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Jeevan Ki Anmol Nidhi

टेलीग्राम चैनल का लोगो jeevankianmolnidhi — Jeevan Ki Anmol Nidhi J
टेलीग्राम चैनल का लोगो jeevankianmolnidhi — Jeevan Ki Anmol Nidhi
चैनल का पता: @jeevankianmolnidhi
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भाषा: हिंदी
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Dev Chandel
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नवीनतम संदेश 2

2022-10-24 05:29:32 *चूहा और बै*

एक नन्हा-सा चूहा था। वह अपने बिल से बाहर आया। उसने देखा कि एक बड़ा बैल पेड़ की छाया में सोया हुआ है। बैल जोर-जोर से खर्राटें भर रहा था। चूहा बैल की नाक के पास गया और मजा लेने के लिए उसने उसकी नाक में काट लिया।

बैल हड़बड़ा कर जाग गया। दर्द के मारे वह जोर से डकारा। इससे घबरा कर चूहा सरपट भागा। बैल ने पूरी ताकत से उसका पीछा किया। चूहा दौडकर झटपट दीवार के छेद में घुस गया। अब वह बैल की पहुँच से बाहर था।

पर बैल ने चूहे को सजा देने की ठान ली थी। उसने गुस्से से चिल्लाकर कहा, "अबे नालायक! मैं तुझे एक ताकतवर बैल को काटने का मजा चखाऊँगा।" बैल ताकतवर था। उसने अपने सिर से दीवार पर जोर से धक्का मारा। पर दीवार भी बहुत मजबूत थी। उस पर कोई असर नही हुआ, बल्कि बैल के सिर में ही चोट लगी। यह देख कर चूहे ने बैल को चिढ़ाते हुए कहा, "अरे मूर्ख, बिना मतलब अपना सिर क्यों फोड़ रहा है? तू कितना ही बलवान क्यों न हो, पर हमेशा तेरे मन की तो नहीं हो सकती।"

बैल अब भी चूहे को बिना दंड दिए छोड़ देने को तैयार नहीं था। चूहे जैसे एक तुच्छ प्राणी ने उसका अपमान किया था। इस समय वह बहुत क्रोध में था।

पर धीरे-धीरे उसका जोश कम हुआ। उसे चूहे की बात सही मालूम हुई। इसलिए वह चुपचाप वहाँ से चला गया।

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चूहे के ये शब्द अब भी उसके कान में गूँज रहे थे तू कितना ही बलवान क्यों न हो, पर हमेशा तेरे ही मन की तो नहीं हो सकती।

मित्रो" बुद्धि शक्ति से बड़ी होती है, इसीलिए हमे सर्व प्रथम बुद्धि द्वारा ही अपने प्रतिद्वंदी को मात देने का प्रयास करना चाहिए।

*आप सभी को सम्पूर्ण सहित मेरे व Jeevan Ki Anmol Nidhi परिवार की ओर से दीपोत्स्व की हार्दिक शुभकामना*



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2022-10-24 03:18:59 Happy Diwali

May this Diwali enlights Happiness and Blessings on You and Your Family .

Celebrate the Festival of Light with the Smile on Your Face. let's us make the sound of Fire works make the Night Sleepless.

May Goddess Laxmi shower the Happiness & Fortune on your Life .

Happy Diwali .
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2022-10-23 05:44:23 आधा सत्य…आधा झूठ


एक नाविक तीन साल से एक जहाज पर काम कर रहा था। एक दिन नाविक रात मेँ नशे मेँ धुत हो गया।

ऐसा पहली बार हुआ था। कैप्टन नेँ इस घटना को रजिस्टर मेँ इस तरह दर्ज किया, ” नाविक आज रात नशे मेँ धुत था।”

नाविक नेँ यह बात पढ़ ली। नाविक जानता था कि इस एक वाक्य से उसकी नौकरी पर बहुत बुरा असर पड़ेगा।

इसलिए वह कैप्टन के पास गया, माफी मांगी और कैप्टन से कहा कि उसनेँ जो कुछ भी लिखा है, उसमेँ आप ये जोड़ दीजिये कि ऐसा तीन साल मेँ पहली बार हुआ है, क्योँकि पूरी सच्चाई यही है।

