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Jeevan Ki Anmol Nidhi

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टेलीग्राम चैनल का लोगो jeevankianmolnidhi — Jeevan Ki Anmol Nidhi
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आप भी अपने जानकर दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।
Dev Chandel
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नवीनतम संदेश 3

2022-10-12 05:39:30 आप भी अपने जानकर , दोस्त और परिवार के सदस्यों को add कर सकते है जिससे सभी को कहानी से प्रेरणा मिल सके  और ज्यादा से ज्यादा लाभ हो धन्यवाद।

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2022-10-12 05:39:29 * बेटा *

"माँ, मुझे कुछ महीने के लिये विदेश जाना पड़ रहा है। तेरे रहने का इन्तजाम मैंने करा दिया है।" तक़रीबन 32 साल के अविवाहित डॉक्टर सुदीप ने देर रात घर में घुसते ही कहा।

*"बेटा! तेरा विदेश जाना ज़रूरी है क्या?" माँ की आवाज़ में चिन्ता और घबराहट झलक रही थी।*

"माँ! मुझे इंग्लैंड जाकर कुछ रिसर्च करनी है। वैसे भी कुछ ही महीनों की तो बात है।" सुदीप ने कहा।
"जैसी तेरी इच्छा!" मरी से आवाज़  में माँ बोली और छोड़ आया सुदीप अपनी माँ 'प्रभा देवी' को पड़ोस वाले शहर में स्थित एक वृद्धा-आश्रम में!

वृद्धाश्रम में आने पर शुरू-शुरू में हर बुजुर्ग के चेहरे पर ज़िन्दगी के प्रति हताशा और निराशा साफ झलकती थी पर प्रभा देवी के चेहरे पर वृद्धाश्रम में आने के बावजूद कोई शिकन तक न थी।
             
एक दिन आश्रम में बैठे कुछ बुजुर्ग आपस में बात कर रहे थे। उनमें दो-तीन महिलायें भी थीं। उनमें से एक ने कहा, "डॉक्टर का कोई सगा-सम्बन्धी नहीं था जो अपनी माँ को यहाँ छोड़ गया।"

वहाँ बैठी एक महिला बोली, "प्रभा देवी के पति की मौत जवानी में ही हो गयी थी तब सुदीप कुल चार साल का था। पति की मौत के बाद प्रभा देवी और उसके बेटे को रहने और खाने के लाले पड़ गये। किसी भी रिश्तेदार ने उनकी मदद नहीं की। प्रभा देवी ने लोगों के कपड़े सिल-सिल कर अपने बेटे को पढ़ाया। बेटा भी पढ़ने में बहुत तेज था, तभी तो वो डॉक्टर बन सका।"

वृद्धाश्रम में करीब 6 महीने गुज़र जाने के बाद एक दिन प्रभा देवी ने आश्रम के संचालक राम किशन शर्मा जी के ऑफिस के फोन से अपने बेटे के मोबाईल नम्बर पर फोन किया और कहा, "सुदीप तुम हिंदुस्तान आ गये हो या अभी इंग्लैंड में ही हो?"

"माँ! अभी तो मैं इंग्लैंड में ही हूँ" सुदीप का जवाब था।
            
तीन-तीन, चार-चार महीने के अंतराल पर प्रभा देवी सुदीप को फ़ोन करती उसका एक ही जवाब होता, "मैं अभी वहीं हूँ, जैसे ही अपने देश आऊँगा तुझे बता दूँगा!"

इस प्रकार तक़रीबन दो साल गुजर गये। अब तो वृद्धाश्रम के लोग भी कहने लगे कि, देखो कैसा चालाक बेटा निकला, कितने धोखे से अपनी माँ को यहाँ छोड़ गया!

आश्रम के ही किसी बुजुर्ग ने कहा, "मुझे तो लगता नहीं कि डॉक्टर विदेश-पिदेश गया होगा, वो तो बुढ़िया से छुटकारा पाना चाह रहा था।"

किसी और बुजुर्ग ने कहा, "मगर वो तो शादीशुदा भी नहीं था।"

"अरे होगी उसकी कोई 'गर्ल-फ्रेण्ड' जिसने कहा होगा पहले माँ के रहने का अलग इंतजाम करो, तभी मैं तुमसे शादी करुँगी।"

दो साल आश्रम में रहने के बाद अब प्रभा देवी को भी अपनी नियति का पता चल गया। बेटे का गम उसे अंदर ही अंदर खाने लगा। वो बुरी तरह टूट गयी।
            
दो साल आश्रम में और रहने के बाद एक दिन प्रभा देवी की मौत हो गयी। उसकी मौत पर आश्रम के लोगों ने आश्रम के संचालक शर्मा जी से कहा, "इसकी मौत की खबर इसके बेटे को तो दे दो। हमें तो लगता नहीं कि वो विदेश में होगा, वो होगा यहीं कहीं अपने देश में।"

"इसके बेटे को मैं कैसे खबर करूँ? उसे मरे तो तीन साल हो गये।"

शर्मा जी की यह बात सुन वहाँ पर उपस्थित लोग सनाका खा गये।

उनमें से एक बोला, "अगर उसे मरे तीन साल हो गये तो प्रभा देवी से मोबाईल पर कौन बात करता था?"

