनोभाव रखने वाली रिया ने तुंरन्त पति को बड़ा बनाते हुए कहा- 'मेरी भी तो गलती है, बहुत गुस्सा करती हूं न! अब नहीं करूंगी।'

दोनो के मन शांत थे। दोनो को अहसास था कि परिवार को चलाने में उनके जीवन साथी ने बहुत मेहनत की है। दोनो ने मन मे अब से ये गलती दुबारा न होगी ऐसा निश्चय कर लिया था। तब तक पाव भाजी की प्लेट उनके सामने आ चुकी थी और मुस्कुराता से पश्चाताप का ईयरफोन कंधे पर झाूल रहा था। रोहित अपनी गलती कह चुका था और रिया अपनी मान चुकी थी, दोनो संतुष्ट थे।

जीवन के सफर में पश्चाताप या अफसोस करना दो भावनाएं ऐसी दु:खदायी हैं जिसका असर बाहर से दिखाई नहीं देता, लेकिन अंदर अजीब सी घुटना महसूस होती है या अपना मन अंदर ही अंदर दु:खी होता है। पश्चाताप की भावना में बुद्धि का सोचना बंद हो जाता है। निराश होकर कभी भी हम अतीत की बीती हुई बातों को परिवर्तित नहीं कर सकते।प्रायश्चित व्यक्ति के मन को निर्मल बनाता है यधपि व्यक्ति का मान कुलशित, संकुचित हो जाता है और वह खुद को जीवनभर पापी ही समझता रहता है इसलिये प्रायश्चित करके अपने पापों को भुलकर पुण्य पर ही ध्यान देना जरूरी है। इसको लेकर जीवनभर अपराधबोध नहीं पालना चाहिए।



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2022-10-27 04:57:41 .  'प्रेरणादायक कहानी- ध्यान से पढ़िए'
__

बहुत पहले आप ने एक चिड
़िया की कहानी सुनी होगी..जिसका एक दाना पेड़ के कंदरे में कहीं फंस गया था.

चिड़िया ने पेड़ से बहुत अनुरोध किया उस दाने को दे देने के लिए लेकिन पेड़ उस छोटी सी चिड़िया की बात भला कहां सुनने वाला था...

हार कर चिड़िया बढ़ई के पास गई और उसने उससे अनुरोध किया कि तुम उस पेड़ को काट दो, क्योंकि वो उसका दाना नहीं दे रहा...

भला एक दाने के लिए बढ़ई पेड़ कहां काटने वाला था..फिर चिड़िया राजा के पास गई और उसने राजा से कहा कि तुम बढ़ई को सजा दो क्योंकि बढ़ई पेड़ नहीं काट रहा और पेड़ दाना नहीं दे रहा...

राजा ने उस नन्हीं चिड़िया को डांट कर भगा दिया कि कहां एक दाने के लिए वो उस तक पहुंच गई है। चिड़िया हार नहीं मानने वाली थी...

वो महावत के पास गई कि अगली बार राजा जब हाथी की पीठ पर बैठेगा तो तुम उसे गिरा देना,क्योंकि राजा बढ़ई को सजा नहीं देता..बढ़ई पेड़ नहीं काटता...पेड़ उसका दाना नहीं देता..महावत ने भी चिड़िया को डपट कर भगा दिया...

चिड़िया फिर हाथी के पास गई और उसने अपने अनुरोध को दुहराया कि अगली बार जब महावत तुम्हारी पीठ पर बैठे तो तुम उसे गिरा देना क्योंकि वो राजा को गिराने को तैयार नहीं...

राजा बढ़ई को सजा देने को तैयार नहीं...बढ़ई पेड़ काटने को तैयार नहीं...पेड़ दाना देने को राजी नहीं।
हाथी बिगड़ गया...उसने कहा, ऐ छोटी चिड़िया..तू इतनी सी बात के लिए मुझे महावत और राजा को गिराने की बात सोच भी कैसे रही है?