कैप्टन नेँ उसकी बात से साफ इंकार कर दिया और कहा कि मैनेँ जो कुछ भी रजिस्टर मेँ दर्ज किया है. वही सच है।”

कुछ दिनों बाद नाविक की रजिस्टर भरनेँ की बारी आयी। उसने रजिस्टर मेँ लिखा-” आज की रात कैप्टन नेँ शराब नहीँ पी है।”  कैप्टन ने इसे पढ़ा और नाविक से कहा कि इस वाक्य को आप या तो बदल देँ अथवा पूरी बात लिखनेँ के लिए आगे कुछ और लिखेँ, क्योँकि जो लिखा गया था, उससे जाहिर होता था कि कैप्टन हर रोज रात को शराब पीता था।

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नाविक नेँ कैप्टन से कहा कि उसनेँ जो कुछ भी रजिस्टर मेँ लिखा है, वही सच है।

दोनोँ बातेँ सही हैँ, लेकिन दोनोँ से जो संदेश मिलता है, वह झूठ के सामान है।

अभिप्राय

पहला-हमें कभी इस तरह की बात नहीं करी चाहिए जो सही होते हुए भी गलत सन्देश दे ? और दूसरा- किसी बात को सुनकर उस पर अपना विचार बनाने या प्रतिक्रिया देने से पहले एक बार सोच लेना चाहिए कि कहीं इस बात का कोई और पहलू तो नहीं है।

संक्षेप में कहें तो हमें अर्धसत्य से बचना चाहिए।




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2022-10-22 05:29:24 *चोर बना महात्मा*

एक बार एक चोर जब मरने लगा तो उसने अपने बेटे को बुलाकर एक नसीहत दी:-” अगर तुझे चोरी करनी है तो किसी गुरुद्वारा, धर्मशाला या किसी धार्मिक स्थान में मत जाना बल्कि इनसे दूर ही रहना और दूसरी बात अगर कभी पकड़े जाओ, तो यह मत स्वीकार करना कि तुमने चोरी की है, चाहे कितनी भी सख्त मार पड़े|”

चोर के लड़के ने कहा:- “सत्य वचन”| इतना कहकर वह चोर मर गया और उसका लड़का रोज रात को चोरी करता रहा|

एक बार उस लड़के ने चोरी करने के लिए किसी घर के ताले तोड़े, लेकिन घर वाले जाग गए और उन्होंने शोर मचा दिया| आगे पहरेदार खड़े थे| उन्होंने कहा:- “आने दो, बच कर कहां जाएगा”? एक तरफ घरवाले खड़े थे और दूसरी तरफ पहरेदार|

अब चोर जाए भी तो किधर जाए| वह किसी तरह बच कर वहां से निकल गया| रास्ते में एक धर्मशाला पड़ती थी| धर्मशाला को देखकर उसको अपने बाप की सलाह याद आ गई कि धर्मशाला में नहीं जाना| लेकिन वह अब करे भी तो क्या करे ? उसने यह सही मौका देख कर वह धर्मशाला में चला गया| जहाँ सत्संग हो रहा था।

वह बाप का आज्ञाकारी बेटा था, इसलिए उसने अपने कानों में उंगली डाल ली जिससे सत्संग के वचन उसके कानों में ना पड़ जाए| लेकिन आखिरकार मन अडियल घोड़ा होता है, इसे जिधर से मोड़ो यह उधर नही जाता है| कानों को बंद कर लेने के बाद भी चोर के कानों में यह वचन पड़ गए कि देवी देवताओं की परछाई नहीं होती| उस चोर ने सोचा की परछाई हो या ना हो इस से मुझे क्या लेना देना|

घर वाले और पहरेदार पीछे लगे हुए थे| किसी ने बताया कि चोर, धर्मशाला में है| जांच पड़ताल होने पर वह चोर पकड़ा गया|

पुलिस ने चोर को बहुत मारा लेकिन उसने अपना अपराध कबूल नहीं किया| उस समय यह नियम था कि जब तक मुजरिम, अपराध ने स्वीकार कर ले तो सजा नहीं दी जा सकती|