"वो मोबाईल तो मेरे पास है जिसमें उसके बेटे की रिकॉर्डेड आवाज़ है।" शर्मा जी बोले।

"पर ऐसा क्यों ?" किसी ने पूछा।

शर्मा जी बोले कि, करीब चार साल पहले जब सुदीप अपनी माँ को यहाँ छोड़ने आया तो उसने मुझसे कहा, "शर्मा जी! मुझे 'ब्लड कैंसर' हो गया है और डॉक्टर होने के नाते मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि इसकी आखिरी स्टेज में मुझे बहुत तकलीफ होगी। मेरे मुँह से और मसूड़ों आदि से खून भी आयेगा। मेरी यह तकलीफ़ माँ से देखी न जा सकेगी। वो तो जीते जी ही मर जायेगी। *मुझे तो मरना ही है पर मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण मेरे से पहले मेरी माँ मरे।* मेरे मरने के बाद दो कमरे का हमारा छोटा सा 'फ्लेट' और जो भी घर का सामान आदि है वो मैं आश्रम को दान कर दूँगा।"

यह दास्ताँ सुन वहाँ पर उपस्थित लोगों की आँखें झलझला आयीं।

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प्रभा देवी का अन्तिम संस्कार आश्रम के ही एक हिस्से में कर दिया गया। उनके अन्तिम संस्कार में शर्मा जी ने आश्रम में रहने वाले बुजुर्गों के परिवार वालों को भी बुलाया।

माँ-बेटे की अनमोल और अटूट प्यार की दास्ताँ का ही असर था !

इस कहानी को पढ़ते हुए आप के मन के विचार कितनी बार बदले जरा सोचिये।

*हरबार जैसा हम सोचते है, जो तर्क करते है, जरूरी नही की वास्तविकता वही हो।*



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2022-10-11 05:38:15 *एक अच्छी आदत*

पुराने समय में दो दोस्त थे। बचपन में दोनों साथ पढ़ते और खेलते थे। पढ़ाई पूरी होने के बाद दोनों दोस्त अपने अपने जीवन में व्यस्त हो गए। एक दोस्त ने खूब मेहनत की और बहुत पैसा कमा लिया। जबकि दूसरा दोस्त बहुत आलसी था। वह कुछ भी काम नहीं करता था। उसका जीवन ऐसे ही गरीबी में कट रहा था। एक दिन अमीर व्यक्ति अपने बचपन के दोस्त से मिलने गया। अमीर व्यक्ति ने देखा की उसके दोस्त की हालत बहुत खराब है, उसका घर भी बहुत गंदा था।

गरीब दोस्त ने बैठने के लिए जो कुर्सी दी, उस पर धूल थी। अमीर व्यक्ति ने कहा कि तुम अपना घर इतना गंदा क्यों रखते हो? गरीब ने जवाब दिया कि घर साफ करने से कोई लाभ नहीं है, कुछ दिनों में ये फिर से गंदा हो जाता है। अमीर ने उसे बहुत समझाया कि घर को साफ रखना चाहिए, लेकिन वह नहीं माना। जाते समय अमीर व्यक्ति ने गरीब दोस्त को एक बहुत ही सुंदर गुलदस्ता उपहार में दिया। गरीब ने वह गुलदस्ता अलमारी के ऊपर रख दिया। इसके बाद जब भी कोई व्यक्ति उस गरीब के घर आता तो उसे सुंदर गुलदस्ता दिखता, वे कहते कि गुलदस्ता तो बहुत सुंदर है, लेकिन घर इतना गंदा है।

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बार-बार एक ही बात सुनकर गरीब ने सोचा कि ये अलमारी साफ कर देता हूं, उसने अलमारी साफ कर दी। अब उसके घर आने वाले लोगों ने कहा कि गुलदस्ता बहुत सुंदर, अलमारी भी साफ है, लेकिन पूरा घर गंदा है। ये बातें सुनकर गरीब व्यक्ति ने अलमारी के साथ वाली दीवार साफ कर दी। अब जो भी लोग उसके घर आते सभी उसी कोने में बैठना पसंद करते थे, क्योंकि वहां साफ-सफाई थी। गरीब व्यक्ति ने एक दिन गुस्से में पूरा घर साफ कर दिया और दीवारों की पुताई भी करवा दी। धीरे-धीरे उसकी सोच बदलने लगी और उसने काम करना शुरू कर दिया।

