नमस्कार देवांशू जी तंत्र श्रे्त्र मे नया होने की वजह से मेरा य | Sahaj Kriyayog Sadhna Adhyatmik Trust
नमस्कार देवांशू जी तंत्र श्रे्त्र मे नया होने की वजह से मेरा यह सवाल हे की जेसे अगर एक व्यक्ती किसी शक्ती की साधना करता है तो अगर वह सात्विक साधना करता हे तो ऐसा व्यक्ति राजसिक शक्ती तथा तामसिक शक्ती की भी सिद्धी कर सकता हे? उदाहरण के तौर पर अगर वह किसी काम के लिए राजसिक साधना की सिद्धी करता हे ओर फिर भविष्य मे किसी विशेष काम के लिए वह सात्विक साधना करता है ओर यदी ऐसा हो सकता है तो अंदरूनी ऊर्जा मे इसका क्या असर होगा? धन्यवाद
उत्तर - ऐसे प्रश्न यह साबित करते हैं की साधक की सीखने में रूचि है और वह कांसेप्ट समझना चाहते हैं और एक बार कांसेप्ट समझ में आ गया तो साधक आसानी से साधना कर सकते हैं जीवन में कभी भी -
देखिये उर्जा को समझने से पूर्व आपको कुछ चीज़े काल्पनिक तरह से समझनी होगी और इसी के आधार पर निर्णय करना होगा - जब भी मनुष्य किसी भी मंत्र का जप करते हैं उस समय शरीर में नाड़ीयों में रक रस उत्पन्न होता है जहाँ जहां चक्र होते हैं उस मंत्र से सम्बन्धित वहां चक्र के माध्यम से रस उत्पन्न होता है जब आप कोई भी साधना सिद्ध कर लेते हैं उस रस की उत्पत्ति समाप्त हो जाती है और पुनः उर्जा शरीर सामान्य हो जाता है और यदि सिद्धि बीच में खंडित होती है तो वह रस वहीं रहता है उसे स्वयं से समाप्त होने में ६ से ८ माह लग सकते हैं. अब यहाँ से समझें यदि आप साधना सिद्ध कर चुके हैं तो आप नयी साधना प्रथम साधना की सिद्धि के बाद कभी भी शुरू कर सकते हैं और यदि सिद्धि खंडित हुई है ऐसी स्थिति में आपको ६ से ८ माह इंतज़ार करना चाहिए. और यदि इंतज़ार नही करते हैं और नयी साधना करने लगते हैं तो अनेक प्रकार के रस शरीर में उत्पन्न हो जायेंगे जो हमेशा की दोष निर्माण करेंगे और साधना सफल नही होने देंगे
उपाय - यदि साधक ६ से ८ माह इंतज़ार नही करते हैं -
१. शोधन क्रिया - इस क्रिया को ४० दिन लगातार करने से शरीर में उप्तन्न संस्त रस का एक साथ नाश होता है - क्रिया को ऐसे लिख के सिखा पाना मुश्किल है इसलिए इसे सीखने के लिए आपको किसी शिविर अथवा रविवार को लखनऊ आश्रम आना होगा.
२. सिद्ध मध्य सेवन - २१ दिवस तक सप्त चक्र सिद्ध मद्य के सेवन से यह उर्जा शरीर में उत्पन्न रस का नाश होता है.
३. योगनिद्रा - प्रति दिवस यदि योगनिद्रा का अभ्यास ४० दिवस तक करेंगे ऐसे में भी आपको इसका लाभ मिलेगा.
तंत्र एवं योग आपस में योग स्थापित करते हैं दोनों एक दुसरे के बिना संभव नही हैं.
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