उसे राजा के सामने पेश किया गया वहां भी खूब मार पड़ी, लेकिन चोर ने वहां भी अपना अपराध नहीं माना| वह चोर देवी की पूजा करता था। इसलिए पुलिस ने एक ठगिनी को सहायता के लिए बुलाया| ठगिनी ने कहा कि मैं इसको मना लूंगी| उसने देवी का रूप भर कर दो नकली बांहें लगाई, चारों हाथों में चार मशाल जलाई और नकली शेर की सवारी की|

क्योंकि वह पुलिस के साथ मिली हुई थी इसलिए जब वह आई तो उसके कहने पर जेल के दरवाजे कड़क कड़क कर खुल गए| जब कोई आदमी किसी मुसीबत में फंस जाता है तो अक्सर अपने इष्ट देव को याद करता है| इसलिए चोर भी देवी की याद में बैठा हुआ था कि अचानक दरवाजा खुल गया और अंधेरे कमरे में एकदम रोशनी हो गई|

देवी ने खास अंदाज में कहा:-” देख भक्त! तूने मुझे याद किया और मैं आ गई| तूने बड़ा अच्छा किया कि तुमने अपना अपराध स्वीकार नहीं किया| अगर तू ने चोरी की है तो मुझे सच-सच बता दे| मुझसे कुछ भी मत छुपाना| मैं तुम्हें फौरन आजाद करवा दूंगी|”

चोर, देवी का भक्त था| अपने इष्ट को सामने खड़ा देखकर बहुत खुश हुआ और मन में सोचने लगा कि मैं देवी को सब सच सच बता दूंगा| वह बताने को तैयार ही हुआ था कि उसकी नजर देवी की परछाई पर पड़ गई| उसको फौरन सत्संग का वचन याद आ गया कि देवी देवताओं की परछाई नहीं होती| उसने देखा कि इसकी तो परछाई है वह समझ गया कि यह देवी नहीं बल्कि मेरे साथ कोई धोखा है|

वह सच कहते कहते रुक गया और बोला:-“ मां! मैंने चोरी नहीं की| अगर मैंने चोरी की होती तो क्या आपको पता नहीं होता| जेल के कमरे के बाहर बैठे हुए पहरेदार चोर और ठगनी की बातचीत नोट कर रहे थे| उनको और ठगिनी को विश्वास हो गया कि यह चोर नहीं है|

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अगले दिन उन्होंने राजा से कह दिया कि यह चोर नहीं है| राजा ने उस को आजाद कर दिया| जब चोर आजाद हो गया तो सोचने लगा कि सत्संग का एक वचन सुनकर मैं जेल से छूट गया हूं| अगर मैं अपनी सारी जिंदगी सत्संग सुनने में लगाऊं तो मेरा तो जीवन ही बदल जाएगा| अब वह प्रतिदिन सत्संग में जाने लगा और चोरी का धंधा छोड़ कर महात्मा बन गया|

शिक्षा:-
कलयुग में सत्संग ही सबसे बड़ा तीर्थ है।



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2022-10-21 05:21:07 *निर्दोष को सजा*

बहुत समय पहले हरिशंकर नाम का एक राजा था। उसके तीन पुत्र थे और अपने उन तीनों पुत्रों में से वह किसी एक पुत्र को राजगद्दी सौंपना चाहता था। पर किसे? राजा ने एक तरकीब निकाली और उसने तीनो पुत्रों को बुलाकर कहा – अगर तुम्हारे सामने कोई अपराधी खड़ा हो तो तुम उसे क्या सजा दोगे?
पहले राजकुमार ने कहा कि अपराधी को मौत की सजा दी जाए तो दूसरे ने कहा कि अपराधी को काल कोठरी में बंद कर दिया जाये। अब तीसरे राजकुमार की बारी थी। उसने कहा कि पिताजी सबसे पहले यह देख लिया जाये कि उसने गलती की भी है या नहीं।

इसके बाद उस राजकुमार ने एक कहानी सुनाई – किसी राज्य में राजा हुआ करता था, उसके पास एक सुन्दर सा तोता था| वह तोता बड़ा बुद्धिमान था, उसकी मीठी वाणी और बुद्धिमत्ता की वजह से राजा उससे बहुत खुश रहता था। एक दिन की बात है कि तोते ने राजा से कहा कि मैं अपने माता-पिता के पास जाना चाहता हूँ। वह जाने के लिए राजा से विनती करने लगा।