शिक्षा:-
हमारी एक छोटी सी अच्छी आदत हमारी सोच बदल सकती है, जिससे हमारा जीवन बदल सकता है। अच्छी आदतों से बड़ी-बड़ी बाधाएं भी दूर की जा सकती हैं।



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2022-10-10 05:41:23 एक गरीब औरत एक साधु के पास गई,"स्वामी जी! कोई ऐसा पवित्र मन्त्र लिख दीजिये जिससे मेरे बच्चों का रात को भूख से रोना बन्द हो जाये...।"
साधु ने कुछ पल एकटक आकाश की ओर देखा फिर अपनी कुटिया में अन्दर गया और एक पीले कपड़े पर एक मन्त्र लिखकर उसे ताबीज की तरह लपेट-बाँधकर उस महिला को दे दिया।
साधु ने कहा, "इस मन्त्र को घर में उस जगह रखना, जहाँ नेक कमाई का धन रखती हो।" महिला खुश होकर चली गई।

ईश्वर कृपा से उस उसके पति की आमदनी ठीक हुई और बच्चों को भोजन मिल गया। रात शान्ति से कट गई। अगले रोज़ भोर में ही उन्हें पैसों से भरी एक थैली घर के आंगन में मिली। थैली में धन के अलावा एक पर्चा भी निकला, जिस पर लिखा था, कोई कारोबार कर लें...।

इस बात पर अमल करते हुवे उस औरत के पति ने एक छोटी सी दुकान किराए पर ले ली और काम शुरू किया। धीरे धीरे कारोबार बढ़ा, तो दुकानें भी बढ़ती गईं...। जैसे पैसों की बारिश सी होने लगी...।

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पति की कमाई तिजोरी में रखते समय एक दिन उस महिला की नज़र उस मन्त्र लिखे कपड़े पर पड़ी...। "न जाने, साधु महाराज ने ऐसा कौन सा मन्त्र लिखा था कि हमारी सारी गरीबी दूर हो गई?" सोचते सोचते उसने वह मन्त्र वाला कपड़ा खोल डाला...।

लिखा था कि:

जब पैसों की तंगी ख़त्म हो जाये, तो सारा पैसा तिजोरी में छिपाने की बजाय कुछ पैसे ऐसे घर में डाल देना जहाँ से रात को बच्चों के रोने की आवाज़ें आती हों..!!



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2022-10-09 05:09:05 *पाप का फल*
                 

एक मांसाहारी परिवार था...
परिवार का प्रमुख रोज एक मुर्गे को हलाल करता था।मुर्गा चीखता और वह अट्टहास भरता !!!

उसके तीन अबोध बच्चे थे , बड़ा करीब चार वर्ष का था, दूसरा ढाई वर्ष का और तीसरा गोद का बच्चा था , उसके बच्चे जब पिता के इन कृत्यों को देखते तो उन्हें लगता कि उनके पिता कोई खेल खेलते हैं और पिता को उसमें बड़ा आनन्द आता है ।

एक दिन पिता किसी काम से कहीं बाहर गये , घर में मुर्गा नहीं आया तो बच्चों ने सोचा कि आज पिताजी नहीं हैं तो चलो आज हम ही यह खेल खेलें, बड़े बेटे ने छोटे को लिटाया, लिटाकर एक पैर से उसे दबाया, एक हाथ से सिर दबाया और उसके गले को छुरे से रेत दिया , जैसे ही गला रेता, बच्चा चीख पड़ा , भाई की चीख सुनकर यह भी घबराकर भागा।

चीख की आवाज़ सुनी, तो माँ जो अपने सबसे छोटे बेटे को टब में नहला रही थी, वह उसे वहीं छोड़कर आवाज की दिशा की ओर भागी , बेटे ने देखा माँ आ रही है और अब मुझे मारेगी तो उसने अपना मानसिक सन्तुलन खो दिया और छत से कूदकर अपनी जान दे दी, तो इधर वह बेटा भी गले की नस कट जाने के कारण मर चुका था , माँ दोनों बेटों का हाल देखकर वहीं मूर्छित होकर गिर गई।

काफी देर बाद जब माँ को होश आया तो याद आया कि वह छोटे बेटे को टब में नहलाता हुआ छोड़कर आई थी, मगर तब तक काफी समय गुजर चुका था , जब वह नीचे आई, तो उसकी गोद का बालक टब में ही शान्त हो चुका था।

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ये है पाप का कहर , आदमी पाप करता है, तो उसका परिणाम उसे भुगतना ही पड़ता है। मगर अफसोस, कि मनुष्य सब चीजों को देखते हुए समझते हुए भी पाप करने से भय नहीं खाता।

जो बोयेंगे, ऐसा ही काटेंगे....