चिड़िया आखिर में चींटी के पास गई और वही अनुरोध दोहराकर कहा कि तुम हाथी की सूंढ़ में घुस जाओ...चींटी ने चिड़िया से कहा, "चल भाग यहां से...बड़ी आई हाथी की सूंढ़ में घुसने को बोलने वाली।

अब तक अनुरोध की मुद्रा में रही चिड़िया ने रौद्र रूप धारण कर लिया...उसने कहा कि "मैं चाहे पेड़, बढ़ई, राजा, महावत, और हाथी का कुछ न बिगाड़ पाऊं...पर तुझे तो अपनी चोंच में डाल कर खा ही सकती हूँ...

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चींटी डर गई...भाग कर वो हाथी के पास गई...हाथी भागता हुआ महावत के पास पहुंचा...महावत राजा के पास कि हुजूर चिड़िया का काम कर दीजिए नहीं तो मैं आपको गिरा दूंगा....राजा ने फौरन बढ़ई को बुलाया उससे कहा कि पेड़ काट दो नहीं तो सजा दूंगा...बढ़ई पेड़ के पास पहुंचा...बढ़ई को देखते ही पेड़ बिलबिला उठा कि मुझे मत काटो.मैं चिड़िया को दाना लौटा दूंगा...!!

'निष्कर्ष....

आपको अपनी ताकत को पहचानना होगा...आपको पहचानना होगा कि भले आप छोटी सी चिड़िया की तरह होंगे, लेकिन ताकत की कड़ियां कहीं न कहीं आपसे होकर गुजरती होंगी...हर शेर को सवा शेर मिल सकता है, बशर्ते आप अपनी लड़ाई से घबराएं नहीं...

आप अगर किसी काम के पीछे पड़ जाएंगे तो वो काम होकर रहेगा यकीन कीजिए. हर ताकत के आगे एक और ताकत होती है और अंत में सबसे ताकतवर आप होते हैं. हिम्मत, लगन और पक्का इरादा ही हमारी ताकत की बुनियाद है..!!      

बड़े सपनो को पाने वाले हर व्यक्ति को सफलता और असफलता के कई पड़ावों से गुजरना पड़ता है.

पहले लोग मजाक उड़ाएंगे,फिर लोग साथ छोड़ेंगे, फिर विरोध करेंगे फिर वही लोग कहेंगे हम तो पहले से ही जानते थे की एक न एक दिन तुम कुछ बड़ा करोगे!

रख हौंसला वो मंज़र भी आयेगा,
प्यासे के पास चलकर समंदर भी आयेगा..!

थक कर ना बैठ, ऐ मंजिल के मुसाफ़िर मंजिल भी मिलेगी और जीने का मजा भी आयेगा !!




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ओपन / कमेंट
2022-10-26 06:06:42 *एक दिन एक भिखारी  एक सज्जन की दुकान पर भीख मांगने पहुंचा। सज्जन व्यक्ति ने 1 रुपये का सिक्का निकाल कर उसे दे दिया।*

*भिखारी को प्यास भी लगी थी,वो बोला बाबूजी एक गिलास पानी भी पिलवा दो,गला सूखा जा रहा है। सज्जन व्यक्ति गुस्से में तुम्हारे बाप के नौकर बैठे हैं क्या हम यहां,पहले पैसे,अब पानी,थोड़ी देर में रोटी मांगेगा,चल भाग यहां से।*

*भिखारी बोला:-*
*बाबूजी गुस्सा मत कीजिये मैं आगे कहीं पानी पी लूंगा।पर जहां तक मुझे याद है,कल इसी दुकान के बाहर मीठे पानी की छबील लगी थी और आप स्वयं लोगों को रोक रोक कर जबरदस्ती अपने हाथों से गिलास पकड़ा रहे थे,मुझे भी कल आपके हाथों से दो गिलास शर्बत पीने को मिला था।मैंने तो यही सोचा था,आप बड़े धर्मात्मा आदमी है,पर आज मेरा भरम टूट गया।*
*कल की छबील तो शायद आपने लोगों को दिखाने के लिये लगाई थी।*

*मुझे आज आपने कड़वे वचन बोलकर अपना कल का सारा पुण्य खो दिया। मुझे माफ़ करना अगर मैं कुछ ज्यादा बोल गया हूँ तो।*

