2021-08-10 13:12:50
हनुमान चालीसा गोस्वामी श्री तुलसीदास जी द्वारा यह अति विशिष्ट लेखनी इस संसार को दी गयी जो की अतुल्य ज्ञान से पूर्ण है यदि साधक इसके आध्यात्मिक अर्थ को समझते हैं उस स्थिति में इसका परचा प्रसार कर पाएँगे अन्यथा वह पूर्ण चालीसा को एक आप एक लेखनी मान बैठंगे।
चालीस का समूह चालीसा , चालीस चौपाई का समूह यह हनुमान चालीसा है जिसमें सम्पूर्ण विधान है अष्ट सिद्धि एवं नव निधि का की प्राप्ति की जा सके। श्री तुलसीदास जी द्वारा यह पूर्ण चालीसा अवधि भाषा में लिखी गयी है जिसके आध्यात्मिक एवं सामान्य अर्थ पर आज प्रकाश देना आवश्यक है।
जितने भी लेखनी ऋषियों द्वारा लिखी गयी हैं वह इस प्रकार से लिखी है जिसके सामान्य जीवन एवं आध्यात्मिक अर्थ दोनो निकल सकें जिससे एक सामान्य व्यक्ति भी समझ सके और एक आध्यात्मिक साधक उसके पीछे छुपे गहन अर्थ को समझ सकें।
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।। सामाजिक व्याख्या - श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है।
आध्यात्मिक व्याख्या - इस शरीर को ३ भाग में विभाजित किया गया है
१. कारण शरीर
२. सूक्ष्म शरीर
३. भौतिक शरीर
प्रत्येक शरीर की एक जीवात्मा अथवा चैतन्य शक्ति है उसी के कारण यह शरीर परिवर्तित होते हैं कारण से सूक्ष्म एवं सूक्ष्म से भौतिक में
कारण शरीर की जीवात्मा को हम प्राज्ञ कहते हैं और समस्त शरीर के प्रज्ञा को इश्वर कहते हैं जब यह शक्ति प्राज्ञ व् इश्वर का मिलन होता है इसे ही
गोविन्द अथवा विष्णु कहते है.
सूक्ष्म शरीर की चैतन्य शक्ति अथवा जीवात्मा को तेज़स कहते हैं समस्त शरीर के तेज़स को हिरणगर्भ कहते हैं जब तेज़ व् हिरणगर्भ का मिलन होता है इसे ही
ब्रह्मा कहते हैं.
भौतिक शरीर की चैतन्य शक्ति अथवा जीवात्मा विश्व कहते हैं समस्त शरीर के विश्व को विराट कहते हैं जब विश्व व् विराट का मिलन होता है इसे ही
शिव कहते है. शिव से जो शक्ति प्रकट होती है उसे ही तेज़स कहते हैं जो सूक्ष्म शरीर की चैतन्य शक्ति है.इसी प्रकार से पर्वर्तिकरण होता है जिससे कारण से भौतिक और भौतिक से कारण शरीर में उर्जा का प्रवाह होता है. इसी प्रवाह के कारण शिशु वयस्क होता है जब यह प्रवाह विपरीत स्थती में चलता है तब व्यसक वृद्धावस्था को प्राप्त होता है.
गुरु विश्व की शक्ति को दर्शया गया है जिसके माध्यम से साधक प्राज्ञ की शक्ति से मिलन कर पाया है। आसन शब्दों में भ्रूमध्या पर केंद्रित की जाने वाली ऊर्जा हाई गुरु हैं।
चरण (चरन) चर का अर्थ है पथ (विचरण) ण को आनंद से दर्शाया गया है जिस पथ पर चलने से आनंद की प्राप्ति हो उसे ही चरन रूप से दर्शया जाता है।
सरोज - कमल वह स्थिति है जब व्यक्ति अज्ञानी से गाँवँ होता है किस प्रकार से भूमि से उत्पन्न होता हुआ जल में जीवन की प्राप्ति करता है और सूर्य रूपी प्रकाश से स्वयं के आयाम का विस्तार केरके एक बीज से एक पुष्प में परिवर्तित होता है मनुष्य भी अपनी चेतना को इसी प्रकार से विस्तार केरके स्वयं को ईश्वर में परिवर्तित कर लेता है
रज - रज से दर्शया है अनु को जिसमें परमाणु बन्ने की क्षमता है लेकिन वह मात्र धूल के भाँति अपनी स्थिति में विद्दयमान है जिससे अन्य जीवन जंतु का स्वरूप बना रहे
मन - शरीर के 3 भाग में 24 तत्व है जिनके माध्यम से यह मनुष्य का निर्माण सम्भव हो पाया है जिसमें चित - चित्त - अहंकार - बुद्धि - मन - 10 इंद्रियाँ - 5 तन्मात्रा - 5 भौतिक तत्व सम्मिलित है इसी मन से मनुष्य का निर्माण हुआ है।
मनु का अर्थ है जब मन की यात्रा उर्धमुखी हो अर्थात् उपर की ओर हो रही हो। शरीर में 3 मुख्य नाड़ी है जिसमें से इड़ा पिंगला और सुषुम्ना है इसे इस प्रकार भी समझ सकते हैं की जब प्राण की यात्रा इड़ा और पिंगला में होती है वह प्राणवायु जो इन दोनो नाड़ी में प्रवाहित हो रही है उसे मन का स्वरूप दिया गया है।
मुकर - को दर्पण से दर्शया जाता है जब मन की यात्रा उर्धगामी होती है उस स्थिति में माया अथवा अज्ञान रूपी अंधकार दूर हो जाता है और जो भी इंद्रियायों में असंतुलन होता है वह समाप्त हो जाता है।
रघुवर (राम) -र - शक्ति (इंद्रियायों की सम्मिलित शक्ति)
अ - त्रिदेव द्वारा शक्ति
शक्ति का अर्थ है ऊर्जा , वह अब किसी भी तरह को ऊर्जा हो । भ्रह्म का अर्थ है रचनाकार , विष्णु का अर्थ है रचियता की रचना को वैसे ही रखना रचियता ने शरीर बनाया तो उसे वैसे ही रखना शिव का अर्थ है परिवर्तन जैसे जीवन फिर नया जीवन फिर नया जीवन ।
जब आदि और अंत एक ही होगा तो अनंत है , निराकार परब्रह्म ही सब कुछ हैं ।
रा का अर्थ हम समझ चुके हैं ।
1.3K viewsDewanshu, 10:12