*बच्चे जैसा माता पिता को करते देखते वैसा ही सीखते है । क्योंकि माता पिता अपने बच्चों के लिए सुपर हीरो होते है।*

*पाप का फल, आज नही तो निश्चय कल*



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2022-10-08 05:43:26 *संन्यासी और युवती*

एक पहुंचे हुए महात्मा थे। एक दिन महात्मा जी ने सोचा कि उनके बाद भी धर्मसभा चलती रहे इसलिए क्यों न अपने एक शिष्य को इस विद्या में पारंगत किया जाए। उन्होंने एक शिष्य को इसके लिए प्रशिक्षित किया। अब शिष्य प्रवचन करने लगा।

सभा में एक सुंदर युवती आने लगी। वह उपदेश सुनने के साथ प्रार्थना, कीर्तन, नृत्य आदि समारोह में भी सहयोग देती।

लोगों को उस युवती का युवक संन्यासी के प्रति लगाव खटकने लगा। एक दिन कुछ लोग महात्माजी के पास आकर बोले - 'प्रभु, आपका शिष्य भ्रष्ट हो गया है।'

महात्मा जी बोले - 'चलो हम स्वयं देखते हैं'। महात्मा जी आए, सभा आरंभ हुई। युवा संन्यासी ने उपदेश शुरू किया। युवती भी आई। उसने भी रोज की तरह सहयोग दिया।

सभा के बाद महात्मा जी ने लोगों से पूछा - 'क्या युवक संन्यासी प्रतिदिन यही सब करता है। और कुछ तो नहीं करता?

लोगों ने कहा - 'बस यही सब करता है।'

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महात्मा जी ने फिर पूछा - 'क्या उसने तुम्हें गलत रास्ते पर चलने का उपदेश दिया? कुछ अधार्मिक करने को कहा?'

सभी ने कहा - 'नहीं।'
महात्माजी बोले - 'तो फिर शिकायत क्या है?' कुछ धीमे स्वर उभरे कि 'इस युवती का इस संन्यासी के साथ मिलना- जुलना अनैतिक है'।

महात्माजी ने कहा - 'मुझे दुख है कि तुम्हारे ऊपर उपदेशों का कोई असर नहीं पड़ा। तुमने ये जानने की कोशिश नहीं की वो युवती है कौन। वह इस युवक की बहन है।

चूंकि तुम सबकी नीयत ही गलत है इसलिए तुमने उन्हें गलत माना।

सभी लज्जित हो गए।

जब नियत ही खोटी हो तो उपदेश का असर कैसे होगा??
...........



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2022-10-08 03:53:58 शेर और सियार

बहुत समय पहले की बात है हिमालय के जंगलों में एक बहुत ताकतवर शेर रहता था. एक दिन उसने बारासिंघे का शिकार किया और खाने के बाद अपनी गुफा को लौटने लगा. अभी उसने चलना शुरू ही किया था कि एक सियार उसके सामने दंडवत करता हुआ उसके गुणगान  करने लगा .

उसे देख शेर ने पूछा , ” अरे ! तुम ये क्या कर रहे हो ?”

” हे जंगल के राजा, मैं आपका सेवक बन कर अपना जीवन धन्य करना चाहता हूँ, कृपया मुझे अपनी शरण में ले लीजिये और अपनी सेवा करने का अवसर प्रदान कीजिये .” , सियार बोला.

शेर जानता था कि सियार का असल मकसद उसके द्वारा छोड़ा गया शिकार खाना है पर उसने सोचा कि चलो इसके साथ रहने से मेरे क्या जाता है, नहीं कुछ तो छोटे-मोटे काम ही कर दिया करेगा. और उसने सियार को अपने साथ रहने की अनुमति दे दी.

उस दिन के बाद से जब भी शेर शिकार करता , सियार भी भर पेट भोजन करता. समय बीतता गया और रोज मांसाहार करने से सियार की ताकत भी बढ़ गयी , इसी घमंड में अब वह जंगल के बाकी जानवरों पर रौब भी झाड़ने लगा. और एक दिन तो उसने हद्द ही कर दी .

उसने शेर से कहा, ” आज तुम आराम करो , शिकार मैं करूँगा और तुम मेरा छोड़ा हुआ मांस खाओगे.”

शेर यह सुन बहुत क्रोधित हुआ, पर उसने अपने क्रोध पर काबू करते हुए सियार को सबक सिखाना चाहा.

शेर बोला ,” यह तो बड़ी अच्छी बात है, आज मुझे भैंसा खाने का मन है , तुम उसी का शिकार करो !”

सियार तुरंत भैंसों के झुण्ड की तरफ निकल पड़ा , और दौड़ते हुए एक बड़े से भैंसे पर झपटा, भैंसा सतर्क था उसने तुरंत अपनी सींघ घुमाई और सियार को दूर झटक दिया. सियार की कमर टूट गयी और वह किसी तरह घिसटते हुए शेर के पास वापस पहुंचा .

” क्या हुआ ; भैंसा कहाँ है ? “, शेर बोला .