*सज्जन व्यक्ति को बात दिल पर लगी, उसकी नजरों के सामने बीते दिन का प्रत्येक दृश्य घूम गया। उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था। वह स्वयं अपनी गद्दी से उठा और अपने हाथों से गिलास में पानी भरकर उस बाबा को देते हुए उसे क्षमा प्रार्थना करने लगा।*

*भिखारी*
*बाबूजी मुझे आपसे कोई शिकायत नही,परन्तु अगर मानवता को अपने मन की गहराइयों में नही बसा सकते तो एक दो दिन किये हुए पुण्य व्यर्थ है।*
*मानवता का मतलब तो हमेशा शालीनता से मानव व जीव की सेवा करना है।*

*आपको अपनी गलती का अहसास हुआ,ये आपके व आपकी सन्तानों के लिये अच्छी बात है।*
*आप व आपका परिवार हमेशा स्वस्थ व दीर्घायु बना रहे ऐसी मैं कामना करता हूँ,यह कहते हुए भिखारी आगे बढ़ गया।*

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*सेठ ने तुरंत अपने बेटे को आदेश देते हुए कहा:-*
*कल से दो घड़े पानी दुकान के आगे आने जाने वालों के लिये जरूर रखे हो।उसे अपनी गलती सुधारने पर बड़ी खुशी हो रही थी।*


*सिर्फ दिखावे के लिए किये  गए पुण्यकर्म निष्फल हैं, सदा हर प्राणी के लिए आपके मन में शुभकामना शुभ भावना हो यही सच्चा पुण्य है*



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ओपन / कमेंट
2022-10-25 04:38:53 *मृदु व्यवहार*

संत के पास एक व्यक्ति आया और बोला, 'गुरुदेव, आप प्रवचन करते समय कहते हैं कि कटु से कटु वचन बोलने वाले के अंदर भी नरम हृदय हो सकता है। मुझे विश्वास नहीं होता।' संत यह सुनकर गंभीर हो गए। उन्होंने कहा, 'मैं इसका जवाब कुछ समय बाद ही दे पाऊंगा।' व्यक्ति लौट गया।

एक महीने बाद वह फिर संत के पास पहुंचा। उस समय संत प्रवचन दे रहे थे। वह लोगों के बीच जाकर बैठ गया। प्रवचन समाप्त होने के बाद संत ने एक नारियल उस व्यक्ति को दिया और कहा, 'वत्स, इसे तोड़कर इसकी गिरी निकाल कर लोगों में बांट दो।' व्यक्ति उसे तोड़ने लगा। नारियल बेहद सख्त था। बहुत कोशिश करने के बाद भी वह नहीं टूटा। उसने कहा, 'गुरुदेव, यह बहुत कड़ा है। कोई औजार हो तो उससे इसे तोड़ दूं।' संत बोले, 'औजार लेकर क्या करोगे? कोशिश करो, टूट जाएगा। वह फिर उसे तोड़ने लगा। इस बार वह टूट गया। उसने गिरी निकाल कर भक्तों में बांट दी। और एक कोने में बैठ गया। एक एक करके सभी भक्त चले गए। संत भी उठकर जाने लगे, तो उसने कहा,

'गुरुदेव, अभी तक मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं मिला।' संत मुस्कराकर बोले, 'तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दिया जा चुका है। पर तुमने समझा नहीं। व्यक्ति ने आश्चर्य से कहा, 'मैं समझ नहीं पाया।'

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संत ने समझाया, 'देख जिस तरह कठोर गोले में नरम गिरी होती है। उसी प्रकार कठोर से कठोर व्यक्ति में भी नरम हृदय हो है। उसे भी एक विशेष औजार से निकालना पड़ता है। वह औजार है, प्रेमपूर्ण व्यवहार। यदि किसी के कठोर आचरण या वचन का जवाब स्नेह से दिया जाए तो उसके भीतर का नरम हृदय बाहर आ जाता है। वह खुद भी मृदु व्यवहार करने लगता है।'

सीख- मृदु व्यवहार कठोर हृदय को भी कोमल बना सकता है।



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