तब राजा ने उससे कहा कि ठीक है पर तुम्हें पांच दिनों में वापस आना होगा। वह तोता जंगल की ओर उड़ चला, अपने माता- पिता से जंगल में मिला और खूब खुश हुआ। ठीक पांच दिनों बाद जब वह वापस राजा के पास जा रहा था तब उसने एक सुन्दर सा उपहार राजा के लिए ले जाने का सोचा।

वह राजा के लिए अमृत फल ले जाना चाहता था। जब वह अमृत फल के लिए पर्वत पर पहुंचा तब तक रात हो चुकी थी। उसने फल को तोड़ा और रात वहीँ गुजारने का सोचा। वह सो रहा था कि तभी एक सांप आया और उस फल को खाना शुरू कर दिया। सांप के जहर से वह फल भी विषाक्त हो चुका था।

जब सुबह हुई तब तोता उड़कर राजा के पास पहुँच गया और कहा – राजन मैं आपके लिए अमृत फल लेकर आया हूँ। इस फल को खाने के बाद आप हमेशा के लिए जवान और अमर हो जायेंगे। तभी मंत्री ने कहा कि महाराज पहले देख लीजिए कि फल सही भी है कि नहीं ? राजा ने बात मान ली और फल में से एक टुकड़ा कुत्ते को खिलाया।

कुत्ता तड़प -तड़प कर मर गया। राजा बहुत क्रोधित हुआ और अपनी तलवार से तोते का सिर धड़ से अलग कर दिया। राजा ने वह फल बाहर फेंक दिया| कुछ समय बाद उसी जगह पर एक पेड़ उगा| राजा ने सख्त हिदायत दी कि कोई भी इस पेड़ का फल ना खाएं क्यूंकि राजा को लगता था कि यह अमृत फल विषाक्त होते हैं और तोते ने यही फल खिलाकर उसे मारने की कोशिश की थी।

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एक दिन एक बूढ़ा आदमी उस पेड़ के नीचे विश्राम कर रहा था। उसने एक फल खाया और वह जवान हो गया क्यूंकि उस वृक्ष पर उगे हुए फल विषाक्त नहीं थे। जब इस बात का पता राजा को चला तो उसे बहुत ही पछतावा हुआ उसे अपनी करनी पर लज़्ज़ा हुई।

तीसरे राजकुमार के मुख से यह कहानी सुनकर राजा बहुत ही खुश हुआ और तीसरे राजकुमार को सही उत्तराधिकारी समझते हुए उसे ही अपने राज्य का राजा चुना।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि किसी भी अपराधी को सजा देने से पहले यह देख लेना चाहिए कि उसकी गलती है भी या नहीं, कहीं भूलवश आप किसी निर्दोष को तो सजा देने नहीं जा रहे हैं। निरपराध को कतई सजा नहीं मिलनी चाहिए।




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2022-10-20 05:14:53 *सुझाव*
~

एक व्यक्ति ने अगरबत्ती की दुकान खोली ! नाना प्रकार की अगरबत्तियां थीं ! उसने दुकान के बाहर एक साइन बोर्ड लगाया - "यहाँ सुगन्धित अगरबत्तियां मिलती हैं ! "

दुकान चल निकली ! एक दिन एक ग्राहक उसके दुकान पर आया और कहा - आपने जो बोर्ड लगा रखा है , उसके एक विरोधाभास है ! भला अगरबत्ती सुगंधित नहीं होंगी तो क्या दुर्गन्धित होंगी ?

उसकी बात को उचित मानते हुए विक्रेता ने बोर्ड से सुगंधित शब्द मिटा दिया ! अब बोर्ड इस प्रकार था - "यहाँ अगरबत्तियां मिलती हैं ! "

इसके कुछ दिनों के पश्चात किसी दूसरे सज्जन ने उससे कहा - आपके बोर्ड पर "यहाँ " क्यों लिखा है ? दुकान जब यहीं है तब यहाँ लिखना निरर्थक है !
इस बात को भी अंगीकार कर विक्रेता ने बोर्ड पर यहाँ शब्द मिटा दिया ! अब बोर्ड था - अगरबत्तियां मिलती हैं !