” हुजूर , मुझे क्षमा कीजिये ,मैं बहक गया था और खुद को आपके बराबर समझने लगा था …”, सियार गिडगिडाते हुए बोला.

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“धूर्त , तेरे जैसे का यही हस्र होता है, मैंने तेरे ऊपर दया कर के तुझे अपने साथ रखा और तू मेरे ऊपर ही धौंस जमाने लगा, ” और ऐसा कहते हुए शेर ने अपने एक ही प्रहार से सियार को ढेर कर दिया.

किसी के किये गए उपकार को भूल उसे ही नीचा दिखाने वाले लोगों का वही हस्र होता है जो इस कहानी में सियार का हुआ. हमें हमेशा अपनी वर्तमान योग्यताओं का सही आंकलन करना चाहिए और घमंड में आकर किसी तरह का मूर्खतापूर्ण कार्य नहीं करना चाहिए।।



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2022-10-07 06:27:03 “असल में चाचा बात ये है कि एक बार गाँव में बड़ी भयंकर बीमारी फैल गई थी, तो मैंने अपने बीवी-बच्चों और जमीन को बचाने के लिए आपके पिताजी के पास अपनी एक आँख गिरवी रख दी थी। अब यह रही उधार ली गई रकम और अब मैं नन्दू से अपनी आँख वापस मांग रहा हूं। यह इस बात के फैसले के लिए मुझे आपके पास ले आया ।”

तब चाचा ने अच्छन को समझा बुझाकर एक दिन की मोहलत ले ली।

अच्छन के जाने के बाद चाचा ने नन्दू से कहा-देखा! हो गया ना लफड़ा, इसीलिए तो मैं तुमसे पूछ रहा था कि कितने दिन रहोगे ।”

नन्दू चुप रहा। फिर चाचा पास के बूचड़खाने की ओर रवाना हुए। वहाँ पहुँचकर उन्होंने कुछ भेड़ बकरियों की आँखें खरीदीं और वापस लौट आए। वापस आकर उन्होंने नन्दू को कुछ समझाया और दोनों सो गये।

अगले दिन अच्छन मियां चाचा के यहाँ पहुँचे। उन्होंने देखा कि चाचा घर पर नहीं हैं, उन्होंने नन्दू पर अपनी हेकड़ी जमानी शुरू कर दी । बोले- “देखो नन्दू भाई, जल्दी से मुझे मेरी आँख ला दो।” वह जानता था कि नन्दू के पास आँख होगी ही नहीं तो वह देगा कहां से?”

मगर नन्दू ने उसकी आशाओं पर पानी फेर दिया। वह तेजी से अन्दर गया और चाचा की योजना के तहत वह अन्दर से एक बकरी की आँख ले आया।

और अच्छन से बोला-“लो भाईतुम्हारी आँख”

अच्छन ने चौंक कर नन्दू की हथेली पर रखी आँख को देखा फिर उसे अपने हाथ में लेकर उलट-पुलट कर देखने लगा। वह मन ही मन परेशान भी हो रहा था, मगर आखिरकार ठगपुरा की इज्जत का प्रश्न था। उलट-पुलट कर देखने के बाद अच्छन ने मुंह बनाकर कहा।

यह तो बड़ी है, यह मेरी आँख नहीं है।” वह समझ रहा था कि नन्दू के पास वही एक आँख होगी।

मगर ऐसा तो था ही नहीं। नन्दू वापस अन्दर गया और दूसरी आँख ले आया और बोला- “तब यह वाली होगी?”

दूसरी आँख देखते ही अच्छन के होश-मन्तर होने को तैयार हो गये।

मगर जल्दी ही उसने खुद को सम्भाल लिया और बोला-“नहीं, यह भी मेरी आँख नहीं है

तब नन्दू ने योजनाबद्ध तरीके से एक-दो बार और आँखें दिखाईं, मगर जब अच्छन ने उन्हें अपनी आंखें ना बताई तो नन्दू झुझलाकर वह टोकरी जिसमें आंखें रखी थीं, उठा लाया और अच्छन के सामने पटक कर बोला-“इसमें से छाँट ले अपनी । तुम्हारे जैसे बहुत से गरीबों ने दादाजी के पास अपनी आँखें गिरवी रख दी थीं।”

यह सुन और देखकर अच्छन ने झेप उतारने के लिए सभी आँखों से अपनी आँख ढूंढ़ने का नाटक किया फिर कुछ देर बाद गुस्से में भरते हुए बोला-“यह क्या मजाक है?”

