प्रणाम गुरुजी मेरे एक मित्र हैं उनका कहना है कि 16-17 वर्ष क | Sahaj Kriyayog Sadhna Adhyatmik Trust
प्रणाम गुरुजी
मेरे एक मित्र हैं उनका कहना है कि 16-17 वर्ष की आयु में उनसे कुछ गलत कार्य हो गए थे (उनके अनुसर दिमाग पर प्रेशर हद्द से जदा हो गया था) बाद में अपयश होने लगा और हमेशा ही होता रहता है जब जब वो अपने ब्रह्मचर्य खंडित करते हैं
कभी कभी जब पूजा पथ भक्ति का मन होता है तो भी उन परेशान करने वाली गतिविधिया बढ़ जाती है जब भी किसी साधना की करने की सोचे भी है तो भी असमन्य रूप से उन्हें लोग परेशन करने लगते हैं, सदाचारी है किंटू किसी से कुछ बोल नहीं पाते ऐसी विकट स्थिति में व्यक्ति क्या करें
उत्तर - कमुकता अथवा उत्तेजना अनुचित नही लेकिन उसका उपयोग निर्धारित करता है कि फल क्या होगा।
उदाहरण हेतु मनुष्य ऊर्जा का दुरुपयोग अपने आलस्य के कारण सर्वाधिक करता है जब तक आवश्यकता ना हो शरीर को आदेश ना दें जैसे
मान लीजिए सुबह बिस्तर से उठना है पहले शरीर को आदेश दिया कि अब उठते हैं उसके बाद नही 1 घंटे और सो लेते हैं
या कहीं चलते हैं शरीर मे ऊर्जा का प्रवाह चलने के अनुसार हुआ उसके बाद नही गए
आज मैं 100 किलो वजन उठाऊंगा लेकिन उठाने का प्रयास भी नही किया
अथवा
संभोग के बारे में सोचते हुए हस्तमैथुन करना।
समझने का प्रयास करें जब भी अपने कुछ भी सोचा आपके शरीर ने उस अनुसार शरीर मे ऊर्जा का प्रवाह कर दिया यह ऊर्जा सिर्फ भौतिक शरीर से ही नही सूक्ष्म शरीर से भी आती है ऊर्जा जब तक पूर्ण उपयोग नही होती वह किसी स्थान शरीर के जहां अपने विशेष रूप से कार्य हेतु ऊर्जा का आवाहन किया है वही सुरक्षित हो जाती है। ऐसी स्थिति में यदि वह कार्य ना किया जाए तो वह ऊर्जा कहा जाएगी ? कार्य बदलने से ऊर्जा का दूसरा रूप नवीन स्थान पर जाएगा।
ऐसे में क्या होगा ? ऐसे में मनुष्य जब एकाग्र होने का प्रयास करेगा वही ऊर्जा कभी खुजली, कभी झुंझनी कभी कामुकता के रूप में शरीर एवं मस्तिष्क की प्रक्रिया को बाधित करेगी।
इसलिए शरीर मे ऊर्जा का उतना ही प्रसार करें जितना ज़रूरी है।
यह आपके प्रश्न का सीधा उत्तर नही है लेकिन इसे समझने से आपके समस्त प्रश्न के उत्तर मिल जाएंगे।
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