पुनः उस व्यक्ति को एक रोचक परामर्श मिला - अगरबत्तियां मिलती हैं का क्या प्रयोजन ? अगरबत्ती लिखना ही पर्याप्त है ! अतः वह बोर्ड केवल एक शब्द के साथ रह गया - "अगरबत्ती "
विडम्बना देखिये ! एक शिक्षक ग्राहक बन कर आये और अपना ज्ञान वमन किया - दुकान जब मात्र अगरबत्तियों की है तो इसका बोर्ड लगाने का क्या लाभ ? लोग तो देखकर ही समझ जायेंगे कि मात्र अगरबत्तियों की दुकान है ! इस प्रकार वह बोर्ड ही वहाँ से हट गया !

कालांतर में दुकान की बिक्री मंद पड़ने लगी और विक्रेता चिंतित रहने लगा ! एक दिन में उसका पुराना मित्र उसके पास आया ! अनेक वर्षों के उपरांत वे मिल रहे थे ! मित्र से इसकी स्थापना उसके चिंता ना छिप सकी और उसने इसका कारण पूछा तो व्यवसाय के गिरावट का पता चला !

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मित्र ने सब कुछ ध्यान से देखा और कहा - तुम बिल्कुल ही मूर्ख हो ! इतनी बड़ी दुकान खोल ली और बाहर एक बोर्ड नहीँ लगा सकते थे - यहाँ सुगंधित अगरबत्तियां मिलती हैं !

*शिक्षा:-*
आपको जीवन में प्रत्येक पग पर सुझाव देने वाले मिलेंगे जो उस विषय के विशेषज्ञ नहीं हैं परंतु लगेगा कि सारा विज्ञान, दर्शनशास्त्र , समाजशास्त्र इत्यादि उनमें अंतर्निहित है ! आप ऐसे व्यक्तियों की सुनेंगे या अनुपालन करेंगे तो आपकी स्थिति भी उस विक्रेता की भाँति हो जायेगी ! आप किसी भी विषय या निराकरण के लिये उससे सम्बन्धित विशेषज्ञों की सुने या अपने अन्तह्चेतन की क्योंकि आपको आपसे अधिक कोई नहीं जानता..!!



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2022-10-19 05:18:02 संकलन कर्ता-
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2022-10-19 05:17:47 कसाई के पीछे घिसटती जा रही बकरी ने सामने से आ रहे संन्यासी को  देखा तो उसकी उम्मीद बढ़ी। मौत आँखों में लिए वह फरियाद करने लगी-‘महाराज! मेरे छोटे-छोटे मेमने हैं। आप इस कसाई से मेरी प्राण-रक्षा करें। मैं जब तक जियूंगी, अपने बच्चों के हिस्से का दूध आपको पिलाती रहूंगी।

बकरी की करुण पुकार का संन्यासी पर कोई असर न पड़ा। वह निर्लिप्त भाव से बोला-‘मूर्ख, बकरी क्या तू नहीं जानती कि मैं एक संन्यासी हूँ। जीवन-मृत्यु, हर्ष-शोक, मोह-माया से परे, हर प्राणी को एक न एक दिन तो मरना ही है। समझ ले कि तेरी मौत इस कसाई के हाथों लिखी है। यदि यह पाप करेगा तो ईश्वर इसे भी दंडित करेगा।

मेरे बिना मेरे मेमने जीते-जी मर जाएंगे, बकरी यह कहकर रोने लगी।

तुम मूर्ख हो, रोने से बेहतर है कि भगवान का नाम लिया जाए। याद रखें, मृत्यु नए जीवन का द्वार है। सांसारिक संबंध मोह का परिणाम हैं।" संत ने उपदेश दिया।

बकरी निराश हो गई।

पास में खड़े एक कुत्ता जो पूरे दृश्य से अवगत था, उसने पूछा- संन्यासी महाराज, क्या आप मोह-माया से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं?