“क्यों, क्या हुआ?” नन्दू ने जल्दी से पूछा।

“देखो चुपचाप, शराफत से मुझे मेरी आँख वापस लौटा दो… ” वह आग-बबूला होने का भरसक प्रयास करते हुए बोला।

क्यों इसमें तुम्हारी आँख नहीं है क्या?” नन्दू ने उसकी बात काट कर पूछा।

“लड़के मुझे ज्यादा बकवास पसन्द नहीं है, शराफत से मेरी आंख दो वरना.दुगुनी रकम वसूल लुगा।” उसने नन्दू के आगे टोकने से पहले ही जल्दी-जल्दी सब कुछ कह डाला।

यह गरमा-गरमी सुनकर अन्दर खामोश बैठे, नन्दू से यह सब नाटक करवा रहे चाचा फुर्ती से बाहर आए -“बोले

अच्छन भाई! इस तरह तो तुम्हारी आँख मिलने से रही। ऐसा करो तुम अपनी आँख नन्दू को दे जाओ, ताकि कल वह तुम्हारी दूसरी आंख से मिलाकर वैसी ही आँख तलाश दे।”

“क्या?” अच्छन का मुंह खुला का खुला रह गया।

“अगर कहो तो मैं निकाल दें अच्छन भाई?” चाचा ने गम्भीर मुद्रा बनाकर कहा।

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इतना सुनते ही अच्छन मियाँ वहाँ से इस तरह भागे जैसे उनके पीछे यमदूत पड़े हों।

अच्छन मियाँ को इस तरह भागते देख चाचा-भतीजे खिल-खिलाकर हंस पड़े। इस तरह चाचा ने नन्दू की जान बचा कर बुद्धिमत्ता की नई मिसाल कायम कर दी।

मित्रों“ अवसर पड़ने पर जो युक्ति काम कर जाये, वही बुद्धिमत्ता कहलाती है, बुद्धिमान कभी मात नहीं खाता, अतः हमें बुद्धिमान बनने के लिए सतत् प्रयास करते रहना चाहिए। इसलिये अपनी बुद्धि का प्रयोग भी उसी जगह करना चाहिए जहाँ उसकी आवश्यकता हो।”



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2022-10-07 06:26:50 *"बुद्धिमानी"*

गाँव का नाम था ठगपुरा। गाँव का बच्चा-बच्चा जैसे माँ के पेट से ठगी सीख कर आया था । ठगी के काम से गाँव का कोई भी इन्सान खुद को बचा ना सका था। उसी गाँव में नन्दू के चाचा भी रहते थे। ठगपुरा में रहने कारण नन्दू के चाचा भी इस ठगी की संज्ञा से बच न सके थे। ठगी के बेमिसाल ज्ञाताओं में उनकी गिनती होती थी।

इसी कारण उन्हें गाँव वालों ने चाचा ठग का नाम दे दिया था। मगर सब उन्हें सिर्फ चाचा ही कहते थे। नन्दू आज पहली बार अपने चाचा के गाँव आया था, इसी कारण वह गाँव के लोगों के स्वभाव से परिचित न था।

शाम को चाचा ने उससे पूछा-“बेटा! तुम यहाँ कितने दिन रहने आये हो?”

अपने चाचा के इस प्रश्न पर नन्दू हड़बड़ा गया। वह बोला- “बस चाचा, तीन-चार दिन, फिर मुझे मामी के यहाँ जाना है।”

“ठीक है बेटे!” कहकर चाचा अपने काम में लग गये । मगर नन्दू की समझ में यह ना आया कि उसके चाचा ने उससे ऐसा प्रश्न क्यों किया था, इस बारे में वह काफी देर तक सोचता रहा, मगर उसकी समझ में ना आया। आखिरकार वह सो गया।

अगले दिन उसके चाचा ने कहा-बेटे मैं खेत पर जा रहा हूँ, मगर जाने से पहले एक बात बता देना उचित समझता हूँ। देखो बेटा, समय बहुत खराब है। वैसे भी यह गाँव बदनाम है और गाँव वाले भी कुछ ऐसे ही हैं। बाहर से आने वाले को यहाँ खास सावधानी बरतनी पड़ती है । अतः घर से ज्यादा दूर मत जाना।” कहकर चाचा खेत पर चले गये।

दोपहर के समय नन्दू ने सोचा कि क्यों ना गाँव की रौनक ही देख ली जाए। यह सोचकर वह घर से बाहर निकल गया। अभी वह कुछ दूर चला ही था कि अचानक उसके पास एक आदमी आया। नन्दू ने देखा कि वह एक आंख

से काना था। नन्दू के पास आते ही वह बोला।

“काहे भैया! का हाल है। मेरा नाम अच्छन है, तुम राघव हो ना ?”

“नहीं, मेरा नाम नन्दू है।” नन्दू ने कहा।

“ओहो” वह व्यक्ति अंगड़ाई तोड़ बोला-“अच्छा-अच्छा! नाम में कुछ गलती हो गयी। वैसे मैं तुम्हें अच्छी तरह पहचानता हूँ। तुम्हारे दादा से मेरे बड़े अच्छे सम्बन्ध थे। अच्छी बैठक रहती थी, हुक्का पानी रहता और भी साथ था वे मेरे मेरहबानों में से… ।”

नन्दू ने उसकी बात काटकर कहा-“उन्हें तो गुजरे हुए भी वर्षो हो गये। आपकी उम्र तो अभी बहुत कम है। इसीलिए आप उनके साथियों में से मालूम नहीं पड़ते।”

“ओह यह बात नहीं है बेटे! असल में मैं अपनी देखरेख बहुत ज्यादा रखता हूं। इसलिए मेरी उम्र का एहसास नहीं होता। खैर छोड़ो ! अब काम की बात पर आ जाओ।” वह व्यक्ति बोला।

“काम की बात? कौनसे काम की बात?” नन्दू ने हैरानी से उस व्यक्ति को घूरा। “मैं बताता हूँ बेटे! जरा कान खोल कर सुनो!” वह व्यक्ति बहुत ही प्यार से बोला-“वैसे तो तुम खुद ही देख रहे हो मेरी एक आँख नहीं है, जानते हो इसका क्या कारण है?”

“ना तो मैं जानता हू और ना जानना चाहता ।” नन्दू बिना वजह गले पड़ी इस मुसीबत से पीछा छुड़ाना चाह रहा था। अत: इतना कहकर जैसे ही वह आगे बढ़ा, उस व्यक्ति ने उसका हाथ थाम लिया और बोला-

“सुनो बेटे! पहले मेरी सुनो! जानते हो मेरी एक आंख क्यों है, क्योंकि दूसरी आख तुम्हारे दादा पास गिरवी रखी है। उन्होंने वायदा किया था तुम उनकी पीढ़ी-दर-पीढ़ी से भी ले लेना। संयोग से आज उनके पोते यानि तुमसे भेट हो गई। इसलिए लाओ, दे दो मेरी आँख” वह बहुत ही मीठे स्वर में बात कर रहा था।

यह सुनकर नन्दू घबरा गया- “यह तो अजीब मुसीबत है। उसने सोचा।”

नन्दू की खामोशी देखकर वह व्यक्ति गरमी अख्तियार करने लगा। बात बढ़ने लगी तो नन्दू को एक उपाय सूझा। वह उस व्यक्ति से बोला-“ठीक है। भाई! यदि तुम्हारी आँख हमारे यहाँ गिरवी रखी है तो तुम घर चलो। चाचा के पास रखी तो है, मगर वे मुझे हाथ नहीं लगाने देंगे। तुम्हीं चलकर ले लो।”

यह सुनकर अच्छन नामक वह व्यक्ति नन्दू के साथ चाचा के घर की ओर रवाना हो गया।

घर पहुंचकर उसने पाया कि चाचा उसी का इन्तजार कर रहे हैं, उसने जल्दी-जल्दी चाचा को सारी बातें बताईं। हालांकि चाचा उसके साथ अच्छन को देखते ही समझ गये थे कि मामला गड़बड़ है, फिर भी नन्दू से सारी बात सुनने के बाद उन्होंने अन्जान बनकर अच्छन से पूछा- “कहो भाई अच्छन! कैसे आना हुआ?”

“जी कुछ ऐसी वैसी बात नहीं है, वैसे आप तो जानते ही होंगे कि इनके दादा, यानि आपके पिताजी बड़े सज्जन पुरुष थे। सारे गाँव की देखभाल रखते थे और आड़े टैम मै सबकी मदद भी करते थे ।” अच्छन ने कहा।

“जी! वह तो ठीक है, मगर यह तो बताइये कि आज आपको हमारे पिताजी की याद कैसे आ गई?” चाचा ने मुस्कुराकर पूछा।

“अब काहै बताऊँ चाचा । याद तो बहुत दिनों से आ रही थी मगर अब तक दिल में ही छुपा रखी थी।” अच्छन अपनी बात पर खुद ही ठहाका लगा बैठा। मजबूरी वश चाचा को भी उसकी हंसी में हिस्सा लेना पड़ा।
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2022-10-07 03:28:18 धीरे-धीरे रे मना-धीरे सबकुछ होय

अरविन्द के अन्दर धैर्य बिलकुल भी नहीं था. वह एक काम शुरू करता…कुछ दिन उसे करता और फिर उसे बंद कर दूसरा काम शुरू कर देता. इसी तरह कई साल बीत चुके थे और वह अभी तक किसी बिजनेस में सेटल नहीं हो पाया था.

अरविन्द की इस आदत से उसके माता-पिता बहुत परेशान थे. वे जब भी उससे कोई काम छोड़ने की वजह पूछते तो वह कोई न कोई कारण बता खुद को सही साबित करने की कोशिश करता.

अब अरविन्द के सुधरने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी कि तभी पता चला कि शहर से कुछ दूर एक आश्रम में  बहुत पहुंचे हुए गुरु जी का आगमन हुआ. दूर-दूर से लोग उनका प्रवचन सुनने आने लगे.

एक दिन अरविन्द के माता-पिता भी उसे लेकर महात्मा जी के पास पहुंचे.