लपककर संन्यासी ने जवाब दिया-‘बिलकुल, भरा-पूरा परिवार था मेरा। सुंदर पत्नी, सुशील भाई-बहन, माता-पिता, चाचा-ताऊ, बेटा-बेटी। बेशुमार जमीन-जायदाद। मैं एक ही झटके में सब कुछ छोड़कर परमात्मा की शरण में चला आया। सांसारिक प्रलोभनों से बहुत ऊपर, सब कुछ छोड़ आया हूँ। मोह-माया का यह निरर्थक संसार छोड़ आया हूँ। जैसे कीचड़ में कमल संन्यासी डींग मारने लगा।

कुत्ते ने समझाया- आप चाहें तो बकरी की प्राणरक्षा कर सकते हैं। कसाई आपकी बात नहीं टालेगा। एक जीव की रक्षा हो जाए तो कितना उत्तम हो।

संन्यासी ने कुत्ते को जीवन का सार समझाना शुरू कर दिया- ‘मौत तो निश्चित ही है, आज नहीं तो कल, हर प्राणी को मरना है। इसकी चिंता में व्यर्थ स्वयं को कष्ट देता है जीव।' संन्यासी को लग रहा था कि वह उसे संसार के मोह-माया से मुक्त कर रहा है।

अभी संन्यासी अपना ज्ञान बघार ही रहा था कि तभी सामने एक काला भुजंग नाग फन फैलाए दिखाई पड़ा। वह संन्यासी पर न जाने क्यों कुपित था। मानों ठान रखा हो कि आज तो तूझे डंसूगा ही।

सांप को देखकर संन्यासी के पसीने छूटने लगे। मोह-मुक्ति का प्रवचन देने वाले संन्यासी ने कुत्ते की ओर मदद के लिए देखा।

कुत्ते की हंसी छूट गई। ‘संन्यासी महोदय मृत्यु तो नए जीवन का द्वार है। उसको एक न एक दिन तो आना ही है, फिर चिंता क्या? कुत्ते ने संन्यासी के वचन दोहरा दिए।

‘इस नाग से मुझे बचाओ।’ अपना ही उपदेश भूलकर संन्यासी गिड़गिड़ाने लगा। मगर कुत्ते ने उसकी ओर ध्यान न दिया।

कुत्ते ने चुटकी ली- ‘आप अभी यमराज से बातें करें। जीना तो बकरी चाहती है। इससे पहले कि कसाई उसको लेकर दूर निकल जाए, मुझे अपना कर्तव्य पूरा करना है।

इतना कहते हुए कुत्ता छलांग लगाकर नाग के दूसरी ओर पहुँच गया। फिर दौड़ते हुए कसाई के पास पहुँचा और उस पर टूट पड़ा।

आकस्मिक हमले से कसाई संभल नहीं पाया और घबराकर इधर-उधर भागने लगा। बकरी की पकड़ ढीली हुई तो वह जंगल में गायब हो गई।

कसाई से निपटने के बाद कुत्ते ने संन्यासी की ओर देखा। संन्यासी अभी भी ‘मौत’ के आगे कांप रहा था।

कुत्ते का मन हुआ कि संन्यासी को उसके हाल पर छोड़कर आगे बढ़ जाए लेकिन अंतरात्मा की आवाज नहीं मानी। वह दौड़कर विषधर के पीछे पहुँचा और पूंछ पकड़ कर झाड़ियों की ओर उछाल दिया।

संन्यासी की जान में जान आई। वह आभार से भरे नेत्रों से कुत्ते को देखने लगा।

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कुत्ता बोला- ‘महाराज, जहाँ तक मैं समझता हूँ , मौत से वही ज्यादा डरते हैं, जो केवल अपने लिए जीते हैं।

एक इंसान और एक जानवर में क्या अंतर है जो केवल अपनी परवाह करता है? जानवर भी दूसरों का ख्याल रखते हैं

प्रभु नाम जपने से कोई प्रभु का प्रिय नहीं हो जाता। जिसके मन में दया और करूणा नहीं उनसे तो ईश्वर भी प्रसन्न नहीं होते हैं।

धार्मिक प्रवचन केवल पापबोध से कुछ पल के लिए बचा लेते हैं परंतु जीने के लिए संघर्ष अपरिहार्य है और यही वास्तविकता है। मन में यदि करुणा-ममता न हों तो धार्मिक रीतियाँ भी आडंबर बन जाती हैं।



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2022-10-18 05:33:02 *मदद*

  *उस दिन सबेरे आठ बजे मैं अपने शहर से दूसरे शहर जाने के लिए निकला । मैं रेलवे स्टेशन पँहुचा , पर देरी से पँहुचने के कारण मेरी ट्रेन निकल चुकी थी । मेरे पास दोपहर की ट्रेन के अलावा कोई चारा नही था । मैंने सोचा कही नाश्ता कर लिया जाए ।*