उनकी समस्या सुनने के बाद उन्होंने अगले दिन सुबह-सुबह अरविन्द को अपने पास बुलाया.

अरविन्द को ना चाहते हुए भी भोर में ही गुरु जी के पास जाना पड़ा.

गुरु जी उसे एक  बागीचे में ले गए और धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए बोले.

बेटा तुम्हारा पसंदीदा फल कौन सा है.

“आम” अरविन्द बोला.

ठीक है बेटा !  जरा वहां रखे बोरे में से कुछ आम की गुठलियाँ निकालना और उन्हें यहाँ जमीन में गाड़ देना. 
अरविन्द को ये सब बहुत अजीब लग रहा था लेकिन गुरु जी बात मानने के अलावा उसके पास कोई चारा भी नहीं था.

उसने जल्दी से कुछ गुठलियाँ उठायीं और फावड़े से जमीन खोद उसमे गाड़ दीं.

फिर वे अरविन्द को लेकर वापस आश्रम में चले गए.

करीब आधे घंटे बाद वे अरविन्द से बोले, “जरा बाहर जा कर देखना उन  गुठलियों में से फल निकला की नहीं!”

“अरे! इतनी जल्दी फल कहाँ से निकल आएगा… अभी कुछ ही देर पहले तो हमने गुठलियाँ जमीन में गाड़ी थीं.”

“अच्छा, तो रुक जाओ थोड़ी देर बाद जा कर देख लेना!”

कुछ देर बाद उन्होंने अरविन्द से फिर बाहर जा कर देखने को कहा.

अरविन्द जानता था कि अभी कुछ भी नहीं हुआ होगा, पर फिर भी गुरु जी के कहने पर वह बागीचे में गया.

लौट कर बोला, “कुछ भी तो नहीं हुआ है गुरूजी…आप फल की बात कर रहे हैं अभी तो बीज से पौधा भी नहीं निकला है.”

“लगता है कुछ गड़बड़ है!”, गुरु जी ने आश्चर्य से कहा.

“अच्छा, बेटा ऐसा करो, उन गुठलियों को वहां से निकाल के कहीं और गाड़ दो…”

अरविन्द को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन वह दांत पीस कर रह गया.

कुछ देर बाद गुरु जी फिर बोले, “अरविन्द बेटा, जरा बाहर जाकर देखो…इस बार ज़रूर फल निकल गए होंगे.”

अरविन्द इस बार भी वही जवाब लेकर लौटा और बोला, “मुझे पता था इस बार भी कुछ नहीं होगा…. कुछ फल-वाल नहीं निकला…”

“….क्या अब मैं अपने घर जा सकता हूँ?”

“नहीं, नहीं रुको…चलो हम इस बार गुठलियों को ही बदल कर देखते हैं…क्या पता फल निकल आएं.”

इस बार अरविन्द ने अपना धैर्य खो दिया और बोला, “मुझे यकीन नहीं होता कि आपके जैसे नामी गुरु को इतनी छोटी सी बात पता नहीं कि कोई भी बीज लगाने के बाद उससे फल निकलने में समय लगता है….आपको  बीज को खाद-पानी देना पड़ता है ….लम्बा इन्तजार करना पड़ता है…तब कहीं जाकर फल प्राप्त होता है.”

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गुरु जी मुस्कुराए और बोले-

बेटा, यही तो मैं तुम्हे समझाना चाहता था…तुम कोई काम शुरू करते हो…कुछ दिन मेहनत करते हो …फिर सोचते हो प्रॉफिट क्यों नहीं आ रहा!  इसके बाद तुम किसी और जगह वही या कोई नया काम शुरू करते हो…इस बार भी तुम्हे रिजल्ट नहीं मिलता…फिर तुम सोचते हो कि “यार! ये धंधा ही बेकार है!

एक बात समझ लो जैसे आम की गुठलियाँ तुरंत फल नहीं दे सकतीं, वैसे ही कोई भी कार्य तब तक अपेक्षित फल नहीं दे सकता जब तक तुम उसे पर्याप्त प्रयत्न और समय नहीं देते. 

इसलिए इस बार अधीर हो आकर कोई काम बंद करने से पहले आम की इन गुठलियों के बारे में सोच लेना …. कहीं ऐसा तो नहीं कि तुमने उसे पर्याप्त समय ही नहीं दिया!

अरविन्द अब अपनी गलती समझ चुका था. तेंदुलकर एक दिन में महान बल्लेबाज तेंदुलकर नही बना वर्षो की मेहनत से श्रेष्ठ बल्लेबाज बना है । अरविंद ने भी मेहनत और धैर्य के बल पर जल्द ही एक नया व्यवसाय खड़ा किया और एक कामयाब व्यक्ति बना



जो प्राप्त है-पर्याप्त है
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संकलन कर्ता-
*Dev Chandel*
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