  *बहुत जोर की भूख लगी थी । मैं होटल की ओर जा रहा था । अचानक रास्ते में मेरी नजर फुटपाथ पर बैठे दो बच्चों पर पड़ी । दोनों लगभग 10-12 साल के रहे होंगे .।बच्चों की हालत बहुत खराब थी ।*

  *कमजोरी के कारण अस्थि पिंजर साफ दिखाई दे रहे थे ।वे भूखे लग रहे थे । छोटा बच्चा बड़े को खाने के बारे में कह रहा था और बड़ा उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था । मैं अचानक रुक गया ।दौड़ती भागती जिंदगी में पैर ठहर से गये ।*

   *जीवन को देख मेरा मन भर आया । सोचा इन्हें कुछ पैसे दे दिए जाएँ । मैं उन्हें दस रु. देकर आगे बढ़ गया  तुरंत मेरे मन में एक विचार आया कितना कंजूस हूँ मैं ! दस रु. का क्या मिलेगा ? चाय तक ढंग से न मिलेगी ! स्वयं पर शर्म आयी फिर वापस लौटा । मैंने बच्चों से कहा - कुछ खाओगे ?*

   *बच्चे थोड़े असमंजस में पड़ गए ! जी । मैंने कहा बेटा ! मैं नाश्ता करने जा रहा हूँ , तुम भी कर लो ! वे दोनों भूख के कारण तैयार हो गए । मेरे पीछे पीछे वे होटल में आ गए । उनके कपड़े गंदे होने से होटल वाले ने डांट दिया और भगाने लगा ।*

   *मैंने कहा भाई साहब ! उन्हें जो खाना है वो उन्हें दो , पैसे मैं दूँगा ।होटल वाले ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा..! उसकी आँखों में उसके बर्ताव के लिए शर्म साफ दिखाई दी ।*

  *बच्चों ने नाश्ता मिठाई व लस्सी माँगी । सेल्फ सर्विस के कारण मैंने नाश्ता बच्चों को लेकर दिया । बच्चे जब खाने लगे , उनके चेहरे की ख़ुशी कुछ निराली ही थी । मैंने भी एक अजीब आत्म संतोष महसूस किया । मैंने बच्चों को कहा बेटा ! अब जो मैंने तुम्हे पैसे दिए हैं उसमें एक रु. का शैम्पू ले कर हैण्ड पम्प के पास नहा लेना ।*

  *और फिर दोपहर शाम का खाना पास के मन्दिर में चलने वाले लंगर में खा लेना ।मैं नाश्ते के पैसे चुका कर फिर अपनी दौड़ती दिनचर्या की ओर बढ़ निकला ।*

  *वहाँ आसपास के लोग बड़े सम्मान के साथ देख रहे थे । होटल वाले के शब्द आदर में परिवर्तित हो चुके थे । मैं स्टेशन की ओर निकला , थोडा मन भारी लग रहा था । मन थोडा उनके बारे में सोच कर दु:खी हो रहा था ।*

*रास्ते में मंदिर आया । मैंने मंदिर की ओर देखा और कहा - हे भगवान ! आप कहाँ हो ? इन बच्चों की ये हालत ! ये भूख आप कैसे चुप बैठ सकते हैं  !*

  *दूसरे ही क्षण मेरे मन में विचार आया , अभी तक जो उन्हें नाश्ता दे रहा था वो कौन था ? क्या तुम्हें लगता है तुमने वह सब अपनी सोच से किया ? मैं स्तब्ध हो गया ! मेरे सारे प्रश्न समाप्त हो गए ।*

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  *ऐसा लगा जैसे मैंने ईश्वर से बात की हो ! मुझे समझ आ चुका था हम निमित्त मात्र हैं । उसके कार्य कलाप वो ही जानता है , इसीलिए वो महान है !*

  *भगवान हमें किसी की मदद करने तब ही भेजता है , जब वह हमें उस काम के लायक समझता है ।यह उसी की प्रेरणा होती है । किसी मदद को मना करना वैसा ही है जैसे भगवान के काम को मना करना ।*

  *खुद में ईश्वर को देखना ध्यान है ! दूसरों में ईश्वर को देखना प्रेम है ! ईश्वर को सब में और सब में ईश्वर को देखना ज्ञान है....!!*




*जो प्राप्त है-पर्याप्त है*
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2022-10-16 05:35:51 *बन्दर और लकड़ी का खूंटा-पंचतंत्र*

एक समय शहर से कुछ ही दूरी पर एक मंदिर का निर्माण किया जा रहा था। मंदिर में लकड़ी का काम बहुत था इसलिए लकड़ी चीरने वाले बहुत से मज़दूर काम पर लगे हुए थे। यहां-वहां लकड़ी के लठ्टे पडे हुए थे और लठ्टे व शहतीर चीरने का काम चल रहा था। सारे मज़दूरों को दोपहर का भोजन करने के लिए शहर जाना पड़ता था, इसलिए दोपहर के समय एक घंटे तक वहां कोई नहीं होता था। एक दिन खाने का समय हुआ तो सारे मज़दूर काम छोड़कर चल दिए। एक लठ्टा आधा चिरा रह गया था। आधे चिरे लठ्टे में मज़दूर लकड़ी का कीला फंसाकर चले गए। ऐसा करने से दोबारा आरी घुसाने में आसानी रहती है।
तभी वहां बंदरों का एक दल उछलता-कूदता आया। उनमें एक शरारती बंदर भी था, जो बिना मतलब चीजों से छेड़छाड़ करता रहता था। पंगे लेना उसकी आदत थी। बंदरों के सरदार ने सबको वहां पड़ी चीजों से छेड़छाड़ न करने का आदेश दिया। सारे बंदर पेड़ों की ओर चल दिए, पर वह शैतान बंदर सबकी नजर बचाकर पीछे रह गया और लगा अड़ंगेबाजी करने।
उसकी नजर अधचिरे लठ्टे पर पड़ी। बस, वह उसी पर पिल पड़ा और बीच में अड़ाए गए कीले को देखने लगा। फिर उसने पास पड़ी आरी को देखा। उसे उठाकर लकड़ी पर रगड़ने लगा। उससे किर्रर्र-किर्रर्र की आवाज़ निकलने लगी तो उसने गुस्से से आरी पटक दी। उन बंदरो की भाषा में किर्रर्र-किर्रर्र का अर्थ ‘निखट्टू’ था। वह दोबारा लठ्टे के बीच फंसे कीले को देखने लगा।
उसके दिमाग में कौतुहल होने लगा कि इस कीले को लठ्टे के बीच में से निकाल दिया जाए तो क्या होगा? अब वह कीले को पकड़कर उसे बाहर निकालने के लिए ज़ोर आजमाईश करने लगा। लठ्टे के बीच फंसाया गया कीला तो दो पाटों के बीच बहुत मज़बूती से जकड़ा गया होता हैं, क्योंकि लठ्टे के दो पाट बहुत मज़बूत स्प्रिंग वाले क्लिप की तरह उसे दबाए रहते हैं।
बंदर खूब ज़ोर लगाकर उसे हिलाने की कोशिश करने लगा। कीला जोर लगाने पर हिलने व खिसकने लगा तो बंदर अपनी शक्ति पर खुश हो गया।
वह और ज़ोर से खौं-खौं करता कीला सरकाने लगा। इस धींगामुश्ती के बीच बंदर की पूंछ दो पाटों के बीच आ गई थी, जिसका उसे पता ही नहीं लगा।
उसने उत्साहित होकर एक जोरदार झटका मारा और जैसे ही कीला बाहर खिंचा, लठ्टे के दो चिरे भाग फटाक से क्लिप की तरह जुड़ गए और बीच में फंस गई बंदर की पूंछ। बंदर चिल्ला उठा।
तभी मज़दूर वहां लौटे। उन्हें देखते ही बंदर ने भागने के लिए ज़ोर लगाया तो उसकी पूंछ टूट गई। वह चीखता हुआ टूटी पूंछ लेकर भागा।

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कहानी सुनाकर करटक बोला, “इसीलिए कहता हूँ कि जिस काम से कोई अर्थ न सिद्ध होता हो, उसे नहीं करना चाहिए। व्यर्थ का काम करने से जान भी जा सकती है।




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